RE: Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
तभी जोर से बिजली कड़की. एक क्षण को तो पूरा आलम एक अत्यंत चमकदार रोशनी में नहा गया लेकिन इस के साथ ही लाइट चली गयी घड़ … घड़..घड़..घड़..धड़ाम … धड़ाम!!!! इतनी ज़ोर की आवाज़ आयी कि जैसे बिजली सामने सड़क पर ही गिरी हो. साथ ही बाहर जोरों की बारिश शुरू हो गयी.
मैंने ड्रेसिंग-टेबल पर पड़ा शमादान जलाया.
शमा जलते ही जैसे कमरे का माहौल ही बदल गया. शमा की झिलमिलाती रोशनी में दीवारों पर नाचते सायों और बाहर धुआंधार बारिश के शोर से एक अजब सा जादुई सा माहौल बन गया. मैं वापिस बैड की ओर लौटा और मैंने बेड पर बैठी आँख भर कर वसुन्धरा को देखा. दोनों पैर बेड पर, दोनों खड़े हुए घुटनों को अपने दोनों बाजुओं से क्रास पकड़ कर अपनी ठोड़ी घुटनों पर रख कर मेरी ओर गहरी नज़रों से देख रही वसुन्धरा किसी और ही आयाम की लग रही थी.
मैंने वसुन्धरा के पांव देखे. सुडौल और गोरे, लम्बी समान अनुपात में पतली गोरी उंगलियाँ … मैंने बहुत प्यार से वसुन्धरा के पैरों पर हाथ फेरा एक सिहरन की लहर मेरे और वसुन्धरा दोनों के जिस्मों में से गुज़र गयी.
मैंने झुक कर वसुन्धरा के बाएं पैर के अंगूठे और उंगली के बीच में एक चुम्बन ले लिया. वसुन्धरा के मुंह से एक लम्बी सीत्कार निकल गयी. मैंने फिर उसी जगह (पैर के अंगूठे और उंगली के बीच) अपनी जीभ टिका दी और जैसे और लोग जीभ से योनि-भेदन करते हैं ठीक वैसे ही अपनी जीभ वसुन्धरा के पैर के अंगूठे और उंगली के बीच की जगह में आगे घुसाने लगा.
क्षणभर में ही वसुन्धरा पर इस की बड़ी विस्फ़ोटक प्रतिक्रिया हुई- सी..ई … ई..ई … हाय नहीं … सी..ई … ई..ई..हाय नहीं … बस बस … आह … ह … ह!
कहते-कहते वसुन्धरा ने मेरे सर के बाल पकड़ लिए और बहुत बेदर्दी से मुझे बेड पर अपने ऊपर खींच कर मेरे होठों पर अपने होंठ रख कर मेरे होंठ चूमने लगी … चूमने क्या लगी, यहां-वहां काटने लगी.
मैंने अपने दोनों हाथों से वसुन्धरा का चेहरा कनपटियों पर से थामा और पहले तो वसुन्धरा चेहरे पर, माथे पर, गालों पर, कानों पर कानों की लौ पर, चिबुक पर और यहां-वहां ढेर सारे चुम्बन लिए और फिर उसके दोनों होंठ अपने मुंह में लेकर मज़े-मज़े से चूसने लगा.
मारे काम-हिलौर के, वसुन्धरा बिस्तर पर पीछे सीधी लेट गयी और बुरी तरह छटपटाने लगी. कभी मेरे कंधे पकड़ कर मुझे पीछे हटाए, कभी मेरे सर के बाल नोचे लेकिन मैं वसुन्धरा को ना छोड़ने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ था.
धीरे-धीरे मैंने अपने दोनों हाथों की उँगलियों में वसुन्धरा के दोनों हाथों की उंगलियां पकड़ ली और वसुन्धरा के शरीर पर लंबवत लेट गया. मेरे पेट तक का ऊपर का हिस्सा वसुन्धरा के पेट और वक्ष के ऊपर और टाँगें वसुन्धरा के शरीर के बायीं ओर साथ साथ. वसुन्धरा के दोनों होंठ मेरे होंठों की गिरफ़्त में थे और जैसे ही मैं उसके ऊपर या नीचे वाले होंठ पर अपनी जीभ फेरता, वसुन्धरा का पूरा शरीर तन जाता और सिहरन की लहरें वसुन्धरा के शरीर में उठनी शुरू हो जाती.
मैंने अपनी बायीं टांग आधी मोड़ कर वसुन्धरा के शरीर पर रख दी. मेरा बायां घुटना वसुन्धरा की जलती-धधकती योनि के ठीक ऊपर था. मैं अपना बायां घुटना वसुन्धरा की योनि पर ऊपर-नीचे रगड़ने लगा और हर बार वसुन्धरा की साड़ी मेरे पैर की ऊपर-नीचे की जुम्बिश के साथ थोड़ा और ऊपर खिसकने लगी.
पहले तो वसुन्धरा को इस बात का पता ही नहीं चला लेकिन जैसे ही उसे इस बात का इल्म हुआ तो फ़ौरन वसुन्धरा ने अपना दायां हाथ जबरन मेरे बाएं हाथ की ग़िरफ़्त से छुड़वाया और घुटनों से ऊपर उठ चुकी साड़ी वापिस नीचे व्यवस्थित करने लगी. मैंने भी उसके इस काम में कोई बाधा नहीं दी.
भारतीय नारी के सदियों से ओढ़े हुए शर्मो-हया के परदे पहली ही मुलाक़ात में कहाँ उठते हैं?
इसी बीच मैंने वसुन्धरा का दूसरा हाथ भी अपनी पकड़ से आज़ाद कर दिया. अपनी अस्त-व्यस्त साड़ी को अपनी ओर से व्यवस्थित कर के वसुन्धरा ने अपने दोनों हाथों से मुझे अपने आलिंगन में कस लिया. मैंने तत्काल सर उठा कर सीधे वसुन्धरा की आँखों में शरारत भरी आँखों से झाँका. फ़ौरन वसुन्धरा ने अपना चेहरा अपने दोनों हाथों से ढक लिया.
भोली वसुन्धरा! अपना चेहरा तो अपने हाथों से ढक लिया लेकिन उसकी सारी की सारी देह-राशि तो मेरे सामने खुली पड़ी थी.
मैंने फ़ौरन अपने दोनों हाथ वसुन्धरा के कंधों पर रखे और कोमलता से धीरे-धीरे ‘v’ के आकार में नीचे की ओर लाने लगा. पहले कन्धों की मांसपेशियां, फिर ब्रा के स्ट्रैप के बाद हंसली की हड्डी और ऊपरी पसलियां की नर्म त्वचा और फिर ब्लाउज़ के ऊपर दो पर्वत-श्रृंगों पर मेरे दोनों हाथ जम गए. दोनों हाथों की आठों उंगलियां वक्षों के उभार जहां से शुरू होते हैं, वहां जमी थी और दोनों अंगूठे दोनों उरोजों के मध्य दरार में एक-दूजे से सटे हुए थे. मेरी हथेलियों के मध्य-भाग दोनों पर्वत शिखरों को ढके हुए थे.
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