Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
12-09-2019, 01:31 PM,
#96
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
अंजुम ने कॉंडम उसके खड़े लौडे को लेते लेते सहलाते हुए अच्छे से....कॉंडम को फाड़ के उसे निकालके उसे सुपाडे के उपर लगाके उसे धीरे धीरे पूरे लंड पे चढ़ाने लगी...थोड़ी ही देर में लार्ज साइज़ का कॉंडम बेटे के लंड पे अंजुम ने पूरा अच्छी तरह से चढ़ा दिया

अंजुम : अच्छा किया जो निरोधक ले लिया अब देर ना कर

माँ के निरोधक लगाने के वक़्त उनके हाथो के सपर्श से ही लॉडा झटके खा रहा था अब उनकी बातों ने उत्साह मेरे मन में और बढ़ा दिया था....मैं झट से पलंग पे आया माँ की दोनो टाँगों को फैलाया...थूक हाथो में लिए चूत पे अच्छी तरह मला और उसे गीला किया...उसकी झान्टेदार चूत के मुंहाने को अंगूठे से कुरेदने लगा..जिससे माँ ने अपनी गान्ड ढीली छोड़ दी...मैने आगे बढ़के निरोधक चढ़े अपने लंड को फुरती से चूत के मुँह के पास लाया हल्के हल्के से घुसाने की नाकाम कोशिशें की...

और कुछ ही पल में मेरे दबाव देने से लंड अंदर प्रवेश होने लगा साथ ही साथ माँ के चेहरे का हाल बदलने लगा वो जैसे दर्द को पी रही थी..मेरा लंड साँप की भाती धीरे माँ की चूत की दरारों में घुसता चला गया...और कुछ ही क्षण मे माँ की चूत ने मेरे लंड को आधे से ज़्यादा अपने भीतर ले लिया...अंजुम ने मेरी कमर के दोनो हिस्सो को कस कर हाथो से जकड लिया उसके नाख़ून मुझे गढ़ रहे थे...उसकी दोनो टाँगों को मैने अपने कुल्हो पे लिपटा महसूस किया...और एक करारा धक्का मारा भीतर बच्चेदानी को मेरा लंड छूता महसूस करने लगा....मैं अब लंड अंदर बाहर करने लगा...

"आहह आहह उहह ईयी आहह".......माँ को अब दर्द शुरू होने लगा था....वैद्य जी की दवाई का असर अब भी था..इसकी इतनी कड़ी मालिश की थी की लंड की सख्ती और मोटाई दोनो बनी हुई थी और वो इतना ज़्यादा तगड़ा और लंबा मूसल जैसा था की माँ के लिए पहला अनुभव था वो कोई चूड़ी छुदाई औरत नही एक घरेलू औरत थी जिसने सिर्फ़ मेरे पिता का ही लंड अपने अंदर लिया था....जिस छेद को मैं फाड़ रहा था कल उसी से ही मैं निकला था..

"आहह अयीई आहह बॅस करर आहह अल्लाह दर्द हो रहा है"......माँ पसीने पसीने दर्द की आहों में लिपटी मेरी पीठ और कमर पे नाख़ून गढ़ा रही थी

आदम : बस हो गया अंजुम बस हो गया (मैं पहली बार अपनी माँ का नाम ले रहा था क्यूंकी उत्तेजना में मैं सबकुछ भूल जाना चाहता था माँ से पूरा मज़ा लेना चाहता था अब हमारे बीच माँ-बेटे का रिश्ता ख़तम हो चुका था)

आदम : आहह बस हो गया इस्श ह आहह

अंजुम : आहह नहियिइ ससस्स ज़ोर से मत कर आहह

माँ कराहती रही और मैं धक्के पेलता रहा...और उसी वक़्त 15-20 धक्को में ही मेरा गाढ़ा वीर्य निकलने लगा....मैं झड़ने लगा...मेरी रफ़्तार बहुत तेज़ हो गयी माँ की चूत चोदते हुए मेरे अंडकोष उसके निचले भाग से टकरा रहे थे...ठप ठप्प की आवाज़ आ रही थी हम दोनो की सिसकिया अगर कोई बाहर होता तो सुन लेता लेकिन इतनी तूफ़ानी बारिश से भरी भयंकर रात में कौन बाहर सुन सकता था?

