Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
12-09-2019, 02:38 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
निशा सकपकाई..."वो संजीव के साथ जो उस दिन आई थी रानी"........"ह्म किसी सहेली के यहाँ जाना देर रात रुकना ठीक पर अगर आके खाना बनाना तुम्हारे लिए मुस्किल"

निशा : देखो आदम बस करो अब तुम हद से गुज़र रहे हो

आदम : हद से तुम गुज़र रही हो मैं तुम्हें आखरी बार कह रहा हूँ घर के काम काज को भी सम्भालो माँ की तबीयत ठीक नही रहती

निशा : देखो आदम काकी कब बीमार हुई एक दिन खाना नही बना सकी तो तुम मुझे कोसोगे क्या

आदम ने सोचा भी नही था...कि निशा का साहस इतना बढ़ जाएगा वो चाहता तो आगे बढ़ता...और निशा को दो-तीन खीच कर लगा देता....अंजुम आके बेटे को समझाने लगी कि निशा को कुछ ना कहे...आदम ने माँ से कहा कि वो वहाँ से फिलहाल जाए...निशा ने रोई सूरत बनाए माँ की तरफ देखते हुए कहा हो गयी आपको तसल्ली देख लिया आपने कैसे जॅलील कर रहे है मुझे? आपको अच्छा लगता है ना कि मुझे ये दान्टे कोसे और मारे...अब तो आप खुस होंगी

आदम : निशा बिहेव युवरसेल्फ़ (आदम जैसे दहाडा तो निशा सेहेम उठी अंजुम ने कस कर बेटे की बाँह को पकड़ लिया)

निशा बिना कुछ कहे घर से निकल गयी....अंजुम ने उसे रोकना चाहा पर वो निकल गयी..."जाने दो उसे वो समझाने के काबिल नही है"........आदम ने माँ की तरफ देखते हुए कहा

माँ : ग़लती मेरी है बेटा जो मैं तुझे समझ नही पाई तेरी ज़िंदगी मेरे वजह से खराब हो गयी

आदम : माँ ये बात फिर दुबारा ना कहना मुझे परवाह नही कि हमारा ये शादी शुदा रिश्ता बचे या ना बचे पर मैं तुझे दुखी में नही देख सकता

आदम इतना कह कर बिना नाश्ता लिए ऑफीस को रुखसत हो गया...ये क्या हो गया था इस घर को? किसकी नज़र लग गयी थी अंजुम जैसे सोच में पड़ गयी....उस शाम आदम के घर में निशा के चाचा चाची आए और आदम की उपस्थिति पाते ही उसे समझाने लगे....आदम ने एक कान से सुना दूसरे कान से निकाला उसने सॉफ कह दिया कि उसके नखरे सहने का उसमें दम नही...अगर संसार का ख्याल उसे नही तो फिर वो जा सकती है यहाँ से....उसके चाचा चाची कुछ कह ना सके...वो वैसे ही वहाँ से चले गये...

ये तो आए दिन का जैसे क़ानून बन गया...निशा घर पे कम ध्यान देने लगी...हर चीज़ पे अपना हक़ जताने लगी..आदम की इक्षा की उसे कोई परवाह ना हुई...बस आदम के आने से पहले घर लौट आती...और उसके सामने खाना परोस देती...फिर जब आदम कमरे मे आता तो वो सो जाती...अंजुम अपना काम खुद करती थी सॉफ सफाई अगर वो करती तो निशा खाना बना देती इसलिए अंजुम ने निशा को और कुछ नही कहा ना ही दोनो सास बहू एकदुसरे से बातचीत करते...ऐसा लग रहा था एक ही घर में सब गैरो की तरह रह रहे थे....

अपने घर के हर कलेश हर एक बात को निशा क्लास के बहाने संजीव के यहाँ दिन गुज़ारे उसे बताया करती थी...उसने ये तक बताया कि क्यूँ वो आदम से दूरिया बना रही थी...

संजीव : हाहहाहा तुम्हारे पति का लंड क्या गधे जैसा है? माइ गॉड इतना बड़ा ऐसा तो हमारा भी नही

निशा : हुहह सांड़ बन जाता है सांड़ एक बार शुरू होता है तो रुकता नही उस दिन तो आमादा हो गया ये जानने को कि कही मेरा किसी से पहले कोई संबंध!

संजीव : उसे मालूम चल गया क्या?

निशा : शक़ हुआ उसे पर मैने भी झूठी कसम ही खाई रही वरना क्या अपमान का मुझे डर नही? मुझे तो खुशी है कि एक तरह से अच्छा हुआ उस इंसान से पीछा तो छूटा

संजीव : दट;स गुड निशा तुम नही जानती मेरी ज़िंदगी में तुम्हारे आ जाने से मैं कितना खुश हूँ (निशा की पीठ पे हाथ फेरते हुए)

निशा कसमसा उठी उसे किसी की पत्नी होने की कोई लाज ना रही....वो संजीव के आगोश में जैसे चली गयी...संजीव ने उसका पेटिकोट ब्लाउस साड़ी एक एक कर सब उतार दिया...पहले तो निशा झिझकी इतने दिनो के संबंध के बावजूद वो कभी शादी के बाद उससे ना हमबिस्तर हुई थी....आज संजीव पहेल करना चाह रहा था...निशा खुद पे खुद संजीव के इशारो पे चलते हुए बिस्तर पे कुतिया मुद्रा में आ गयी....निशा की गान्ड को दबोचता हुआ संजीव अपनी हसरतें पूरी करने लगा...

