RE: Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
वैसे तो वसुंधरा मेहँदी-लगे हाथों से एक उंगली और अँगूठे की चुटकियों से दायें-बाएं से अपना लहंगा उठाये हुए थी लेकिन जैसे ही वो मेरी कार की जलती हेड-लाइट के आगे से गुजरी तो मैंने नोट किया कि वसुंधरा के लहँगे के सामने ज़रा सा बायीं ओर, जहां से लहंगे का नाड़ा बाँधते या खोलते हैं, वो झिर्री कम से कम छह-सात इंच लम्बी थी. आमतौर पर लहंगों की ऐसी झिर्रियों में टिच-बटन या हुक-बटन लगे रहतें हैं जिन्हें सुविधा अनुसार बंद कर लिया या खोल लिया जाता है पर लगता था कि वसुंधरा के लहँगे में कुछ गड़बड़ थी और जैसे ही वसुंधरा अपना दायां पैर आगे बढ़ाती तो वो छह-सात इंच की झिर्री का मुंह खुल जाता जिस से वसुंधरा के बायीं ओर बैठे या खड़े व्यक्ति को वसुंधरा की पेंटी की झलक समेत वसुंधरा की दायीं दूधिया जांघ दूर तक नग्न दिखाई देती, जैसे मुझे दिखाई दी थी.
सूरत-ऐ-हाल बहुत तफ्तीशनाक थी और वसुंधरा को इस का क़तई इल्म नहीं था. ऐसे तो शादी के फ़ंक्शन में वसुंधरा का जलूस निकल जाता जो मुझे मंज़ूर नहीं था.
“ये आपकी मेहँदी?” मैंने वसुंधरा से पूछा.
“साढ़े आठ-पौने नौ बजे धो दूँगी.” मैंने घड़ी देखी, पौने आठ हुए थे.
मैंने तत्काल फैसला ले लिया और कार घर की ओर भगा दी. आन की आन में हम घर पहुँच गए. घर की चाबियां मेरी जेब में ही थी. मैंने मेनगेट का ताला खोला और कार पोर्च में ले जा कर खड़ी की और कार का वसुंधरा वाली साइड का दरवाज़ा खोला और उससे कहा- आइये.
“हम घर क्यों आये हैं … कुछ रह गया क्या?” वसुंधरा ने कार से उतरते हुए उलझन भरे स्वर में पूछा.
“जी! दो मिनट का काम है.”
अब समस्या यह थी कि वसुंधरा की सच्चाई से कैसे अवगत करवाया जाए? तब तक हम ताला खोल कर लिविंग रूम में आ चुके थे. मैं वसुंधरा से आँख नहीं मिला पा रहा था. तभी मुझे एक तरीका सूझा. मैंने अपने बैडरूम के ड्रेसिंगरूम में ड्रेसिंग-टेबल की जगह मैंने एक दीवार पर 6′ x 6’ का आइना लगवाया हुआ था और अगर वसुंधरा उस आईने में खुद को निहारती तो यक़ीनन उस ने अपने लहंगे की उस कमी को पकड़ ही लेना था.
“आइये.” मैंने बैडरूम की तरफ बढ़ते हुए मुड़ कर वसुंधरा से कहा.
“लेकिन … इधर कहाँ?” एकांत में दबंगई और अहंकार का कवच फिर से टूट गया था और एक बार फिर से डरी-सहमी वसुंधरा मेरे रु-ब-रु थी.
“घबराइये नहीं! प्लीज़ आइये.” मेरे लफ़्ज़ों में बला का आत्म-विश्वास पा कर वसुंधरा बिना कुछ बोले मेरे पीछे-पीछे मेरे बैडरूम में आ गयी. ड्रेसिंगरूम में आ कर मैंने ड्रेसिंगरूम की सभी लाइट्स ऑन कर दी और वसुंधरा को बहुत आहिस्ता से कंधे से पकड़ कर आईने के सामने कर दिया.
“मैं बेडरूम में हूँ, आप यहां खुद को अपनी ही पारखी नज़र से एक नज़र निहारिये, ख़ास तौर पर अपने लहंगे को आगे से … बायीं ओर से. ” कह कर मैं बाहर निकल आया.
एक मिनट में ही वसुंधरा ड्रेसिंगरूम से बेडरूम में आ गयी.
“अब क्या करें?” एक डरी-सहमी सी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी.
ये सवाल ही बताता था कि वसुंधरा ने लहंगे की कमी पकड़ ली थी. मैंने नज़र उठा कर देखा तो वसुंधरा की नज़रें अपने ही पैरों पर थी. सारे हालात पर गौर करने के बाद यक-बा-यक मेरी हंसी छूट गयी. वसुंधरा ने चौंक कर सर उठाया और गिला करती आँखों से मेरी ओर देखा.
“आप मेरा मज़ाक उड़ा रहे हैं?” शिकायती लहज़े में वसुंधरा ने मुझ से पूछा.
” न … न वसुंधरा जी! बिल्कुल नहीं. दरअसल मुझे हँसी इस बात पर आयी कि इस सब में … न तो गलती आप की, न ही मेरी और हम दोनों एक दूसरे से आँखें चुरा रहे हैं … भगवान् जाने क्यों. बस! यही सोच कर मुझे हंसीं आ गयी.” अचानक ही सारा वातावरण सहज़ हो गया और वसुंधरा के होठों पर भी मुस्कान आ गयी.
“आप के पास कोई दूसरी फ़्रेश ड्रेस है?” मैंने पूछा.
“शादी के फ़ंक्शन में पहनने लायक तो नहीं.”
“ओके! तो इसी को ठीक करना होगा. आप एक काम कीजिये! मैं बाहर जाता हूँ … आप कैसे भी कर के अपना लहंगा उतार कर मुझे बाहर दे दीजिये, मैं सीऊंग मशीन पर इसको दो सिलाइयाँ मार देता हूँ , आप पहनिए और फिर हम चलें.” कह कर मैं बैडरूम से बाहर आ गया. मुझे पता था कि सुधा अपनी सिलाई-मशीन बच्चों के कमरे में रखती है. दो सीधी सीधी सिलाइयाँ हो तो मारनी हैं, इसमें कौन सी रॉकेट-साइंस है.
लेकिन अभी तक तो लहंगा भी बाहर नहीं आया था.
“वसुंधरा जी! सब ठीक है?” मैंने बाहर से गुहार लगाई.
“आप एक मिनट! ज़रा अंदर आयें … प्लीज़!” वसुंधरा की धीमी सी इल्तज़ा मुझे सुनाई दी.
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