RE: Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
हे भगवान! ऐसी खब्ती औरत मैंने जिंदगी में पहले न देखी थी. मेरे ही बैडरूम में, मेरे ही बेड पर अपनी माँ समेत अंदर से दरवाज़े लॉक कर के अगले दिन 8 बजे तक सोती थी और मैं बेचारा, सुबह-सबेरे बाथरूम जॉब्स निपटाने के लिए कभी बच्चों के रूम का दरवाज़ा खटखटाता, कभी गेस्ट रूम का. ऊपर से मोहतरमा तहज़ीब से ऐसी कोरी कि मैं और सुधा जैसे ही एकांत में बैठते तो घड़ी-घड़ी बिना दरवाज़ा नॉक किये दनदनाती हुयी बिना मतलब कमरे में आ घुसती. यूं तो मेरी और सुधा, दोनों की अंतरंग होने की ना तो कोई इच्छा होती, ना ही भरे-पूरे घर में ऐसा करने का कोई मौका होता लेकिन फिर भी वसुन्धरा का हम पति-पत्नी के बीच में बार-बार ऐसे काबिज़ होना तो अव्वल दर्ज़े का क़ाबिले-ऐतराज़ कुकर्म था. आते-जाते जब-जब मेरी निगाह उस से मिलती तो पूरी बेबाकी से मुझ से नज़र मिलाती और मुंह बिचका कर यूं होंठ चलाती जैसे मुझे कोस रही हो. दो दिन में ही मेरी बस करवा दी थी … उस कम्बख़्त सड़ी औरत ने.
प्रिया की शादी वाले दिन, 19 नवंबर वाली शाम को करीब 5 बजे सब घर-परिवार वाले होटल जाने को तैयार थे. जैसे ही घर से निकल कर सब अपनी-अपनी गाड़ियों में बैठे, वसुन्धरा मैडम ने हंगामा खड़ा कर दिया. मोहतरमा को पहले ब्यूटी-पॉर्लर जाना था … तैयार होने के लिए. यूं ब्यूटी-पॉर्लर था तो करीब एक किलोमीटर ही दूर लेकिन था शादी वाले होटल की एकदम उलटी दिशा में. दो घंटे पहले जब घर की बाकी की औरतें ब्यूटीपॉर्लर जा रही थी तो मैडम अपने लैपटॉप पर बिज़ी थी. अब इन्हें ब्यूटी-पॉर्लर जाना था और वहां जाने के लिए … मेमसाहब को एक शोफ़र-ड्रिवन कार चाहिए थी.
कारें तो कई खड़ी थी लेकिन समस्या ड्राईवर की थी, ड्राइवर कोई नहीं था. और कोई रास्ता न देख कर मैंने सुधा और बच्चों को किसी और की कार में एडजस्ट कर के होटल भेजा और खुद मैडम को ब्यूटीपॉर्लर ले जाने की कमांड संभाल ली. जब सुधा वाली कार नज़रों से ओझल हुई तो मैंने अपनी कार गेट पर लाकर खड़ी की और पोर्च में खड़ी वसुन्धरा को कार में बैठने को कहा और खुद घर में ताले लगाने अंदर चला गया. जी में तो आ रहा था कि तबियत से झाड़-झपड़ करूँ इसकी … लेकिन मेहमान थी, सो तहज़ीब का तकाज़ा था इसलिये चुप ही रहा मैं.
हालांकि मैं अंदर ही अंदर गुस्से में उबल रहा था लेकिन ऊपर से शांत दिखने की भरपूर कोशिश कर रहा था पर लगता था कि वसुन्धरा ने मेरा मूड भांप लिया था तो हाथ में शादी में पहनने वाले कपड़ों वाला मीडियम साइज़ का अटैची-केस ले कर चुपचाप कार की फ्रंट-पैसेंजर सीट पर आ बैठी. मैंने घर में तमाम जरूरी जगह ताले लगा कर मेनगेट बंद किया और कार की ड्राइविंग सीट संभाली.
अब हम दोनों को शादी वाले होटल की बिल्कुल उलटी दिशा में जाना था. पहली बार मैं और वसुन्धरा दोनों एकांत में इकट्ठे थे. मैंने कनखियों से वसुन्धरा की ओर देखा. गज़ब! वसुन्धरा के चेहरे पर तो हवाईयां उड़ रहीं थीं और जाने क्यों उसकी पेशानी पसीने से तर-ब-तर थी, नज़रें सहमी हुई हिरणी के मानिंद इधर-उधर भटक रही थी, कार की सीट के परले सिरे पर सिमट कर बैठी वसुन्धरा ने गोद में रखे हुऐ अटैची-केस का हैंडल दोनों हाथों से कस कर थाम रखा था.
सौ लोगों के हुज़ूम में अकेली दहाड़ने वाली शेरनी, ऐसे सहमी सी बैठी थी जैसे अदालत में एक ऐसा मुजरिम सहमा बैठा हो जिस को अभी … बस अगले ही पल सज़ा सुनाई जानी बाकी हो.
तभी मेरे दिमाग में बिजली सी कौंधी और एक ही पल में वसुन्धरा की झगड़ालू तबियत, सारी दबंगई, सारी बदतमीज़ी और इस वक़्त सहमी और छुई-मुई हो कर बैठी होने का राज़ समझ में आ गया. वसुन्धरा अहसास-ऐ-कमतरी का शिकार थी. अंग्रेज़ी भाषा में इन्फ़ीरियरिटी काम्प्लेक्स. इसी वजह से वो हर किसी को नीचा दिखाने की कोशिश करती रहती थी.
ख़ासी पढ़ी-लिखी थी तो अक्सर कामयाब भी रहती थी. यूं समझिये जैसे कि घोंघा … घोंघे का उपरी कवच बहुत सख़्त होता है, अक्सर दूसरे शिकारी जानवर घोंघे का कवच नहीं भेद पाते लेकिन बहुत सख़्त कवच के अंदर घोंघा बहुत ही नाज़ुक, बहुत ही कोमल होता है. यही हाल वसुन्धरा का था. रफ़-टफ़ अपीयरेंस, झगड़ालू तबियत, तमाम दबंगई, बदतमीज़ी और ब्रिटिश एक्सेंट में धारा-प्रवाह अंग्रेज़ी बोलना, ये सब वो सख़्त कवच थे जिनके पीछे एक नाज़ुक, छुई-मुई और सहमी सी वसुन्धरा विराजती थी और इस अलामत का कारण यक़ीनन वसुन्धरा का शादीशुदा ना होना था.
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