Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
12-09-2019, 02:42 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
उस रात उपर के मामले में दोनो मिया बीवी अपनी उखड़ी साँसों पे काबू पाते हुए नंगे ही एकदुसरे से लिपट गये.....राजीव दा अपनी चुदासी बीवी ज्योति के गाल और होंठ को चूमते हुए मुस्कुराए........"भाई कल ड्यूटी भी जाना है सुबह 6 बजे और तुमने तो बस हद ही कर दी हमारा सारा जूस निकाल दिया शरीर का ....

."अभी तो हमारा तीसरा भी नही हुआ है और अभी से यह काहे कह रहे है"......

."ह्म लगता है तीसरा जल्द से जल्द हमारे बीच लाना ही होगा वरना ये सिलसिला तो थमेगा नही"...........राजीव और ज्योति दोनो खिल्लखिला के हंस पड़े...

ज्योति : पता है राजीव जी

राजीव : हां बोलो ज्योति क्या हुआ डार्लिंग? (बीवी सीने से लगी हुई थी)

ज्योति : आज हमने कुछ ऐसा देखा जिससे सुनके शायद आपको विश्वास ना हो

राजीव : क्या देखा? (राजीव दा ने अपनी बीवी का मुँह ताड़ते हुए पूछा)

ज्योति : हम जहाँ डॅन्स क्लास के लिए जाते है ना वहाँ बिंगाली ट्रेडीशनल डॅन्स भी सिखाई जाती है वहाँ पे मैने निशा को देखा आप तो जानते ही है कि वो भी नृत्य करती है)

राजीव : हां हां तो फिर क्या?

ज्योति : तो हम जैसे ही उसके निकालने के बाद सोचे कि उसे पीछे से सर्प्राइज़ दे और बात करे देवर जी (आदम) के लिए तो वो किसी लड़के के साथ बाइक पे बैठी और निकल गयी

राजीव : क्या नही नही शायद हो सकता है कोई भाई होगा?

ज्योति : हमने उसे शादी में भी देखा था उसके साथ उस वक़्त एक लड़की भी थी पर आज वो लड़का निशा के साथ मेरी साथ में एक सहेली बाहर पहले क्लास ख़तम करके निकलती है उसने बताया कुछ टाइम से देख रही है उसे दोनो ऐसा हँसी मज़ाक करते है बाइक पे कि लगे कि कोई कपल हो

राजीव : ये बात तुमने अंजुम आंटी या आदम किसी से ज़िक्र किया

ज्योति : नही शायद उन्हें यकीन ना हो वैसे ही घर का माहौल उनका खराब चल रहा है ऐसे में बताना उनको मुफ़ीद ना रहेगा

राजीव : ह्म कोई बात नही हो सकता है हमारी ही कोई ग़लतफहमी हो पर किसी लड़के के साथ बार बार लिफ्ट लिए जाना और एक बार तो सुना भी कि वो रात गये आई थी क्या उसी लड़के के साथ तो नही थी क्या मालूम आदम और अंजुम आंटी से झूठ बोलके वो उसी से मिलती हो

ज्योति : आप भी ना शक़ की सुई ग़लत जगह मार रहे है..

राजीव : आदम मेरे घर के लड़के जैसा है मेरे छोटे भाई जैसा है मुझे चिंता खा रही है ज्योति तुम नही समझ पओगि ?(ज्योति राजीव दा को शांत करने लगी)

पर राजीव दा खामोशी से बस यही शक़ की सुई बुन रहे थे कि क्या सच में वो कोई निशा का लगता है? या फिर कुछ और बात है....

अगले दिन मेरी नींद तब खुली जब माँ की मज़ूद्गी का अहसास मुझे बाथरूम में हुआ...प्सस्स की आवाज़ आई..तो मेरे कानो ने जैसे मुझे अहसास कराया कि माँ शायद टाँगे चौड़ी किए अपनी चूत से पेशाब की मोटी धार छोड़ रही है...मैं उस आवाज़ को सुनके मुस्कुराया...शायद माँ सुबह उठके फारिग होना चाहती थी...कल रात माँ के साथ बिस्तर पे जो आनंद आया उसके लिए मैं जैसे कयि दिनो के इन्तिजार में था....मैं माँ का ही इन्तिजार करने लगा कि कब उसके मुस्कुराहट भरे चेहरे का दीदार हो....

प्रर्र प्रर करके माँ शायद अपने नितंबो के बीच से पाद छोड़ रही थी...उसके बाद मुझे पिट पे उसके मल त्यागने की आवाज़ सी हुई...मैं चुपचाप तकिये पे सर रखकर सुनता रहा...भीनी भीनी टाय्लेट के अद्खुले दरवाजे से अंदर की महेक बाहर आ रही थी...मैं बिस्तर से उठा और अपने नंगे बदन पे पास रखी पिता जी की लूँगी उठाई और पहन ली....माँ टाय्लेट से फारिग होके जब बाहर आई तो उसने कहा कि अंदर ना जाउ अभी बदबू है उनका पेट खराब हो गया दवाइयो की वजह से...

