Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
01-02-2020, 12:39 PM,
#5
RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
जब वे अपने रूम में पहुंचे तो पाया की हेल्पर ने उनका सामान वहाँ पहुँचा दिया था और खड़ा उनका वेट कर रहा था. जयसिंह समझ गए कि वह टिप चाहता है. उन्होंने जेब से दो सौ रूपए निकाल उसे थमा दिए और वह ख़ुशी-ख़ुशी वहाँ से चल दिया. मनिका ने जब रूम देखा तो उसकी बांछें खिल उठी, कमरा इतना बड़ा व शानदार था और उसमे ऐशो-आराम की सभी चीजें मौजूद थीं कि वो खुश होकर इधर-उधर जा-जा कर वहाँ रखी चीज़ें उलट-पलट कर देखने लगी.

'पापा क्या रूम है ये...वाओ.' उसने जयसिंह से अपनी ख़ुशी का इज़हार किया.

'हाँ-हाँ. अच्छा है.' जयसिंह ने कुछ ख़ास महत्व न देते हुए कहा.

'बस अच्छा है? पापा! इतना सुपर रूम है ये...’ मनिका ने इंसिस्ट किया.

'हाँ भई बहुत अच्छा है, बस?' जयसिंह ने उसी टोन में कहा, 'तुमने पहली बार देखा है इसीलिए ऐसा लग रहा है तुम्हें.'
'मतलब..? मतलब आप पहले भी आए हो यहाँ पर पापा?' मनिका ने आश्चर्य से पूछा.

'और नहीं तो क्या, बिज़नस मीटिंग्स के सिलसिले में आता तो रहता हूँ मैं दिल्ली, जैसे तुम्हें नहीं पता...' जयसिंह बोले.

'हाँ आई क्नो दैट पापा पर मुझे नहीं पता था कि आप यहाँ रुकते हो.' मनिका बोली, 'पहले पता होता तो मैं भी आपके साथ आ जाती.' जयसिंह उसकी बात पर मन ही मन मुस्कुराए.
'हाहा...अच्छा जी. चलो कोई बात नहीं अब तो तुम यहीं हॉस्टल में रहा करोगी, सो जब मैं दिल्ली आया करूँगा तो तुम यहाँ आ जाया करना मेरे पास हॉटेल में.' जयसिंह का आशय अभी मनिका कैसे समझ सकती थी, सो वह खुश हो गई और बोली,

'वाओ हाँ पापा ये तो मैंने सोचा ही नहीं था. आई विश की मेरा एडमिशन हो जाए यहाँ...और आपकी बिज़नस मीटिंग्स जल्दी-जल्दी हुआ करें.'

'हाहाहा...अरे हो जाएगा, तुम इतनी इंटेलीजेंट हो, डोंट वरी.' जयसिंह मनिका की तारीफ करते हुए बोले, 'चलो अब बताओ की डिनर रूम में मंगवाएं या नीचे रेस्टोरेंट में करना है?'

मनिका के कहने पर वे दोनों हॉटेल के रेस्टोरेंट में खाना खाने गए थे. जयसिंह ने मनिका से ही ऑर्डर करने को कहा और जब मनिका ने मेन्यु में लिखे महंगे रेट्स का जिक्र किया तो उन्होंने उसे पैसों की चिंता न करने को कहा. मनिका उनकी बात सुन खिल उठी और बोली,

'पापा सच मेरी फ्रेंड्स सही कहती हैं. आप सबसे अच्छे पापा हो.'

'हाह...अरे हम डिनर ही तो कर रहे हैं. तुम्हारी फ्रेंड्स के घरवाले क्या उन्हें खाना नहीं खिलाते क्या?' जयसिंह ने मजाकिया लहजे में कहा.

'ओहो पापा...कम से कम फाइव स्टार रेस्टोरेंट्स में तो नहीं खिलाते हैं. आप को तो बस मेरी बात काटनी होती है.' मनिका ने मुहँ बनाते हुए कहा.

'तो मैं कौनसा तुम्हें यहाँ रोज़-रोज़ लाया करता हूँ.' जयसिंह मनिका से ठिठोली करने के अंदाज़ में बोले.

