RE: Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
मैंने बाएं हाथ से वसुन्धरा को अपने साथ सटा लिया और अपने बाएं कंधे पर उसका सर टिका कर पीछे से अपना दायां हाथ उसके सर पर फेरने लगा. मेरे साथ लिपटी वसुन्धरा ज़ार-ज़ार रोये जा रही थी और मैं कर्तव्यविमूढ़ सा उसके सर और पीठ को सहलाये जा रहा था. पंद्रह-एक मिनट बाद वसुन्धरा कुछ संयत हुई. अब रोना तो करीब-करीब बंद था, अलबत्ता कुछ सिसकियां सी बाक़ी थी. लगता था कि मुद्दत से अंदर रखा अवसाद आज बरसों बाद बाँध तोड़ कर आँसुओं के साथ बाहर निकला था.
“वसुन्धरा!” मैंने वसुन्धरा की पीठ सहलायी.
“आई एम् सॉरी …” कहते हुए वसुन्धरा मुझ से अलग़ हुई और बॉथरूम में जा घुसी.
करीब दस मिनट बाद वसुन्धरा बॉथरूम से बाहर निकली. उसने आँखों को पानी से साफ़ कर लिया था, मुंह-हाथ धो लिया था, बाल भी संवार लिए थे. जैसे घनघोर बारिश के बाद सारी प्रकृति निखरी-निखरी सी दिखती है वैसे ही अब वसुन्धरा निखरी-निखरी सी दिख रही थी. उसे देख कर मैं मुस्कुराया. वसुन्धरा के होंठों पर भी एक निर्दोष सी मुस्कान आयी.
“ये कॉफ़ी तो ठंडी हो गयी … मैं और बनाती हूँ.” इस से पहले मैं कुछ कहूं, वसुन्धरा पहले ही किचन में जा चुकी थी.
बाहर बारिश फिर शुरू हो गयी थी. मैंने घड़ी देखी, पौने-नौ बजने को थे और मुझे अभी डेढ़ सौ-पौने दो सौ किलोमीटर और दूर जाना था. लेकिन कॉफ़ी तो अभी भी बन कर नहीं आयी थी. दस-एक मिनट बाद वसुन्धरा ट्रे में भाप उड़ाती कॉफ़ी के दो मग ले कर अंदर आयी.
अब वसुन्धरा खूब सयंत और प्रफुल्लित दिख रही थी. मैंने उठकर कॉफ़ी का मग पकड़ा, अब के वसुन्धरा मेज़ के परली तरफ़ बैठने की जग़ह मेरे बाएं हाथ लंबरूप रखी कुर्सी पर बैठ गयी.
“जी! अब कहिये. ” बैठते ही वसुन्धरा ने कहा.
मैं सिर्फ मुस्कुराया.
“बोलिये राज! “.
“क्या बोलूं?” मैंने काफ़ी का सिप लिया. कॉफ़ी वाक़ई बहुत अच्छी बनी थी.
“आप कुछ पूछ रहे थे?”
“पर आपने तो मुझे चुप करवा दिया था.”
” राज! आप को सारी बात पता है क्या?”
“डिटेल में तो नहीं … पर इतना पता है कि सालों पहले आपके रिश्ते की बात चली थी कहीं और आपको वो लड़का बेहद पसंद भी था लेकिन आपके पापा को आर्मी ऑफिसर दामाद ही चाहिए था, इसलिए वहां आपका रिश्ता नहीं हो सका. और इस बात से आप अपने पापा से नाराज़ हो कर उनसे बात नहीं करती, अलग रहती हैं, शादी ना करने की ज़िद पर अड़ी हैं.”
“और?”
“बस यही.”
“हूँ!! मेरा भी यही ख़्याल था.”
“अच्छा वसुन्धरा! उस लड़के का क्या हुआ? सॉरी टू आस्क … ऐसा क्या था उस लड़के में?”
“उसकी तो कहीं और शादी हो गयी … बरसों पहले ही. और क्या था उस में … यह मैं कैसे बताऊं?”
“फिर भी?”
“राज! जब कोई किसी से प्यार करता है तो कोई हिसाब-क़िताब लगा कर नहीं करता.”
“लेकिन अब आगे का क्या सोचा है?”
“क्या फायदा सोचने का! जो सोचा था, वो तो हुआ ही नहीं.”
“उसको आपके बारे में पता है?” मैंने अपनी कॉफ़ी का आँखिरी घूंट भरा.
“न! उसको तो आजतक कानोंकान भी खबर नहीं हुई कि कोई बर्बाद हुआ जा रहा है उसके पीछे.” वसुन्धरा की आवाज़ में फिर दर्द छलक आया था.
“लकी मैन! ऐसा बेलौस, बिना शर्त का प्यार कहाँ नसीब होता है हर किसी को? वैसे था कौन … वो खुशनसीब?”
“आपको सच में नहीं पता?”
“कसम ले लो.”
मैंने अपना खाली कॉफ़ी का मग मेज़ पर रखा, अपना सूटकेस अपने हाथ में थामा और सोफे से उठ कर खड़ा हो गया.
वसुन्धरा ने अचानक ही नज़र झुका ली और चुप सी हो गयी. अचानक ही वातावरण बहुत बोझिल सा हो गया. बाहर बारिश की टपाटप बूंदें टीन की छत पर शोर मचा रही थी.
अचानक ही मुझे अपने ही दिल की धड़कन साफ़-साफ़ सुनाई देने लगी और मुझे एक अनजानी सी बेचैनी महसूस होने लगी. मुझे अंदेशा हो रहा था कि वसुन्धरा जरूर कुछ नाक़ाबिले-यक़ीन कहने वाली थी.
तभी वसुन्धरा ने अपना मुंह ऊपर किया और सीधे मेरी आँखों में आँखे डाल कर बोली- वो आप थे … राज!
घड़..घड़..घड़ … घड़ाम … घड़ाम! जितनी ज़ोर से बाहर बिजली ग़रज़ी, उस से कई गुना ज़्यादा मेरे अंदर कड़की!
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