RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
कुछ देर तीनो माँ-बेटा-बेटी एक ही चारपाई पर गुथम-गुत्था पड़े रहे.., शंकर दोनो के बीच में था.., माँ की मोटी केले जैसी जाघ इस समय उसके जंग बहादुर की मसाज करने में व्यस्त थी तो वहीं बेहन के अनार दाने शंकर की बगल से सटे हुए अपने कड़कपन का एहसास करा रहे थे…!
कुछ देर बाद रंगीली ने लेटे ही लेटे पहले अपने बेटे के माथे का चुंबन लिया और उसके बाद वो शंकर की छाती से अपने बड़े बड़े दशहरी आमों को रगड़ते हुए सलौनी के चेहरे की तरफ अपने मूह को ले गयी…!
इतने से ही शंकर का जंग बहादुर सलामी देने के अंदाज में आने लगा था.., जवान दिल की उमंग सलौनी के अंदर भी अंगड़ाई लेने लगी थी…!
रंगीली ने उठते हुए कहा – चलो अच्छा है तुम दोनो की सारी ग़लत-फहमी दूर हो गयी.., तुम दोनो बातें करो मे तब तक शाम के खाने पीने
का इतेजाम करती हूँ…!
रंगीली के जाने के बाद सलौनी ने भी खड़े होते हुए कहा – भाई मुझे तुझसे एक शिकायत है…, तू सारी दुनिया को अपनी जीप में घुमाता
फिरता है.., लेकिन आज तक अपनी बेहन को कभी नही बिठाया…!
शंकर उठते हुए बोला – चल बोल कहाँ चलना है…?
सलौनी – क्यों ना आज जीप से खेतों का चक्कर लगायें…?
शंकर – ठीक है.., मुझे वैसे भी खेतों की तरफ जाना भी था.., इसी बहाने दोनो काम हो जाएँगे…!
रंगीली का प्लान एक दम सही मंज़िल की तरफ उसे लगभग उड़ाए ही ले जा रहा था.. लाला जी की इकलौती करोड़पति बहू उसकी मुट्ठी में है…, उसके लिए बस मानो शंकर ही भगवान है…!
बिना माँगे उसने शंकर के लिए अपनी तमाम ज़मीन जयदाद के खजाने खोल दिए थे…, और क्यों ना खोले…, आज जिस मर्यादा और सम्मान
के साथ वो इस हवेली में जी रही है, उसका श्रेय कहीं ना कहीं शंकर की कृपा से ही तो था…!
वरना तो इस खानदान ने अपनी झूठी मान मर्यादा के चलते उसके सिर पर एक सौत ला के रख दी थी…,
उसी बहू की कृपा से आज शंकर एक चमचमाती हुई जीप में सवार अपनी छोटी बेहन को खेत घुमाने ले जा रहा था…!
क्या शान थी उसके नूर की.., थोड़ी सी सुर्ख रगत लिए उसका गोरापन.., भरा हुआ शख्त चेहरा जिसपर हल्की हल्की दाढ़ी मुन्छे..बहुत फॅब रही थी..,
किसी फिल्मी हीरो जैसा…, कसा हुआ बदन, चौड़ा शेर जैसा सीना, बाहों के मसल्स क़ाबिले तारीफ़ पतला पेट कमर के नीचे तो जैसे कोई
\ आदिमानव खड़ा हो….!
एक बॉडी फिट टीशर्ट और होजरी के सॉफ्ट कपड़े के ट्राउज़र में वो इस समय धर्मेंदर जैसा लग रहा था.., और उसके साथ वाली सीट पर
बैठी उसकी छोटी बेहन.., जो शंकर के शहर से लाए हुए कपड़ों में से एक जोड़ी लिवास, जिसमें शहर की झलक साफ साफ दिखाई दे रही थी…!
बॉडी फिट शॉर्ट कुर्ता के नीचे टाँगों से चिपकी लेंगिग, गाढ़े कॉफी कलर का सूट जिसका कपड़ा इतना सॉफ्ट कि दोनो इकट्ठा एक मुट्ठी में समा जाए…!
गाओं की गलियों से गुज़रते हुए शंकर की जीप खेतों की तरफ निकल पड़ी…, इन दोनो के भाग्य से गाओं के दूसरे लड़के लड़कियाँ जलने लगे थे.., लोगों की परवाह किए बिना दोनो भाई बेहन चक्रॉड से होते हुए लाला जी की तमाम ज़मीन के बोचो बीच बने हुए फार्म हाउस नुमा\
मकान पर जा पहुँचे…!
यहाँ कई एकर के बीच बाउंड्री देकर अंदर कुछ बाग बगीचा भी था कई बड़े बड़े हॉल नुमा कमरे जो कि अनाज इत्यादि फसल की आवक के साथ साथ फार्मिंग से संबंधित बहुत सारी मशीनरी ट्रॅक्टर, हल इत्यादि रखे रहते थे….!
फार्म हाउस के अंदर जीप खड़ी करते ही सलौनी बगीचे में घूमने लगी.., पेड़ों पर उड़ रही रंग बिरंगी तितलियों के पीछे पागलों की तरह उन्हें पकड़ने दौड़ पड़ी..,
जो हाथ आ जाती, उसे अपने हाथ पर रख कर उसकी सुंदर पंखों को उंगलियों के पोरों से सहलाती.., कुछ देर उसके साथ मस्ती करती और
फिर छोड़ देती.., फिर किसी दूसरे रंग की तितली को पकड़ने लगती…!
सलौनी इन सब में मस्त हो गयी.., शंकर एक नज़र उसकी मस्ती पर डालकर हँसते हुए लाइन से बने कमरों में से एक की तरफ बढ़ गया…!
