Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
12-09-2019, 01:30 PM,
#86
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
समीर झेंप सा गया वो अपने होंठो पे ज़ुबान फिराने लगा....उसने सारे दराज़ो को बंद किया और मुझे बाथरूम दिखाने लगा...बाथरूम भी कमरे से कोई कम नही था एक तो इतना बड़ा उपर से अटॅच इंग्लीश टाय्लेट के साथ... एक जगह जहाँ गुलाब की पंखुड़िया बिखरी हुई थी...ऐसा लग रहा था जैसे उसमें माँ और बेटे दोनो हमारे आने से पहले नहाए होंगे एक साथ...समीर मुस्कुराने लगा...मैं शरमा गया समीर ने नल पे टॅंगी माँ की पैंटी और ब्रा मुझे दिखाई

वो उसे पागलो की तरह सूंघने लगा..."क्या कर रहा है पागल? आंटी देख लेंगी तो क्या सोचेंगी?"........समीर मुस्कुरा के मेरे हाथ में अपनी माँ की पैंटी देता है जिसपे कुछ धब्बा सा लगा था...

समीर : ये गंध ये महेक मेरे लिए गुलाब की खुश्बू सी है जिसमें एक बार नाक देने के बाद मैं स्वर्ग में पहुच जाता हूँ अफ क्या खुश्बू है इसकी इसमें माँ की भीनी भीनी पसीने की महेक के साथ साथ उन्हें उत्तेजित करने के बाद उनकी चूत से निकला चिपचिपापन है तुझे आहेसस नही हो रहा

मैं ताहिरा मौसी को चोद रखा था चंपा को चोद रखा था तबस्सुम दी और आकांक्षा के साथ रूपाली भाभी को चोद रखा था इसलिए मुझे पैंटी की वो महेक सूंघने में कोई घिन नही लगी मैं औरत की महेक पहचानता था...मैं भी पैंटी हाथो में लिए उसे सूँघा मुझे थोड़ा अज़ीब लगा क्यूंकी मैं सोफीया आंटी की काफ़ी इज़्ज़त करता था समीर जैसे इस दृश्य को देख मज़े ले रहा था...

आदम : अच्छा भाई छोड़ ये सब और ये बता कि शादी से अब आगे का क्या प्लान है?

समीर : क्या बताऊ यार? नियती का खेल है सब माँ ने मुझे बतया नही था कि कॉपर टी उन्होने लगवा रखी थी अपने गुप्तांगो के भीतर...तभी मैं सोचु माँ को चुदाई के वक़्त दर्द क्यूँ इतना बर्दाश्त करना पड़ता था मैने पिछले ही महीने माँ को राज़ी करके कॉपर टी निकलवा ली उमर ही क्या हुई है 35-36 बरस अब तो मैं भी चाहता हूँ कि माँ पेट से हो जाए अब हम अपने बीच कोई और दूरिया नही रखना चाहते

समीर की बात सुनके मुझे थोड़ा शॉक ज़रूर लगा कि वो पहले से ही माँ का दीवाना है माँ के साथ ग्रहस्थी तो वो बसा चुका लेकिन निक़ाह के बाद वो बाप बनना चाहता था वो भी अपनी सग़ी माँ से बच्चा लेना चाहता था...ये सब सुनके मैं हैरत में पड़ गया उसने बताया कि इतने कोशिशो के बाद उसे लगा शायद माँ को गर्भ ठहर जाए पर माँ को कोई फरक नही पड़ रहा था...फिर लेडी डॉक्टर से मिलने की जब बात कही तो उन्होने खुद ही बताया कि वो समीर के पैदा होने के बाद कोई और उसके पिता से औलाद नही चाहती थी इसलिए उन्होने कॉपर टी का सहारा लिया

समीर वही नल पे उन ब्रा पैंटी को रखके मेरे साथ बाहर आया...उसने बताया कि इससे पहले सोफीया पे हक़ सिर्फ़ उसके पिता का था...अब उसका है..और हर पिता के बाद औरत का ख्याल उसके बेटे को रखना होता है उसके बेटे का उस पर पूरा हक़ हो जाता है....समीर व्यभिचारी बेटा बन चुका था..कितने रिश्ते उसके आने लगे थे तो उसने रिश्ते बुलाने वाले अपने एक दोस्त को थप्पड़ जड़ दिया था सिर्फ़ इस बात से कि उसने उसके लिए घर पे उसके गैर हाज़िरी में रिश्ते लाने शुरू कर दिए...बस लड़का अमीर था इसलिए लड़कियो ने उसे पसंद किया एक अकेले घर का राजा था वो सिर्फ़ माँ थी जो कोई नही जनता था कि दोनो माँ-बेटे नही एकदुसरे के पति पत्नी जैसे थे....भला समीर पराई औरत को देखे.....समीर फिर भावुक हो गया उसने बताया कि वो ये आलीशान बांग्ला बेच बाचके माँ को लेके वापिस मुंबई शिफ्ट हो जाएगा उसके लिए ये कोई बड़ी बात तो नही थी...

उधर अंजुम सोफीया की बातों को नोटीस कर रही थी कि वो कितना झिझक रही है...उसे डर लग रहा था कि कही आदम की माँ उसके और उसके बेटे के रिश्ते को समझ तो नही गयी.....लेकिन उसे क्या पता? कि अंजुम तो उनसे भी एक कदम आगे थी....भले ही वो इन व्यबचार रिश्तो को समझने की कोशिश कर रही थी...दोनो औरतें अपने दिल को जैसे हल्का करते हुए एकदुसरे के ग्रहस्थी को लेके चर्चा कर रही थी...

