RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
मनिका एक पल के लिए थोड़ा चौंक गई थी पर जयसिंह की बात सुन वह भी मुस्कुरा दी, वे तो बस उसके इंटरव्यू के लिए उसका हौंसला बढ़ा रहे थे. मनिका ने आँखें बंद कर लीं, अगले सुबह के लिए उसके मन में उत्साह भी था और उसे इंटरव्यू के लिए थोड़ी चिंता भी हो रही थी, यही सोचते-सोचते उसकी आँख लग गई.
उन्हें सोए हुए करीब आधा घंटा हुआ था. जयसिंह ने धीरे से आँखें खोली, मनिका जयसिंह से दूसरी तरफ करवट लिए सो रही थी और उसकी पीठ उनकी तरफ थी. वे उठ बैठे, परन्तु मनिका पहली की भाँती ही सोती रही, उन्होंने हौले से मनिका के तन से कम्बल खींचा, मनिका ने फिर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, अब उन्होंने धीरे-धीरे कम्बल नीचे करते हुए मनिका को पूरी तरह उघाड़ दिया.
नाईट-लैंप की धीमी रौशनी में भी मनिका की पूरी तरह नंगी दूध सी सफ़ेद जांघें चमक रहीं थी, वह अपने पाँव थोड़ा मोड़ कर लेटी हुई थी जिससे उसकी शॉर्ट्स और थोड़ी ऊपर हो कर उसके नितम्बों के बीच की दरार में फँस गई थी. जयसिंह को तो जैसे अलीबाबा का खजाना मिल गया था. वे कुछ देर वैसे ही उसे निहारते रहे पर फिर उनसे रहा न गया. उन्होंने हाथ बढाया और मनिका की शॉर्ट्स हो खींच कर मनिका के गोल-मटोल कूल्हे लघभग पूरे ही बाहर निकल दिए और उसके एक कूल्हे पर हौले से चपत लगा दी. मनिका अभी भी बेखबर सोती रही, जयसिंह भी इस से ज्यादा हिमाकत न कर सके और अपनी बेटी की मोटी नंगी गांड को निहारते-निहारते कब उनकी आँख लग गई उन्हें पता भी न चला.
किसी के बोलने की आवाजें सुन मनिका की आँख खुली, सुबह हो चुकी थी, वह अभी भी उनींदी सी लेटी थी कि उसे कहीं दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ आई. अचानक मनिका को अपने दिल्ली के एक हॉटेल में अपने पिता के साथ होने की बात का एहसास हुआ, अगले ही पल उसे पिछली रात को पहने अपने कपड़े भी याद आ गए और साथ ही उन्हें सुबह जल्दी उठ कर बदलने का फैसला भी. मनिका की नींद एक पल में ही उड़ चुकी थी, उसने हाथ झटक कर रात को ओढ़े अपने कम्बल को टटोलने की कोशिश की, लेकिन कम्बल वहाँ नहीं था. अपने नंगेपन के एहसास ने मनिका को झकझोर के रख दिया, उसके बदन को जैसे लकवा मार गया था. धीरे-धीरे उसे अपने पहने कपड़ों की अस्त-व्यस्त स्थिति का अंदाजा होता चला जा रहा था, उसकी टी-शर्ट लघभग पूरी तरह से ऊपर हो रखी थी, गनीमत थी कि उसकी छाती अभी भी ढंकी हुई थी और उसके शॉर्ट्स उसके बम्स (नितम्ब) के बीच इकठ्ठे हो गए थे और उसके बम्स और थाईज़ (जांघें) पूरी तरह नंगे थे; उसे बेड पर बैठे उसके पिता जयसिंह की मौजूदगी का भी भान हुआ.
मनिका के हाथ झटकने के साथ ही जयसिंह अलर्ट हो गए थे. उसका मुहँ दूसरी तरफ था सो वे बेफिक्र उसका नंगा बदन ताड़ रहे थे, उन्होंने देखा की अचानक मनिका की नंगी टांगों और गांड पर दाने से उभर आए थे. उनका लंड जो पहले ही खड़ा था यह देखने के बाद बेकाबू हो गया, 'आह तो उठ ही गई रंडी.' उनका मन खिल उठा. असल में मनिका के जिस्म के रोंगटे खड़े हो गए थे और वे समझ गए की मनिका को अपने नंगेपन का एहसास हो चुका है. जयसिंह कब से उसके उठने का इंतज़ार कर रहे थे ताकि उसकी बदहवास प्रतिक्रिया देख सकें. उन्होंने देखा कि मनिका ने हौले से अपना हाथ अपनी नंगी गांड पर सरकाया था और वह अपनी शॉर्ट्स को नीचे कर अपने नंगे नितम्बों को ढंकने की कोशिश कर रही थी, इतना तो उनके लिए काफी था,
'उठ गई मनिका?' वे बोल पड़े.
