Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
12-09-2019, 02:17 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
अगले दिन ऑफीस में काम काज से निपटा रहा था...तो इतने में मोबाइल फोन बज उठा...मैं दफ़्तर से बाहर निकला फिर फोन रिसीव किया..."हेलो?".....अननोन नंबर देखके ही मैं चौंक उठता था..इसलिए मैने थोड़े कड़े स्वर में कहा...उधर से आवाज़ आई किसी औरत की...उन्होने जैसे ही बिंगाली में अपना परिचय दिया...तो मैं खुश हुआ क्यूंकी कॉल मेरी बुआ का था बड़ी बुआ का....वहीं तबस्सुम दीदी की माँ और मोरतुज़ा काका की बीवी

आदम : हां काकी बोलिए

बुआ : अर्रे बेटा कैसा है तू? काम कैसा चल रहा है माँ कैसी है ? आजकल तो बस एकदम किनारे हो गया है तू..

आदम : हाहाहा ऐसा नही है काकी मैं बहुत याद करता हूँ आप लोगो को असल में माँ को अकेले भेजता नही हूँ ना आप तो जानती है कि बाहर का माहौल और उपर से मुझे एकदम वक़्त नही मिलता हाथ में

बुआ : ओह्ह्ह अर्रे बेटा तुम्हारी तबस्सुम दीदी आई है अपने पति के साथ...तुम माँ को लेके आओ तबस्सुम दीदी तुमसे मिलने की बड़ी ज़िद्द कर रही है

आदम : अच्छा अच्छा जी बिल्कुल काकी

इतना कहते हुए कुछ देर बात किए काकी ने फोन कट किया...तो मैने सोचा उफ्फ तबस्सुम दीदी अब तक तो वो काफ़ी निखर गयी होगी....मुझे फिर अपने और तबस्सुम दीदी के बीच हुए वो मीठे मीठे वाक़या नज़र में घूमने लगे जैसे....तबस्सुम दीदी आज बच्चेदार हो गयी थी...उनके दो बेटे हुए थे और तबस्सुम दीदी के साथ लुत्फ़ उठाने के बाद ही तो मैं शहर लौट आया वो कोलकाता चली गयी थी अपने पति के साथ...फिर तो उसके बाद भेंट ही नाही हुई थी...सच में माँ को यहाँ लाने के बाद मैं अपनी किस औरत से मिला था?

मैं तबस्सुम दीदी से मिलने के लिए एग्ज़ाइटेड था इसलिए दुकान से ही कुछ बच्चों के लिए चीज़ें खरीद ली...जैसे खिलोने वग़ैरा...जब मोरतुज़ा काका के घर पहुचा तो वहाँ बुआ ने मेरा स्वागत किया...गनीमत थी कि काका मुझे मिले नही वो काम के पर्पस में आउट ऑफ टाउन थे आने ही वाले थे पर सुना कि शहर और हाइवे के बीच हेवी जाम में अटके हुए थे...

तबस्सुम दीदी ने मुझे देखते ही मुझे गले लगाया उफ्फ उनकी छातिया तो मेरी शर्ट में ही जैसे दब गयी....काफ़ी मोटी मोटी छातिया हो गयी थी...खूब निखर गयी थी मोटी भी हो गयी थी और चूतड़ एकदम उठे हुए थे....जीजा जी मुझसे मिले और हम दोनो ने हाथ मिलाया फिर वो मुझसे बातें करने लगे...इस बीच मेरी नज़र पास झूले में उन दो नवजात शिशु पे पड़ी....मैने उन्हें आगे बढ़के एक एक कर गोद में उठाया

वाहह कितने खूबसूरत थे?....हम तीनो बैठके बातें करने लगे इस बीच तबस्सुम दीदी दूसरे वाले बच्चे को अपने साथ ले गयी...हम मर्दो से परदा किया..जान ही सकते है क्यूँ? तो उनका दूसरा बच्चा भी रोने लगा...जीजा ने एकदम से बात काटते हुए आवाज़ दी तबस्सुम दीदी को पर वो उठने की उस हालत में नही थी....

"अर्रे तबस्सुम्म देखो रोशन रो रहा है इसे भी दूध पिला दो".......हालात को देखते हुए जीजा जी बच्चे को लिए अंदर चले गये फिर वो वापिस बाहर लौटे

जीजा : और बताओ कैसे हो?

आदम : ठीक हूँ सर आप बताइए

जीजा : हाहाहा बस हम भी अच्छा ही चल रहे है मैं तो बेहद खुश हूँ मेरी तो जैसे आस ही छूट गयी थी लेकिन तबस्सुम के प्रेग्नेंट होने से घर में जैसे रौनक आ गयी और तुम कब कर रहे हो शादी?

आदम : हाहाहा फिलहाल तो नही और ना शायद करूँ?

जीजा : अर्रे कर लो कब तक यू जवानी जाया करोगे?

