RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
लेकिन पिटारे के अंदर से ही उसकी फुसकार कोई कम नही थी..,
सलौनी को जैसे ही अपनी मुनिया की फांकों पर शंकर के सख़्त लंड का दबाब महसूस हुआ अब वो उस नाग के डर को भूलकर इस पिटारे में बंद नाग की तरफ आकर्षित होने लगी…….!
सलौनी का वास्तविक डर तो कब कर गायब हो चुका था.., लेकिन अब वो इस डर के माहौल को थोड़ा लंबा खींचने का मन बना चुकी थी…!
शंकर के नाग का पिटारा इतना भी मजबूत नही था कि उसको फुफ्कारने से रोक लेता.., दोनो के कपड़े थे तो बहुत ही सॉफ्ट.., गनीमत ये थी की शंकर पाजामा के अंदर एक फ्रेंची भी पहने था.., वरना तो उन कपड़ों का भगवान ही मालिक था…!
उसकी राइफल के निशाने पर उसकी खुद की प्यारी बेहन की मुनिया है…, इसी एहसास ने शंकर की उत्तेजना को और भड़का दिया.., और
उसका घोड़ा पछाड़ कुछ ज़्यादा ही भड़क उठा…!
वो इतना सख़्त हो गया की सलौनी को लगने लगा था कि भैया का लंड उसकी चूत की फांकों को चौड़ाता हुआ अभी अंदर घुस जाएगा…,
भैयाअ….कहते हुए उसने उपर को संभलकर गोद में बैठने के बहाने अपनी मुनिया को उसके लंड से रगड़ दिया…!
एक ही जगह दबने से इतना फरक नही पड़ता जितना उसी दबाब में कोई चीज़ चूत को रगड़ने लगे तो फिर कहना ही क्या…, हल्का सा ही घिस्सा लगने से सलौनी की मुनिया के ही नही अपितु उसके पूरे बदन के रोंगटे खड़े हो गये…!
घबराकर उसकी मुनिया ने अपनी लार टपका दी….!
शंकर अपनी बेहन की इक्षा अच्छे से समझ पा रहा था…, उसने भी उसे अपनी गोद से उतारने की फिर कोई कोशिश नही की और उसके
गोल-गोल बोलीबॉल के आकर के गान्ड की गोलाईयो को अपने पंजों में भरकर भींच दिया…!
शंकर के इश्स प्रयास ने सलौनी को और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया…, और अब वो धीरे-धीरे इस तरह से अपनी मुनिया को उसके कड़क लंड पर घिसने लगी जिससे शंकर को ये ना लगे की वो अपने मज़े में ऐसा कर रही है…!
5-7 मिनिट तक शंकर उसे ऐसे ही गोद में लिए वही खड़ा रहा…, वो अपने मूह से सलौनी को चुदने के लिए नही बोलना चाहता था…!
उधर सलौनी भी अपनी तरफ से पहल करने में हिच किचा रही थी…, कहीं उसका भाई फिरसे उससे नाराज़ ना हो जाए…, सो वो जितना इस बहाने से मज़ा ले सकती है लेटी रहे…!
इतनी ही देर में सलौनी की चूत पानी छोड़ने लगी थी…, उसकी कच्छि गीली होकर चिपचिपाने लगी थी…,
लंड पर दबे होने के कारण उसकी चूत का गीलापन अब शंकर अपने लंड पर महसूस करने लगा था…, और इसी गीलेपन के एहसास ने
उसके लौडे को और भड़का दिया…!
उसका बाबूराव अंदर ही अंदर फड़-फडा रहा था – मानो अपने मालिक से कह रहा हो.., माँ चुदा गया तेरा प्रण…, भोसड़ी के जल्दी से मुझे
बाहर कर.., देख मादरचोद उसकी सुरंग ने मेरे लिए छिड़काव भी कर दिया है अब तो.., अब क्या देखता ही रहेगा भेन्चोद….!
लंड की भाषा समझ कर शंकर मन ही मन मुस्करा उठा…, वो सलौनी की गान्ड के नीचे अपनी हथेलियों का दबाब बढ़ते हुए ऑफीस वाले कमरे की तरफ चल दिया…!
उसे कमरे की तरफ बढ़ता देख सलौनी का मन मयूर होकर नाचने लगा…, उसे पूरा विश्वास हो गया कि अब अंदर ले जाकर उसका भाई
उसको चोदने वाला है….!
