non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:34 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
"हाँ ये तो है।" नैना ने कहा___"लेकिन पुलिस आफीसर बनने का सपना तो तूने ही देखा था न बचपन से।"
"बचपन में तो बस ये सब एक बचपना टाइप का था बुआ।" रितू ने कहा___"लेकिन जब बड़े होने पर हर चीज़ की समझ आई तो लगा कि सचमुच मुझे पुलिस आफीसर बनना चाहिए। मेरी ख्वाहिश थी कि पुलिस आफीसर बन कर मैं दादा दादी जी के एक्सीडेन्ट वाला केस फिर से रिओपेन करके उसकी तहकीक़ात करूॅगी। मगर सब कुछ जैसे एक ख्वाहिश मात्र ही रह गया।"

"क्या मतलब???" नैना चौंकी।
"मतलब ये बुआ कि मैं दादा जी के एक्सीडेन्ट वाले केस में कुछ नहीं कर सकती।" रितू ने असहाय भाव से कहा___"क्योंकि मैने उस केस की फाइल को बहुत बारीकी से पढ़ा है, उसमें कहीं पर भी ये नहीं दिखाया गया कि वो एक्सीडेन्ट एक सोची समझी साजिश का नतीजा था बल्कि ये रिपोर्ट बना कर फाइल बंद कर दी गई कि वो एक्सीडेन्ट महज एक हादसा या दुर्घटना थी जो कि सामने से आ रहे ट्रक से टकराने से हो गई थी। ट्रक का ड्राइवर नशे में था जिसकी वजह से उसने ध्यान ही नहीं दिया और साइड होने बजाय उसने दादा जी की कार से टकरा गया था।"

"लेकिन सवाल ये है कि तुझे ऐसा क्यों लगता है कि वो एक्सीडेन्ट महज दुर्घटना नहीं बल्कि किसी की सोची समझी साजिश थी?" नैना ने हैरानी से कहा___"यानी कोई बाबूजी को जान से मार देना चाहता था।"

"मुझे शुरू में इस बात का सिर्फ अंदेशा था बुआ।" रितू कह रही थी___"वो भी इस लिए क्योंकि ऐसा शहरों में होता है। दादा जी की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी। फिर भी उनके साथ ये हादसा हुआ। उस समय इसके बारे में इस एंगल से मेरा सिर्फ सोचना था। मैं नहीं जानती थी मैं ऐसा क्यों सोचती थी? शायद इस लिए कि शुरू से ही मेरे ज़हन में क्राइम के प्रति सोचने का ऐसा नज़रिया था। किन्तु पुलिस की नौकरी ज्वाइन करने बाद जब मैने उस केस की फाइल को बारीकी से अध्ययन किया तो मुझे यकीन हो गया कि वो एक्सीडेन्ट महज कोई दुर्घटना नहीं थी बल्कि जान बूझ कर दादाजी की कार में टक्कर मारी गई थी।"

"ऐसा क्या था उस फाइल में?" नैना की आँखें हैरत से फटी पड़ी थी____"जिससे तुझे यकीन हो गया कि ये सब सोच समझ कर किया गया था?"
"फाइल में जिस जगह पर एक्सीडेन्ट यानी कि दादा जी की कार का एक्सीडेन्ट हुआ था उस जगह पर जाकर मैने खुद निरीक्षण किया है।" रितू ने कहा___"मेन हाइवे पर उस जगह भले ही ज्यादातर वाहनों का आना जाना नहीं है लेकिन फिर भी इक्का दुक्का वाहन तो आते जाते ही रहते हैं वहाँ पर। इतनी चौड़ी सड़क पर कोई ट्रक वाला अपनी लेन से आकर कैसे किसी कार को टक्कर मार सकता है? ये ठीक है कि वो टू-लेन सड़क नहीं थी बल्कि टू-इन-वन थी। फिर भी इतनी चौड़ी सड़क पर कोई ट्रक वाला अपनी लेन से हट कर कैसे टक्कर मार देगा। फाइल में लिखा है कि ट्रक का ड्राइवर नशे में था तो सवाल है कि नशे की उस हालत में उसने एक ही एक्सीडेन्ट क्यों कियों किया? बल्कि एक से ज्यादा एक्सीडेन्ट हो सकते थे उससे मगर ऐसा नहीं था। अब चूॅकि फाइल में ना तो उस ट्रक वाले का कोई अता पता है और ना ही कोई ऐसा सबूत जिसके तहत आगे की कोई कार्यवाही की जा सके इस लिए मैं कुछ नहीं कर सकती।"

"क्या सिर्फ यही एक वजह है जिससे तुझे लगता है कि बाबू जी का एक्सीडेन्ट महज दुर्घटना नहीं थी?" नैना ने कहा___"या फिर कोई और भी वजह है तेरे पास??"