मनिका को जैसे बिजली का झटका लगा था, वह एकदम से उठ बैठी और शर्म भरी नज़रों से एक पल अपने पिता की तरफ देखा.
जयसिंह बेड पर बैठे थे, उनके एक हाथ में चाय का कप था और दूसरे से उन्होंने उस दिन का अखबार खोल रखा था. उनकी नज़रें मिली, जयसिंह के चेहरे पर मुस्कुराहट थी. मनिका एक पल से ज्यादा उनसे नज़रें मिलाए न रख सकी.
'नींद खुल गई या अभी और सोना है?' जयसिंह ने प्यार भरे लहजे में मनिका से फिर पूछा.
'नहीं पापा...' मनिका ने धीमे से कहा.
'अच्छे से नींद आ तो गई थी न? कभी-कभी नई जगह पर नींद नहीं आया करती.' जयसिंह उसी लहजे में बात करते रहे जैसे उन्हें मनिका की बहुत फ़िक्र थी.
'नहीं पापा आ गई थी.' मनिका सकुचाते हुए बोली और एक नज़र उनकी ओर देखा. उसने पाया की उनका ध्यान तो अखबार में लगा था. 'आप अभी किस से बात कर रहे थे?' मनिका ने थोड़ी हिम्मत कर पूछा.
'अरे तुम उठी हुई थीं तब?' जयसिंह ने अनजान बनते हुए कहा, 'रूम-सर्विस से चाय ऑर्डर की थी वही लेकर आया था लड़का. तुम कुछ बोली ही नहीं तो मुझे लगा नींद में हो नहीं तो तुम्हारे लिए भी कुछ जूस-वूस ऑर्डर कर देते साथ के साथ, जस्ट अभी-अभी ही तो गया है वो.' उन्होंने आगे बताया.
मनिका का चेहरा शर्म से लाल टमाटर सा हो चुका था, 'ओह गॉड, ओह गॉड, ओह गॉड...रूम-सर्विस वाले ने भी मुझे इस तरह नंगी पड़े देख लिया...हे भगवान् उसने क्या सोचा होगा..? पर पापा ने रूम बुक कराते हुए बताया तो होगा कि हम बाप-बेटी हैं...लेकिन ये बात रूम-सर्विस वाले को क्या पता होगी...ओह शिट...और मेरा कम्बल भी...’ मनिका ने देखा कि कम्बल उसके पैरों के पास पड़ा था, 'नींद में मैंने कम्बल भी हटा दिया...शिट.' उसने एक बार फिर जयसिंह को नजरें चुरा कर देखा, उनका ध्यान अभी भी अखबार में ही लगा था. मनिका के विचलित मन में एक पल के लिए विचार आया, 'क्या पापा ने मेरा कम्बल...? ओह गॉड नहीं ये मैं क्या सोच रही हूँ पापा ऐसा थोड़े ही करेंगे. मैंने ऐसी गन्दी बात सोच भी कैसे ली...छि.' लेकिन उस विचार के पूरा होने से पहले ही मनिका ने अपने आप को धिक्कार शर्मिंदगी से सिर झुका लिया था.
अब मनिका अपनी इस एम्बैरेसिंग सिचुएशन से निकलने की राह ढूंढने लगी, 'जब तक पापा का ध्यान न्यूज़पेपर में लगा है. मैं जल्दी से उठ कर बाथरूम में घुस सकती हूँ...पर अगर पापा ने मेरी तरफ देख लिया तो..? ये मुयी शॉर्ट्स भी पूरी तरह से ऊपर हो गईं है.' मनिका कुछ देर इसी उधेड़बुन में बैठी रही पर उसे और कोई उपाय नहीं सूझ रहा था. सो आखिर उसने धीरे से जयसिंह को संबोधित किया,
'पापा?'
