RE: Maa Sex Kahani चुदासी माँ और गान्डू भाई
यह बहुत ही फोम पैदा करनेवाला शैम्पू था, इसलिए हम तीनों के सिर, चेहरा और पूरा बदन फोम से भर गया। अब हम तीनों आपस में एक दूसरे के बदन रगड़ रहे थे। माँ मेरा लण्ड, गोटियां और झाँटें रगड़ रही थी, मैं अजय का लण्ड और उसकी गाण्ड रगड़ रहा था और अजय माँ की चूत, चूचियां और गाण्ड रगड़ रहा था। हम एक दूसरे को रगड़-रगड़कर काफी देर नहलाते रहे। फिर मैंने वापस शावर खोल दिया और काफी देर फिर शावर के नीचे गुत्थम गुत्था होते हुए नहाते रहे। कुछ देर बाद मैंने शावर बंद कर दिया। हमारे बदन से पानी चू रहा था। अजय बाथरूम के टाइल लगे फर्श पर बैठ गया और मेरे खड़े लण्ड को मुँह में ले चूसने लगा। उसकी देखा देखी माँ भी नीचे बैठ गई और मेरी गोटियों से खेलने लगी। माँ ने भी मेरे लण्ड पर मुँह लगा दिया। कभी अजय उसे मुँह में ले लेता और कभी माँ। माँ मेरी गाण्ड दबा रही थी।
तभी मुझे पेशाब करने की शंका महसूस हुई और मन में एक शरारत भरा खयाल आया। माँ के मूतने का दृश्य मेरी आँखों के आगे आने लगा। मैंने सोचा की क्यों ना आज माँ के मुँह में मूटत की धार छोड़ दें। अभी यह पूरी मस्त है और एक बार इसके मुँह में मेरे मूत की धार चली गई तो यह भी बिना हिचक के अपना मूत्रपान हम दोनों भाइयों को करवाएगी। यह सोचकर मैंने अपना लण्ड माँ के मुँह में पूरा ठेल दिया और मूतने के लिए जोर लगाया। जोर लगाते ही हल्की-हल्की मूत्र-धार निकलकर माँ के हलक में गिरने लगी।
पहले तो पूरी भीगी हुई माँ की समझ में ही नहीं आया की क्या हो रहा है? पर फिर उसने मेरा लण्ड मुँह से बाहर निकाल दिया। अब मेरे मूत्र का वेग बढ़ गया था और मोटी धार के रूप में लण्ड से फोर्स के साथ निकल रहा था। माँ ने ओर अजय दोनों ने देखा की मैं मूत रहा हूँ।
अजय यह देखकर पूरे जोश में आ गया और उसने मेरे लण्ड को झट से अपने मुँह में ले लिया और वो मेरा मूत गटागट पीने लगा। थोड़ा मूत अजय को पिलाकर मैंने लण्ड अजय के मुँह से निकाल लिया और मूत्र धार छोड़ते हुए लण्ड को माँ के बंद होंठों से छुवाकर लण्ड मुँह में देने के लिए जोर लगाने लगा। मेरा मूत माँ के होंठों और पूरे चेहरे को तर कर रहा था। मैंने माँ का चेहरा पकड़कर उसे अपने लण्ड पर दबा दिया और माँ ने मुँह खोल दिया। मैंने माँ के मुँह में लण्ड दे दिया और तब तक माँ के मुँह में मूतता रहा जब तक की मेरा मूत रुक नहीं गया और माँ ने भी मेरे मूत की एक भी बूंद व्यर्थ नहीं जाने दी।
मैं- “माँ कैसा लगा अपने बेटे के मूत का स्वाद? माँ चलो अब तुम खड़ी हो जाओ और आज हम दोनों बेटों के सामने खड़ी-खड़ी मूतो। माँ मैं तेरी झांटदार चूत से मूत की धार बहती हुई देखना चाहता हूँ। मुन्ना ने तो कई बार तुझे मूतते हुए देखा है, पर मैंने तो आज तक किसी औरत को ही मूतते हुए नहीं देखा..."
