RE: Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
और इससे पहले वसुन्धरा कोई प्रतिक्रिया करती, फ़ौरन अपने लिंग को वसुन्धरा की योनि से वापिस बाहर खींच लिया लेकिन लिंग की योनि के अंदर आने-जाने की प्रक्रिया में मेरे लिंग-मुण्ड की जो योनि की दीवारों पर रगड़ लगी उसके कारण वसुन्धरा की उत्तेजित योनि ने और काम-रस उगल दिया.
यह प्रक्रिया मैंने बार-बार दोहराई. बारह-चौदह बार मेरे लिंग वसुन्धरा की योनि के अंदर योनि के हाईमन को बस छू कर वापिस लौट आया. कमरे के अंदर वसुन्धरा की आहों-सीत्कारों का बाजार खूब गर्म हो उठा था.
“ओह … ओह … सी … इ … इ … ओ … ह … हां … हा … मर गयी … सी … इ … इ..इ … ई … ई!”
” रा..!..! …!..ज़! सी … ई … ई … ई! … उफ़..फ़..फ़ … बस..! बस..! … हा … आह … ह … ह … ह..!!! … सी..सी..सी …!”
” राज … बस … बस … बस करो … नईं..ईं … ईं … और नहीं … आगे नहीं … आ … ह …! आ … आ … आ … ह … आह …!!!”
मेरे नितम्बों पर वसुन्धरा के पैरों की कैंची की पकड़ हर पल संकीर्ण होती जा रही थी. वसुन्धरा ने अपने दोनों हाथ मेरी गिरफ़्त से छुड़वा कर मेरी पीठ पर कस कर बाँध रखे थे. वसुन्धरा अब पहले से ज्यादा सहज़ हो चुकी थी और अब वक़्त आ गया था कि एक मर्द, इक मर्द की तरह पेश आकर एक स्त्री के नारीत्व को संपूर्णता प्रदान करे.
हालांकि इस प्रक्रिया में मर्द को पल भर के लिए क्रूर होना पड़ता है. लेकिन यह क्रूरता उस डॉक्टर जैसी होती है जो किसी अस्वस्थ व्यक्ति को स्वस्थ करने के लिए इंजेक्शन लगाता है या उसका ऑपरेशन करता है.
बाहर बादल टूट कर बरस रहे थे और बाहर की ठिठुरती सर्दी में, कमरे के अंदर आदम और हव्वा के सम्पूर्ण जीवन के सब से जादुई पल आन पहुंचे थे. दो से एक होने की घड़ी बस … आने को ही थी. वसुन्धरा की जिद, वसुन्धरा का मान, वसुन्धरा का नारीत्व, वसुन्धरा का प्यार … ये सब पूर्णता को प्राप्त होने को थे और वसुन्धरा चौदह साल के जमे हुए काल-खण्ड की क़ैद से से बस … बाहर निकलने को ही थी.
फिर आया वो पल … मैंने वसुन्धरा के दोनों होंठों को अपने होंठों में लिया और लगा वसुन्धरा के दोनों होंठ चूसने. वसुन्धरा के दोनों बाज़ू मेरी पीठ के इर्द-गिर्द सख्ती से लिपट गए और वसुन्धरा के दोनों पुष्ट स्तनाग्र मेरी छाती में छेद करने पर आमादा थे.
मैंने कामाग्नि से जलते-धधकते हुए अपने साढ़े छह सात इंच के काम-ध्वज को वसुन्धरा की काम-रस से भीगी योनि से बाहर खींचा और वापिस बिजली की गति से वसुन्धरा की योनि के हाइमन को चीरते हुए वसुन्धरा की योनि में जड़ तक गाड़ दिया.
एक क्षण लगा वसुन्धरा को समझने के लिए और उसी क्षण ही वसुन्धरा ने अपने दोनों हाथों से मेरे कंधे पकड़ कर मुझे अपने ऊपर से उठाने की कोशिश की.
मैं तो वसुन्धरा के ऊपर से क्या उठता पर इस ज़ोर-आज़माईश में मेरे होंठों की पकड़ से वसुन्धरा के दोनों होंठ छूट गए. जैसे ही मेरे होंठों की पकड़ वसुन्धरा के होंठों पर से हटी.
” आह … ह … ह … ह..!!! ” एक गगनभेदी चीख़ वसुन्धरा के मुंह से फ़ूट पड़ी और वसुन्धरा मुझे अपने ऊपर से हटाने के लिए संघर्षरत हो उठी. पर अब इन सब का क्या फ़ायदा था! अब तो जो होना था वो हो चुका था और हम दोनों भी यही तो चाहते थे.
वसुन्धरा की दोनों आँखों से आंसुओं की मोटी-मोटी बूँदें टपक रही थी और मैं अपने होंठों से वसुन्धरा का एक-एक आंसू बीन रहा था. हम दोनों के निचले धड़ बिल्कुल स्पंदनहीन थे. दोनों के जिस्मों के नाभि के नीचे के भाग इक-दूसरे से ऐसे सटे हुए थे कि लोहे के दो टुकड़े वैल्ड हो गए हों.
मेरे लिंग पर वसुन्धरा की योनि का रह-रह कर स्पंदन हो रहा था जैसे कोई नर्म-गर्म मख़मल अपने हाथ में लपेट कर मेरे लिंग की सख़्ती की थाह ले रहा हो.
मैंने अपने नितम्ब थोड़े ऊपर को उठाये. मेरा लिंग कोई दो इंच वसुन्धरा की योनि से बाहर आया और मैंने तत्काल अपना लिंग वापिस वसुन्धरा की योनि में धकेल दिया. वसुन्धरा के मुंह से एक ‘सी … इ … इ..इ … ई … ई’ की सिसकी सी निकल गयी.
मैंने फिर दोबारा वही हरक़त दोहरा दी. वसुन्धरा के मुंह से फिर एक ‘सी..सी..सी … इ … इ..इ!’ की सिसकारी निकली लेकिन इस बार सिसकी में दर्द में आनंद का थोड़ा सा समावेश था.
अगले चार-पांच मिनट मैं यही हरक़त बार-बार दोहराता रहा लेकिन हर बार अपने लिंग को पिछली बारी से ज़रा सा ज्यादा बाहर निकाल कर वापिस वसुन्धरा की योनि में उतार देता और हर बार वसुन्धरा के मुंह से निकलने वाली सिसकारियों में दर्द की मात्रा क्रमश: कम और आनंद की मात्रा बढ़ती गयी. हर बार मेरा लिंग जैसे ही वसुन्धरा की योनि के दीर्घतम छोर को जाकर छूता, वसुन्धरा का मुंह भी इसी अनुपात में खुल जाता.
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