'हा...पापा कितने खराब हो आप.' मनिका ने झूठी नाराजगी दिखाई, 'देख लेना जब मेरा यहाँ एडमिशन हो जाएगा ना और आप डेल्ही आया करोगे तो मैं यहीं पे खाना खाया करूँगी.' मनिका ने आँखें मटकाते हुए हक़ जताया.

'हाहाहा...अरे भई ठीक है अब आज के लिए तो कुछ ऑर्डर कर दो.' जयसिंह हँसते हुए बोले.

जब मनिका ने ऑर्डर कर दिया, वे दोनों वैसे ही बैठे बतियाने लगे. जयसिंह मनिका के साथ हँसी-मजाक कर रहे थे और बात-बात में उसकी टांग खींच रहे थे, मनिका भी हँसते हुए उनका साथ दे रही थी और मन ही मन अपने पिता के इस मजाकिया और खुशनुमा अंदाज़ को देख-देख हैरान भी थी. कुछ देर बाद उनका डिनर आ गया, मनिका ने रीअलाइज़ किया की उसे बहुत जोरों की भूख लगी थी, उन्होंने से सुबह के ब्रेकफास्ट के बाद ट्रेन में थोड़े से स्नैक्स ही खाए थे. दोनों बाप-बेटी खाना खाने में तल्लीन हो गए. मनिका जो पहली बार इतनी महंगी जगह खाना खाने आई थी, को खाना बहुत अच्छा लगा और वह मन में प्रार्थना कर रही थी कि उसका एडमिशन दिल्ली में ही हो जाए.
जब वे खाना खा चुके तो जयसिंह ने आइसक्रीम ऑर्डर कर दी और जब वेटर बिल ले कर आया तो उन्होंने उसे पाँच सौ रुपए की टिप दे डाली, मनिका उनके अंदाज़ से पूरी तरह से इम्प्रेस हो गई थी. वे दोनों अब उठ कर अपने कमरे में लौट आए.

'पापा द फ़ूड हेयर इस ऑसम.' मनिका ने कमरे में आ कर बेड पर गिरते हुए कहा, 'मेरा तो टम्मी (पेट) फुल हो गया है.'

'हम्म...' जयसिंह अपने सूटकेस से पायजामा-कुरता निकाल रहे थे, 'तुम थक गई हो तो सो जाओ, मैं जरा नहा कर आता हूँ.' उन्होंने कहा.

'ओह नहीं पापा...आई मीन थक तो गई हूँ बट मैं भी शावर लेके नाईट-ड्रेस पहनूँगी, यू गो फर्स्ट एनीवे.'