मैने हँसके कहा अरे माँ मैं तेरे से ही तो जनमा हूँ और वैसे भी शायद तेरे लिए गंदगी हो मेरे लिए ये मनमोहक खुश्बू है जैसे रात को तूने पेशाब से चादर और फर्श जो गीला किया ठीक वैसे...उफ्फ मेरे नथुनो में टाय्लेट के पास खड़ा रहने से अंदर की महेक लग रही थी...मैं बिना कुछ कहे अंदर गया और पेशाब करके बाहर आया....

मैं वैसे ही लूँगी को अड्जस्ट करता हुआ बाहर जब निकला तो पिता जी को अपने कमरे में अंगड़ाई लेता हुआ पाया....निशा नाइटी पहने बाहर का नज़ारा देख रही थी मेरी तरफ निगाह जैसे ही घूमी तो मैने उसे जैसे कड़वे अंदाज़ में देखा...मुँह कड़वा जैसा नही कर लेते वैसा मेरा भाव था...उसने मेरे हालत का जायेज़ा लिया उसने मेरी लूँगी में उभरे हुए लौडे को महसूस किया फिर मेरी तरफ सवालात भरी नज़रो से कहा

निशा : त..तुम कल कहाँ सो रहे थे? पूरी रात कमरे में नही आए

आदम : क्यूँ मेरे आने से ना आने से क्या फरक पड़ता है? माँ के साथ था माँ की तबीयत ठीक नही थी बुखार था उन्हें सोचा अगर रात गये तक़लीफ़ बढ़ गयी तो...इसलिए ?(निशा ने कुछ ना कहा ऐसा जताया जैसे उसे कोई मतलब ही नही पड़ा पर उसे आश्चर्य हुआ कि मैं क्या नंगा ही माँ के साथ सोता हूँ पर उसकी पूछने की हिम्मत नही थी)

और भला सोचती भी क्या? व्याबचारी रिश्ता एक माँ और बेटे के बीच क्या होता है? उसका उसे अंदाज़ा ही क्या होगा मैं तो कभी कभी ये भी सोचता था रंडी को इन्सेस्ट का मतलब भी पता है या नही

खैर निशा फिर किचन में घुस गयी....माँ कल की वहीं सूट और पाज़ामी को पहनके बाहर आई मेरे तरफ निगाह मिलते ही मैने उसके चेहरे को गुलाबी पाया...उसके चेहरे पे जैसे कल रात जो कुछ भी हमारे बीच हुआ उसकी संतुष्टि थी....एक उमर दराज़ औरत थी वो भला चुदाई की इच्छा उसे क्यूँ ना होगी? उसे एक भरपूर मर्द चाहिए था और वो कमी मैं पूरा करता था..उसने एक झलक किचन में निशा को पाया और फिर पिता जी के कमरे में चली गयी..पिता जी पूछे तबीयत कैसी है तो बोली अभी बेहतर है...कह कर वो पिता जी से गफलत में लग गयी...

मैं नहाने घुसा तो पाया मेरे लिए चाइ हाज़िर थी...

."आज लेट जाओगे"...निशा ने फिर टोका उसको मेरे घर में होने की भी चैन नही थी....

"नही आज सनडे है"....

मेरी बात सुनके निशा को अपनी भूल का जैसे अहसास हुआ वो अपना चाइ की प्याली ली और कमरे में ही चली गयी...चाइ के दो कप वहीं छोड़ गयी....मैने माँ बाबा को आवाज़ दी....वो आके चाइ पीने लगे...चाइ की चुस्किया लेते वक़्त माँ मुझसे पूछ रही थी कि अभी उसके तेवर कैसे है? मैने कहा फिलहाल तो कम है...माँ और मैं निशा का मज़ाक उड़ा रहे थे तो पिता जी हमारे बर्ताव में बदलपन देखके ना में सर हिलाए...

इतने में राजीव दा को सीडियो से नीचे अपने द्वार पे उपस्थित पाता हूँ...."अरे राजीव दा आज आप सनडे छुट्टी?".....

"हाहाहा ऐसी किस्मत कहाँ यार? वो तो ड्यूटी के लिए शाम को जाना है पॉलिसीए की नौकरी ही ऐसी है ससुर साला जब तक दौरा ना करो एक दिन भी चैन नही"....

."आपका फ़र्ज़ जो इतना बड़ा है राजीव दा आइए ना चाइ पीजिए"......

."बस बस मैं सोचा हाल चाल पूछता चलूं और अंकल कैसे हो?".......

."बस बेटा ठीक"......पिता जे ने कहा....

"और आंटी आप?".......राजीव ने माँ से पूछा तो माँ ने भी जवाब दिया मुस्कुराई....

राजीव कशमकश में घिरा सा था वो सोच रहा था घर में शांत माहौल है ऐसे में ज्योति ने जो निशा को बाइक पे किसी के साथ बैठने की जो बात कही थी उसे कहना आदम या उसके माँ बाबा के बीच कहना ठीक ना रहेगा यही सोचके राजीव दा ने पहलू बदला..
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