एक के बाद एक कमरे में रखे गल्ले की बोरियों की गिनती करके, एक छोटे से ऑफीस नुमा कमरे में आया जहाँ लेखा जोखा रखने के लिए रिजिस्टर रखा हुआ था उसको चेक किया…!
अभी वो ये सब काम में बिज़ी ही था कि तभी उसे सलौनी के चीखने की आवाज़ सुनाई दी…, भैया….बचाओ मुझे…., माआ…बचाओ….
सलौनी की आवाज़ सुनकर शंकर फ़ौरन कमरे से बाहर आया, सलौनी बगीचे की तरफ से बेत-हाशा भागती हुई उसकी तरफ आ रही थी..,
शंकर भी तेज-तेज कदम रखता हुआ उसकी तरफ बढ़ा.., जब उसने सलौनी के पीछे देखा तो उसे कुछ भी नही दिखा…!
फिर ये किससे डर कर चिल्लाते हुए भागती आ रही है.., वो ये सब सोचते हुए सलौनी की तरफ बढ़ा.., तबतक वो भी भागती हुई उस तक पहुँच गयी.., और देखते ही देखते भाई बचा मुझे कहती हुई दौड़कर उसके गले में झूल गयी..!
बक़ायदा उसने किसी छोटी बच्ची की तरह अपने दोनो पैर शंकर की कमर के इर्द-गिर्द लपेट लिए और मुन्डी घुमा कर उस तरफ देखने लगी जिधर से भागती हुई आ रही थी…!
सलौनी की साँसें बुरी तरह से फूली हुई थी.., उसके पतले कपड़े पसीने की बजह से और ज़्यादा बदन से चिपक गये थे…!
एक बार पीछे देखकर वो शंकर के सीने से जोंक की तरह चिपक गयी और अपना मूह उसके कंधे में छुपाकर तेज तेज साँसें भरने लगी…!
शंकर ने एक बार उस तरफ देखा जिधर से सलौनी भागकर आई थी…,
करीब 50 मीटर दूर गेन्दा की क्यारी में उसे पेड़ों के हिलने के साथ साथ सरसराहट सी सुनाई दी.., फिर उसने सलौनी की स्थिति पर गौर
किया जो इस समय उससे ऐसी चिपकी थी की दोनों के बीच से हवा का एक कतरा भी पास ना हो सके…!
सलौनी का दिल धड़-धड़ कर रहा था.., जिसकी धड़कन साफ-साफ शंकर के कानों में पड़ रही थी, उसके दोनो कच्चे-पके कठोर अनार
उसके सीने से दबे पड़े थे, उसकी हल्की सी फूली हुई मुनिया ठीक उसके लंड के आगे सटी हुई थी…,
दोनो के शरीर की वस्तुस्थिति का ज्ञान होते ही शंकर के बदन में अजीब सी उत्तेजना पैदा होने लगी…, और अपनी बेहन की मुनिया की इतने पास से खुश्बू सूँघकर तो उसका बाबूराव अपना सिर उठाने पर मजबूर ही होने लगा…!
शंकर ने सलौनी की पीठ सहलाते हुए पुछा – क्या हुआ गुड़िया…, किससे डर गयी तू…, यहाँ तो कोई भी नही है…?
सलौनी ने उसके गले से चिपके हुए ही.., बिना उस तरफ देखे.., अपने एक हाथ को उसके गले से निकालकर उस गेंदे की क्यारी की तरफ
इशारा करते हुए डर से कांपति हुई आवाज़ में कहा… वहाँ एक बहुत बड़ा काला भुजंग नाग है…!
मे जैसे ही उस क्यारी के पास पहुँची, अपना पंजा चौड़ा करके बताते हुए बोली – ये चौड़ा सा अपना फन फैलाए वो एक दम से मेरे सामने खड़ा होकर मेरी तरफ अपनी जीभ लॅप लपा रहा था…!
उसे देखते ही मेरी तो एकदम से जान ही सूख गयी.., मूह से आवाज़ ही नही निकल पा रही थी…, फिर जैसे ही उसने मेरी तरफ फुसकार
मारी में डर के मारे पीछे ज़मीन पर गिर पड़ी…!
फिर उसने एकदम से अपना फन सिकोडा और मेरी तरफ रेंगने लगा.., मे जैसे तैसे हिम्मत करके खड़ी हुई और बिना उसकी तरफ देखे इधर को भाग पड़ी…!
इतना कुछ बताते बताते सलौनी हाँफने लगी…, शंकर ने उसके कंधे को पकड़ कर अपने से अलग करने की कोशिश करते हुए कहा – अरे अब वो यहाँ नही है.., चला गया.. चल अब तो अलग हो मुझसे…!
सलौनी ने उसे और ज़ोर्से कस लिया और डरते हुए बोली – नही भैया प्लीज़ मुझे नीचे मत उतार.., मुझे बहुत डर लग रहा है.., ऐसा लग रहा
जासे वो अभी भी मेरे पीछे ही है…, इतना कहकर उसने शंकर को और ज़ोर्से भींच लिया…!
उसके अनारों की चुभन शंकर के सीने में महसूस हो रही थी…, अब सलौनी ने अपनी कमर को भी शंकर के साथ और सटा दिया.., जिससे उसकी मुनिया उसके लंड पर दबने लगी…, जो अब धीरे-धीरे उसी नाग की तरह अपना फन फैलाने लगा था…!
लेकिन बेचारा था तो पिटारे में ही क़ैद.., तो इससे ज़्यादा कुछ नही कर सकता था कि बस अपनी मन पसंद सुरंग की सुगंध को सूंघ कर अंदर ही अंदर फडफडा कर रह गया…!
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