Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
12-09-2019, 02:45 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
आदम ने उसके मुँह पे कस कर हाथ भीच लिया निशा अपने पाँव के नाखुनो को जैसे आदम की पीठ पे गढ़ा रही थी उससे छूटने के लिए...पर आदम वैसी ही सख्ती के साथ चूत की दरारों में लंड को और अंदर गहराई तक ले जाता रहा इससे चूत की परत काफ़ी खुल गयी...जब आदम ने हल्के से लंड बाहर निकाला तो खून जैसे अंदर से बाहर बहने लगा...लाज्जो ने ये देख आँखे मूंद ली उसकी तो जैसे गान्ड में किसी ने वैसा ही लंड डाल दिया हो ऐसे ख़ौफ्फ से सेहेम उठी वो...


निशा का पति उसकी चूत के अंदर बाहर लंड को बेदर्दी से करने लगा...धक्के करारे बेदर्दी से पेलते हुए उसने निशा के होंठो पे अपने होंठ रखकर उसे जबरन चूसा और उसे दाँतों से जैसे खीचा भी जैसे वो उसके होंठ चबा जाना चाहता था..


निशा की दर्दभरी आवाज़ उसके गले में ही जैसे घुट गयी....उसके होंठ आदम के मुँह में थे...वो उन्हें चुस्सता चबाता लगभग निशा की चूत में सतसट लंड अंदर बाहर करता.....लौडे और चूत से खून निकल रहा था...आदम का लंड सख़्त चूत से छिल चुका था पर वो बर्दाश्त किए हुए था...


"आहह आहह सस्स आहह उम्म्म"......आदम गरजा फिर उसने निशा की चूत से अपना लॉडा बाहर खीचा...चूत खुल रही थी और बंद हो रही थी उसका मुंहाना काफ़ी खुल चुका था और अंदर से खून बाहर निकल रहा था...निशा की टाँगों में जैसे जान नही रही...


वो बेहोश जैसे हो गयी बदहवास जैसी हो गयी...आदम ने उसे उल्टा लिटाया फिर नितंबो पे थप्पड़ जड़ते हुए उन्हें जैसे खरोचा और मसला...निशा छटपटाई दर्द से दाहडी...लेकिन आदम थमा नही...उसने फिर निशा को कुतिया बनाया बालों को फिर जकड़ते हुए उसे मुद्रा पोस्चर में किया..


और उसके नितंबो के छेद पे ढेर सारा थूक डाला....निशा कुछ कहने लायक तो थी नही...उसे होश तब आया...जब आदम का मोटा लंड उसकी दरार में अंदर दाखिल हो रहा था उसकी मोटाई और सख्ती झेलने लायक नही थी निशा के..वो ज़ोर से बिस्तर को हाथो से पकड़े ऐसे दर्द भरे अंदाज मे चिल्लाई कि एक पल को लाज्जो भी चीख उठी उसने मुँह पे हाथ रख लिया...


मुँह वैसे ही खुला का खुला निशा का रह गया और वो रोती टूटती हुई बिस्तर पे सर रखके आगे पीछे हिलने लगी...उसकी चूत में तो दर्द था ही अब उसकी गान्ड के भीतर भी दर्द कर रहा था...आदम ने लंड को अंदर बाहर करके घुसाया...फिर निकाला फिर सिकुड़ते खुले छेद के अंदर डाला....जैसे जैसे लंड अंदर जाता गया छेद एकदम खुलता गया...जब अंडकोष ही सिर्फ़ लटके नितंबो के पीछे रह गये....तो जैसे निशा का पूरा बदन काँप उठा इस बीच आदम भी काँप उठा...


उसने निशा को एक बाज़ू गले पे गिरफ़्त किए उठाया और ताबडतोड़ धक्के पेले...उसके नितंबो पे अंडकोष थपा थप आवाज़ किए हिल रहे थे नितंबो को कस्के जकड़े हुए भी कुतिया कम और रांड़ बनाए निशा को आदम ने काफ़ी देर तक उसकी गान्ड की चुदाई की...गान्ड चोदते चोदते उसने निशा के चेहरे को जैसे नीला पाया दर्द से...


निशा बेशुध बिस्तर पे जैसे उसकी गिरफ़्त के छूटने से ही गिर गयी...आदम धक्के पेलता रहा...निशा आँखो से आँसू बहाती रही....आदम जैसे ही करारे धक्के अंदर जड़ तक मारता तो जैसे बच्चे दानी का अहसास उसे लगता छूते हुए अपने सुपाडे से..


जब आदम ने निशा के छेद से लंड बाहर निकाला तो उसके नितंबो की गोलाइयाँ एकदम लाल लाल हो गयी खरॉच और दबोचने से...उसका छेद कयि ज़्यादा खुल गया था...छेद सिकुड के जैसे छोटा भी नही हो रहा था....निशा को पाँव से पकड़े जैसे आदम ने पलंग से नीचे गिरा डाला..घुटनो के बल जैसे निशा गिर पड़ी...उसे हल्की चोट आई


उसके नितंबो और चूत के छेदों में जैसे दर्द की एक टीस उठी...जिससे वो रो पड़ी....आदम ने उसके मुँह में लंड आगे पीछे करते हुए मसला...अओउ अओउ ओओूउ अओउ उम्म्म ओउूउ.."पी पूरा ले पूरा ले भीतर गले तक हलक तक चूस पूरा का पूरा"....करते करते जैसे आदम गर्ज उठा और उसके लंड की गरम गरम वीर्य की धार निशा के मुँह के अंदर गहराई तक चली गयी...जब आदम ने निशा को उठाए बेड पे किसी फूल की तरह फैका...तो जैसे कोई लाश बिस्तर पे नंगी पड़ी हो...