अभी रितू कुछ बोलने ही वाली थी कि उसकी पैन्ट की जेब में पड़ा मोबाइल बज उठा। उसने पाॅकेट से मोबाइल निकाल कर स्क्रीन में फ्लैश कर रहें नंबर को देखा फिर काल रिसीव कर उसे कान से लगा कर कहा___"हाँ रामदीन बोलो क्या बात है?"

"....................." उधर से पता नहीं क्या कहा गया।
"ओह चलो ठीक है।" रितू ने कहा___"मैं फौरन पहुॅच रही हूँ।"

फोन काटने के बाद रितू एक झटके से सोफे से खड़ी हो गई और फिर नैना से कहा__"माफ़ करना बुआ मुझे तत्काल पुलिस स्टेशन जाना होगा।"

"ठीक रितू आराम से जाना।" नैना ने कहा___"शाम को जल्दी आना।"
"जी बिलकुल बुआ।" रितू ने मुस्कुरा कर कहा___"रात में हम दोनो खूब सारी बातें करेंगे।"

इसके बाद रितू वहाँ से चली गई। जबकि नैना वहीं सोफे पर बैठी उसे बाहर की तरफ जाते देखती रही। इस बात से अंजान कि पीछे दीवार के उस तरफ खड़ा अजय सिंह इन दोनो की बातें सुन रहा था। उसके पीछे प्रतिमा भी खड़ी थी।
___________________



फ्लैशबैक अब आगे_______

विजय सिंह खाना खाने के बाद तथा दूध पीने के बाद थोड़ी देर वहीं एक तरफ रखे बिस्तर पर आराम करना चाहता था। किन्तु उसने सोचा कि उसकी भाभी बाहर धूप में जाने कहाँ घूम रही होंगी? इस लिए उसे देखने के लिए तथा ये कहने के लिए कि वो अब घर जाएॅ बहुत धूप व गर्मी है, वह कमरे से निकल कर बाहर आ गया।

बाहर आकर उसने आस पास देखा लेकिन प्रतिमा उसे कहीं नज़र न आई। ये देख कर वह चिन्तित हो उठा। वह तुरंत ही आगे बढ़ते हुए आस पास देखने लगा। चलते चलते वह आमों के बाग़ की तरफ बढ़ गया। यहाँ लगभग दस एकड़ में आमों के पेड़ लगाए गए थे। आधुनिक प्रक्रिया के तहत बहुत कम समय में ही ये बड़े हो कर फल देने लगे थे। ये मौसम भी आमों का ही था।

विजय सिंह जब बाग़ के पास पहुॅचा तो देखा कि प्रितिमा एक आम के पेड़ के पास खड़ी ऊपर की तरफ देख रही थी। उसने अपने पल्लू को कमर में घुमा कर खोंसा हुआ था। उसके दोनो हाँथ ऊपर थे। विजय सिंह के देखते ही देखते वह ऊपर की तरफ उछली और फिर नीचे आ गई। विजय सिंह उसे ये हरकत करते देख मुस्कुरा उठा। उसे देख कर कोई नहीं कह सकता था कि ये तीन तीन बच्चों की माॅ है बल्कि इस वक्त वह जिस तरह से उछल उछल कर ऊपर लगे आम को तोड़ने का प्रयास कर रही थी उससे यही लगता था कि वो अभी भी कोई अल्हड़ सी लड़की ही थी। वह बार बार पहले से ज्यादा ज़ोर लगा कर ऊपर उछलती लेकिन वह नाकाम होकर नीचे आ जाती। आम उसकी पहुच से दूर था किन्तु फिर भी वो मान नहीं थी। उछल कूद के चक्कर में वह पसीना पसीना हो गई थी। उसकी दोनो काख पसीने से भीगी हुई थी तथा ब्लाउज भी भीग गया था। चेहरे और कनपटियों पर भी पसीना रिसा हुआ था।

विजय सिंह उसके पास जाकर बोला___"तो आप यहाँ आम तोडने का प्रयास कर रही हैं। मैं ढूॅढ रहा था कि जाने आप कहाँ गायब हो गई हैं?"
"अरे भला मैं अब कहाँ गायब हो जाऊॅगी विजय?" प्रतिमा ने मुस्कुरा कर कहा__"इस ऊम्र में तुम्हारे भइया को छोंड़ कर भला कहाँ जा सकती हूँ?"