जब मैं स्खलन से फारिग हुआ तो हन्फते हुए माँ पे ढेर हो गया हम दोनो की उखड़ती साँसें चल रही थी....दोनो एकदम थक के चूर हो चुके थे....मैने माँ के छातियो को फिर दबाना शुरू किया और माँ के चेहरे को चूमता रहा...माँ बदहवास आँखो में आँसू लिए जैसे छत की ओर देख रही थी और मैं उसके चेहरे की ओर

जब सुबह 4 बजे नींद खुली तो मुझे अहसास हुआ कि मेरे हाथो से क्या हो गया है? मुझे मज़ा तो बहुत आया ऐसा लगा कि इतने दिनो बाद संतुष्टि का आनंद आया हो...पर एक बार माँ की हालत का जायेज़ा लेना चाहता था वो सो रही थी और उसकी टांगे खुली हुई थी...जब गौर किया तो पाया चूत के पास चादर पे कुछ खून के धब्बे लगे हुए थे...मैने माँ की चूत पे अपना हाथ लगाया...मैने एक उंगली अंदर की तो माँ सिसकी जब उसे बाहर किया तो खून रस में घुला हुआ था...शायद ये हमारी सुहागरात की निशानी थी जैसे आज मैने उसका कुँवारापन पूरी तरीके से छीन लिया था....अब माँ सिर्फ़ मेरी थी सिर्फ़ मेरी...

हम दोनो अंगली सुबह उठे माँ टांगे खोल खोल कर चल रही थी उसे चला नही जा रहा था तो मैने उसे पकड़ कर बिठा दिया....गरम पानी किया उसे फिर थोड़ा गुनगुना करके उसमें कपड़ा निचोड़के माँ की चूत सॉफ की और उसकी भीतर तक कपड़ा डालके सॉफ किया...तो माँ बीच बीच में हल्का सी आहह निकाल देती....माँ मेरी तरफ देख रही थी

अंजुम : अब बस भी कर हो गया इतना तो कोई मर्द अपनी औरत के लिए नही करता अब मिल गयी तुझे तस्सली

आदम : अच्छा जी जो कल रात हम दोनो के बीच हुआ क्या उसका तुझे गिल्ट है? या अफ़सोस या मज़बूरी थी तेरी जो तूने मेरे साथ संबंध आए

अंजुम : हाए अल्लाह क्या अब तुझे मुझपे ऐतबार है? अगर मज़बूरी होती तो मुहब्बत नही वासना और हवस झलकती

आदम : तो फिर तू संतुष्ट हुई

माँ ने कुछ नही कहा....बस यह कहा भला माँ कभी बेशर्मो की तरह ऐसा पहल कर सकती है क्या? कि वो बेटे से चुदके संतुष्ट हुई कि नही मैं मुस्कुरा उठा कि चलो हमारे बीच के ये फ़ासले दूर हो गये....उस दिन मैने छुट्टी कर ली थी और ऑफीस गया ही नही माँ को चलने फिरने में कुछ देर तक़लीफ़ हुई फिर उसने पाया कि अब हमे गृहस्थी पे भी तो ध्यान देना है वो घरेलू काम काज के लिए उठ खड़ी हुई उसने कपड़े पहने और नहाने के बाद खाना बनाने में जुट गयी मैं भी उस वक़्त तक फारिग होके उसके बनाए नाश्ते को खाकर उठ खड़ा हुआ

