RE: Gandi Sex kahani भरोसे की कसौटी
कोई दो तीन मिनट बीते होंगे... चाची वापस पहले वाले जगह पर आ गई.. लड़के ने हाथ आगे बढ़ाया ... और चाची ने उसके हाथ में कुछ सफ़ेद सा चीज़ थमा दिया | वो उनकी ब्रा थी !! लडके ने हाथ में लेकर कुछ देर तक दोनों कप्स को अंगूठे से रगड़ता रहा.. फिर नीचे फेंक कर दोनों हाथों से चाची के दोनों चूचियों को थाम लिया..और पहले के माफिक सहलाना – दबाना चालू कर दिया | रह रह कर चाची के मुँह से “म्मम्मम्म.....” सी आवाजें निकल रही थी | शायद अब चाची को भी अच्छा/ मज़ा आने लगा था | दबाते दबाते लड़का थोड़ा रुका , अपने दोनों हाथों के अंगूठों को चूचियों के बीचों बीच लाकर गोल गोल घूमा कर जैसे कुछ ढूंढ रहा था | अचानक से रुका और “वाह!” बोलते हुए हथेलियों से चूचियों को नीचे से अच्छे से पकड़ते हुए दोनों अंगूठों को चूचियों पर दबाते हुए अन्दर करने लगा | “इस्स ... आःह्ह “ चाची दर्द से उछल पड़ी.. लडके के हँसने की आवाज़ सुनाई दी | अब लड़के ने चाची को अपने और पास खींचते हुए सामने लाया और झट से उनके ब्लाउज के पहले दो हूकों को खोल दिया | और फिर अपनी एक ऊँगली से क्लीवेज पर ऊपर नीचे करने लगा | चाची की साँसे तेज़ हो चली थी | अपने मुट्ठियों को भींच लिया था उन्होंने | लड़के ने अब क्लीवेज में ही ऊँगली को ऊपर से अन्दर बाहर करने लगा | कुछ देर ऐसा करने के बाद वो फिर से दोनों अंगूठों से चूचियों पर कुरेदने- खुरचने सा लगा | चाची फिर “आह्ह” कर उठी... लड़के ने पूछा, “क्या बात है मैडम जी.... ये दोनों कड़े क्यों होने लगे? हा हा हा |”
सुनते ही चाची का पूरा चेहरा शर्म से लाल हो गया | मैंने उनके ब्लाउज पर गौर किया... देखा, उनके दोनों निप्पल ब्लाउज के अन्दर से खड़े हो गए !! दो छोटे छोटे पर्वत से लग रहे थे | लड़के ने चूचियों को छोड़ अपने अंगूठे और तर्जनी ऊँगली से दोनों निप्पल के अग्र भाग को पकड़ा और ऊपर बाहर की ओर खींचने लगा | “आह्ह्हह्हssssssss... आह्हsss..धीsss...धीरेsssss....” चाची दर्द से कराह उठी | पर वो बदमाश लड़का हँसने लगा... फिर निप्पल छोड़ कर नीचे नाभि में ऊँगली डाल कर गोल गोल घूमाने लगा... फिर पूरे पेट और कमर पर हाथ फेरा, बहुत अच्छे से सहलाया फिर दोनों हाथ पीछे कर उनके गांड के दोनों साइड पर रखा और अच्छे से मसला उन्हें...| चाची छटपटा रही थी .. उससे छूटने के लिए या जोश में.. अब ये नही पता | बहुत देर तक इसी तरह मसल के और सहला कर मज़ा लेने के बाद लड़का बोला,
“अच्छा मैडम.. अब हम चलता है...|”
“सुनो... वहां जा कर क्या बोलोगे?” चाची बहुत बेचैनी में पूछी |
“बोलूँगा की जैसा कहा गया था बिल्कुल वैसा ही मिला और हुआ...”
“अच्छा अब चलता हूँ... |”
इतना कह कर लड़का दरवाज़े की तरफ़ मुड़ा | मैं झट से दबे पाँव गली के और आगे चला गया और थोड़ा साइड हो कर छुप गया | दरवाज़ा खुला और एक पतला सा लड़का निकला... लम्बाई बहुत ज़्यादा नहीं होगी उसकी | बाहर निकलते ही तेज़ कदमों के साथ वो गली से निकल गया | उसके जाने के बाद मैं दरवाज़े के पास आया..| अन्दर झाँका... देखा की चाची साड़ी पहन रही है | और नीचे से ब्रा को उठा कर अन्दर चली गई..|
और मैं इधर कुछ देर पहले घटी घटनाओं को लेकर सोच में पड़ गया | मेरी सती सावित्री सी दिखने वाली चाची का आज ये रूप मुझे हजम नहीं हो रहा था |
उस पूरे दिन फिर कुछ नहीं हुआ | कोई भी संदिग्ध गतिविधि नहीं हुई | ना तो चाची के तरफ़ से और ना ही कहीं किसी और से | हालाँकि चाची थोड़ी खोयी खोयी सी लगी ज़रूर, जोकि वैसे भी वो पिछले तीन दिन से लग रही थी | पर आज कुछ अलग भी लग रही थी | सुबह घटी घटना के बाद से जितनी बार भी उनका चेहरा देखा, कुछ अजीब सी भावनाओं को हिलोरें मारते देखा | और अगर मैं गलत नहीं हूँ तो शायद वो अपराधबोध से ग्रस्त हो रही थी | शायद उन्हें ये भली भांति पता है की जो भी वो कर रही हैं वो सरासर गलत है, पाप है | पर जो कुछ हो रहा है और आगे जो कुछ भी होने वाला है, उसे वो चाह कर भी नहीं रोक सकतीं | चिंताएँ तो मुझे भी बहुत रही थी पर उसे भी कहीं अधिक मुझे कुछ जिज्ञासाओं ने घेर रखा था | और जिज्ञासाएँ थीं, पिछले तीन दिन और आज चाची के साथ होने वाले घटनाक्रमों के बारे में जानने की | और इन घटनाक्रमों के बारे में बता कर मेरी जिज्ञासाओं को शांत करने का सामर्थ्य जिस्में था वो थी मेरी चाची जो खुद किसी दुष्चक्र में फंसी हुई सी प्रतीत हो रही थी | अब ये दुष्चक्र वाकई में इन्हें फंसाने को लेकर था या फिर इन्हीं के किन्ही कर्मो का प्रतिफल; वो या तो चाची खुद बता सकती थी या फिर आने वाला समय और फ़िलहाल ये समय चाची के साथ सवाल जवाब करने लायक तो बिल्कुल नहीं था... इसलिए आने वाले समय की प्रतीक्षा करने के अलावा और कोई चारा न था अभी |
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