Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
12-09-2019, 01:29 PM,
#79
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
अब तक हेमा इतना कह कर चुप हो गयी....वो हाँफने लगी थी....इस बीच मैने उसके बदन पे उसकी साड़ी रख दी थी...मैं जैसे तैसे अपने कपड़े पहनने लगा..और बिना हिचकिचाए रैना के पास आया जो ये सब सुनके लगभग कठोर सी बनी खड़ी थी...ऐसे लग रहा था जैसे उसे कितनी गहरी चोट दिल में लगी हो...मैं उसे और उसकी बहन उमा को समझाने लगा....जो हमारे बीच उसने देखा वो सिर्फ़ एक ज़रूरत थी...उसे उसकी माँ की बच्चेदानी में हुई सूजन की रिपोर्ट्स मैने दिखाई तो वो एक टक उसे देख कर चुपचाप नम निगाहो से अपनी माँ को रोते हुए पाई...

समीर : रैना ग़लती मेरी है तुम अपने भाई और माँ को मत कोसो...शायद मुझे तुम माँ-बेटी के बीच में बोलने का कोई अधिकार नही बनता पर हां मैने हेमा आंटी को पैसे देके इनके साथ संबंध बनाए....हालाँकि इसमें इनकी भी मर्ज़ी थी...और रही बात आदम की तो आंटी की इच्छा अनुसार ही वो हमारे साथ शामिल हुआ

समीर की बात सुन चुपचाप दोनो बहने उसकी तरफ देखने लगी..."सच कह रहा है समीर ग़लती मेरी भी है कि मैने सबकुछ जाने सुने तुम्हारी माँ के साथ संबंध बनाए...कौन बेटी अपनी माँ को ऐसे हालत में देखना चाहेगी अभी कुछ देर पहले जो हमारे बीच हुआ उसके बाद तो हम तुम्हारे सामने मुज़रिम ही है...पर कम से कम हमारे लिए ना सही अपनी माँ का तो सोचो जिसने तुम्हारे लिए इतना कुछ सॅक्रिफाइस है आंड ट्रस्ट मी रैना आंटी की कोई ग़लती नही है अगर अब भी तुम्हें हमसे नफ़रत है तो करो लेकिन आंटी जिसने तुम्हें इतना सपोर्ट किया कम से कम उस बेचारी को तो ऐसे ना कहो एक वक़्त था कि तुम्हारे पिता इन्हें जब काम से आती थी तो साड़ी उतारके इनके गुप्तांगो को चेक करते थे मैं ये बेशरामी से कह रहा हूँ क्यूंकी ये एकदम सच है तुम दोनो को सुनना होगा हां फिर बदन को चेक करते थे कि कही कोई नाख़ून नोचने के किसी गैर मर्द से कही कुछ करके तो नही आई"......आदम ने हिचकिचाते हुए कहा...

अब तो आदम का हिचखिचाना भी कम हो गया इतना समझाने के बाद भी अगर वो लोग खफा होते तो लाज़मी ही था...समीर मेरे पास आया उसने मेरे कंधे पे हाथ रखा और कहा चल अब यहाँ रुकने का कोई फ़ायदा नही...मैने समीर की बात बीच में रोकी और उन दोनो की तरफ गंभीरता से देखने लगा उमा मुझे देख रही थी..मैं उनके सामने अपने कपड़े पहनने लगा...दोनो ने नज़रें इधर उधर कर ली क्यूंकी बहुत देर से हम तीनो उनके सामने अध नंग अवस्था में थे....जाते जाते मैने सिर्फ़ इतना कहा कि अगर मुझसे कोई गुनाह हो गया तो माँफी चाहूँगा लेकिन प्लीज़ मेरे लिए अपनी माँ को मत कोसना...मैं अब कभी इस घर में पाँव भी नही रखूँगा....मुँह बोला भाई ज़रूर दुनिया कहे पर मैं सच्चे दिल से तुम दोनो को मानता हूँ...हालाँकि हेमा आंटी को मैं अपनी माँ जैसा नही मानता पर उनसे मेरा अटूट रिश्ता है जो शायद कोई समझ ना पाए शायद वो भी नही...

इतना कह कर समीर ने मेरी बाँह पकड़ी और हेमा आंटी और उनकी बेटियो को वैसे कशमकश की हालत में छोड़े वहाँ से निकल आए....पूरे रास्ते हम चुपचाप थे समीर ने गाड़ी एक जगह पार्क की...और दो बियर की बॉटल्स लाया...मैं ना नुकुर करने लगा..पर उसने कहा फिलहाल यही एक चीज़ है जो मरहम की तरह काम देगी शायद दिलो के सदमे को ख़तम ना कर पाए पर उभरने तो देगी....मैं बियर वैसे पीता नही था फिर भी दो घूँट मारे उसकी कड़वाहट में मैं मुँह बनाने लगा...समीर हंस पड़ा

समीर : बेहेन्चोद ग़लती मेरी ही थी...खामोखाः तुझे बुलाया इतने सालो का रीलेशन था तुम लोगो का अब ऐसे मुँह फुलाए सदमा लिए उनके घर से रुखसत होना पड़ा तुझे अंजुम आंटी को कुछ बता ना दे उनकी बेटियाँ