माँ और मैने इकहट्टे लंच किया फिर हम पलंग पे आके बैठे...माँ ने चादर हटा दी...माँ ने बताया कि पास ही में रहती एक काकी ने उन्हें घाट दिखाया था जहाँ लोग बड़े बड़े कपड़ों को धोते है...वहाँ नदी के पानी में आसानी से कपड़े धुल जाते है माँ ने कहा कि मैं भी वहाँ जाउन्गी तो मैने आपत्ति की तो माँ ने कहा कि यहाँ से बस कुछ देर चलना है आगे रास्ते पे ही तो पड़ता है....लेकिन मैने माँ से कहा कि ये चादर किसी और दिन धो लेना...फिलहाल तो हमे एकदुसरे के साथ वक़्त बिताना चाहिए माँ मुस्कुरा पड़ी...और फिर मेरे सीने से लग गयी...

दोपहर को कुछ राशन लेने मुझे अकेले निकलना पड़ा माँ को आराम कर लेने दिया कल रात पूरा सोई नही थी वो...बाहर बहुत कीचड़ हो गया था कल रात भारी बरसात हुई थी अहसास ही ना हुआ कि इतनी तबाही लाएगी...रास्ते के पास पेड़ गिरा हुआ था जो काफ़ी पुराना था उसे पार करते हुए मैं दुकान पहुचा...वहाँ दुकान से मैने बॉडी आयिल खरीद ली सोचा मालिश तो आती है माँ की आज अच्छे से मालिश किए देता हूँ ताकि उसका दर्द चला जाए...

घर जैसे ही पहुचा पाया माँ पोंचा लगा रही थी घुटनो के बल बैठी....मुझे उसकी नाइटी में से ही कुल्हो का उभार दिख रहा था मेरी निगाह उसके चूतड़ पे ही अटकी सी थी कि वो पीछे मूडी और मेरे आने की मौज़ूदगी पाकर मुस्कुराइ . माँ ने कहा अर्रे आ गया तू उफ्फ चल जल्दी हाथ मुँह धो ले और चादर बाल्टी में पड़ी है मेरे साथ चलके पहले उसे निचोड़ दे...मैने पाया माँ काफ़ी थकि हुई सी लग रही थी हो भी क्यूँ ना ? कल रात उसकी दनादन चुदाई जो की थी इसलिए उसकी चाल बदल गयी थी चलना फिरना भी कम कर रही थी...काफ़ी थकि सी हुई थी और उपर से उठते ही फिर वोई काम काज करने लगी थी...

आदम : अफ हो माँ अभी तुझे प्रॉपर आराम करना चाहिए तो तू काम करे में जुट गयी ये कहाँ की बात हुई? अब तो मुझे तेरी सेवा करनी चाहिए तू पोछा छोड़ और फारिग हो जा फिर साथ में खाना खाएँगे

अंजुम : अर्रे मैं जानती हूँ तू मेरी कितनी परवाह करता है? पर गृहस्थी को भी तो संभालना है और मैं घर की एकमात्र औरत हूँ मैं नही करूँगी और कौन करेगा?

आदम : अर्रे मेरी छम्मक छल्लो तुझे काम काज से कब रोका है पर तू पिताजी के नही मेरे राज में है तो इसलिए फिलहाल तूने कल वैसे ही मेरी इतनी सेवा की और वो तेरा पहली बार था इतने सालो बाद तो आराम तो एक दिन कर कम से कम घर के काम काज की चिंता छोड़

अंजुम : इतना भी आराम मत दे मुझे वरना तेरी आदत पर जाएगी

आदम : मैं तो चाहता हूँ कि तुझे मेरी लत लगे ताकि तू मेरे बिना जी ना पाए

अंजुम : तेरे बिना भला कैसे जियूंगी मैं मर जाउन्गी और तू मुझसे यह कहता है अब तो तेरे बगैर मेरी ज़िंदगी का कोई वजूद नही अब तो तेरा पूरा मुझपे अधिकार भी बन चुका है
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