Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
12-09-2019, 02:43 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
अभी सब हँसी खुशी बात कर रहे थे कि द्वार पे कोई और भी उपस्थित हुआ....आदम की निगाह सामने गुज़री तो माँ भी उसे देखने लगी राजीव दा तो उसे पहले से ही ताड़ रहे थे...सामने बिशल की भेजी हुई नौकरानी जिसका नाम लज्जो कुमारी था 20 वर्षीए खड़ी थी..उमर के हिसाब से बदन गोल मटोल था 60 किलो की तो वजन होगी उसकी साड़ी से जैसे फटके उसके स्तन और नितंब बाहर जैसे आने को थे...राजीव दा उसके फिगर को देखके हल्के से सिसक उठे...शादी शुदा थे ऐसी औरतो को ताड़ना उनके लिए आम था...और मेरा तो उसे देखते ही खुद पे काबू पाना मुस्किल हो गया...लाज्जो उसी ताड़ी पिलाने वाली की बेटी थी जो ठेका पे ताड़ी पिलाती थी...भोजपुरी थी जो यहाँ बेंगाल में बस गयी थी अपने माता पिता के साथ....माँ तो बूढ़ी थी इसलिए उसका बदन इतना गातीला और सुडोल नही था...लाज्जो को देखके लगा जैसे की दो बच्चो की माँ हो...लेकिन अंदाज़ बिल्कुल ठीक था मेरा कि कोरी कली थी

अंजुम : बेटा ये कौन है? (माँ ने सवाल किया)

आदम : ह्म अच्छा है आप और पिता जी यहाँ मौज़ूद है...?(इतने में निशा कमरे से बाहर निकली तो लाज्जो को घुर्रा उसने मैने उस पर एक नज़र डाली और फिर सबको कहना शुरू किया)

आदम : खैर मैं बताता चलूं ये आजसे हमारे घर की कामवाली है सारा काम अब यही करेगी बर्तन पोछा से लेके खाने बनाने में भी मदद तक करेगी

अंजुम मेरे पास आके आहिस्ते से कही "बेटा पर पैसे? तुझे तो बताया ना कि चोर".....

."माँ अब हालत ऐसे बन गये है कि रखने के सिवाह नौकरानी मेरे पास कोई चारा नही था"....

."पर बेटा"..........

"माँ प्ल्ज़्ज़ ये मैं तुम्हारी खातिर कर रहा हूँ लाज्जो".......मैने माँ को शांत किया एका एक सबको लज्जो का परिचय कराते हुए उसके पास आया...शायद गर्मी में आने से उसके बदन से पसीने की भभक उठ रही थी....

निशा से बोल ना फूटा...उसे तो मालूम था कि घर के कामो से तो वो उब जाती थी...या ठीक तरीके से तो खाना भी उससे ना बनता था...इसलिए उसने एक बार भी मुझे टोका नही..वो फॅट से जैसे आई थी वैसे अंदर चली गयी....मन ही मन मुझे कोसते हुए "मुझपे खर्चा करने पे इनकी फाटती है और माँ की सेवा के लिए कामवाली को भी हाइयर कर लिया हुहह"....दिल ही दिल में बड़बड़ाये अपनी भादास निकालते हुए निशा जैसे चिड गयी..

लज्जो को मैने 2000 रुपये में फिक्स कर लिया था...वो काफ़ी हासमुख और चटपटिया टाइप की लड़की थी इसलिए मुझसे रह रहके बात कर रही थी और माँ से भी...राजीव दा ने जाते जाते मुझे कहा कि चलो अच्छा है दिल बहलाने को कोई तो मिला ...पर मैने उनका जवाब हँसके टाला मैं जानता था दिल बहलाने के लिए तो ढेरो है.....पर दिल लगाने के लिए तो सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरे लिए मेरी माँ ही एक्मात्र है

लाज्जो फ़ौरन घर का कामकाज संभालने लगी....उसके आने से एक तरह से मैं थोड़ा हल्का हो गया था माँ के प्रति...उसे मैने सख़्त हिदायत दी थी कि माँ की सेवा करने में कोई कमी ना रहे....वो इतनी ज़्यादा घर आके घुलमिल गयी कि माँ से काम काज निपटाए उनसे बात करने लग जाती या फिर उनके पैर दबाने या कोई दर्द हो तो उसकी मालिश करने लग जाती....इस बीच माँ ने मुझे उसके बारे में इतना बताया कि वो दिल की बहुत मुलायम है और उसकी शादी हो चुकी है लेकिन गौना नही हुआ है अभीतक सुना है कि पति कोलकाता में नौकरी करता है..

