RE: Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
वसुन्धरा की आँखों से भी गंगा-जमुना बह निकली. भावावेश में मैंने वसुन्धरा के हाथों से अपना हाथ छुड़ा कर उसको अपने आलिंगन में ले लिया और वसुन्धरा भी बेल की तरह मुझमें सिमट गयी.
दोनों की आँखों से आंसू अविरल बह रहे थे. पता नहीं हमारा कितना समय ऐसे ही एक-दूजे के आगोश में ग़ुज़रा. धीरे धीरे मुझे वस्तुस्थिति का भान हुआ और मैंने धीरे से वसुन्धरा को अपने आगोश से मुक्त किया.
तत्काल वसुन्धरा ने सर उठा कर मेरी ओर देखा. मैंने फ़ौरन अपनी निग़ाह अपने सूटकेस की ओर की. मेरी नज़र का अनुसरण करते-करते वसुन्धरा ने भी मेरे सूटकेस को देखा और मेरा मंतव्य समझ गयी.
“वसुन्धरा! मैं आप के प्यार का जवाब आप जैसे प्यार से नहीं दे सकता, ये तो आप भी जानती हैं. फिर भी अगर आपके लिए मैं कुछ कर सकता हूँ तो बेझिझक बताइये?”
वसुन्धरा फिर से ज़ोर से मुझ से लिपट गयी और मेरे कान में फुसफुसाई- राज!
“हूँ … !”
“मत जाओ.”
मत जाओ … कहने को तो दो … महज़ दो लफ्ज़ ही थे लेकिन इन के मायने बहुत वसीह थे. ओह! अब मुझे वसुन्धरा की जिद समझ में आ रही थी. चौदह साल पहले उस ने तसुव्वर में मुझसे शादी कर ली थी और खुद को मेरी दुल्हन मान लिया था. अब वसुन्धरा शादी के बाद वाले अगले तल पर जाना चाहती थी और वो था मेरे साथ संभोग! एक पत्नी अपने पति को अपना कौमार्य भेंट करना चाहती थी और अगर ऐसा नहीं हुआ तो वसुन्धरा जहां है, जैसी है, वैसी ही रहेगी … उम्र भर अविवाहित और अक्षत योनि.
मैं बड़े धर्म-संकट में था. ऐसा होने के बाद मैं क्या ‘मैं’ रह पाऊँगा? लेकिन कुछ फैसला तो लेना ही था और फिर मैंने फैसला ले ही लिया.
“वसुन्धरा …”
“हूँ …! ” वसुन्धरा ने अर्धनिप्लित आँखों में प्रशनवाचक नज़रों से मेरी ओर देखा.
“वसुन्धरा! आपकी चौदह साल की तपस्या के पुण्य आज ही उदय होंगें. आपकी मुरादों वाली रात आज ही होगी, यहीं होगी लेकिन ये सिर्फ एक रात ही होगी … सिर्फ आज ही की रात … कल का सूरज हम दोनों को अपने अलग-अलग जीवनपथों पर आगे बढ़ता देखेगा और आप मुझे इस बात का वचन दीजिये कि आप भी उसकाल के हिम-खंड को पीछे छोड़ कर, जिंदगी के सफ़र में आगे बढ़ जायेंगी. कहिये! मंज़ूर?”
तत्काल वसुन्धरा के चेहरे पर एक मुस्कान आ गयी और उसने अपनी स्वप्निलिप्त आधी खुली आँखों सहित “हाँ” में सर हिला कर हामी भरी. मैंने वसुन्धरा की आँखों में झांका, आँखों में बेहिसाब ख़ुशी, बेइंतहा प्यार और कुछ-कुछ डर के अहसास छलक रहे थे.
मेरा मन भर आया. मैंने वसुन्धरा का चेहरा अपने दोनों हाथों में ले लिया और बढ़ कर वसुन्धरा की पेशानी पर एक चुम्बन अंकित कर दिया. अपने दोनों हाथों की तर्जनियों और बड़ी उँगलियों के बीच वसुन्धरा के दोनों कानों की लौ ले कर हल्के-हल्के सहलाने लगा.
कान किसी भी स्त्री के बहुत ही ज्यादा संवेदनशील अंग होते हैं और ये एक बहुत ही आदिम नुस्खा है किसी भी लड़की को काम-विह्ल करने का.
मैंने आगे बढ़ कर वसुन्धरा के दाएं कान की लौ को अपनी जीभ से छुआ. तत्काल वसुन्धरा की आँखें नशीली होने लगी और एक सिहरन की लहर वसुन्धरा के पूरे शरीर में से गुज़र गयी. मैंने वसुन्धरा की आँखों में झांकते हुए उसको अपने अंक में दोबारा कस लिया और उस होठों का एक नाज़ुक सी छुवन वाला चुम्बन लिया.
“ओ राज! मुद्दतों तड़पी … बरसों सुलगी, मैं इस पल के लिए.” कह कर वसुन्धरा ने अपने दोनों हाथों से मेरा सर नीचे कर के मेरा चेहरा चुंबनों से भर दिया. मैंने हल्के से वसुन्धरा को अपने साथ लगाया और उसके बाएं कान में अपनी गर्म सांस छोड़ते हुए उसके कान की लौ को अपनी जीभ से हल्के से छुआ, जिसके जबाव में वसुन्धरा ने मेरे दाएं कंधे पर जोर से काट लिया.
दर्द की एक तेज़ लहर मेरे पूरे शरीर में दौड़ गयी. ऐसा तो होना ही था और मुझे इस बात का पूरा पूरा इमकान भी था कि मेरा पाला किसी छुई-मुई से न पड़ कर एक बला की खूंखार शेरनी से पड़ने वाला था, जिस ने मेरे साथ इन पलों को साकार करने के लिए चौदह साल इंतज़ार किया था. यूं मैंने ऐसे दर्शाया कि मुझे कुछ हुआ नहीं लेकिन अब के इस काम-केलि की डोर मुझे अपने हाथ ही में रखनी ही होगी नहीं तो आज की रात तो वसुन्धरा ने मुझे यक़ीनन उधेड़ कर रख देना था.
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