RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
चंपा की पकड़ अपने पैर पर से ढीली पड़ते ही शंकर ने अपना पैर उसके घान्घरे के अंदर से खींच लिया, पुक्क्कक.. की आवाज़ के साथ
उसका अंगूठा उसकी पनीलि चूत से बाहर आगया जैसे किसी ने काँच की बॉटल से कॉर्क का ढक्कन झटके से निकाला हो…!
इससे पहले कि चंपा अपने होश ठिकाने कर पाती.., शंकर अपने लंड को पाजामा में मसलता हुआ सोफे से खड़ा हो गया और अपने कमरे की तरफ सोने चल दिया…!
चंपा मूह बाए अपने लहंगे से गीली चूत पोन्छ्ते हुए शंकर को जाते हुए देखती रह गयी.., वो समझ नही पा रही थी कि ये लड़का आख़िर किस मिट्टी का बना हुआ है…!
जब उसने अपने अंगूठे के बल पर उसकी जैसी खेली खाई औरत की चूत से पानी निकलवा दिया यहाँ तक कि उसने अपनी आँखों से पाजामा के अंदर उसके लंड को तूनकते हुए देखा है.., इतनी उत्तेजना के बाद भी कोई मर्द अपने आप पर काबू कैसे रख सकता है भला…!
इसकी जगह कोई और मर्द होता तो वो अबतक उसकी चूत में लंड पेलकर उसे चोद चुका होता.., अब उसे शंकर पर शक़ होने लगा.., क्या पता वो इश्स लायक ही ना हो की किसी औरत को संतुष्ट कर सके…,
नही..नही… ऐसा नही हो सकता मेने खुद अपनी आँखों से कुच्छ घंटों में ही दो-तीन बार उसके लंड के उभार को देखा है.., और अभी कुच्छ
देर पहले तो वो उसके पाजामा में ही किस तरह से फुदक रहा था…!
शायद ये मुझ जैसी ग़रीब औरत के साथ वो सब नही करना चाहता होगा…, हां बिल्कुल यही बात हो सकती है.., ऐसा मन में विचार करते
हुए वो बेचारी अपनी गीली चूत लेकर अपने सर्वेंट क्वॉर्टर की तरफ चल दी जिसका रास्ता रसोई से होकर जाता था…!
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इधर शंकर कमरे में आकर अपने शानदार बिस्तर पर आकर धडाम से जा गिरा.., घुटने से नीचे उसकी टाँगें अभी भी पलंग के नीचे ही लटकी हुई थी..
उसका मन हाल ही में चंपा के साथ हुए उत्तेजञात्मक हादसे से बुरी तरह बैचैन हो रहा था.., ना जाने क्यों चंपा के साथ उसने इतनी बेरूख़ी दिखाई.., बेचारी क्या क्या मंसूबे बाँध कर आई होगी और क्या लेकर गयी…?
दिनभर की थकान से अब उसकी आँखें भी बोझिल हो रही थी लेकिन आँखें बंद करते ही उसकी आँखों के सामने वो वाकिया घूम जाता जो अभी अभी चंपा के साथ उसने किया…!
उसकी चूत किस तरह पनिया रही थी.., ये सोचते ही उसका लंड वासना की आग में दहक उठा…, उसने पाजामा के उपर से ही उसको सहलाया.., जो सच में ही बहुत गरम सा लगा उसे…!
अब वो अपने मन ही मन विचार करने लगा - क्या वो इतने लायक ही है कि उसकी चूत में मेरा पैर का सिर्फ़ अंगूठा ही डाला जाए..?
नही बिल्कुल नही.. शंकर तूने उस बेचारी के साथ ये ठीक नही किया.., ये तो एक औरत की जवानी का अपमान है…, एक औरत को वासना
में झोंक कर इश्स तरह छोड़ना ठीक नही है.., क्या सोच रही होगी वो अपने मन में…!
तो अब क्या करूँ..? अब तो वो चली गयी होगी सोने.., फिर क्या किया जाए…?
फिर अपने आप से ही बोला - चल एक बार चलकर रसोई में देख ले, शायद वो अब भी वहाँ हो, चल एक बार उससे अपने इस व्यवहार के
लिए माफी माँग ले.., हां.. यही ठीक रहेगा…,
ऐसा विचार करके शंकर बिस्तर से उठ गया और चंपा को देखने रसोई घर के लिए चल पड़ा…,
लेकिन जैसे ही उसने अपने कमरे का दरवाजा खोला.., सामने वर्षा देवी को खड़ा देख कर वो वहीं जड़ होकर रह गया…!
ना तो शंकर को ये उम्मीद थी कि वो इस समय उसके पास आने वाली हैं और ना वर्षा देवी ये जानती थी कि शंकर इतनी रात को दरवाजा खोलकर कहीं जाने वाला होगा…,
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