राधा- “तुम बहुत शरारती हो। माँ को चोद तो तूने कल ही लिया था और आज अपना मूत पिलाकर उसे अपनी रंडी बना लिया। जब तुम लोगों ने मुझे अपनी रंडी बना ही लिया है तो मैं खुद भी रंडी बनकर पूरा मजा क्यों ना हूँ। मुझे तुम दोनों से प्यार है, तुम दोनों के लण्डों से प्यार है, तुम्हारे वीर्य को चूत में झड़ाने से प्यार है। और सच कहूँ तो तेरा मूत भी मुझे बहुत मजेदार लगा। उसे पीकर तो मैं पूरी मस्त हो गई हूँ। मैं एक रंडी बन गई हूँ, एक ऐसी रंडी जो पूरी बेशर्म होकर चुदवाना चाहती है, तुम लोगों से गाण्ड मरवाना चाहती है, तुम लोगों का मूत पीना चाहती है। तो तू मुझे मूतते हुए देखना चाहता है। अब मैं मूतकर खाली दिखाऊँगी नहीं बल्कि तुम दोनों के खुले मुँह में मूतूंगी। यह सोचकर ही मुझे पेशाब करने की बहुत जोर से हाजत लग गई है..." यह कहकर माँ खड़ी हो गई।
विजय और अजय फर्श पर घुटनों के बल बैठ गये और माँ की चूत पर अपनी आँखें गड़ा दी। मैंने माँ की चूत
थोड़ी चौड़ी कर ली और चूत के छेद के ऊपर बने पेशाब के छेद को अजय को दिखाते हुए कहा- “मुन्ना देख यह माँ का पेशाब करने का छेद है। माँ के मूत का झरना यहीं से बहेगा...”
अजय- “भैया मैं तो सोचता था की जैसे हम लोगों के लण्ड में झड़ने का और मूतने का एक ही छेद है वैसे ही माँ का भी चोदने का और मूतने का एक ही छेद होगा पर माँ के तो अलग-अलग हैं...”
मैं- “अरे माँ के हर छेद का अपना-अपना स्वाद है। तू देखता जा तुझे माँ के एक-एक छेद की मस्ती करवाता हूँ। माँ चलो अब मूतो ना...”
मेरी बात सुनकर माँ ने जोर लगाया और मूत्र-छिद्र से छुर छुर्रर की आवाज से मूत्र की तीव्र धार बह निकली। मूत्र का रंग बिल्कुल पानी जैसा ही था। मैंने फौरन पूरा मुँह खोलकर एक कप की तरह वहाँ जड़ दिया और माँ का वो अमृतमय मूत गटागट पीने लगा।
तभी अजय ने कहा- “भैया सारा अकेले मत पी जाना, थोड़ा मेरे लिए भी छोना..."
अजय की बात सुनते ही मैंने उस बहते झरने से मुँह हटाकर मुन्ना का मुँह वहाँ लगा दिया। मुन्ना भी पूरा मस्त होकर माँ का मूत पीने लगा। फिर मैंने अजय का मुँह वहाँ से हटा दिया और उस मूत्र धार को अपने चेहरे पर गिरने दिया, बीच-बीच में अजय भी उसके सामने अपना चेहरा ले आता। हम दोनों भाई उस मादक मूत्रस्नान का तब तक मजा लेते रहे जब तक मूत की धार पूरी तरह से बंद नहीं हो गई।
माँ के मूत का स्नान खतम होते ही मैंने वापस शावर खोल दिया और काफी देर हम फिर शावर के नीचे नहाते रहे। इसके बाद मैंने किंग साइज का तौलिया एक साथ हम तीनों के शरीर पर लपेट लिए और उस विशाल तौलिया के अंदर घुसे हुए हम तीनों हिल-हिल कर अपनी पीठ, छाती, कमर, गाण्ड उस तौलिया पर रगड़ते हुए पोंछने लगे। अपने बदन से पानी को सूखाकर हम वापस कमरे में आ गये।
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