RE: Gandi kahani कविता भार्गव की अजीब दास्ताँ
कविता ठान लेती हैं के वोह मनीषा को सब बता देगी अपनी सहेली की समस्या के बारे में, क्योंकि मनीषा खुले विचार वाली औरत थी, वोह सब कुछ सुन लेती है और खुद बा खुद हाथ मुँह को धक् लेती हैं l कविता एक ही सांस में सब कह देती है न और रुकते ही एक लम्बी सांस छोड़ने लगी l
मनीषा : मम्मीजी! यह आपने अच्छा नहीं किया! एक माँ को एक बेटे के प्रति उकसाके आयी हैं आप! बाप रे!!!!!!! घोर अनर्थ कर लिया आपने तो!
कविता सिसक उठी बहू के बातों से!
मनीषा : मम्मीजी!!!!! अब क्या आप अपने बेटे के साथ कहीं?????
कविता फिर से सिसक उठी। दिल की धड़कन मानो जैसे धक् धक् से कुछ ज़्यादा कर रहे थे। सच तो यह था के वोह खुद उन कहानियों को परके और अपनी सहेली की बातों को सुनके काफी गरम हो चुकी थी अंदर ही अंदर l
मनीषा भी सास को उकसाने में व्यस्त हो गयी। "अब मुम्मीजी! वैसे अगर आपकी यह ख़यालात हैं! तो मैं कुछ मदत कर सकती हूँ आपकी!" इतनी कहके एक मस्त मुस्कान देने लगी l
कविता हैरान थी "कक्क ककैसी मदत बहु????"
मनीषा : हम्म्म्म एहि! अगर आप चाहो तो रेखा आंटी की तरह आपका भी चक्कर चल सकता हैं (थोड़ी शर्माके) अपने बेटे से!
कविता की सास फूल गयी और जिस्म काँप उठी!
मनीषा : मम्मीजी! सच कहूँ! तो आप यकीं ही नहीं करेंगे मेरे!
कविता : कक्क कैसा सच?
मनीषा : आपका अपना लाड़ला खुद बड़ी उम्र की औरतों पर फ़िदा हैं!! मैं कोई बनावटी किस्सा नहीं सुना रही हूँ आपको! यह सच हैं क्योंकि उनकी हिस्ट्री पे बहुत से ऐसे ४० प्लस और ५० प्लस महिलाओ के अधनँगान तस्वीरें देखि हैं मैंने
मम्मीजी! आपका एक जवान मर्द के प्रति आकर्षित होना उतना ही लाज़मी हैं!
कविता आज मनीषा की सुलझी हुई स्वाभाव से हैरान रह गयी। उसकी जिस्म तो पसीने में लटपट थी लेकिन छूट की होंटों पर बूँदें छलकने लग चुकी थी, काश! काश कोई एक बार उसकी जांघों के बीच में एक कीड़ा ही चोर दे!
कविता : ककीड़ा कोई कीड़ा चोरडो न अंदर!
मनीषा : क्या???
कविता लाल हो गयी शर्म से, पर पल्लू को उठाया भी नहीं अब तक।
मनीषा : मम्मीजी! पल्लू के साथ साथ अब आपकी पोल भी खुल गयी हैं। अब आप मेरी बात को सुनिये और समझिए! अपनी भावनाओ का इस तरह गला घोंटने की गलती न करे! अगर रेखा चची कर सकती हैं तो आप क्यों नहीं!
कविता हैरान रह गयी बहू की बातों से l
कविता बड़ी उत्सुक थी जानने के लिए के मनीषा के मनसूबे क्या क्या थे l मनीषा की मन्न में कुछ अपने ही लट्टू फूट रहे थे l
मनीषा : मम्मीजी! आप को शायद नै मालुम के आप के पास क्या हैं!
कविता : क्या मतलब?
मनीषा : (सास की कमर पर चिकोटी मारती हुई) यह गद्देदार कमर आपकी उफ्फ्फफ्फ्फ़! हीी!
कविता की धड़कन बार गयी अचानक से
मनीषा : और यह गुलाबी फुले हुए गाल आपके!
कविता सिसक उठी
मनीषा : आपको क्या मालूम मुम्मीजी! आपके बेटे को ऐसी औरतों की तस्वीरें देखना ज़्यादा पसंद है! जी! मैंने खुद उनके ब्राउज़र हिस्ट्री को कहीं बार देखि हैं! अरे वोह शकीला से लेके न जाने किन किन महिलाओं को सर्च करते बैठते हैं l
कविता की धड़कन इतनी तेज़ हो गयी कि उसे लगी जैसे कोई उसकी प्राण शरीर से निकाल रही हो, कुछ अध्बुध सी कशिश छाने लगी उसकी मन्न में आज मनीषा ने वोह चिंगारी जला दी जो अब जंगल को जलने वाली थी। बिना झिझक या संकोच के वोह आगे सुनने लगी।
मनीषा : मम्मीजी???? आप है न? (उत्तेजित होक)
कविता : बबबहहहु! ममैं तो रेखा को ही पागल समझ रही थी, तू तो मुझे भी पागल बना रही हैं अब! ककया आ अजय सचमुच ऐसी तस्वीरें???? है भगवन!
मनीषा : (सास के गले लगती हुई) अब सुनिए मेरी बात! मैं चाहती हूँ आप रेखा चची से पहले तीर मार दे! ताकि आप उन्हें कल्पना से नहीं बल्कि तजुर्बे से सलाह देंगी! (कायदे से आँख मारती हैं)
कविता को लगा किसी ने एक कतरा उसकी जांघों के बीच में से टपका दी हो! वोह अब मदहोश हो रही थी बहू के बातों से। यूँ तो वोह एक सुलझी हुई औरत थी लेकिन आज वोह कुछ ज़्यादा ही कामुक हो उठी अपनीत बहु की बातों से, हाँ! बात तो सही की हैं मनीषा ने के अगर तजुरबा होजाये तो सलाह देने में आसानी तो ज़रूर होगी l
कविता की चिंतन देखके मनीषा उसकी गाल सहला देती हैं अपनी हाथों से, जैसे मानो बहुत प्यार हो अपनी सास पे l
कविता बड़ी उत्सुकः थी जानने के लिए के मनीषा के मनसूबे क्या क्या थे l मनीषा की मन्न में कुछ अपने ही लट्टू फूट रहे थे l
मनीषा : मम्मीजी! आप को शायद नै मालुम के आप के पास क्या हैं!
कविता : क्या मतलब?
मनीषा : (सास की कमर पर चिकोटी मारती हुई) यह गद्देदार कमर आपकी उफ्फ्फफ्फ्फ़! हीी!
कविता की धड़कन बार गयी अचानक से
मनीषा : और यह गुलाबी फुले हुए गाल आपके!
कविता सिसक उठी
मनीषा : आपको क्या मालूम मुम्मीजी! आपके बेटे को ऐसी औरतों की तस्वीरें देखना ज़्यादा पसंद है!
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