वो निशा को तबीयत से चोदने लगा...और निशा हिकच हिकच के सिसकते हुए अपने भीतर लिंग को अंदर बाहर महसूस करती रही....संजीव ने उसे कस कर थामा और अकड़ गया..दोनो बिस्तर पे ढेर होके हाफने लगे....लेकिन दोनो एक होंठ बेदर्दी से एक दूसरे को चूमते रहे....

"अगर ये चीज़ तुम्हारा पति देख लेगा तो".....

."कौन दिखाएगा उसे तुम या मैं ....निशा बेशार्मो की तरह हंस पड़ी तो संजीव भी हंस पड़ा उसने उसकी छातियो को दबाते हुए उसे अपने सीने से लगा लिया..

ये तो एक दिन का किस्सा था पर ये तो रोज़ की बात हो रही थी...पति को शक़ ना हो इसलिए निशा घर जल्दी आती थी...चुदाई से इतनी पष्ट पड़ जाती थी कि उसके हाथ खाना बनाते वक़्त काँपते थे इस बातों को अंजुम देख ज़रूर रही थी पर कुछ कह नही पा रही थी और कहती भी क्या? उसे ईलम नही था इस बात का..

उधर आदम ने माँ के दिए कसम के वजह से ताड़ी को हाथ तक ना लगाया...जब घर लौटा तो निशा अपने कमरे में थी....आदम अपने कपड़े उतारने लगा...तो निशा ने उखड़े ही अंदाज़ में पूछा...कि कल एक बर्तडे पार्टी है तो घर आने में थोड़ा देरी होगा पर वो सहेलियो के साथ आ जाएगी...असलियत में संजीव ने एक हाउस पार्टी रखी थी...जिसमें काई क्लाइंट्स आने वाले थे बिज़्नेस पर्पस के लिए...संजीव ने बेहद इन्सिस्ट किया था निशा को...

आदम : तो मुझसे क्यूँ पूछ रही हो? मुझे नही जाना कही?

निशा : मैने तुम्हे जाने या ना जाने के लिए नही पूछा बस कह रही हूँ

आदम : जहाँ जाना है जाओ गेट लॉस्ट

आदम ने भी उखड़े अंदाज़ में कहा और अपने कपड़े उतारे और दूसरे कमरे में आया....माँ लेटी हुई थी....पिता जी उठके उसके पास से बाहर ही आ रहे थे..."क्या हुआ माँ को?".......

"बेटा वो दरअसल तबीयत ठीक नही है अंजुम की डॉक्टर को दिखाके लाया था जब तू नही था"........

"माँ ने कुछ खाया"......

."हां पर बुखार उतर नही रहा डॉक्टर का कहना है बदली मौसम की ठंड पकड़ ली है इन्हें".......

."ओह नो पिताजी ये हुआ कैसे?"........

.पिताजी ने कहा हुहह अब क्या बोलू? तेरी बीवी का तो घर के काम काज में मन नही लगता रात के झूठे बर्तन ये धोती है बस हरारत का वहीं बुखार लग गया है...आदम को बीवी पे गुस्सा आया...वो अपने कमरे में नही लौटा...उसने पिता जी से कहा की आप अपने कमरे में सो जाए इस कमरे में माँ को सोने दे वैसे भी ये कमरा थोड़ा गरम है..."ठीक है बेटे"......पिता जी चले गये...

तो आदम ने पंखा सब ऑफ किया फिर माँ पे रज़ाई उधाई उसने देखा अपनी माँ का मासूम चेहरा ऐसा लग रहा था जैसे उसके चेहरे पे बेटे की ही कितनी टेन्षन हो? वो बाहर आया...और उसने बिशल दा को कॉल किया..."हां भैया वो हाँ वो ताड़ी जो उस दिन पिलाई थी ना वो लेडी हां उसकी बेटी का नंबर चाहिए सुना है घरो घर में झाड़ू पोछा का काम करती है मेरे भी घर का कर देगी मैं उसे दुगना पैसा दूँगा अच्छा ओके चलो".........आदम जिस भोजपुरी इलाक़े में ताड़ी पीने जाता था वहीं पे उसकी पहचान एक आंटी से हुई थी जो अक्सर उसे और बिशल को एक आध बार ताड़ी पिलाई थी उसी ने बातों ही बातों में आदम को बताया था कि उसकी बेटी है जो कामवाली है उसी की तरह अब वो उमर होने से शहर नही आती पर अपनी बेटी को भेज सकती है...ये सुनके आदम ने काफ़ी सोच विचार किया...
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