खैर मैं तो नौकरी में व्यस्त रहता था....कभी कभी जल्दी घर लौट आता तो उससे मुलाक़ात हो जाया करती थी....वो काम करते वक़्त अपनी पल्लू को लपेटे अपने कमर में खोस्के काम करती थी जिससे उसके उभरी हुई दूध की टँकिया सॉफ उभरी हुई ब्लाउस से दिखती थी और यही नही ब्लाउस पे निपल्स भी सॉफ मुझे नज़र आते थे...उसकी तोंद निकली पेट और गोल गहरी नाभि पे जब पसीना होता था तो ऐसा लगता था...जैसे लंड का पानी निकल जाएगा....

मैं जानता था खुले विचारो के साथ साथ वो मेरे सामने इतनी खुली खुली सी क्यूँ रहती है? क्यूंकी लाज्जो ने एक आध बार मुझे अपनी बीवी से झगड़ते देखा था...और माँ ने यही ग़लती कर दी दिल के हाल-ए-दर्द को उस गैर के आगे ब्यान कर दिया....वो भी जैसे माँ की तरह निशा को हमेशा मुँह बिच्काये देखती थी....निशा उससे दूर ही रहती थी वो उसे अपने कमरे की सफाई के वक़्त कभी कभी चिढ़ते हुए कुछ कह देती तो वो ये चुगली माँ को लगा देती थी तो माँ निशा को डाँट देती थी...लाज्जो जैसे मुझ जैसे कमाऊ और हॅंडसम शहरी गोरे लड़के को देखके आहें भरती थी..पर मैने कभी उसे भाव नही दिया..बस इस लिए वो जैसे पीछे हट जाती थी..मैं हमेशा उसके मटकते चुतड़ों को ना चाहते हुए भी नोटीस करता था...पसीने से भरा होने से पेटिकोट का कपड़ा जैसे गोल गोल चुतड़ों के बीच धँस जाता था

____________________

ट्रिंग ट्रिनज्ज्ग...."हेलो?".........

."हे निशा डार्लिंग व्हाट'स अप?"......अपने और अपने संग लेटी उस नंगी औरत के उपर चादर डालते हुए...सिगरेट का कश लगाए हान्फ्ते हुए संजीब ने कहा

निशा : हाई संजीब कुछ ख़ास नही बस दम घूँट रहा है (अंजान संजीब से बात करते हुए काश ये बात उसके कमरे में लेटी उस औरत को उसकी बाहों में चिपका देख कह पाती )

संजीब : हाहाहा यू नो व्हाट निशा? कम इंटो माइ हाउस आइ विल बी वेट

निशा : नो संजीब उसकी माँ नोटीस कर लेगी

संजीब : ओके देन आइ विल

निशा : नो संजीब नो ऐसा ना करना फँस जाएँगे

संजीब : ओह क़'मोन मैं अपना परिचय वहीं दूँगा ना वहीं तुम्हारा जिगरी कॉलेज फ्रेंड

निशा कहती रह गयी संजीब ने फोन कट कर दिया....निशा को जैसे उसके आने का ख़ौफ़ सताया पर वो कर भी क्या सकती थी? संजीव काफ़ी ज़िद्दी था वो कुछ भी कर सकता भला मिलने उसके ससुराल क्यूँ नही आ सकता?

उधर संजीब के साथ वो औरत भी बेशर्मी और बेहयाई से उसके लिंग को हाथो से मसल रही थी...संजीब निशा के विश्वास पे टहाका लगाके हंस रहा था...

औरत : उफ्फ कब तक लोगे इसकी?

संजीब : शी ईज़ आन अब्सेशन बेबी (औरत के गाल उंगलियो से सहलाते हुए)

औरत : फिर भी

संजीब : इस्पे तो कॉलेज से हाथ मार रहा हूँ अब शादी के बाद यू नो आइ लव मॅरीड बौडी'स बस वैसा ही कुछ मज़े ले रहा हूँ

औरत : हाहाहा मुझसे ज़्यादा सख़्त चूत है क्या इसकी?

