RE: Maa Bete ki Sex Kahani मिस्टर & मिसेस पटेल
अपडेट 64
मैं समझ गया माँ के अंदर एक अनजानी अनुभुति उनके शरीर में दौड रही है.
मैंने उनके पास रहकर मेरे सर को धीरे से थोड़ा आगे ले जाकर उनके सर को टच करवाया. माँ मेरे टच से अचानक काँप उठि. वह कम्पन उनके शरीर में इतनी प्रोमिनेंटली था की में अपनी ऑखों से वह देख पाया. मेरे अंदर वह चाहत , वह उत्तेजना फिर से आगया. मैं अपने सांस की गर्मी खुद मेहसुस कर रहा हु. अपने शरीर में जो खलबली मची है वह महसुस कर रहा हु.
मेरे पेनिस के शख्त होने का ताज़ा इशारा में मेहसुस कर रहा हु. मैं धीरे धीरे उनके बालों में मेरा नाक टच करवाया और उनके बालों की खुशबु स्वास भरके लेने लगा. मैंने दोनों हाथ धीरे धीरे उठाके उनकी कमर को पकड़ा और मेरा लेफ्ट हैंड उनके पेट् की मुलायम स्किन के ऊपर टच हो गयी. माँ की सांस तेज हो रही है.
मैं मेरे पैर को थोड़ा आगे ले जाकर उनके शरीर के साइड से मेरा शरीर टच करवा दिया.
मैं उनके बालों में दो तीन बार नाक रगड के धीरे धीरे उनके लेफ्ट शोल्डर के ऊपर मेरे मुह को लेकर आया.
और जैसे ही मेरे होठो का उनकी गर्दन की मुलायम स्किन पे टच हुआ, वह एक गुदगुदी सी फील करने लगी.
और में मेरी नाक और होठ को उनके गोरी गोरी सुडौल गर्दन में एकबार रब करते ही वह झट से अपने शोल्डर को खीच लिया और जोर से हस् पडी. मैं उनकी कमर में दोनों हाथ का बंध लगाकर दोनों हाथ को लॉक करके कसके पकड़ा हुआ है. इस लिए वह मेरे से दूर जा तो नहीं पाई पर हस्ते हस्ते गुदगुदी फील करते करते बोली
"आरे..क्या कर रहे है...छोड़िये....मुझे बहुत काम करना है अभी"
मै मेरे होठ और नाक से उनकी स्किन के ऊपर रब करना बंद करके बस उनको चुपचाप पकड़के खड़ा हु.
वह भी अब शांत हो गयी.
पर हमारे दोनों की सांस तेज बह रही है. मेरे जीन्स के अंदर का पेनिस जीन्स फाड़ के बाहर आना चाह रहा है.
फिर भी में उनकी इच्छा को सम्मान देते हुए उनके साथ और बदमाशी नहि किया.
हम ऐसे कुछ पल एक दूसरे से लिपट के खड़े रहने के बाद माँ धीरे से बोली
"छोडिये ना...मुहे अब काम करने दिजिये"
मै समझ गया माँ अभी यह सब करना नहीं चाह रही है. लेकिन वह चाहती है.
मैं अंदर ख़ुशी से भर गया.
मैं उनको मेरी बाँहों से मुक्त करके उनके पास में ही खड़ा हु.
माँ मेरे हाथ के बंधन से मुक्त होकर तुरंत वहां से जाने लगी और जाते जाते मेरे तरफ देख के बोली की
"चलिये फ़टाफ़ट जाइये...और मार्किट से सामान वगेरा लेकर आइये"
बोलकर माँ फिर से खुली हुई सूटकेस के पास पहुच गयी और कपडा वैगेरा समेट्ने लगी.
मैं समझ नहीं पाया माँ क्या लाने को कहि. मैंने माँ को पुछा
"क्या लेकर आऊँ?"
माँ मेरी तरफ देख के मेरे न समझने की हालत देख के खुद हस् पडी. और मुझे देखते हुए बोली
"रात को डिनर नहीं करना है"
मै बोला "तोह उनके लिए मार्किट से क्या लाना,मैं होटल से खाना मँगवाता हु"
माँ काम करते करते रुक गयी और मुझे देखते रहि. फिर नज़र हटके काम करना सुरु करती है और वैसे काम करते करते बोली ”ओह.. मैं बनाउ तो मेरे हाथ का खाना पसंद नहीं आयेगा"
माँ के गले में एक ऐसा टच था की में अंदर से काँप गया.
मैं उनको हर पल खुश देखना चाहता हु,
उनकी हर इच्छा को में आदेश मानकर पूरा करना चाहता हु,
में इस परिस्थिति को सहज करने के लिए हस पड़ा और तुरंत बोला
"दुनियाके सारे ५ स्टार होटल का खाना भी तुम्हारे हाथ का बना हुआ खाने के पास फिका है"
माँ झट से मुड़के मुझे देखि और हस् पडी.
फिर बोली
"तोह जाईये. सामान लेकर आइये और में तब तक यह सब समेट के रख देती हु”.
मै उनकी तरफ देख के स्माइल कर रहा हु
और वह मुझे देख के हासके फिर से काम पे ध्यान दी. मैं उनको इस तरह एक नये रूप में, नयी दुल्हन के रूप में,
मेरी बीवी की रूप में देख के मन ही मन एक ख़ुशी के सागर में बह गया
और फिर याद आया की अरे आज रात तो हमारी सुहाग रात है.
यहाँ कोई नहीं जो इस सुहागरात में नये दूल्हा दुल्हन के लिए सब कुछ सजाकर के देंगे.
यहाँ केवल हम दोनों है.
मैं तुरंत सोच लिया की हमारी सुहागरात को और सुन्दर और खूबसूरत तरीके से सजाकर मनाने के लिए मुझे बहुत कुछ लाना भी है.
मैं तुरंत माँ को एक झलक देखकर वहां से निकल गया मार्किट जाने के लिये.
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