अंजुम : वाक़ई सोफीया जी जितना आराम समीर ने आपको दिया वो कोई घरवाला भी नही दे सकता

सोफीया : सच कहा आपने समीर की बात ही जुदा है उसने जो आराम मुझे दिया है वो लाखो बेटों में से कोई ही दे पाते है वरना आजकल ज़रा सा उमर क्या होती है? बस लड़कियो को सेलेक्ट करते है शादी करते है फिर तो जानती हो हम माँ का किरदार अपने ही घर में कितना पराया सा होके रह जाता है...

अंजुम : लेकिन आपको कैसी फिकर आदम ने बताया मुझे वो आपका काफ़ी ख्याल रखता है आपकी हर छोटी मोटी ज़रूरतो को पूरा भी करता है

सोफीया झिझक रही थी उसे डर लग रहा था कि कही उसके बेटे समीर ने आदम को सबकुछ बता तो नही दिया था....अंजुम सिर्फ़ मुस्कुरा रही थी उसके सहमते दिल को समझ उसने सोफीया के कंधे पे हाथ रखा

अंजुम : मैं भी एक जवान बेटे की माँ हूँ आप ही की तरह मेरा भी इकलौता है

सोफीया : सच में अंजुम जी आपका बेटा भी हीरा है जो अपनी इच्छाओ को त्याग के वापिस आपके पास आ गया मुझे समीर बताता था उसका बर्ताव शुरू शुरू में बहुत ग़लत था पर अब देखिए कैसे वो समझदार हो गया उस वक़्त नादान था वो

अंजुम शरमाई...उसने सहमति से सर हां में हिलाया...."लेकिन ये बात तो तय है कि जब तक हमारे बेटे हमारे साथ है हमे किसी भी चीज़ की कोई ज़रूरत नही"..........

."सही कहा आपने अंजुम जी अब हम भी अगले साल शिफ्ट हो रहे है वापिस मुंबई आप लोगो को बड़ा मिस करेंगे".....

."हाहाहा हम भी बहुत करेंगे एक लगाव सा जुड़ गया है आप लोगो से ऐसा लगता है जैसे आयने में खुद के ही रिश्तो को देख रहे है"...........

"ह्म एनीवे आज आप रात का डिन्नर करके ही जाइएगा आप लोग भी ना इतने दिनो बाद ऐसे मोमेंट पे आए कि अब 20 तारीख को निकल जाएँगे".......

."अर्रे नही नही ऐसी कोई बात नही हम जहाँ पे घर लिए है वहाँ पे आप भी आईएगा".....

."ज़रुरर् ज़रूर क्यूँ नही? वैसे एक बात कहूँ?"......

.अंजुम चुपचाप सी हो गयी

सोफीया : मुझे ऐसा क्यूँ लगता है जैसे आप सबकुछ जानती है

अंजुम जैसे मुस्कुराइ दोनो औरतें एकदुसरे के हाथो में हाथ रखके सिर्फ़ शरमाई....

"सही कहा एक औरत ही तो एक औरत के दिल को समझ सकती है दरअसल मैं काफ़ी खुश हूँ कि समीर आपके साथ निक़ाह करने वाला है".........

सोफीया ये सुनके चौंक उठी पहले तो काफ़ी झिझकी फिर उसकी शरम थोड़ी थोड़ी कम हुई

सोफीया : अब आप जब जान ही गयी है तो फिर छुपाना कैसे ? बस सोसाइटी से डर लगता है कि ये रिश्ता जो हमने जोड़ा है उसे लोग गुनाह ही कहेंगे

अंजुम : बाहरवालो को कहने कौन जा रहा है? पहले मैं भी ऐसा ही समझती थी लेकिन अपने बेटे के अंदर बदलाव देख मुझे भी ऐसा लगा

सोफीया : ये आदम पूरा छुपा रुस्तम है सेम मेरा समीर जैसा

अंजुम : हाहाहा और नही तो क्या? लेकिन आप बताईएगा नही समीर को कि मैं ये बात जानती हूँ

सोफीया : नही नही ये हमारे बीच ही रहेगी मैं चाहती हूँ कि हमारे निक़ाह में जब आए तब समीर को सर्प्राइज़ दे आदम के साथ मिलके

अंजुम : बिल्कुल बिल्कुल

सोफीया : वैसे आपका भी कुछ आदम के प्रति देखिए अब आप भी कुछ ना छुपाइएगा

अंजुम : सच कहूँ तो सोफीया जी मैं उसे बेटे की नज़र से कभी अलग देखी ही नही थी...लेकिन उस दिन (अंजुम ने धीरे धीरे सोफीया को उस दिन अपने और बेटे के बीच प्यार का इज़हार वाली बात बताई जिसमें आदम स्यूयिसाइड करने जा रहा था सोफीया मुँह पे हाथ रखके चुपचाप गौर से सुन रही थी अंजुम के चुप होते ही)

सोफीया : नही वो दबाव नही था उसके प्यार का जुनून था सच्चा प्यार है उसे आपसे और एक तरह से अच्छा ही तो है कि आदम आपसे कभी दूर नही होगा वरना आजकल लड़कियों को ज़रा सा भी वक़्त नही लगता लड़को को घरवालो से दूर करने में

अंजुम : लेकिन फिर भी मैं बूढ़ी हो रही हूँ वो कमसिन जवान लड़का भला मैं उसकी ज़िंदगी क्यूँ खराब करूँ?

सोफीया : ये बात मैं भी कुछ साल पहले सोचती थी पर मुहब्बत उमर रिश्ते और वक़्त नही देखती और वैसे भी आप तो मुझसे यंग है खुद को देखिए ऐसा लगता है जैसे आप अपने शौहर से मिलती भी नही होंगी
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