RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
उधर बाथरूम में मनिका के मन में अलग ही उथल-पुथल मची हुई थी, 'ये कैसा अनर्थ हो गया. सोचा था सवेरे जल्दी उठ जाऊँगी पर आँख ही नहीं खुली, ऊपर से पापा और उठे हुए थे...वे तो वैसे भी रोज जल्दी ही उठ जाते हैं...शिट मैं ये जानते हुए भी पता नहीं कैसे भूल गई?..उन्होंने मुझे सोते हुए देखा तो होगा ही, हाय राम...’यह सोचते हुए मनिका की कंपकंपी छूट गई. मनिका ने आज शावर ऑन नहीं किया था और बाथटब में बैठ कर नहा रही थी, 'और तो और वह रूम-सर्विस वाला वेटर भी मुझे इस तरह आधी से ज्यादा नंगी देख गया...हाय...और पापा मेरे पास बैठे थे...क्या सोचा होगा उसने हमारे बारे में..?’मनिका इस से आगे नहीं सोच पाई और अपनी आँखें भींच ली. उसे बहुत बुरा फील हो रहा था. अब वह धीरे-धीरे अपने बदन पर साबुन लगा नहाने लगी. परंतु कुछ क्षणों में ही उसके विचारों की धार एक बार फिर से बहने लगी, 'पर पापा ने मुझे इस तरह देख कर भी रिएक्ट नहीं किया...वो तो बिलकुल नॉर्मली बिहेव कर रहे हैं...पर बेचारे कहें भी तो क्या, मैं उनकी बेटी हूँ, मुझे ऐसे देख कर शायद उन्हें भी शर्म आ रही हो...हाँ तभी तो वे मेरी तरफ न देख अखबार में नज़र गड़ाए बैठे थे...और जब मैंने उनसे बात करी थी तो उन्होंने सिर्फ मेरे चेहरे पर ही अपनी आँखें फोकस कर रखीं थी...हाय...ही इज़ सो नाइस.' मनिका ने मन ही मन जयसिंह की सराहना करते हुए सोचा. 'ये तो पापा हैं जो मुझे कुछ नहीं कहते...अगर मम्मी को पता चल जाए इस बात का तो...तूफ़ान खड़ा कर दें वो तो...थैंक गॉड इट्स ओनली मी एंड पापा...अब से मैं जब तक पापा के साथ हूँ अपने रहने-पहनने का पूरा ख्याल रखूँगी.' मनिका ने सोचा और उठ खड़ी हुई, वह नहा चुकी थी.
जब मनिका नहा कर निकली तो जयसिंह को अभी भी बेड पर ही बैठे पाया, इस बार मनिका पूरे कपड़ों में थी और उसने बाथरूम में से अपने अंतःवस्त्र भी ले लिए थे. उसे देख जयसिंह मुस्कुराए और बेड से उठते हुए बोले,
'नहा ली मनिका?'
'जी पापा.' मनिका ने हौले से मुस्का कर कहा. पूरे कपड़े पहने होने की वजह से उसका आत्मविश्वास लौटने लगा था.
'तो फिर अब मुझे यह बताओ कि तुम्हारे इंटरव्यू के कॉल लैटर में क्या लिखा हुआ था?' जयसिंह ने पूछा.
मनिका उनके सवाल से थोड़ा कंफ्यूज हो गई,
'क्यूँ पापा? उसमें तो बस यही लिखा था कि इंटरव्यूज फॉर एम.बी.ए. कोर्स बिगिन्स फ्रॉम...’ मनिका बोल ही रही थी कि जयसिंह ने उसकी बात बीच में ही काट दी,
'मतलब उसमें लिखा था -बिगिन्स फ्रॉम- ना की -ऑन- दिस डेट? क्यूंकि अभी मैंने तुम्हारे कॉलेज से अपॉइंटमेंट के लिए बात करी थी और उन्होंने कहा है कि इंटरव्यू पन्द्रह दिन चलेंगे और गेस व्हाट? आपका इंटरव्यू लास्ट डे को है.' जयसिंह ने मनिका से नज़र मिलाई.
'ओह शिट.' मनिका ने साँस भरी.
'हाँ वही.' जयसिंह मुस्कुरा कर बोले.
'पापा! आपको मजाक सूझ रहा है, अब मतलब हमें फिफ्टीन डेज के बाद फिर से आना पड़ेगा.' मनिका सीरियस होते हुए बोली 'हमने फ़ालतू इतना खर्चा भी कर दिया है...रुकिए मैं कॉलेज फ़ोन करके पूछती हूँ कि क्या वो मेरा इंटरव्यू पहले अरेंज कर सकते हैं.'
'मैं वो भी पूछ चुका हूँ और उन्होंने कहा है कि इट्स नॉट पॉसिबल.' जयसिंह ने कहा.
'ओह.' मनिका का मूड पूरा ऑफ़ हो गया था 'तो अब हमें वापस ही जाना पड़ेगा मतलब.'
'हाँ वो भी कर सकते हैं.' जयसिंह ने उसे स्माइल दी 'या फिर...' और इतना कह कर बात अधूरी छोड़ दी.
'हैं? क्या बोल रहे हो पापा आप..? मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा.' जयसिंह की गोल-गोल बातों से मनिका की कंफ्यूजन बढ़ गई थी.