अंदर जाकर शंकर ने सलौनी को टेबल पर बिठा दिया… और उसके कंधों को पकड़ कर अपने से अलग करते हुए बोला – ले इस टेबल पर
बैठ जा.., फिर तो तुझे उस काले नाग से कोई डर नही रहेगा ना…!
एक सेकेंड पहले सोचे गये सलौनी के सुनहरे सपने पर… उसके दिल की खुशी पर शंकर के इन शब्दों ने बाल्टी भरकर पानी डाल दिया…!
इससे पहले की शंकर उससे अलग हो पाता… उसने लपक कर शंकर की कमर को पकड़ लिया और बनावटी डर भरे स्वर में बोली – नही
भैया…प्लीज़ मुझे छोड़ कर दूर मत जा.., वरना वो नाग मुझे काट लेगा…!
शंकर उसके मन की बात अचे से समझ रहा था कि नाग तो एक बहाना है.., उसे तो बस मज़ा करना है उसके साथ.., लेकिन खुलकर कह नही पा रही है.., चलो देखते हैं.., कब तक नही कहेगी..,
सो उसने उसके हाथ पकड़ कर अपनी कमर से अलग किए और कहा – अरे तू डर मत लाडो, मे तुझे छोड़ कर कहीं नही जा रहा.., यहीं तेरे
पास बैठकर कुछ काम-काज देख लूँ…?
बेचारी सलौनी…, अब क्या बहाना बनाए…? उसे शंकर को बेमन से छोड़ना ही पड़ा.., शंकर घूम कर उसी टेबल के दूसरी तरफ पड़ी चेयर पर बैठ गया…!
लेकिन अब सलौनी की गीली मुनिया उसे चैन से बैठने नही दे रही थी…, वो टेबल पर बैठे ही बैठे शंकर की तरफ घूम गयी…, अपने पैर
शंकर की मजबूत मोटी-मोटी जांघों पर रख लिए.., और उसके हाथ पकड़ कर अपने गालों पर रख दिए…!
शंकर ने उसकी आँखों में झाँका…, जिनमें निमंत्रण देती हुई याचना भरी हुई थी…, कुछ कहने के लिए सलौनी के होठ फड़-फडा रहे थे लेकिन उनसे कोई शब्द बाहर नही आ पा रहा था…!
शंकर को अपनी लाडली बेहन की ये बैचानी सहन नही हो रही थी…, उसने उसके सुन्दर चाँद जैसे मुखड़े को अपनी हथेलियों में लेकर
उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा –
मे जानता हूँ सलौनी तू मुझसे क्या चाहती है…? ये कहकर उसने अपना मूह आगे बढ़कर उसके लज़्जत से लबरेज रसीले होठों पर अपनी
प्यार भरी रज़ामंदी की मुहर लगा दी….!
सलौनी की तो जैसे लॉटरी ही निकल पड़ी…, शंकर के चेहरे के हटते ही वो उसकी गोद में समा गयी.., और बाबली मस्तानी होकर उसके चेहरे पर अपने प्यार के चिन्ह अंकित करने लगी…!
बेतहाशा होकर उसने शंकर के चेहरे को चुंबनों से भर दिया…,
शंकर अपनी बेहन का उतबलापन देख कर मन ही मन मुस्करा उठा.., उसने उसकी पतली कमर को अपने बड़े बड़े हाथों में जकड़ा और
अपनी गोद से उठाकर उसे फिरसे टेबल पर बिठा दिया…!
एक हाथ उसके कठोर उभार पर रखा और दूसरे से उसकी गीली मुनिया को आगे से पंजे में दबा कर प्यार से मसल डाला…..!
सस्स्सिईईईईई……आआहबहह……भाईईईई….. बहुत प्यसीईई..है..तेरी गुड़िया…, इसे अपने मर्दाने हाथों से मसल दे मेरे रजाअ…भैयाअ…..!
रुक…, इतना बोलकर शंकर चेयर से उठा और जाकर गेट बंद कर दिया.., जिससे कोई कमरा खुला देख कर झाँकने ना लगे…!
