Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
12-09-2019, 01:33 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
बारिश तेज़ हो रही थी....और सिगरेट सुलगाए वो शक्स चाइ के ठेले के पास खड़ा छप्पाड़ी के नीचे आसमान की तरफ देखता किसी गहरी सोच में डूबा सा था....बार बार जब वो होंठो के बीच से अपना धुआ छोड़ता...तो धुआ ही धुआ पास टँगे बल्ब की रोशनी में फैलते हुए दिख जाता...उसने अपनी मूछो पे हल्की सी उंगली फेरते हुए गंभीर सोच में जैसे करवट मूडी...अभी वो ऐसे चुपचाप तेहरा कशमकश की गहराइयो में उलझा सिगरेट का कश ले ही रहा था कि इतने में एक लौंडा 23-24 साल का टपोरी सा उसके पास आया...उसका हुलिया ही उसकी औकवाड़ को दर्शा रहा था....उसके बाल बिखरे हुए थे और गले में रुमाल बाँध रखी थी उसने कोट पॅंट पहने उस आदमी के कंधे पे जैसे ही हाथ रखा...उसी पल नज़रों में परिवर्तन लाता हुआ सोच को तोड़े वो पीछे मूड कर उस टपोरी लौन्डे को देखते हुए माथे पे शिकन लिए देखने लगा

टपोरी लौंडा एक खबरी था जो कोई और नही उस टोपी और कोट पॅंट पहने शक्स उसी टीटीई राज़ौल का हाइयर किया खबरी था जिसे तलाश थी अंजुम की....लेकिन उस दिन के बाद जब वो काफ़ी डीटेल्स रेलवे एंक्वाइरी से निकाला तो उसने पाया कि अंजुम और उसका बेटा दिल्ली में रहते थे...वो झट से दिल्ली पहुचा वहाँ उसके छोड़े किराए के घर में पहुचा वहाँ मकान मालिक से पूछताछ की तो उसके बाद उसे मालूम चला कि बेटा माँ को लेके वापिस होमटाउन चला गया और उसका पति नोएडा शिफ्ट हो चुका था दोनो के बीच बनती नही थी मिया बीवी में अक्सर झगड़े होते थे बेटा होमटाउन में नौकरी करता था इतना कुछ उसे मालूम चला वो जैसे तड़प उठा अंजुम से मिलने के लिए और जब वो उन दोनो के उतरे उस शहर पहुचा उसके होमटाउन में...

तो यहाँ उन्हें रेत में से सुई ढूँढने के बराबर उसका मक़सद हो गया उन्हें ढूँढना...हालाँकि राज़ौल ने सिर्फ़ महेज़ खुद को एक रिश्तेदार बताया और काफ़ी रिक्वेस्ट की थी मकान मालिक से जिस बाबत आदम के मकान मालिक ने उसे ये सारी इन्फो दे दी थी उसके परिवार के बारे में....जिस बिनाह पे वो उसके होमटाउन आ पहुचा..उसने खबरी को वो तस्वीर दिखाई..जिसे मकान मलिक के बेटे ने आदम की तस्वीर संभाले रखी थी..खबरी ने आज मुआयना करके बताना शुरू किया

खबरी : उसे मैं टाउन में देखा हूँ डिपार्ट्मेनल स्टोर का पर्चेस ऑफीसर है एक आध बार बात भी करी तो बस इतना पता लगा कि माँ के साथ रहता है ये नही बताया कि कहाँ? अपुन ने आदमियो से टाउन का जायेज़ा करवाया पर मिला नही वो छोकरा अपुन को कहीं अब इससे ज़्यादा क्या इन्फो डून साहब

राज़ौल : ह्म इसका मतलब कि वो टाउन से बाहर रहता है?

खबरी : हो सकता है


उम्मीद ना मिल पाने के बाद राज़ौल ने उसे पैसे दिए और जाने को कहा....उसका काम ख़तम था....अब राज़ौल खुद ही ठान लेता है कि वो आदम का पीछा करेगा? लेकिन इस टीटी राज़ौल का अंजुम से क्या नाता था? जो वो इन माँ-बेटों के पीछे दिल्ली से लेके होमटाउन तक उनके आ गया?....जिस बात से अभी तक दोनो माँ-बेटे बेख़बर थे ....और सबसे बड़ी बात कि राज़ौल को आदम और अंजुम से क्या चाहिए था? क्या रिश्ता था उसका? और किस मक़सद से वो दोनो के ज़िंदगियो में दस्तक देना चाह रहा था....

