RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
वर्षा देवी की नींद किसी के दरवाजा खट खटाने पर ही खुली.., अलसाए मन से उन्होने गेट खोला, सामने उनकी बेटी चारू खड़ी थी, उन्हें देखते ही बोली…
क्या बात है मम्मी आज आप अभी तक सो रही हैं, आज तक मेने आपको दिन में सोते हुए कभी नही देखा…?
हां बेटा.., पता नही आज मेरी आँख कैसे लग गयी वर्षा देवी ने नज़र झुकाए हुए कहा…, फिर माँ बेटी ड्रॉयिंग हॉल में आगयि जहाँ सुषमा और शंकर बैठे आपस में कुछ बातें कर रहे थे…!
उन दोनो पर नज़र पड़ते ही उन्हें रात का वो सीन याद आगया और उनके मन में फिरसे उथल पुथल शुरू होने लगी…!
लंच का समय था तो नौकरों को आवाज़ लगा कर उन्होने लंच लगवाया और फिर सबने मिलकर एक साथ लंच लिया…!
लंच के दौरान भी ज़्यादातर दोनो बहनें तो आपस में बातों में ही लगी रही लेकिन मामी ने शंकर को सिड्यूस करने के हर संभव प्रयास किए.., अपनी भरपूर गुदाज जवानी के जलवे बिखेरते हुए उन्होने कई बार शंकर के नाग को अपना फन फैलाने पर मजबूर कर दिया…!
उनकी हर अदा पर शंकर का मन बिचलित होने लगता था.., वर्षा देवी का हुश्न उसकी माँ रंगीली से किसी मायने में कम नही लगा उसे…!
अब उसे इस बाबत कोई शक शुबह नही बची थी, मामी को उसके लंड की तीब्र इच्छा हो रही है फिर भी उसने अपने आप पर काबू रखने का हर संभव प्रयास किया…!
शंकर नही चाहता था कि समय से पहले सुषमा को ये भान भी हो कि वो मामी के प्रति कैसे विचार रखता है, वरना बना बनाया खेल पल भर में बिगड़ सकता है…,
आज वो लालजी के घर में जिस मुकाम पर है उसमें सुषमा का बड़ा हाथ रहा है, अगर वो नाराज़ हो गयी तो फिर खेल ख़तम और पैसा हजम, वो और उसका परिवार फिर से ग़रीबी में जीने पर मजबूर हो जाएगा…!
उधर जैसे ही शंकर की प्यासी नज़रें वर्षा देवी के अर्धनग्न यौवन पर फिसलती, एक अनौखे एहसास से उनकी चूत गीली होने
लगती…, लेकिन लाजवस वो अपनी सीमा पार नही कर पा रही थी…!
अभी उनका चक्षुचोदन चल ही रहा था कि तभी सुषमा ने बॉम्ब फोड़ दिया…!
सुषमा – शंकर जल्दी से लंच ख़तम करके निकलते हैं घर को, पिताजी परेशान हो रहे होंगे वहाँ पर…!
अचानक से दोनो के भजन में भन्गा पड़ने पर वो एक दम से उच्छल से पड़े.., वर्षा देवी जो मंन ही मंन शंकर के मोटे तगड़े लंड जिसको वो अपनी भांजी की सुर्ख गुदाज चूत में सतसट किसी पिस्टन की तरह अंदर बाहर होते हुए देख चुकी थी उसे
अपनी मक्खन जैसी मुलायम माल पुए जैसी चूत में भी लेने की योजना बना चुकी थी, सुषमा के शब्दों ने उसकी योजना पर ढेर सारा पानी उडेल दिया…!
इस समय उसकी खुद की भांजी किसी सौतन के रूप में दिखाई दे रही थी.., कुछ देर पहले उसकी चूत शंकर के लंड की
परिकल्पना से खुशी के आँसू टपका रही थी, उसके दोनो होठ फड़कने लगे थे अब वो दोनो आपस में सट गये…!
वो दोनो एक दूसरे के दीदार-ए-हुश्न में इस कदर खोए हुए थे, वो तो अच्छा था कि उन दोनो लड़कियों का ध्यान इनकी तरफ
नही था, और खाते-खाते ही सुषमा ने ये बात कही थी…, वरना इनकी चक्षुचोदन क्रिया का भंडा फुट जाता…!
सुषमा की बात पर शंकर ने संभलते हुए अपनी रज़ामंदी दे दी.., वहीं मामी अभी भी सकते जैसी हालत में थी…, कहाँ वो आज
रात को किसी तरह शंकर से चुदना चाहती थी और अब कहाँ सुषमा ने उसके अरमानो पर फ्रीज़ का पानी उडेल दिया…!
थोड़ा वक़्त लगा उन्हें सामान्य होने में और फिर अपनी वाणी को संतुलित करते हुए बोली – अरे सुषमा बेटी.., ऐसी भी क्या जल्दी है जाने की.., एक दो दिन और शहर घूम लो.., कोई अच्छी सी फिल्म लगी होगी उसे देख आओ.., आराम से चली जाना…, वैसे भी कहाँ रोज़ रोज़ आती हो हमारे यहाँ…?