निशा के बदन पे कोई घाव नही था जिससे ये लगे कि उसके साथ मारपीट हुई हो पर गुप्तांगो की इस कदर बुरी हालत कर दी थी..कि अब उसका सख़्त होना शायद नामुमकिन था...


निशा किसी लाश की तरह खामोश सदमे में घिरी पड़ी हुई थी आदम हांफता हुआ उसके उपर चादर डाल गया...."अब तेरा यहाँ इस चार दीवारी से बाहर निकलने का कोई हक़ नही अगर जाएगी भी तो मेरे साथ आजसे तेरा डॅन्स क्लासस जाना बंद अब यही चार दीवारी में तू क़ैद रहेगी..और हां याद रखना अबसे घर का कोई काम काज से भी तुझे हाथ लगाने की ज़रूरत नही तू मेरी नज़र से गिर चुकी है तुझे जीते जी ही मारूँगा मैं यूँ ऐसे ही हर रात तू मर नही पाएगी समझी मेरी ज़िंदगी उजाड़के मैं तुझे मरर्ने नही दूँगा"......इतना कहते हुए जैसे आदम कमरे से बाहर निकल गया...उसे जाते देख लाज्जो जैसे सिहर उठी...उसने एक बार निशा को लेटे देखा और उसकी हालत देख मुँह पे हाथ रखते हुए...वहाँ से चलती बनी....ये दृश्य देखके उसे महसूस तो हो गया कि उसका आदम से संबंध बनाना मतलब मौत को दावत देने जैसा था

रात को डिन्नर के लिए अंजुम पति और बेटे तीनो उपस्थित थे..माँ ने जैसे ही खाना परोसा..बेटे ने घप्प से नीवाला लेना शुरू कर दिया..एक तो बहू पे बढ़ता शक़ और ऊपर से बेटे को लेके चिंता कि उसे मालूम ना चल जाए....पर आदम तो जैसे चुपचाप किसी सदमे में घिरा हुआ था अपनी कशमकश में खा रहा था...आज उसने जो कुछ किया निशा के साथ शायद गुस्से में किया पर वो ऐसा लड़का नही था जो किसी औरत के साथ ऐसे पेश आए लेकिन आज क्रोध उसका जायेज़ था .....उसने माँ की तरफ देखा जो खोई हुई सी सिर्फ़ प्लेट पे हाथ फेर रही थी..."माँ दाल की कटोरी पास करना तो"......

.."ह..हाँ ये ले".....माँ ने बेटे के थाली में डाल डालते हुए कहा

आदम के पिता : अरे निशा नही आई

अंजुम : क्या हुआ आज फिर झगड़ा हुआ क्या तुम दोनो के बीच शाम से देख रही हूँ कि कमरे से बाहर नही निकली

आदम : कुछ नही माँ बस फिर कोई ज़िद पकड़ी हुई है इसलिए मुँह फुलाए बैठी है आप चुपचाप खाओ और डॅड आप प्ल्स उसका ज़िक्र मेरे आगे मत करो खाने की प्लेट में उसके कमरे में ले जाउन्गा

अंजुम : तू क्या नौकर है बैठ तू चुपचाप मैं देके आती हूँ (अंजुम वैसी ही खिजलाई हुई थी निशा पर आदम ने उसके हाथ पे हाथ रखके उसे चुपचाप बैठ जाने को कहा माँ समझ नही पाई)

पिता जी खाना पीना खाते हुए वापिस अपने कमरे में चले गये...तो आदम उठा उसने झूठे और बाकी के बर्तनो को उठाया और किचन में रखके वापिस लौटा...अंजुम ने बेटे से ज़्यादा कुछ नही पूछा...आदम को शक़ भी हुआ कि कहीं माँ-बाप की मज़ूद्गी का अहसास पाए वो कमरे से निकलके अपने उपर हुए ज़ुल्म की आप बीती ना सुनाने लग जाए...लेकिन अगर वो ऐसा कुछ करती भी तो संजीब की पोल खोलने की धमकी आदम वैसे ही उसे दे चुका था....डर तो उसे लग रहा होगा कि कही उसका पति आदम उसके माँ बाप के आगे भी ये सब बात ना खोल दे...

इसी कशमकश में उलझा आदम मुँह हाथ धोके थाली में खाना सज़ाया कमरे में दाखिल हुआ और फुरती से दरवाजा लगाया....दरवाजे की आहट पा निशा जो घुटनो के बल सर रखके आँखे मूंदी हुई थी एकदम से सर उपर उठाए आदम की ओर देखके सहम उठी...उसकी आँखो के नीचे जैसे काले घेरे हो गये थे...

निशा वैसी ही बैठी रही...आदम ने उसे घुरते हुए स्टूल उसके सामने रखा और उस पर खाने की थाली रखी...."खा लो सुबह से भूकि हो"..

."नही खाउन्गी क्या करोगे?"..निशा ने गुस्से अंदाज़ में जैसे घुर्राते हुए कहा....

"सस्स्शह ज़ोर से नही माँ-बाप सो रहे है अगर यहाँ आए तो आज दिन का वाक़या जानेंगे ही साथ साथ तेरे राज़ से भी परदा उतर जाएगा"....

.निशा सहम गयी....वो फिर रोने लगी
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