'हूँ?' जयसिंह ने भी डिसइंट्रेस्टेड सी प्रतिक्रिया दी और मनिका की आँखों में आँखें डाल उसके आगे बोलने का इंतज़ार करने लगे.
'वो मैं...मैं कह रही थी कि मैं एक बार बाथ ले लेती हूँ फिर कुछ ऑर्डर कर देंगे.' मनिका अटकते हुए बोली.
'ओके. जैसी आपकी इच्छा.' जयसिंह ने शरारती मुस्कुराहट के साथ कहा.
'हेहे पापा.' मनिका भी थोड़ा झेंप के हँस दी. जयसिंह फिर से अखबार पढ़ने में तल्लीन हो गए थे.
मनिका धीरे से बिस्तर से उतर कर अपने सामान की ओर बढ़ी. उसका दिल ज़ोरों से धड़क रहा था, 'क्या पापा ने पीछे से मेरी तरफ देखा होगा?' यह सोच उसके बदन में जैसे बुखार सा आ गया और वह थोड़ा लड़खड़ा उठी. उसने अपना सूटकेस खोला और एक जीन्स और टॉप-निकाल लिया, उसने एक जोड़ी ब्रा-पैंटी भी निकाल कर उनके बीच यह सोच रख ली कि 'क्या पता रात वाले अंडरगारमेंट्स सूखे होंगे कि नहीं?' जब वह अपनी सभी चीज़ें ले चुकी थी तो उसने कनखियों से एक बार जयसिंह की तरफ नज़र दौडाई, वे अभी भी अखबार ही पढ़ रहे थे. मनिका तेज़ क़दमों से चलती हुई बाथरूम में जा घुसी.
मनिका के बाथरूम में घुसने तक जयसिंह अपनी पूरी इच्छाशक्ति से अखबार में नज़र गड़ाए बैठे रहे थे. उसके जाते ही उन्होंने अखबार एक ओर फेंका और अपने कसमसाते लंड को, जो की आजकल हर वक्त खड़ा ही रहता था, दबा कर एक बार फिर काबू में लाने की कोशिश करने लगे, 'हे भगवान् जाने कब शांति मिलेगी मेरे इस बेचारे औजार को...’जयसिंह ने तड़प कर आह भरी. 'आज उस रांड का इंटरव्यू भी है और अभी साली नहाने गई है पता नहीं आज क्या रूप धर के बाहर निकलेगी...ओह इंटरव्यू से याद आया साली कुतिया के कॉलेज फ़ोन कर अपॉइंटमेंट भी तो लेनी है.' सो जयसिंह ने पास पड़े अपने मोबाइल से मनिका के कॉलेज का नंबर डायल किया.
'हैल्लो?' जयसिंह ने फोन उठाने की आवाज़ सुन कहा 'एमिटी यूनिवर्सिटी?'
'येस सर, गुड मॉर्निंग.' सामने से आवाज़ आई.
'येस, सो आई वास् कॉलिंग टू मेक एन अपॉइंटमेंट फॉर माय डॉटर फॉर एडमिशन इन द एम्.बी.ए. कोर्स.' जयसिंह ने कहा.
'ओके सर, मे आई क्नॉ हर नेम प्लीज़?'
'येस...अह...मनिका सिंह.'
'थैंक्यू सर. सो व्हेन वुड यॉर डॉटर बी एबल टू कम फॉर द इंटरव्यू?'
जयसिंह कुछ समझे नहीं, इंटरव्यू तो आज ही था न?, 'व्हॉट डू यू मीन?' उन्होंने पूछा.
'वेल सर, इंटरव्यूज नेक्स्ट 15 डेज तक चलेंगें सो योर डॉटर कैन गेट एन अपॉइंटमेंट फॉर एनी ऑफ़ द डेज, जैसा उनको कॉन्वेनिएन्ट लगे.'
'ओह.' जयसिंह का मन यह सुन नाच उठा था. उन्होंने मन ही मन अपनी किस्मत को धन्यवाद दिया और बोले, 'तो आप ऐसा करो हमें लास्ट डे की ही अपॉइंटमेंट दे दो. मेरी डॉटर कह रही है कि उसे अभी थोड़ा और प्रिपरेशन करना है...हेहे.'
'स्युर सर कोई प्रॉब्लम नहीं है.'
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