Gandi Sex kahani भरोसे की कसौटी
11-17-2019, 12:45 PM,
#4
RE: Gandi Sex kahani भरोसे की कसौटी
पानी ले कर अपने कमरे में आया..| पानी पीया | फिर छत पर बहुत देर तक बैठा बैठा, अभी थोड़ी देर पहले घटी पूरे घटनाक्रम के बारे में सोचता रहा | रह रह के चाची का वो परम सुन्दर एवं अद्भुत आकर्षणयुक्त अर्ध नग्न शरीर का ख्याल जेहन में आ रहा था और हर बार न चाहते हुए भी मेरा हाथ मेरे जननांग तक चला जाता और फिर तेज़ी से सर को हिला कर इन विचारों को दिमाग से निकालने की कोशिश करता और ये सोचता की आखिर चाची कहीं किसी मुसीबत में तो नहीं?? ऐसे करते करते करीब पांच सिगरेट ख़त्म कर चूका था | कुछ समझ नहीं आ रहा था | अंत में ये ठीक किया की जैसा चल रहा है.. चलने देता हूँ... जब बहुत ज़रूरत होगी तब बीच में टांग अड़ाऊँगा |

अगले दिन सुबह सब नार्मल लग रहा था | चाची भी काफ़ी नॉर्मल बिहेव कर रही थी | उन्हें देख कर लग ही नहीं रहा था की कल रात को कुछ हुआ था | हम सबने मिलकर नाश्ता किया | चाचा नाश्ता ख़त्म कर ठीक नौ बजते ही ऑफिस के लिए निकल गए | मैं सोफे पर बैठा पेपर पढ़ रहा था की तबही चाची ने कहा, “अभय .. मुझे कुछ काम है.. इसलिए मुझे निकलना होगा .. आने में लेट होगा.. शायद ग्यारह या बारह बज जाये आते आते... तुम चिंता मत करना .. खाना बना कर रखा हुआ है .. ठीक टाइम पर खा लेना.. ओके? और हाँ.. किसी का फ़ोन आये तो कहना की चाची किसी सहेली से मिलने गयी है.. आ कर बात कर लेगी... ठीक है?” एक ही सांस में पूरी बात कह गयी चाची | मैंने जवाब में सिर्फ गर्दन हिलाया..| मैं सोचा, ‘यार... इसका मतलब साढ़े नौ बजे वाली बात इनका घर से निकलने का था.. शायद अपने कहे गए टाइम तक ये वापस आ भी जाये पर ये ऐसा क्यूँ कह रही है की कोई फ़ोन करे तो कहना की चाची किसी सहेली से मिलने गई है... पता नहीं क्यों मुझे ये झूठ सा लग रहा है |’

चाची नहा धो कर अच्छे से तैयार हो कर ड्राइंग रूम में आई | मैं वहीँ था | चाची को देख कर मैं तो सीटी मारते मारते रह गया | आसमानी रंग की साड़ी ब्लाउज में क़यामत लग रही थी चाची..| आई ब्रो बहुत करीने से ठीक किया था उन्होंने | चेहरे पर हल्का पाउडर भी लगा था | एक मीठी भीनी भीनी से खुशबू वाली परफ्यूम लगाया था उन्होंने | सीने पर साड़ी का सिर्फ एक प्लेट था.... हल्का रंग और पारदर्शी होने के कारण उनका क्लीवेज भी दिख रहा था जोकि ब्लाउज के बीच से करीब दो इंच निकला हुआ था | उनका सोने का मंगलसूत्र का अगला सिरा ठीक उसी क्लीवेज के शुरुआत में जा कर लगा हुआ था | दृश्य तो वाकई में सिडकटिव था |

मुझे दरवाज़ा अच्छे से लगा लेने और समय पर खा लेने जैसे कुछ निर्देश दे कर वो बाहर चली गई | मैं चाची की सुन्दरता में खोया खोया सा हो कर वापस उसी सोफ़े में आ कर धम्म से बैठा | चाची के अंग अंग की खूबसूरती में मैं गोते लगा रहा था | किसी स्वप्नसुंदरी से कम नहीं थी वो | सोचते सोचते ना जाने कितना समय निकल गया | मैं अपने पेंट के ऊपर से ही लंड को सहलाता रहा | काफ़ी देर बाद उठा और जा कर नहा लिया.. दोपहर के खाने का टाइम तो नहीं हुआ था पर पता नहीं क्यों भूख लग गयी थी ? साढ़े बारह बज रहे थे | चाची को याद करते करते खाना खाया और जा के सो गया |


टिंग टंग टिंग टोंग टिंग टोंग टिंग टोंग...
घर की घंटी बज रही थी | जल्दी बिस्तर से उठकर मेन डोर की ओर गया | जाते समय अपने रूम के वाल क्लोक पर एक सरसरी सी नज़र डाली मैंने.. तीन बज रहे थे ! कोई प्रतिक्रिया करने का समय नहीं था | डोर बेल लगातार बजा जा रहा था | जल्दी से दरवाज़ा खोला मैंने | देखा सामने चाची थी | आँखें थकी थकी सी... चेहरे पर भी थकान की मार थी | चेहरे पर हल्का पीलापन ... मेकअप ख़राब | सामने के बाल बेतरतीब | साड़ी भी कुछ अजीब सा लग रहा था | ब्लाउज के बाँह वाले हिस्से को देखा... उसपे भी सिलवटें थीं... चाची बिना कुछ बोले एक हलकी सी मुस्कान दे कर अन्दर चली गयी | मैं पीछे से उन्हें जाते हुए देखता रहा | दो बातें मुझे अजीब लगीं ... एक तो चाची का थोड़ा लंगड़ा कर चलना और दूसरा उनके गदराई साफ़ पीठ पर २-३ नाखूनों के दाग | मेरा सिर चकराया | चाची के साथ ये क्या हो रहा है ? कहीं वही तो नहीं जो मैं सोच रहा हूँ ?!


