RE: Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
कुछ पल को तो मेरे मस्तिष्क ने काम करना बंद कर दिया था. तो ये बात थी. अब जा के सारी तस्वीर शीशे की तरह साफ़ हुई. वसुन्धरा का अपने माँ-बाप से इतर रहना, उसके व्यक्तित्व में समायी तमाम बत्तमीज़ी, दबंगई, ख़ुद-पसंदगी और उसके तनहाई-पसंद होने का और मेरे प्रति अनबूझे अनुराग़ का और अभी तक अविवाहित होने का कारण उसके पिता जी का उसकी मुझसे शादी के ख़िलाफ़ लिया गया एक फ़ैसला ही था.
हे भगवान्! कोई खुद को इतने साल मुतवातिर कैसे सज़ा दे सकता है? क्यों वसुन्धरा ने खुद को यह शाप दे दिया? इतने सालों से वसुन्धरा एक स्त्री से पत्थर बनी बैठी थी और इस सारे घोटाले की जड़ में था मैं … राजवीर! और मुझे इस का इल्म ही नहीं. अहिल्या को शापमुक्त करने तो स्वयं भगवान् राम आ गए थे. अहिल्या को सतयुग में मिले शाप से मुक्ति देने के लिए अपने प्रचण्ड पराक्रम से त्रेता-युग को द्वापरयुग से पहले खींच लाये थे.
लेकिन मैं तो एक तुच्छ मानव था और वसुन्धरा को देने के लिए मेरे हाथ और मेरा दामन, दोनों खाली थे. मैं आज दो बच्चों का बाप था लेकिन वसुन्धरा आज भी उसी कालखण्ड में ही जी रही थी, जब उसकी मुझ से रिश्ते की बात चली थी.
वसुन्धरा के लिए तो जैसे समय खड़ा ही हो गया था.
पर ये गलत था … सरासर गलत! जिंदगी में … हादसे हो जाते हैं लेकिन इस का ये मतलब तो हर्गिज़ नहीं है कि कोई जीना ही बंद कर दे? मेरे लिए … मेरे कारण वसुन्धरा ने खुद को फ़ना के धारे तक पहुंचा लिया था. अपनी इक-तरफ़ा मुहब्बत में उस ने अपनी जिंदगी के क़रीब चौदह … चौदह सुनहरे साल बर्बाद कर लिए थे.
चौदह साल! भगवान् राम चंद्र जी को भी तो चौदह साल का बनवास हुआ था लेकिन राम जी के साथ तो माता सीता और भैया लक्ष्मण भी थे पर इस प्रेम-पथ पर इस तन्हा विरहन के साथ तो कोई भी नहीं था, वो भी नहीं जिस के प्रेम में ये सब हुआ.
उफ़! कितना सहा था इस प्रेम की मारी ने!
वसुन्धरा! तू है तो तो बेपनाह प्यार के काबिल लेकिन मैं एक शादीशुदा, बाल-बच्चेदार आदमी, तेरे प्यार का जबाब प्यार से नहीं दे सकता.
वसुन्धरा! आज तुम बहुत ऊपर उठ गयी, मैं तो किंचित शूद्र प्राणी मात्र हूँ लेकिन तेरी ज़ुस्तजू ने एक ज़र्रे को आफ़ताब बना दिया, एक अदना को आला कर दिया. मैं तेरे प्यार को तस्लीम करके उसे सिर्फ इज़्ज़त दे सकता हूँ, तेरे आगे नतमस्तक हो सकता हूँ … बस!!!
मेरा सूटकेस मेरे हाथ से छूट गया.
” हे भगवान्! इतना ज़ुल्म!!! … वसुन्धरा! मुझे पता नहीं था, कसम ले लो … चाहे! मुझे इस बारे में सच में कोई इल्म नहीं था. नहीं तो … नहीं तो!” कहते कहते मेरी खुद की आँखें तरल हो उठी. वसुन्धरा लपक कर मेरे पास आयी और अपने दोनों हाथों से मेरा हाथ पकड़ कर बोली- न न! आपका तो इसमें रत्ती भर भी कसूर नहीं, आप अपना मन भारी न करें.
मेरी आँखों से दो मोती वसुन्धरा के हाथ के पृष्ठ भाग पर टपक गए.
“बस राज बस! मेरे लिए आपकी आँखों में आंसू आये, मैंने दोनों जहां पा लिए. मेरे प्यार ने मुझे स्वीकार कर लिया, अब चाहे मुझे मौत भी आ जाए तो गम नहीं. इस घड़ी को दिल में संजो कर के तो मैं सदियों-सदियों नर्क की आग में ख़ुशी-ख़ुशी जल जाऊं.”
कहते-कहते वसुन्धरा की आँखों से भी गंगा-जमुना बह निकली. भावावेश में मैंने वसुन्धरा के हाथों से अपना हाथ छुड़ा कर उसको अपने आलिंगन में ले लिया और वसुन्धरा भी बेल की तरह मुझमें सिमट गयी.
कहानी जारी रहेगी.
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