संजीब : हाहाहा चोद चोद कर खोल चुका और बची कूची कसर इसके पति ने भी खोल डाली है एनीवे तुम ये पैसे लो और जब तक मैं ना कहूँ आना मत समझी ना

औरत : आप कहे हुज़ूर और हम ना माने (नोटो के बंड्ल को हाथो में लिए चूमते हुए)

औरत वैसी ही बिस्तर से नंगी उठी और अपने कपड़े उठाने लगी....संजीब जैसा घिनोना इंसान किस हद तक जा सकता था इसका अंदाज़ा शायद निशा जैसी औरतो को नही था जिन्हें ये लगता था कि सम्टाइम्ज़ मुहब्बत ईज़ हेवेन..लेकिन उसे ये ना मालूम था कि संजीब का उससे यूँ मिलना उसका यूँ उसके ज़िंदगी में लौटके आना महेज़ उसका फ़ायदा उठाना था....निशा तो अंजुम और आदम की ज़िंदगी में दरार तो पैदा करी ही थी लेकिन बदले में आज उसे उन अटूट प्रेम के बंधन को तोड़ने का नतीजा सॉफ संजीब जैसे धोकेबाज़ को पाके मिला था


उधर निशा डर रही थी कि कहीं संजीब घर ना आ जाए कहीं...उसकी सास से भेट ना हो जाए या फिर कही आदम को मालूम ना चल जाए....उस वक़्त लाज्जो हमेशा की तरह घर आके बर्तन धो रही थी....तो उसे किसी की आहट हुई उसने देखा संजीब खड़ा है तो गैर आदमी को देख अंजुम को आवाज़ दी

अंजुम : क्या हुआ?

लज्जो : जी यह (उसने बस इशारा किया और किचन में चली गई)

लज्जो उसे जैसे पहचानने की नाकाम कोशिशें कर रही थी..."ऐसा लग क्यूँ रहा है? कि इस मरद को कही देखा है?".....अपने में सोच बुन्ते हुए लज्जो बरतने धोने लगी...

अंजुम : हां आप?

संजीब : जी मैं संजीब निशा का दोस्त

एक पल को निशा बौखलाए दौड़ी उसके अपने ससुराल में प्रस्तुत देख चौंक उठी..तो इधर अंजुम उसे एकटक घूर्रने लगी जैसे उसे आभास हुआ हो कि मेहमान नही उसके घर को उजाड़ने वाला राक्षस सामने खड़ा है वो पास आया उसने अंजुम के पैर छुए...उससे फेमिलियर होने लगा...

अंजुम : क.खुश रहो आओ बैठो? (अभिवादन जताते हुए निशा चाइ बनाने किचन में चली गयी)

संजीब : जी मैं यही रहता हूँ वो मेरे पिता वकील साहेब है आड्वोकेट!

निशा ने फुरती से चाइ की ट्रे टेबल पे रखी और ऐसे मासूमियत पर सहमे हुए उसे घूरा कि अंजुम को शक़ ना हो जाए...

."अच्छा करते क्या हो?".......

"जी बिज़्नेस है"......

"अच्छा शादी में हाँ हां याद आया चलो आप लोग बात करो".......अंजुम बिना कहे वहाँ से उठके अपने कमरे में आई उसके पति ने सवाल किया कौन आया हुआ है? तो उसने कस कर पति को रोकते हुए कहा

अंजुम : उसका कोई दोस्त है

पति : तुम आदम को बताई?

अंजुम : घर आए मेहमान की बात बताना इतना ज़रूरी नही आने दो उसे बता दूँगी वैसे भी निशा उसके लिए आगे आगे कर रही थी जैसे चाइ नाश्ता देने की कोशिश मुझे अच्छा नही लगा तो मैं आ गयी

पिताजी ने कुछ ना कहा..."तुम यहाँ क्यूँ आए?"....दबे स्वर में निशा ने कहा

संजीब : तुमसे मिलने

निशा : यह मेरा ससुराल है तुम सीधे मेरी सास से मिल लिए कहीं वो अपने बेटे को ना बता दे फिर तो वो मुझसे सवालात करने लग जाएगा

संजीब : हाहाहा मैने उन्हें तुम्हारा भाई बताया है इसलिए डरो मत और सुनो आज रात की पार्टी में आना है कहा था ना वादा किया था ना तुमने

निशा : हां किया था पर प्ल्ज़ तुम अभी यहाँ से जाओ मैं पक्का आ जाउन्गी

संजीब : ओके आज ठीक रात 9 बजे शार्प

निशा : ओके बाबा अब जाओ भी
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