जयसिंह अपने कपड़े ले कर बाथरूम में घुस गए. अंदर पहुँच उन्होंने अपने कपड़े उतारे और अपने कसमसाते लंड को आज़ाद कर राहत की साँस ली, उन्होंने शावर ऑन किया और ठन्डे पानी की फुहार से नहाते हुए मनिका के जवान जिस्म की कल्पना करते हुए अपना लंड सहलाने लगे. 'ओह मनिका...साली कमीनी कुतिया...क्या पटाखा जवानी है साली की, बजाने का मज़ा ही आ जाए जिसको...आह्ह...' जयसिंह सोच-सोच कर उत्तेजित हो रहे थे. उनका लंड उनके हाथ में हिलोरे ले रहा था, उन्हें महसूस हुआ की वे झड़ने वाले हैं, ऐसा होते ही उन्होंने एकदम से अपने लंड को सहलाना बंद कर दिया और शांत होने की कोशिश करने लगे. उनके मन में एक विचार कौंधा था कि अगर अभी वे स्खलित हो जाते हैं तो मनिका को लेकर उनके तन-मन में लगी आग, कुछ पल के लिए ही सही, बुझ जाएगी (जैसा कि आम-तौर पर सेक्स करने और हस्तमैथुन के बाद मर्द महसूस करते हैं) और वे यह नहीं चाहते थे. उन्होंने तय किया की वे अपने प्लान के सफल होने से पहले अपने तन की आग को शांत नहीं करेंगे, 'और अगर प्लान फेल हो गया, तब तो जिंदगी भर हाथ में लेके हिलाना ही पड़ेगा.' फिर उन्होंने नाटकीय अंदाज़ में मन ही मन सोचा और नहाने लगे.
बाहर बेड पर लेटी मनिका अपने पापा के नहा कर आने का वेट कर रही थी. वह बहुत खुश थी, 'ओह गॉड कितना एक्साईटिंग दिन था आज का, पहली बार मेट्रो-सिटी में आई हूँ आज मैं...एंड होपफुली अब यहीं रहूँगी, कितना कुछ है यहाँ घूमने-फिरने को और शौपिंग करने को...वैसे मम्मी ने ठीक ही कहा था सुबह, ऐसे ही पैसे बर्बाद कर डाले मैंने वहाँ शौपिंग करके इस से अच्छा होता कि यहाँ से कर लेती...हम्म कोई बात नहीं पापा से थोड़े और पैसे माँग लूंगी वैसे भी वे कह रहे थे कि मैं पैसों की फ़िक्र न करूँ...हीहाहा...’मनिका मन ही मन सोच खिलखिलाई, 'और पापा कितने अमेजिंग हैं...कितने फनी और स्वीट...और बुरे भी कैसे मेरी लेग-पुलिंग कर रहे थे आज...ओह नहीं-नहीं वे बुरे नहीं है...और गॉड हम मेरियट में रुके हैं...वेट टिल आई टेल माय फ्रेंड्स अबाउट इट...सब जल मरेंगी...हाहाहा...' तभी बाथरूम का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई, मनिका उठ बैठी, जयसिंह नहा कर बाहर निकल आए थे.

'चलो मनिका तुम भी नहा आओ जल्दी से फिर बिस्तर में घुसते हैं.' जयसिंह बेड के पास आते हुए बोले, 'थक गए आज तो सफ़र करके, आई एम सो स्लीपी.'

'येस पापा.' मनिका उठते हुए बोली. लेकिन जयसिंह की कही 'बिस्तर में घुसने' वाली बात मनिका के अंतर्मन में कहीं बहुत हल्की सी एक आहट कर गई थी पर मनिका का ध्यान इस ओर नहीं गया.

मनिका ने जल्दी से अपने कपड़े लिए और बाथरूम में घुस गई. बाथरूम में घुस मनिका ने अपने कपड़े उतारे व शावर ऑन कर नहाने लगी. नहाते-नहाते उसने अपने अंतवस्त्र भी खोल दिए व धो कर एक तरफ रख दिए थे. उनके रूम की तरह वहाँ का बाथरूम भी बहुत शानदार था, उसमें तरह-तरह के शैम्पू और साबुनें रखीं थी और शावर में पानी आने के लिए भी कई सेटिंग्स थी, मनिका मजे से नहाती रही और फिर एक बार सोचने लगी कि दिल्ली आ कर उसे कितना मजा आ रहा था.

कुछ देर बाद जब मनिका नहा चुकी थी, उसने पास की रैक पर रखे तौलिए की तरफ हाथ बढाया और अपना तरोताजा हुआ जिस्म पोंछने लगी. तौलिया बेहद नरम था और मनिका का बदन वैसे ही नहाने के बाद थोड़ा सेंसिटिव हो गया था सो तौलिये के नर्म रोंओं के स्पर्श से उसके बदन के रोंगटे खड़े हो गए व उसकी जवान छाती के गुलाबी निप्पल तन कर खड़े हो गए. मनिका को वो एहसास बहुत भा रहा था और वह कुछ देर तक वैसे ही उस नर्म तौलिए से अपने बदन को सहलाती खड़ी रही. फिर उसने तौलिया एक ओर रखा और अपने धोए हुए अन्तवस्त्रों की तरफ हाथ बढ़ाया और उस एक पल में उसका सारा मजा फुर्र हो गया. 'ओह गॉड...' उसके मुहँ से खौफ भरी आह निकली.

