RE: Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
“वसुन्धरा”
“हुँ …”
“जानती हो … मेरे दोनों हाथों में क्या हैं?” मैंने शरारत भरे लहज़े में पूछा.
“मुझे नहीं पता!” वसुन्धरा मेरे लहज़े में शरारत को भांप गयी थी.
“मेरे दोनों हाथों में लड्डू हैं.”
तत्काल सारा कमरा वसुन्धरा की खनकती हंसी से गूँज उठा. उसने अपने दोनों हाथ उठा कर अपने दोनों उरोज़ थामे मेरे हाथों को ऊपर से जकड़ लिया. मैंने अपने होंठों से वसुन्धरा के बायें कान के ज़रा सा नीचे एक चुम्बन लिया. तत्काल वसुन्धरा के मुंह से एक तीखी सिसकारी निकल गयी और वो लगी अपने जिस्म को आगे-पीछे झुलाने, जिसके कारण वसुन्धरा के जिस्म के साथ-साथ मेरे जिस्म में एक जुम्बिश सी पैदा हुई और दोनों जिस्म आपस में रगड़ खाने लगे.
उफ़! वसुन्धरा के नंगे, गर्म जवान जिस्म को पीछे से रगड़ कर मेरा नंगा जिस्म मानो आग पैदा करने की कोशिश में था. मेरा गर्म फ़ौलाद जैसा लिंग वसुन्धरा की पैंटी के ऊपर से ही उसके नितम्बों की ऐन दरार पर रगड़ खा रहा था, मेरी बायीं टांग वसुन्धरा की बायीं टांग पर चढ़ी हुयी थी और हम दोनों की दोनों दायीं टांगें लंबवत बिस्तर पर सीधे फ़ैली हुई थी. मेरी दोनों हथेलियों के नीचे वसुन्धरा के दोनों उरोजों और उनके निप्पल्स रगड़ खा रहे थे.
क्या गज़ब का तारतम्य था दोनों जिस्मों की गति में. कमरे में सर्वत्र काम-गंध फैली थी और रति-कामदेव की लीला अपने चरम पर पहुँचने को अग्रसर थी. वसुन्धरा के जिस्म का रेशा-रेशा फड़क रहा था और उसके मुंह से गर्म-उबलती आहों-कराहों का प्रवाह सतत जारी था- ओ … ओह … ओ गॉड … हा … आह … उह … ऊ … ऊ … स … हु … सी … इ … ई … ई … सी … मर गयी … ओह … सी … ई … ई … ई!
वसुन्धरा के जिस्म में रह-रह कर सिहरन उठ रही थी.
अचानक ही वसुन्धरा ने मेरे दाएं हाथ को अपने बाएं उरोज़ पर से उठाया और मेरे दाएं हाथ को अपने हाथ में पकड़ कर जगह-जग़ह से चूमने लगी और मेरी तर्जनी और मध्यमा उंगली अपने मुंह में लेकर बेसब्री से चूसने लगी. मैंने अपना बायां हाथ उठा कर वसुन्धरा के बायें कंधे से नीचे लंबवत उतारना शुरू कर दिया. कमर के ख़म के और नीचे हाथ ले जाने की बजाए मैंने पैंटी के इलास्टिक के साथ-साथ पेट के सेंटर की ओर हाथ बढ़ाया.
वसुन्धरा ने अपनी बायीं टांग मोड़ कर मुझे अपनी योनि छूने से रोकने की कोशिश की तो सही लेकिन चूँकि मेरी बायीं टांग, वसुन्धरा की बायीं टांग के ऊपर थी इसलिए इस बार वसुन्धरा अपनी कोशिश में कामयाब नहीं हो पायी और ऐन नाभि के नीचे पहुँचते ही अपना हाथ पैंटी के इलास्टिक के अंदर से नीचे की ओर बढ़ा दिया.
उफ़! मेरा हाथ जैसे किसी तपती-धधकती भट्टी की ओर बढ़ रहा था. तभी मेरे हाथ को नर्म नर्म रेशमी रोमों का एहसास हुआ. मैंने अपना हाथ पैंटी के अंदर ही थोड़ा ऊपर उठाया और हथेली का एक कप सा बना कर, जिस में मेरी चारों उंगलियां नीचे की ओर थी वसुन्धरा की तपती जलती योनि पर रख दिया.
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