Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
12-09-2019, 01:30 PM,
#88
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
अगले दिन सुबह सुबह 10 बजे तक दोनो नाश्ता ख़तम किए टिफिन से निकाल कर चाइ खरीद के पीते है...आदम ब्रश करने चला जाता है क्यूंकी ट्रेन में तो सिर्फ़ हाथ मुँह धो सकता है...जब आदम गया तो उसके बाद अंजुम ने नोटीस किया कि कल रात वाला वोई टीटी सबकी टिकेट्स वेरिफाइ कर रहा है...अंजुम ने फ़ौरन बेटे के पास रखा अपना पर्स उठाया उसमें से अपने आधार कार्ड के साथ टिकेट्स भी निकाल लिए....जैसे ही वो उसके बौगी में आया तो अंजुम के सामने वाले पॅसेंजर की टिकेट्स देखने लगा वो रिजिस्टर में कुछ मार्क भी कर रहा था...लगभग वो अंजुम की बर्त पे बैठ गया बगल में टिकेट को रजिस्टर में एंक्वाइरी करने के लिए...अंजुम ने कोई आपत्ति नही जताई वो चुपचाप उसे देख रही थी...

जैसे ही वो टिकेट के लिए अंजुम के पास हाथ बढ़ाता है उसे पहचानते देख मुस्कुराता है..."जी आप अकेले?"......

"जी नही बेटा भी है मेरा ये दो टिकेट्स".......

"ह्म ठीक है".....एक पल को टीटी अंजुम के पूरा नाम पे गौर करता है फिर उसे एक बार देखता है

अंजुम : क्या हुआ कोई प्राब्लम ?

टते : जी बिल्कुल नही हाहाहा ये लीजिए आपके टिकेट्स? (इतने में आदम को देख टीटी उठ खड़ा होता है और उसे गौर से देखता है)

आदम उसे घुरते देख माँ के बर्त वली सीट पे बैठ जाता है.....टीटी के दूसरे बौगी में जाते ही आदम मुस्कुरा के माँ को देखता है..."क्या हुआ माँ?"..........आदम के सवालात पे माँ उससे बात करने लगती है

अंजुम : पता नही कल रात को भी टाय्लेट के पास खड़ा मुझे घूर्र रहा था

आदम : क्या? इसकी इतनी हिम्मत साले की माँ की

अंजुम : अर्रे पागल घूर्र रहा था मतलब ऐसे देख रहा था जैसे पहचानने की कोशिश कर रहा हो

आदम : हाहाहा पहचानने की भला आपका कौन जानने वाला निकल आया अब?

अंजुम : बस मुझे ऐसा लगा

आदम : आप भी उसे पहचानी

अंजुम : देखा देखा तो लग नही रहा क्यूंकी उमर दराज़ आदमी है होगा मेरी तरह कोई दिखने वाली जिसे पहले उसने देखा हो

आदम : ह्म हो सकता है

आदम और अंजुम टीटी की बात को भूल फिरसे एक दूसरे में जैसे उलझ गये...दोनो एक पल को उसकी बात भूल ही गये....आदम टाय्लेट करने जब जा रहा था तो उसने शाम को पाया कि वो टीटी किसी पॅसेंजर के टिकेट को लेके उसे झगड़ रहा था वो काफ़ी एजुकेटेड लगा क्यूंकी इंग्लीश में बहसा बहसी हो रही थी इतनें आइन आदम ने उसे गौर से देखा तो पाया उसने हल्के शीशे रंग का ब्राउन रंग का चश्मा पहना हुआ था...काफ़ी रौबदार चेहरा था उसके नेमप्लेट पे थोड़ा पास आने से उसने सॉफ देखा कि उसका नाम राज़ौल शैख़ था..आदम ने उसे कुछ नही कहा वो टाय्लेट की तरफ बढ़ गया

करीब 24 घंटे के उस रास्ते में फिर कुछ अंजुम और आदम के साथ कुछ नही घटा...लेकिन बार बार आदम को ना जाने ऐसा क्यूँ लग रहा था जैसे वो कोई जानने वाला हो...इसी कशमकश में आदम का होमटाउन आ गया अगले दिन के सुबह 6 बज चुके थे....आदम और माँ दोनो ने गाड़ी के थमते ही जल्दी जल्दी सामान को लादा और उसे लेके बाहर जाने लगे...क्यूंकी ट्रेन सिर्फ़ 10 मिनट के लिए ही रुकने वाली थी....टीटी राज़ौल फिरसे एक बार चक्कर लगाने बौगी मे आया तो उसने पाया कि बर्त पूरा खाली था वो माँ-बेटे वहाँ मज़ूद नही थे...अचानक उसे ना जाने क्या याद आया वो फ़ौरन फुरती से बाहर की ओर भागा..ट्रेन के दरवाजे तक आने पे उसने पाया कि दूर सीडियो पे आदम अपनी माँ को लिए कुली को सामान तमाए चढ़ रहा था..

वो उतरने को हुआ तो उसे दूसरे टीटी ने लगभग पकड़ा "पागल है क्या? ये क्या कर रहा है? तेरी ड्यूटी मालदा तक की थोड़ी ना है जो उतर रहा है सीनियर टीटी होके क्या बेवकूफी कर रहा है तू".....दूसरे सीनियर टीटी के रोकने से राज़ौल उसे आँख फाडे देखने लगा जैसे वो होश में नही था

राज़ौल : नही नही दरअसल वो पॅसेंजर्स वो औरत उसे मैं !(कहते कहते राज़ौल रुक गया वो अपने सीनियर की मज़ूद्गी का अहसास उसे होता है)

सीनियर टीटी ने कोई जवाब नही दिया उसकी बेवकूफी पे बस नाराज़ होता हुआ ना में सर हिलाए आगे बढ़ गया बौगी में....ट्रेन छूट पड़ी...उसकी बदक़िस्मती कि वो उतर ना सका..और उसके मन में जो आया था वो ट्रेन की पूरी रफ़्तार के साथ छूटता चला गया वो ट्रेन के दरवाजे पे ही खड़ा रह गया और उसकी ट्रेन मालदा स्टेशन को छोड़ते हुए दूर चली गयी...इधर बेटे और माँ एकदुसरे में मगन स्टेशन से बाहर आए सूरज निकलने लगा था...

स्टेशन से बाहर निकलते ही मैने थ्री वीलर रिक्क्षा ले लिया था...पूरे रास्ते माँ टाउन को देख रही थी..जैसे सबकुछ कितना बदल गया हो..वो मुस्कुरा भी रही थी साथ में मेरी तरफ देखते हुए मुझे बता रही थी कि जब वो यहाँ रहती थी तो यहाँ आती थी तो वहाँ आया करती थी....मैं चौक पे भीड़ थोड़ी कम थी इसलिए हमारा रिक्क्षा रोड क्रॉस करता हुआ सीधा मूड गया अब हम ब्रिड्ज पे थे...
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