सुषमा – नही मामी जी…, आपको तो पता ही है, सारे कारोबार की ज़िम्मेदारी मेरे और शंकर के उपर है.., वो तो इसे आगे पढ़ने की वजह से यहाँ शहर में रहना पड़ेगा…, वरना तो इसके बिना हमारा काम चलना कितना मुश्किल होता है…!
वर्षा देवी उसकी बात सुनकर मंन ही मंन भुन्भुनाने लगी---क्यों नही बेटी.., तेरी चूत की खुजली जो मिटाता रहता होगा समय समय पर.., इसलिए इसके बिना तुम्हारा काम नही चलता है…!
इधर वो मंन ही मंन बुदबुदा रही थी उधर सुषमा ने आगे कहा… वैसे आप चिंता ना करो मामी, एक बार शंकर यहाँ पढ़ने लगेगा तो मे भी कभी कभी आती रहूंगी…!
वर्षा देवी मंन में – हां हां साली छिनाल, यहाँ आके भी उसका लॉडा लेगी ना.., फिर प्रत्यक्ष में बोली – जैसी तुम्हारी मर्ज़ी बेटा.., वैसे शंकर कब तक यहाँ आओगे..?
चारू – बस ये सेशन ख़तम हो जाए, दो महीने बाद जैसे ही दूसरा सेशन शुरू होगा ये यहाँ आ जाएँगे.., हमने प्रिन्सिपल से हॉस्टिल की भी बात कर ली है…!
वर्षा देवी को हॉस्टिल की बात सुनकर एक तेज झटका लगा…, फिर भी अपने आप पर काबू रखते हुए बोली – अरे चारू…हॉस्टिल क्यों.., हमारा घर इतना बड़ा है.., यहाँ रहने में क्या प्राब्लम है…!
सुषमा – वो क्या है ना मामी.. खामखा हमारी वजह से आप लोगों को कोई तकलीफ़ ना हो, मामा जी की वजह से अड्मिशन मिल गया ये भी बहुत है…!
वर्षा देवी – इसके यहाँ रहने से भला हमें क्या तकलीफ़ होगी, उल्टा घर में सहयोग ही रहेगा एक दूसरे से.., नही कोई हॉस्टिल
वॉस्टिल में नही रहना…, तुम यहीं हमारे साथ रहोगे शंकर… कहे देती हूँ…हां….!
शंकर ने एक नज़र मामी के चेहरे पर डाली जिसपर हॉस्टिल की बात से कुछ नागवारि सी झलकने लगी थी.., उनसे नज़र
मिलते ही उनकी मनोदशा का अनुमान लगते ही उसके चेहरे पर मुस्कान तैर गयी…,
शंकर – मेने सोचा आप इतने बड़े लोग हैं, आपके साथ रहने की मेरी हसियत कहीं आपके मान सम्मान में कमी ना ला दे…,
इसलिए मेने ही ये फ़ैसला किया कि मे हॉस्टिल में रहूं…!
वर्षा देवी लगभग बिफर्ते हुए लेकिन संयत लहजे में बोली – क्या कहा तुमने… तुम्हारे यहाँ रहने से हमारी मान मर्यादा कम हो जाएगी…, ये तुमने सोचा भी कैसे…, या चारू ने ऐसा कुछ तो नही कहा…!
चारू – क्या मम्मी आप भी…, मे भला ऐसा क्यों कहूँगी…? वैसे ये यहाँ रहे या ना रहे.., इस बात को लेकर आप इतनी पोज़ेसिव क्यों हो रही हो..?
वर्षा देवी – तू अभी बच्ची है, दुनिया दारी की बातें नही समझती…, ये हॉस्टिल में रहेगा… तो भला समधी जी या गाओं के और
लोग क्या सोचेंगे.., देखो सुषमा के मामा-मामी कितने छोटे दिल के हैं, एक लड़के को भी अपने घर में नही रख सके…!
सुषमा उनकी बात पर हँसते हुए बोली – ऐसा कोई सोचने वाला नही है मामी जी आप खाम्खा इतना परेशान ना हों…, अगर
आपको लगता है कि कोई ऐसा सोचेगा तो आपको जो उचित लगे वो करना… ठीक है…!
वर्षा देवी – तुम बस यहीं हमारे साथ ही रहोगे शंकर… ठीक है..,
शंकर ने मुस्कराते हुए अपनी रज़ामंदी दे दी…, लंच ख़तम करके वो सभी कुछ देर और आपस में बातें करते रहे, कुछ देर बाद वो गाओं के लिए निकल पड़े…!
जीप तक सुषमा के बेटे को चारू ने अपनी गोद में उठा लिया, वो दोनो बातें करते हुए जीप तक आई.., तभी पीछे से मामी ने शंकर का हाथ पकड़कर रोका और उसकी आँखों में आँखें डालकर बोली….!
कॉलेज खुलने से पहले ही आ जाना शंकर…, और हां यहीं सीधे हमारे घर ही आना, मे तुम्हारा इंतेजार करूँगी…, ये कहते हुए उन्हें उसका हाथ ज़ोर्से दबा दिया….!
शंकर ने बड़े प्यार से अपना हाथ मामी के हाथों से अलग किया और मुस्कराता हुआ जीप की तरफ बढ़ गया………………..!
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