जयसिंह ने रूम में एक ओर रखे काउच पर बैठ टी.वी. ऑन कर लिया था. परन्तु उनका ध्यान कहीं और ही लगा था. एक बार फिर उनके मन में उनकी अंतर्आत्मा की आवाज़ गूंजने लगी थी, 'ये शायद मैं ठीक नहीं कर रहा...मनिका मेरी बेटी है, मेरा दीमाग ख़राब हो गया है जो मैं उस के बारे में ऐसे गंदे विचार मन में ला रहा हूँ...पर क्या करूँ जब वह सामने आती है तो दिलो-दीमाग काबू से बाहर हो जाते हैं...साली की गांड...ओह मैं फिर वही सोचने लगा हूँ...कुछ समझ नहीं आ रहा, इतने सालों से मनिका घर में मेरी आँखों के सामने ही तो बड़ी हुई है पर अचानक एक दिन में ही मेरी बुद्धि कैसे भ्रष्ट हो गई समझ नहीं आता...पर घर में साली मेरे सामने छोटी-छोटी कच्छियाँ पहन कर भी तो नहीं आई...ओह्ह फिर वही अनर्थ सोच...’जयसिंह बुरी तरह से विचलित हो उठे. तभी बाथरूम का दरवाज़ा खुला, जयसिंह की नज़र उनकी इजाजत के बिना ही उस ओर उठ गईं. इस बार आह निकलने की बारी जयसिंह की थी.

मनिका ने जैसे ही अपने अंतवस्त्र उठाए थे उसे एहसास हुआ कि उसके पास नहाने के बाद पहनने को ब्रा और पैंटी नहीं थी क्यूंकि वह रात में अंतवस्त्र नहीं पहना करती थी और घर पर तो वह अपने रूम में सोया करती थी, इसी के चलते वह सिर्फ अपनी नाईट-ड्रेस निकाल लाई थी. नाईट-ड्रेस का ख्याल आते ही मनिका पर एक और गाज गिरी थी और उसके मुहँ से वह आह निकल गई थी. मनिका नाईट-ड्रेस भी वही निकाल लाई थी जो वह अपने कमरे में पहना करती थी, शॉर्ट्स और टी-शर्ट. ऊपर से उसकी शॉर्ट्स भी कुछ ज्यादा ही छोटी थी (उसने वह एक हॉलीवुड फिल्म में हीरोइन को पहने देख खरीदी थी) और वे उसके नितम्बों को बमुश्किल ढंकती थी और तो और उसकी टी-शर्ट भी टी-शर्ट कम और गंजी ज्यादा थी जिसका कपड़ा भी बिलकुल झीना था. मनिका का दिल जोरों का धड़क रहा था. उसे एक पल के लिए कुछ समझ नहीं आया कि वह कैसे ऐसे कपड़ो में अपने पापा के सामने जाएगी.

कुछ पल इसी तरह जड़वत खड़ी रहने के बाद मनिका ने एक राहत भरी साँस ली, उसे ख्याल आया कि वह अपने पहले वाले कपड़े ही वापस पहन कर बाहर जा सकती है, हालाँकि उसके पास अंदर से पहनने के लिए अंतवस्त्र तो फिर भी नहीं थे. उसका दिल फिर भी कुछ शांत हुआ और वह अपनी लेग्गिंग्स और टी-शर्ट लेने के लिए मुड़ी, एक बार फिर उसका दिल धक् से रह गया. मनिका ने शावर से नहाते वक़्त कपड़े पास में ही टांग दिए थे और नहाते हुए मस्ती में उसने इतनी उछल-कूद मचाई थी कि उसकी लेग्गिंग्स और टी-शर्ट पूरी तरह से भीग चुकी थी. मनिका रुआंसी हो उठी. अब उसके पास कोई चारा नहीं बचा था सिवाय वह छोटी सी नाईट-ड्रेस पहन बाहर जाने के.