वापस आकर उसने सलौनी का कुर्ता उठा दिया, छोटी सी ब्रा में क़ैद उसके कड़क अनार उसके हाथों में आने को मचल रहे थे.., शंकर ने भी उनकी इक्षा पूरी करते हुए अपने हाथों में लेकर हल्के से मसल दिया….!
सलौनी तड़प उठी.., और उसने भी अपने सामने खड़े भाई के फुफ्कार्ते हुए लौडे को अपनी मुट्ठी में लेकर दबा दिया…!
आहह…गुड़ीयाअ…कहकर शंकर ने झुक कर उसके होठों पर हमला बोल दिया.., दोनो के होठ आपस में जुड़ गये और हाथों ने अपना काम
जारी रखते हुए एक दूसरे के वाकई के कपड़ों को बदन से जुदा कर दिया…!
सलौनी की दो बार की चुदि मुनिया…, पतले-पतले होठों के बीच लस-लसे रस से सराबोर…शंकर की चटोरी जीभ देखते ही उस पर झपट पड़ी…,
जीभ के चूत पर लगते ही सलौनी के मूह से एक बेहद कामुक सिसकी निकल पड़ी…, शंकर गहराई तक उसकी मुनिया को अपनी जीभ से
खोदने लगा…, सलौनी की गान्ड स्वतः ही आगे पीछे होने लगी…!
उसे अब लगने लगा कि वो अब अपने आप को रोक नही पाएगी…, सो उसने शंकर के घुंघराले बालों को अपनी मुट्ठी में कसकर उसका
चेहरा अपनी चूत से अलग किया.., उसके होठों को चूम कर बोली –
अब सबर नही हो रहा भाई…, अपने इस हथियार से मेरी कुटाई कर दे प्लीज़… ये कहकर उसने शंकर के 120 डिग्री पर खड़े सुलेमानी लंड
को अपनी मुट्ठी में जकड कर उसके दहक्ते सुपाडे को अपनी चूत की फांकों पर रगड़ने लगी…!
सलौनी का उतबलापन देख कर शंकर ने भी देर नही की…, सलौनी को टेबल पर ही लिटा दिया.., अपनी तरफ खींचकर उसकी गान्ड को
टेबल के किनारे पर रखा और टाँगें फैलाकर अपने दहकते सुर्ख सुपाडे को उसकी मुनिया के छोटे से छेद पर टिका दिया…!
सलौनी के मन मे दबी मनोकामना पूरी होने का समय आगया था.., उसने अपनी तरफ से अपनी गान्ड को उचका कर शंकर के लंड का
स्वागत किया.., लेकिन जैसे ही उसका सुपाडा उसकी चूत की फांकों को चौड़ा कर अंदर घुसा…..!
उसकी मुनिया लंड की गर्मी सहन नही कर पाई और खुशी के मारे उसने अपना रुका हुआ कामरस छोड़ दिया…..!
बिना चुदे ही सलौनी एक बार झड चुकी थी…, उसकी कमर कंप-कँपाने लगी थी.., शंकर उसकी स्थिति समझ चुका था.., सो उसने अपने
लौडे को उसी पोज़िशन में रख कर उसके उभारों को सहलाते हुए सलौनी के होठों को पीने लगा…!
थोड़ी ही देर में सलौनी की वासना फिरसे उफान लेने लगी.., और उसने अपनी गान्ड उचका दी…, ये सिग्नल था अपनी तैयारी का और ये
बताने का की बस अब वो भी इस मलल्ल्ल-युद्ध के लिए तैयार है…!
सही मौका देख कर शंकर ने एक करारा धक्का लगा दिया.., एक बार की झड़ी.., पानी से लबालब चूत में उसका मूसल जैसा लंड सर
-सरा कर तीन-चौथाई तक सलौनी की छोटी सी चूत में समा गया…!
सलौनी को अपनी चूत में खूँटा सा ठुका महसूस हुआ.., मज़े की प्यासी लौंडिया.., दाँत पर दाँत जमाकर उस झटके को झेल गयी…, और फिर शुरू हुआ वहाँ घमासान.., जो एक घंटा तक बदस्तूर जारी रहा.., कोई भी पहलवान कम पड़ने का नाम नही ले रहा था….!
जब दोनो पूरी तरह से संतुष्ट हो गये तभी अलग हुए.., कपड़े पहन कर जब बाहर निकले तो शाम का धूंधुलका वातावरण में व्याप्त हो चुका था…..!!!!
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