आदम : माँ जल्दी नाश्ता दो यार उफ्फ आज लेट हो गया? (आदम अपने पाओ में मोज़ा पहनते हुए कहता है)

अंजुम : अर्रे बेटा ठहर जा ज़रा (माँ रसोईघर में अपने बेटे के लिए नाश्ता बनाते हुए उसे आवाज़ देती है)

आदम : सॉरी माँ आज काम की वजह से थोड़ा टाउन से बाहर जाना पड़ रहा है अगर सही टाइम पे नही गया तो माल मिस हो जाएगा एजेंट भी गाड़ी लिए मेन रोड पे इंतजार कर रहा होगा उफ़फ्फ़

अंजुम गरमा गरमा पूडीयाँ थाली में लाते हुए साथ में आलू की सब्ज़ी बेटे के आगे रखते हुए मुस्कुराती है...."अर्रे आराम आराम से जाना और तू आजकल बहुत आलसी हो गया सुबह जल्दी उठना चाहिए ना".........तो आदम मुस्कुराया

आदम : माँ तू तो जानती है हम रात को देरी से सोते है और तू मुझे सोने ही कब देती है

आदम के आँख मारते ही माँ सकपकाते हुए उसे झूठे गुस्से भरे भाव से देखते हुए फिर हंस पड़ी..."अच्छा जी हमारी वजह से और आप जो अपनी मोम को हर वक़्त तंग करते रहते है कि चलो ना माँ छोड़ो ना काम चलो ना फिल्म देखते है चलो ना थोड़े देर आराम करते है और पटा सटा के बिस्तर पे लेटा देता है मुझे .....

..आदम मन ही मन शरमाता हुआ माँ का हाथ पकड़ लेता है

आदम : अच्छा मेरी माँ बस बस

अंजुम : अब चल जल्दी नाश्ता कर तुझे देरी हो जाएगी (अंजुम भी मुस्कुराइ)

आदम नाश्ता करने लगा...वो माँ की बनाए पूडियों की तारीफ़ करने लगा और उसे बड़े चाव से खाने लगा...उसने माँ को बताया कि जब वो अकेला रहता था तो इस तरह से कभी नाश्ता नही कर पाता था क्यूंकी उसे देने वाली कोई औरत जो नही थी...माँ उसे प्यार भरी निगाहो से उसे खाते हुए देख रही थी....अचानक अंजुम बेटे के लिए जूता सॉफ करने का ब्रश ढूँढने लगी...जब उसकी नज़र कोने पे पड़ी तो वहाँ दिल्ली से लाए उसके पुराने सामानो के बॉक्स थे..उसने सोचा पहले जल्दी से बेटे को फारिग करू फिर देखूँगी...उसने ब्रश लाते हुए जूते सॉफ करने शुरू किए तो आदम ने उसके हाथ से ब्रश छीना

आदम : अर्रे माँ क्या करती है तू? छी ये सब काम मेरे सामने मत किया कर

अंजुम : अर्रे क्या तेरे स्कूल के दिनो में मैं तेरे जूते सॉफ नही करती थी?

आदम : अर्रे बाबा उन दिनो मैं छोटा था पर अब नही दीजिए अर्रे दीजिए ना लाओ

आदम ने अंजुम के हाथ से ब्रश लिया और खुद सॉफ करते हुए बात करने लगा "ह्म्म्म्म ये सब चीज़ें बड़ों से नही कराया जाता...और तुझे ये सब करते हुए देख मुझे अच्छा नही लगता सेवा मुझे करनी चाहिए तेरी ना कि तुझे वो दिन अब गये".......अंजुम मुस्कुराते हुए बेटे की तरफ एकटक देखने लगी....उसे नाज़ था कि आदम जैसा उसे बेटा मिला जो उसका कितना ख्याल रखता है? और एक उसका पति था जो रात गये भी उसे बाहर सामान खरीदने को भेज देता था...ना कभी उसके लिए परवाह करता था और ना ही कब उस पर ध्यान देता था इन्ही वजहों से अंजुम खुद को जैसे अकेला महसूस करती थी...