आदम : नही समीर वो लोग कुछ नही कहेंगी माँ के इतना कुछ कहने के बाद वो लोग चुपचाप हो गयी पर गहरा सदमा लगा है उन्हें और लगे भी क्यूँ ना? खैर यार हम अपनी शहवत (ठरक) की हसरत को पूरी करने के चक्कर में अपने रिश्तो की बलि चढ़ा देते है...महेज़ दो पल की ठरक के लिए एक चुदाई ने हमारे रिश्तो को कैसे शरम सार कर दिया....यार सच में ये नाजायेज़ रिश्ते सुख कभी नही दे सकते

समीर : उफ्फ हो आदम जो हुआ अब उस पर तेरा बस थोड़ी था.....कल भी तो मैं हेमा के घर गया तो कहाँ उसकी कोई बेटी आई हुई थी? अब एकदम से इत्तेफ़ाक़ देख कि वो दोनो दरवाजे पे खड़ी थी और हम दरवाजे को लॉक्ड भी नही कर सके चल कर भी लेते तो क्या उनके दरवाजे पे दस्तक देने के बाद हम तीनो को एक साथ देख उन्हें फिर भी तो शक़ होता

आदम : खैर जो भी हुआ बहुत बुरा हुआ...उमा और रैना उनपे क्या बीतेगी यार?

समीर : भाई तेरा दुख समझता हूँ तू छोड़ ना इस बात को...और हेमा का राज़ तो उन दोनो के सामने एक ना एक दिन आना ही था...अब आ तो गया ना सच्चाई से तो वाक़िफ़ हो गये ना

समीर आदम को समझाने लगा आदम भी चुपचाप समीर की बातों को सुनने लगा...उसे दुख तो पहुचा था कि उसकी बेटियाँ ये सब देखके एकदम शॉक्ड हो गयी थी उन्होने अपनी माँ की चुदाई गैर मर्दो से नही देखी थी और आज ग़लती से ही सही उनकी नज़र अपनी माँ पे जब इस हालत में पड़ी तो कहेर उनपर टूट पड़ा था...ना जाने घर में उनके क्या अब तक कलेश हो रहा होगा? यही सोचते हुए मैं चुपचाप सोच की कशमकश में घिरा रहा

समीर : भाई ज़्यादा टेन्षन ना ले अब जो हुआ सो हुआ भूल जा कोशिश कर अब तो मेरा भी हेमा आंटी के घर जाना नही हो पाएगा शायद वो हमसे बात तक करना छोड़ दे...तू अंजुम आंटी के साथ हमेशा हमेशा के लिए जा रहा है बस अपनी गृहस्थी पे ध्यान दे जैसे मैं दे रहा हूँ समझता हूँ आंटी की सहेली थी उनकी बेटियाँ तुझे भाई मानती थी तुझे ये सब सोचके बहुत बुरा लग रहा है पर यार अब हम किस्मत के आगे कर भी क्या सकते है

आदम : हां यार

समीर : अच्छा इन सब हालातों के चक्कर में मैं तुझे बता नही पाया?

आदम : क्या नही बता सका? बोल मैं सुन रहा हूँ

समीर चुपचाप उदासी भरे लहज़े में मुस्कुराया और उसने आदम के कंधे पे हाथ रखा...."अब तू जा रहा है तो मैं भी अब अगले साल तक यहाँ से चला जाउन्गा मुंबई जाने का फ़ैसला कर लिया है मैने"........

."हां तूने बताया था"......आदम ने सुनते हुए कहा

समीर : ह्म वहीं से अपना कारोबार संभाल लूँगा और सोच रहा हूँ कि?

आदम : अर्रे बोल ना भाई चुपचाप क्यूँ है इतना?

समीर : देख अंजुम आंटी कैसा रिक्ट करे? पर मैं चाहता हूँ तू आना ज़रूर अगर आंटी को हमारे बारे में सब मालूम चले तो वो भी आ सकती है...

आदम चुपचाप समीर की तरफ सवली निगाहो से देख रहा था...."किस चीज़ का तू मुझे बुलावा दे रहा है भाई खुल के बता".......समीर शरामते हुए मुस्कुराया और अपनी और सोफीया की शादी की बात बताई....आदम ये सुनके हैरत में पड़ गया फिर उसका चेहरा भी गुलाबी हो उठा ...वो उठके समीर के गले लगा

आदम : ओह हो तो बात यहाँ तक पहुच गई?

समीर : हां भाई अब हम दोनो ने फ़ैसला कर लिया है कि हम शादी करेंगे माँ तय्यार है

आदम : किसी को अगर मालूम!

समीर : अर्रे सिर्फ़ क़ाज़ी ही तो होगा और कौन होगा? और अगर तू शामिल रहा तो वारे न्यारे

आदम : हाहाहा कोंग्रथस ब्रो अब सोफीया आंटी तेरी बीवी बन जाएँगी...फिर उसके बाद

समीर : उसके बाद वोई होगा जो हर शादी के बाद होता है

समीर के इरादे भापते हुए आदम ज़ुबान पे दाँत रखके काटा फिर दोनो हंस पड़े...एकदुसरे से गले मिले...समीर ने आदम को काफ़ी समझाया..फिर कहते हुए गया कि अंजुम को लेके उससे और उसकी माँ से मिलने आए जिस दिन वो जाएगा उससे पहले...आदम पूरा रज़ामंद हुआ उसने समीर से वादा किया...समीर से दूर होने में उसे दुख हो तो ज़रूर रहा था पर नियती का यही खेल था....वो अपनी गृहस्थी को लेके उलझा था तो यहाँ आदम अपनी गृहस्थी को लेके...पूरे दिन का दुख समीर की खुशख़बरी ने एक झटके में गायब कर दिया था
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