मैं काफ़ी परेशान सा था | पता नहीं मुझे परेशान होना चाहिए था या नहीं पर जिनके साथ मैं रहता हूँ, खाना पीना, उठाना बैठना लगा रहता है... उनके प्रति थोड़ा बहुत चिंतित होना लाज़िमी है | सवालों के उधेड़बुन में फंसा था | क्या करूँ या क्या करना चाहिए... कुछ समझ नहीं आ रहा था | बात कुछ इस तरह से भी नहीं थी की मैं सीधे जा कर चाची से कुछ पूछ सकूँ | कहीं न कहीं मुझे खुद के बेदाग़ रहने की भी फ़िक्र थी ... कहीं मैं ऐसा कुछ न कर दूं जिससे चाची को यह लगे की मैं चोरी छिपे उनकी जासूसी कर रहा हूँ या उनपर नज़र रखता हूँ | बहुत दिमागी पेंचें लगाने का बाद भी जब कुछ समझ नहीं आया तो मैंने ये सब चिंताएं छोड़ अपने काम पे ध्यान देने का निर्णय लिया और व्यस्त हो गया | जॉब मिल नहीं रही थी इसलिए मैंने अपना खर्चा निकालने के लिए इसी घर के एक अलग बने कमरे में ट्यूशन (कोचिंग करने) पढ़ाने लगा था | कुछ महीनो में ही कोचिंग जम गया गया था और अच्छे पैसे भी आने लगे थे | कभी कभी उन पैसों से चाची के लिए कोई कीमती साड़ी और चाचा के लिए एक अच्छी ब्रांडेड शर्ट खरीद कर ला देता | चाची को कपड़ो का बहुत शौक था इसलिए जब भी कोई कीमती साड़ी उन्हें लाकर देता तो वो मना तो करतीं पर साथ ही बड़ी खुश भी होती |

खैर, बहुत देर बाद चाची निकली.. अब भी थोड़ा लंगड़ा रही थीं, मैंने पूछना चाहा पर पता नहीं क्यों... चुप ही रहा | मुझे सामने देख कर चाची ने इधर उधर की बातें कीं | अपने लिए थोड़ा सा खाना निकाला उन्होंने | मेरे पूछने पर बताया की वो बाहर से ही खा कर आई है | अपनी किसी सहेली का नाम भी बताया उन्होंने | ठीक से खाया नहीं जा रहा था उनसे | बोलते समय आवाज़ काँप रही थी उनकी | आँखों में भी बहुत रूआंसापन था | मैं अन्दर ही अन्दर कन्फर्म हो गया था की यार कहीं न कहीं , कुछ न कुछ गड़बड़ है और मुझे इस गड़बड़ का कारण या जड़ का पता करना पड़ेगा | कहीं ऐसा ना हो की समय हाथ से यूँ ही निकल जाए और कोई बड़ा और गंभीर काण्ड हो जाए | सोचते सोचते मेरी नज़र उनके कंधे और ऊपरी सीने पर गई | दोबारा चौंकने की बारी थी | चाची के कंधे पर हलके नीले निशान थे और सीने के ऊपरी हिस्से पर के निशान थोड़ी लालिमा लिए हुए थे | समझते देर न लगी की चाची पर किसी चीज़ का बहुत ही प्रेशर पड़ा है | ये भी सुना है की अक्सर मार पड़ने से भी शरीर के हिस्सों पे नीले दाग पड़ जाते हैं | इसका मतलब हो सकता है कि चाची को किसी ने मारा भी हो? सोचते ही मैं सिहर उठा, रूह काँप गई मेरी | मेरी सुन्दर, मासूम सी चाची पर कौन ऐसी दरिंदगी कर सकता है भला और क्यों? चाची खा पी कर अपने कमरे में चली गई आराम करने और इधर मैं अपने सवालों और ख्यालों के जाल में फंसा रहा |

रात हुई | चाची ने काफ़ी नार्मल बिहेव किया चाचा के सामने | तब तक काफ़ी ठीक भी हो गई थी | मैंने भी रोज़ के जैसा ही बर्ताव किया | ठीक टाइम पर खाए पीये और सो गए; मुझे छोड़ के ! मैं देर रात तक जागता रहा | कश पे कश लगाता रहा और सिगरेट पे सिगरेट ख़त्म करता रहा | जितना सोचता उतना उलझता | एक पॉइंट पे आ कर मुझे ये भी लगने लगा की जो भी संकट या गड़बड़ है, इसमें शायद कहीं न कहीं चाची का खुद का कोई योगदान है , अब चाहे वो जाने हो या अनजाने में | मैंने तय किया की मैं अब से जितना हो सकेगा, चाची की हरेक गतिविधि पर नज़र रखूँगा |
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