Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
12-09-2019, 02:26 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
मैं थोड़ी देर खड़ा चारो तरफ की खामोशी और रोशनदान इमारतो से भरे इलाक़े को देख ही रहा था अपने आस पास कि इतने में मुझे किसी का साया लगा वो आके मेरे पेट से होते हुए कंधे से मुझे जकड़ा मैने पाया माँ मेरी पीठ को चूमते हुए मुझे नज़ाकत भरे चेहरे से देख रही थी....

आदम : क्या माँ? तुम भी ना डरा दिया मुझे

माँ : और अकेला रहना चाहता है डरफोक कहीं का

आदम : मैं जानता था तुम आओगी पर अगर पिता जी ने हमारी मज़ूद्गी का अहसास नही पाया तो

माँ : कभी गहरी नींद से उठे है देख मेरा भी दिल बहुत करता है पर काबू में रखा कर ऐसे दिल को , अब परिवार बढ़ेगा अब तो तेरे पिताजी का भी खाना वाना बनाना पड़ेगा रोज़ वरना दोपहर तो जैसे तैसे खा लिया करती थी अब कुछ दिन में बहू आ जाएगी तो बस

आदम : उफ्फ माँ तू और तेरी सोच धन्य है

माँ मेरी नाक से नाक रगड़ते हुए हँसी...तो मैने उसके होंठ अपने होंठो से जैसे सटा लिए...हम दोनो मुँह की गर्मी एकदुसरे के मुँह में महसूस कर रहे थे..एकदुसरे की ज़ुबान को चूस्ते हुए एक दूसरे के होंठो को प्यासो की तरह चूस रहे थे....मैने माँ को खुद से अलग किया और दरवाजा लगाया..

फिर वापिस हम एकदुसरे से लिपट गये....छत में घना अंधेरा था और काफ़ी खुला और लंबा छत था आस पास की इमारत भी हमारे काफ़ी दूर ही पड़ती थी....आगे मैन रोड था जिससे ट्रक्स गुज़र रहे थे...वो भी काफ़ी दूरी पे....और पीछे औरो के फ्लॅट्स थे...इतनी रात गये कोई हमे देख भी नही पाता..हम वहीं फर्श पे लेट गये...टँकियो के पास फिर एकदुसरे के होंठो को बेतरतीब से चूसने लगे....

माँ : उम्म म्बेटा उफफफ्फ़ कमरे में कर लेते तो पकड़े जाते

आदम : आख़िर कब तक उम्म्म माँ कब तक? (माँ के उपर मैं सवार हम दोनो एकदुसरे को चूमते हुए बात कर रहे थे इस बीच मैने माँ के गले और नाइटी के कपड़े को हल्का सा फाँक किए माँ की गोल गहरी नाभि को चूम लिया)

माँ ने मुझे रोका और कहा कि उसे उपर अच्छा नही लग रहा जी घबरा रहा है उसका...तो मैने माँ को उठाया फिर माँ ने अपनी नाइटी ठीक की....हम दरवाजा लगाए कमरे में लौटे....फिर माँ ने एक बार जायेज़ा लिया पिता जी गहरी नींद में सो रहे थे...फिर हम दोनो अपने कमरे में लौटे और फिर अटॅच बाथरूम में घुसे जो काफ़ी छोटा था...हम दोनो जो भी करते खड़े होके ही कर सकते थे....माँ ने अपनी नाइटी उतार दी और मदरजात नंगी होके मुझे अपने छातियो से चिपका लिया

मैं उसकी छातियो में साँस भरता हुआ उन दोनो पे अपना मुँह रगड़ने लगा....फिर उनपे ज़ुबान भी चलाने लगा तो माँ ने मेरी ठुड्डी से मेरे सर को उपर किया और फिर मेरे होंठ चुस्स डाले उसकी साँसें एकदम भारी थी

मैने उसे अपने तरफ पलट दिया फिर उसे एकदम झुका दिया....अपना मोटा मूसल जैसा लंड उसकी फांको में घुसाते हुए आहिस्ते से अपनी एडी पाओ की उपर किए उसके छेद के भीतरी मुंहाने में डालने लगा..इससे माँ ने गान्ड ढीली छोड़ी लॉडा अंदर सरक गया....इससे माँ का शरीर हल्का सा काँपा उन्होने पूरी ताक़त अपने कुल्हो में भरी और मेरा लंड खा लिया...

उनके छेद में मेरा लंड अंदर तक जैसे ही सरका मैने उसके दोनो बाजुओं को मज़बूती से पकड़े उसके नितंबो में स्ट्रोक्स देने शुरू किए हर चुदाई की थापि से उसके कूल्हें हिल जाते...वो मज़े से आहें दबी आवाज़ में लिए अपनी चुदाई का आनंद प्राप्त कर रही थी...मैने उसे इस बीच खड़ा किया और उसकी गान्ड में अपना लंड घुसाए उसकी चुदाई करता रहा...उसे काफ़ी हिकच हिकच के मैं चोदता रहा...माँ के स्वर में आहों की आवाज़ बढ़ती गयी शायद इस बात का उसे डर था...


माँ तो नोटीस नही करती क्यूंकी चुदाई में हम दोनो मलीन थे...इसलिए जब चरम सीमा का वक़्त आया तो मैने खुद ही खुद पे काबू पाते हुए अपने लंड को माँ की दरार से बाहर खीचा.....और उसी पल टाय्लेट की पिट पे मेरा रस उगलता हुआ गिरने लगा...मैं काँपते हुए वहीं दीवार पे ठिठक गया...माँ इस बीच साँस भरते हुए हान्फ्ते मुझे झड़ते देखने लगी फिर उसने खुद मेरे लंड को आगे पीछे हिलाया और निचोड़ते हुए आखरी बूँद भी मेरे लंड से खीचके निकाल ली...जब मैं शांत पड़ गया तो उसने अपनी उसी नाइटी से ही मेरे लंड को सॉफ किया उसे पोन्छा फिर नाइटी को टाँगगके खुन्टी में फिर शवर ऑन कर दिया हम कुछ देर शवर के नीचे खड़े अपने गुप्तांगो को सॉफ करने लगे...

फिर माँ ने उसी नाइटी के सूखे हिस्से से मेरे गीले बदन को पोछते हुए सॉफ किया और फिर अपना बदन भी पोंच्छा और कहा चल अब तू जा मैं पेशाब करके आती हूँ...मैं बाहर निकल आया तो माँ टांगी चौड़ी किए टाय्लेट पिट के पास अपनी चूत फैलाए पेशाब करने की मुद्रा में बैठ गयी...प्स्स से उसके छेद ने पेशाब की मोटी धार छोड़ी...मैं कमरे में आके सुस्त हो गया कुछ देर बाद माँ ने दूसरी नाइटी पहनी और मेरे बगल में आके सो गयी

पर सच पूछो तो गुपचुप तरीक़ो में चुदाई उतनी रास नही आती जितना हम माँ-बेटे खुलके पूरे घर में चुदाई किया करते थे...अब तो पिता की मज़ूद्गी भी थी...मैं ही सोच रहा था कि शायद माँ अब इसके बाद मुझे अवसर ना दे एक तो शादी की तारीख नज़दीक थी उनकी भी हल्की फुल्की तय्यारियाँ करनी थी जैसे मुझे शेरवानी ये सब दिलाना वग़ैरा वग़ैरा
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