मनिका ने धड़कते दिल से अपनी शॉर्ट्स और टी-शर्ट पहनी और बाथरूम में लगे शीशे में देखा. उसकी साँसें और तेज़ चलने लगीं, उसे एहसास हुआ कि उसकी शॉर्ट्स छोटी नहीं बहुत छोटी थीं, उसके दोनों गोल-मटोल नितम्ब शॉर्ट्स के नीचे से बाहर निकले हुए थे, उसने शॉर्ट्स को खींच कर कुछ नीचे कर उन्हें ढंकने का प्रयास किया परन्तु वो कपड़ा ही थोड़ा स्ट्रेचेब्ल था और कुछ ही पल में फिर से खिंच कर ऊपर हो जस का तस हो गया. ऊपर पहनी गन्जी का भी वही हाल था. एक तो वह सिर्फ उसकी नाभी तक आती थी और दूसरा उसके झीने कपड़े में से उसका वक्ष उभर कर साफ़ दिखाई पड़ रहा था जिस पर उसके दोनों निप्पल बटन से प्रतीत हो रहे थे. मनिका का सिर घूम गया, वह अपने आप को ध्यान न रखने के लिए कोस रही थी. विडंबना की बात यह थी की उसकी माँ मधु ने भी उसे सुबह इसी बात के लिए टोका था.

किसी तरह मनिका ने बाहर निकलने की हिम्मत जुटाई और मन ही मन प्रार्थना की के उसके पिता सो चुके हों. लेकिन अभी वह बाहर निकलने को तैयार हुई ही थी कि उसके सामने एक और मुसीबत आ खड़ी हुई. उसने वहाँ धो कर रखे अपने अंतवस्त्र अभी तक नहीं उठाए थे, उनका ख्याल आते ही वह फिर उपह्पोह में फंस गई. अपनी थोंग-पैंटी और उसी से मेल खाती महीन सी ब्रा को सुखाने के लिए बाथरूम के आलावा उसके पास कोई जगह नहीं थी और बाथरूम वह अपने पिता के साथ शेयर कर रही थी, 'अगर पापा यह देख लेंगे तो पता नहीं क्या सोचेंगे...हाय...मैं भी कैसी गधी हूँ...पहले ये सब क्यूँ नहीं सोचा मैंने?' मगर अब क्या हो सकता था मनिका ने अपनी ब्रा-पैंटी वहाँ लगे एक तार पर डाली और उन्हें एक तौलिए से ढँक दिया.
जैसे ही जयसिंह ने अपनी नज़रें उठा कर बाथरूम से बाहर आई मनिका की तरफ देखा उनका कलेजा जैसे मुहँ में आ गया. काउच बाथरूम के गेट के बिलकुल सामने रखा हुआ था, बाहर निकलती मनिका उन्हें सामने बैठा देख ठिठक कर खड़ी हो गई और अपने हाथ अपनी छाती के सामने फोल्ड कर लिए, वह शर्म से मरी जा रही थी, उसने अपने-आप में सिमटते हुए अपना एक पैर दूसरे पैर पर रख लिया था और नज़रें नीची किए खड़ी रही.

जयसिंह के लिए यह सब मानो स्लो-मोशन में चल रहा था. मनिका को इस तरह अधनंगी देख उनकी अंतर्आत्मा की आवाज़ उड़नछू हो चुकी थी, उन्हें अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था. मनिका के पहने नाम मात्र के कपड़ों में से झलकते उसके जिस्म ने जयसिंह के दीमाग के फ्यूज उड़ा कर रख दिए थे. अब मनिका ने सकुचा कर अपने सूटकेस की तरफ कदम बढ़ाए, जयसिंह की तन्द्रा भी टूट चुकी थी. असल में यह सब एक पल में ही घट चुका था, जयसिंह को अब मनिका का अधो-भाग नज़र आ रहा था, उसकी शॉर्ट्स में से बाहर झांकते नितम्बों को देख उनके लंड की नसें फटने को हो आईं थी, 'ये मनिका तो साली मेनका निकली..’उन्होंने मन में सोचा. मगर इस सब के बावजूद भी उनका अपनी सोच पर पूरा काबू था, मनिका के हाव-भाव देखते ही वे समझ गए थे कि चाहे जो भी कारण हो मनिका ने ये कपड़े जान-बूझकर तो नहीं पहने थे, 'जिसका मतलब है कि वह अब कपड़े बदलने की कोशिश करेगी...ओह शिट ये मौका मैं हाथ से नहीं जाने दे सकता...’ जयसिंह ये सोचते ही उठ खड़े हुए और बाथरूम में घुसते हुए मनिका से बोले,
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