"चलिये मैं आपको आम तोड़ कर दे देता हूँ फिर आप आराम से बैठ कर खाइयेगा।" उसकी बात पर ज़रा भी ध्यान दिये बग़ैर विजय ने कहा था।
"नहीं विजय।" प्रतिमा ऊपर थोड़ी ही दूरी पर लगे आम को देखती हुई बोली___"इसे तो मैं ही तोड़ूॅगी।"

"पर वो तो आपकी पहुॅच से दूर है भाभी।" विजय भी आम की तरफ देखते हुए बोला___"भला आप उस तक कैसे पहुॅच पाएॅगी? और जब पहुॅचेंगी ही नहीं तो उसे तोड़ेंगी कैसे?"

"कह तो तुम भी ठीक ही रहे हो।" प्रतिमा ने बड़ी मासूमियत से दोनो हाथ कमर पर रख कर कहा___"सचमुच मैं काफी देर से प्रयास कर रही हूँ इस मुए को तोड़ने का लेकिन ये मेरे हाँथ ही नहीं लग रहा।"

"इसी लिए तो कहता हूँ कि मैं तोड़ देता हूँ भाभी।" विजय ने कहा___"आप फालतू में ही इस गर्मी में परेशान हो रही हैं।"
"लेकिन मैं इसे अपने हाँथ से ही तोड़ना चाहती हूँ विजय।" प्रतिमा ने कहा___"मुझे बहुत खुशी होगी अगर मैं इसे अपने से तोड़ कर खाऊॅगी तो।"

"फिर तो ये संभव नहीं है भाभी।" विजय ने कहा___"या फिर ऐसा कीजिए कि नीचे से एक पत्थर उठाइये और उस आम को निशाना लगा कर पत्थर मार कर तोड़ लीजिए।"
"उफ्फ विजय ये तो मुझसे और भी नहीं होगा।" प्रतिमा ने आहत भाव से कहा___"क्या तुम मेरी मदद नहीं कर सकते?"

"म मैं...????" विजय चौंका___"भला मैं कैसे आपकी मदद कर सकता हूँ?"
"बिलकुल कर सकते हो विजय।" प्रतिमा ने खुश होकर कहा___"तुम मुझे अपनी बाहों से ऊपर उठा सकते हो। उसके बाद मैं बड़े आराम से उस आम को तोड़ लूॅगी।"

"क क्या????" विजय सिंह बुरी तरह उछल पड़ा, हैरत से उसकी आँखें फैलती चली गई थी, बोला___"ये आप क्या कह रही हैं भाभी? नहीं नहीं ये मैं नहीं कर सकता। आप कोई दूसरा आम देख लीजिए जो आपकी पहुॅच पर हो उसे तोड़ लीजिए।"

"अरे तो इसमें क्या है विजय?" प्रतिमा ने लापरवाही से कहा___"थोड़ी देर की तो बात है। तुम मुझे बड़े आराम से उठा सकते हो, मैं इतनी भी भारी नहीं हूँ। तुम्हारी गौरी से तो कम ही हूँ।"

"पर भाभी मैं आपको कैसे उठा सकता हूँ?" विजय की हालत खराब___"नहीं भाभी ये मुझसे हर्गिज़ भी नहीं हो सकता।"
"क्यों नहीं हो सकता विजय?" प्रतिमा उसके पास आकर बोली___"बल्कि मुझे तो बड़ी खुशी होगी विजय कि तुम्हारे द्वारा ही सही किन्तु मैं अपने हाँथों से उस आम को तोड़ूॅगी। प्लीज़ विजय....मेरे लिए...मेरी खुशी के लिए ये कर दो न?"

विजय सिंह को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? वह तो खुद को कोसे जा रहा था कि वह यहाँ आया ही क्यों था?
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