RE: Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
लड़की की शादी में अचानक ढेरों काम ऐसे निकल आते हैं जिनका पहले से पता नहीं होता, जिनकी कोई तैयारी नहीं होती.
सात बजते- न बजते किसी को ध्यान आया कि अभी तक फ़्लोरिस्ट दोनों जय-मालायें समेत मिलनी वाले हार नहीं दे कर नहीं गया है. दुल्हन की मां ने ‘अभी तक जय-मालाएँ नहीं आयीं हैं, कुछ कीजिये.” का नारा मुझे सुना कर अपने कर्तव्य की पूर्णाहूति दे ली.
अब शादी प्रिया की हो रही थी, मेरे शहर में हो रही थी ऊपर से मेरी रहनुमाई में हो रही थी और मैंने अपने जान-पहचान वाले फ़्लोरिस्ट से जय-मालाएं और बाकी हार बुक किये थे, इसलिए अब यह कार-सेवा तो मुझे ही करनी थी.
मैंने आनन-फ़ानन गाड़ी उठायी और फ़्लोरिस्ट की तरफ निकल पड़ा.
अभी मैं फ़्लोरिस्ट को जय-मालाएँ लेकर पैसे दे ही रहा था कि ब्यूटी-पार्लर से वसुंधरा का मैसेज आ गया. मैं लगभग उड़ता हुआ ब्यूटी-पार्लर पहुंचा. वहां पहुँच कर जैसे ही मैंने एक बार हॉर्न बजाया, तत्काल वसुंधरा ब्यूटी-पार्लर से बाहर निकल आयी. मैंने वसुंधरा की ओर देखा. हे भगवान! ये मैं क्या देख रहा था? या तो मैं पहले अंधा था या अब हो गया था. वसुंधरा का तो कायाकल्प हो गया था.
ढ़ाई-तीन इंच ऊँचे जूड़े पर पिन की हुई ओढ़नी के साथ लगभग 5’9″ की दिख रही वसुंधरा साक्षात रति का अवतार लग रही थी.
चेहरे के दोनों तरफ़ कन्धों तक लहराती दो घूँघरदार काली लटें, माथे पर सोने का टीका, कमानदार तराशी हुई भवें, पेशानी पर गुलाबी बिंदी के बीच दहकते हुए लाल रंग की बिंदी, बड़ी-बड़ी भावपूर्ण आंखें, गुलाबी कपोल, गुलाब की पंखुड़ी जैसे तराशे हुए सुडौल होंठों पर गहरी लाल रंग की लिपस्टिक, रोम-विहीन दोनों बाजुओं में भरी-भरी लाल-गुलाबी चूड़ियाँ, दोनों हाथों पर ताज़ी लगी मेहँदी, सभी नाखूनों पर गुलाबी नेल पॉलिश, जड़ाऊ काम और डीप-कट वाली बेबी-पिंक गुलाबी चोली पहने, जिसमें वसुंधरा के दोनों उरोज़ असाधारण तौर पर उन्नत प्रतीत हो रहे थे.
भारी सलमा-सितारों से झिलमिलाती बेबी-पिंक चुनरी पर दबके के काम वाले प्योर सिल्क के बेबी-पिंक लहंगे और लाल-गुलाबी तिल्ले की कढ़ाई वाली पिंक रंग की बिना हील की फ़्लैट बैली में, मेरे अंदाज़े मुताबिक़ 38-28-38 फ़िगर के साथ अपने दोनों हाथों से अपने कूल्हों के दोनों तरफ से एक ऊंगली और अँगूठे की चुटकियों में लहंगा थोड़ा ऊपर उठाये एक मुजस्सिम हुस्न की मल्लिका अपनी शाही चाल से मेरी ओर बढ़ी चली आ रही थी और मैं टिकटिकी लगाए वसुंधरा को निहार रहा था.
अब पता नहीं एक मिनट बीता या एक घंटा या एक युग. जरूर योग में ऐसी ही अवस्था को समाधि कहते होंगे जहां ना खुद की खबर होती है, न जग की. जहां योगी परम-आनंद में लिप्त रहता है, न दीन, न दुनिया … न दुःख, न सुख … न आत्मा, न परमात्मा … जहां सिर्फ़ आनंद विराजता है … केवल आनंद!
“क्या देख रहे हैं?” मुदित भाव से वसुंधरा ने कार के करीब आकर ड्राइवर साइड थोड़ा झुक कर मुझ से पूछा.
यह एक ऐसा सवाल है जिसका ज़वाब हर स्त्री को पहले से ही अच्छे से पता होता है लेकिन फिर भी वो अपने चाहने वाले से पूछती है … बार-बार पूछती है.
लेकिन यहां तो मैं अपनेआप को वसुंधरा का चाहने वाला भी तस्लीम नहीं कर सकता था.
मेरे परवरदिगार! तू क्यों मुझे बार-बार झंझट में डाल देता है. माना कि दीदार-ऐ-हुस्न की रहमत तो तूने इस नाचीज़ पर दोनों हाथों से लुटाई है लेकिन दीद से तो प्यास जगती है, बुझती नहीं. अब प्यास बुझने की दुआ मांगू तो बेसब्र, लालची और नाशुक्रा कहलाऊँ. अब तो तू ही कोई रास्ता निकाले तो निकले.
“क्या हुआ?” वसुंधरा ने दोबारा शोख़ अदा से पूछा.
वसुंधरा के जिस्म से उठती हुई नशीली गंध मेरे होश उड़ाये दिए जा रही थी.
“आप नहीं समझेंगी.” मैंने हल्का सा उच्छश्वास लेते हुए नोट किया कि ऐसा सुनते ही वसुंधरा की आँखें चंचल हो उठी और होंठों के कोरों पर हल्की सी मुस्कान आ गयी थी. औरतों की छठी इंद्री उन्हें सब बता देती है. मेरी ज़ेहनी हालत की बाबत वसुंधरा को सब कुछ ठीक-ठीक पता था और वो मेरी हालत पर मन ही मन आनंदित हो रही थी.
तभी ब्यूटी-पार्लर के दरबान ने कार की पिछली सीट पर वसुंधरा का पुराने कपड़ों से भरा अटैची-केस रख कर दरवाज़ा बंद कर, फ्रंट का पैसेंजर साइड का दरवाज़ा खोल दिया और वसुंधरा भी कार के आगे से घेरा निकाल कर फ्रंट पैसेंजर सीट पर आ कर बैठ गयी.
वसुंधरा चौदहवीं के चाँद के मानिंद चमक-दमक रही थी लेकिन जैसे चाँद में भी दाग होता है वैसे ही इस मुज्जसिम हुस्न में भी एक कमी थी और वसुंधरा को शायद इसका एहसास नहीं था लेकिन मैंने वो कमी पकड़ ली थी.
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