अंजुम की जब सोच टूटी तो आदम को एक बार गुसलखाने जाता पाया...अंजुम उसके जुते पलंग के ही पास रखके उस बक्से को खोलने लगती है...जब उसे खोलती है तो उसपर से मिट्टी हटाते हुए अंदर के सामानो का जायेज़ा लेती है..सबकुछ वैसे ही रखा था जैसा पॅकिंग के वक़्त था शायद आदम इस बॉक्स को खुलना भूल गया था....इतने में अंजुम के हाथ में एक ईद कार्ड आया ये उसके दूसवी कक्षा का पहचान कार्ड था उसमें अंजुम की एक ब्लॅक आंड वाइट फोटो थी....उस तस्वीर में अंजुम कमसिन कच्ची कली सी लग रही थी..उसके बालों में दो चोटियाँ थी और जैसा 90'स के दशक में घुंघराले बालो जैसा बीच का कट होता है ठीक वैसा स्टाइल उसके बालों का था....उसका चेहरा निहायत खूबसूरत था और बड़ी बड़ी आँखे थी...ये तस्वीर शादी से पहले की थी उसके बाद उसे याद आया कि 10थ पास करने के बाद ही जब उसका दाखिला 11थ में हुआ तो उसे किन परिस्थितियों से गुज़रते हुए पिता की मौत के बाद बेसहारा और ग़रीबी और लाचारी का सामना करना पड़ा था उसकी पढ़ाई पूरी भी नही हो सकी और उसकी माँ ने बढ़ती लाचारी और ग़रीबी से तंग आके उसकी शादी आदम के पिता से करवाई थी...उसके कुछ 3-4 साल बाद बड़ी ही मुस्किल से आदम उसे पेट ठहरा था....एक तो उसे शादी से ऐतराज़ था और उपर से उसके पति की ही हठधर्मी में उसे गर्भ ठहरा था....आज भी वो उन वाक़यो को कोस्ती थी जब उसकी ज़िंदगी एक नामर्द बुज़दिल कमीने इंसान के हाथो में दे दी गयी थी...

अभी कशमकश का घेरे से अंजुम निकली ही थी...की पीछे से बेटे ने उसके कंधे पे हाथ रखा और वो झुकके माँ के साथ माँ की तस्वीर को देखते हुए मुस्कुराया...वाक़ई उसने इससे पहले ये तस्वीर एक ही बार माँ के दिखाए में देखी थी...वाक़ई क्या कमसिन कच्ची उमर और मासूम खूबसूरत सी उसकी माँ लग रही थी....काश उस वक़्त आदम उसके ज़िंदगी में आता..पर ये मुमकिन तो नही क्यूंकी उसे अंजुम से ही तो इस दुनिया में आना था

आदम : अर्रे माँ तू कितनी खूबसूरत लग रही है?

अंजुम : ह्म इस वक़्त मैं 10थ में थी उसके बाद अनिश्चिंत काल पड़ गया था फिर तेरे होमटाउन आ गयी यानी यहाँ जहाँ तेरे नाना जी रहा करते थे उसके बाद कुछ 1 साल में ही उनकी मौत और फिर मेरा वापिस बिहार जाना नही हुआ...ये बिहार बोर्ड के स्कूल का है

आदम : ह्म जो भी हो माँ जिन परिस्थितिओ से तू गुज़री है उसे अब भूल जा अब तुझे गीला शिकवा करने का कोई ज़रूरत नही..जो बीत गया सो बीत गया

अंजुम : तू नही जानता तेरे पिता ने शादी से पहले मुझे रिझाने के लिए बड़े से बड़े वादे किए थे...और जब शादी कर लिया तो ज़बरदस्ती करने लगे हमे मुझे क्या पता था कि उनकी नज़र मेरी दौलत पे थी जो मेरे झूठी शान चाचा ने दिखाई जिसने मुझे पाला था तेरे नाना तो शुरू से ही ग़रीब ही रहे बस बच्चे पैदा किए और मारके सबको बेसहारा छोड़ दिया

आदम : जाने दो माँ लेकिन वो सब छोड़ो ये तस्वीर मुझे बड़ी अच्छी लगी इसे बाहर ही रखो ना

अंजुम : अच्छा ठीक है ये ले....अर्रे तू अभीतक गया नही जा जल्दी चल जल्दी कर देरी हो जाएगी तुझे
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