मैं जानता था जीजा साला काफ़ी ठरकी था...इसलिए मैने भी डबल मीनिंग लहज़े में मुस्कुराते हुए कहा कि जब किसी की मिल जाएगी तो पर्मनेंट्ली उसी से ही कर लेंगे .......जीजा ने मेरे हाथ पे हाथ मारते हुए टहाका लगाया.....जीजा इतना खुश था और इतना अहंकार कर रहा था जैसे वहीं अपनी औलादो का बाप हो...साले को क्या खबर? पी पीके तो खुद ही सेक्षुयल ड्राइव अपनी खराब कर ली ......और उसकी बीवी की कोख को तो उसके अपने भाई ने ही हरा किया अगर वो 7 दिन वो ना आई होती तो आज ये खुशिया ये माहौल होता ही नही

जीजा से बोरियत हुई बात करने में पर बात करना पड़ा....तो बुआ आके बैठ गयी तो मुझे कंपनी मिली हमने थोड़ा रेफ्रेशमेंट लिया तो इतने में तबस्सुम दीदी दोनो बच्चों को सुलाते हुए हमारे साथ आके गॅप करने लगी...इतने में पेशाब करने का इशारा किए जीजा बाथरूम चले गये तो बुआ भी झूठे बर्तनो को लिए अंदर किचन में चली गयी बोली बातें करो तुम लोग

तबस्सुम दीदी काफ़ी सजी धजी लग रही थी...तो मैने उनसे ही बात करना शुरू किया...वो बीच बीच में मुझसे शरमा भी रही थी शरमाये भी क्यूँ ना उसे मुझे देखके वहीं बीती बात याद आ रही होगी वो दिन याद आ रहे होंगे जब उसने मेरे साथ बिस्तर गरम किया था....

आदम : और ठीक हो ना ?

तबस्सुम : बहुत ही ठीक हो गये है हम नही तुम्हारे जीजा जी अब देखो कैसे लट्तू की तरह हमारे पीछे नाचते है

आदम : ह्म अच्छा दीदी अब तो तक़लीफ़ नही देते ना किसी भी तरह की

तबस्सुम : नहिी तुम्हारे से मिलने के बाद मैने उनके साथ यहाँ भी किया था (मेरे पास चेहरा लाए धीरे लहज़े से बोलते हुए कही)

आदम : ह्म चलो अच्छा है अब आप खुश तो रहोगी

तबस्सुम : तुम बताओ वापसी कब हुई दिल्ली से?

आदम : बस हो गया करीब 1 साल होने को है

तबस्सुम : ह्म ठीक ही किया जो माँ को साथ ले आए और बाबा वहीं है

आदम : नही वो नोएडा शिफ्ट हो गये (मैं तो पिता की बात करना ही नही चाहता था इस बीच वो अपनी साड़ी ठीक करने लगी)

तो मैने पाया कि उन्होने लाल रंग की ब्लाउस पहनी थी और उनके साथ निपल्स दिख रहे थे....ब्लाउस थोड़े गीले थे समझ आया कि उनसे दूध निकल रहा था...उफ्फ मेरी तो देखके ही हालत खराब हो गयी काश माँ के भी ऐसे दूध निकलते तो सेक्स करने में दुगना मज़ा आता पर माँ नयी नयी माँ थोड़ी बनी थी

तबस्सुम दीदी ने नोटीस कर लिया कि मेरी निगाह उनके छातियो पे गुज़री तो वो हल्का शरमाई और मुस्कुराइ....कही कि अब नही आदम वरना तुम्हारे जीजा जी को शक़ हो जाएगा...मैने कहा हाए दीदी आप इतनी निखर ही गयी हो किसी भी गैर मर्द का दिल आपके प्रति फिसल जाए ....तो तबस्सुम दीदी मुस्कुराइ....इस बीच बुआ ने आवाज़ देते हुए कहा कि माँ नही आई? मैने कहा आ जाती पर मैं सीधे ऑफीस से यहाँ आ गया फिर कभी ले आउन्गा...इस बीच तबस्सुम दीदी ने शरारत भरे लहज़े में कहा कि अब अकेले नही माँ के साथ ही आना समझे

आदम : हां हां बिल्कुल (सच पूछो तो मेरा मन भी अब माँ से अलग किसी पराई औरतों पे नही हो पा रहा था और वैसे भी तबस्सुम दीदी को चोदना अब ना मुमकिन के ही बराबर था घर पे सब प्रस्तुत रहते हर वक़्त मेरे घर में तो चान्स नही हो पाता माँ का डर अलग)

तबस्सुम : अब कर लो ना शादी इतने जवान हो गये हो

आदम : मर्द ज़िम्मेदारियो से मर्द बनता है शादी से नही

तबस्सुम : वो तो ऑलरेडी बन ही चुके हो तुम ज़िम्मेदारियो से भी और किसी और चीज़ से भी

आदम : हां वो तो है अभी भी बिस्तर पे आपकी आहों की आवाज़ सुनाई देती है (तबस्सुम दीदी एकदम झेंप सी होके मुझे घूर्रने लगी)

मैं हंस पड़ा :लोटपोट....तबस्सुम दीदी ने मुझे धीरे धीरे लहज़े में ही बताया कि यहाँ से जाने के बाद वो अपने पति से भी एक आध बार दिखावे के लिए चुदि थी...जिससे उन्हें ये लगे कि उनकी खोख सुनी से हरी उनके पति की वजह से हो गयी है....सुधिया काकी ने क्या पैतरा आज़माने को दिया था उन्हें? एक तरफ उनका उजड़ता सुहाग और दूसरी तरफ मेरी ज़रूरत दोनो के ही मक़सद पूरे हो गये एकदुसरे से मिलते ही ....फिर तबस्सुम दीदी मेरी प्रशंसा करने लगी मेरी तारीफ किए ही जा रही थी कि अगर मैं ना होता तो उनका सुहाग....उन्होने उन बच्चों की तरफ निगाह डाली फिर मेरी ओर....दिल ही दिल में कहा जैसे तुम ही तो इनके बाप हो....और ये सच ही तो था
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