'अरे भई या फिर हम यहीं तुम्हारा इंटरव्यू हो जाने तक वेट कर सकते हैं.' जयसिंह ने कहा.
मनिका जयसिंह का सुझाव सुन एक बार तो आश्चर्यचकित रह गई थी उसे विश्वास नहीं हुआ की उसके पापा उसे अगले पंद्रह दिन के लिए वहीँ, मेरियट में, रुके रहने को कह रहे थे, जहाँ के रूम का रेंट सुन कर ही पिछली रात उसके होश उड़ गए थे. जब उसने अपनी दुविधा जयसिंह को बताई तो एक बार फिर जयसिंह बोले,
'अरे भई कितनी बार समझाना पड़ेगा कि पैसे की चिंता न किया करो तुम. हाथ का मैल है पैसा...' जयसिंह डायलाग मार हँस दिए थे.
'ओहो पापा...फिर भी...' मनिका ने असमंजस से कहा.
लेकिन अंत में जीत जयसिंह की ही हुई, आखिर मन में तो मनिका भी रुकना चाहती ही थी और जब जयसिंह ने उस से कहा कि इतने दिन वे दिल्ली में घूम-फिर लेंगे तो मनिका की रही-सही आनाकानी भी जाती रही थी.
'लेकिन पापा! घर पे तो हम दो दिन का ही बोल कर आए हैं ना?' मनिका ने फिर थोड़ा आशंकित हो कर पूछा 'और आपका ऑफिस भी तो है?'
'ओह हाँ! मैं तो भूल ही गया था. तुम अपनी मम्मी से ना कह देना कहीं कि हम यहाँ घूमने के लिए रुक रहे हैं...मरवा दोगी मुझे, वैसे ही वो मुझ पर तुम्हें बिगाड़ने का इलज़ाम लगाती रहती है.' जयसिंह ने मनिका को एक शरारत भरी स्माइल दी.
'ओह पापा हाँ ये तो मैंने सोचा ही नहीं था.' मनिका ने माथे पर हाथ रख कहा. फिर उसने भी शरारती लहजे में जयसिंह को छेड़ते हुए कहा, 'इसका मतलब डरते हो मम्मी से आप, है ना? हाहाहा...'
'हाहा.' जयसिंह भी हँस दिए 'लेकिन ये मत भूलो की यह सब मैं तुम्हारे लिए कर रहा हूँ.' वे बोले.
'ओह पापा आप कितने अच्छे हो.' मनिका ने मुस्कुरा कर अपनी भावनाएं व्यक्त कीं 'पर आपका ऑफिस?'
'अरे ऑफिस का मालिक तो मैं ही हूँ. फ़ोन कर दूंगा माथुर को, वो संभाल लेगा सब.'
'पापा?' मनिका उनके करीब आते हुए बोली.
'अब क्या?' जयसिंह ने बनते हुए पूछा.
'पापा आई लव यू सो मच. यू आर द बेस्ट.' मनिका ने स्नेह भरी नज़रों से उन्हें देख कर कहा.
जयसिंह पिछली रात की तरह ही एक बार फिर मनिका के गाल पर हाथ रख सहलाने लगे और उसे अपने थोड़ा और करीब ले आए. मनिका उन्हें देख कर मंद-मंद मुस्का रही थी, जयसिंह ने आँखों में चमक ला कर कहा,
'वो तो मैं हूँ ही...हाहाहा.' और ठहाका लगा हँस दिए.
'पापा! यू आर सो नॉटी...’मनिका भी खिलखिला कर हँस दी थी. जयसिंह ने अब उसे अपने बाजू में लेकर अपने से सटा लिया और बोले,
'तो फिर हम कहाँ घूमने चलें बताओ?'
जयसिंह के पास अब पंद्रह दिन की मोहलत थी. अभी तक तो उनकी किस्मत ने उनका काफी साथ दिया था, जाने-अनजाने मनिका ने कुछ ऐसी गलतियाँ कर दीं थी जिनका जयसिंह ने पूरा फायदा उठाया था. मनिका के पिछली रात हुए वार्डरॉब मॉलफंक्शन को देख उन्होंने जो संयम से काम लिया था उससे उन्होंने उसे यह जाता दिया था कि वे एक जेंटलमैन हैं जो उसका हरदम ख्याल रखता है, वे न सिर्फ उसका भरोसा जीतने में कामयाब रहे थे बल्कि उसे यह भी जाता दिया था कि वे बहुत खुले विचारों के भी हैं. मनिका को अपनी माँ से उनके दिल्ली रुकने की असली वजह न बताने को कह उन्होंने अपने प्लान की एक और सोची-समझी साजिश को अंजाम दे दिया था, लेकिन वे ये भी जानते थे कि अभी तक जो हुआ उसमें उनकी चालाकी से ज्यादा मनिका की नासमझी का ज्यादा हाथ था और जयसिंह उन लोगों में से नहीं थे जो थोड़ी सी सफलता पाते ही हवा में उड़ने लगते हैं और इसी वजह से जल्द ही ज़मीन पर भी आ गिरते हैं. उनकी अग्निपरीक्षा की तो बस अभी शुरूआत हुई थी.
जयसिंह ने हॉटेल के रिसेप्शन पर फ़ोन करके एक कैब बुक करवा ली और मनिका से बोले कि,
'मैं भी नहा के रेडी हो जाता हूँ तब तक तुम रूम-सर्विस से कुछ ब्रेकफास्ट ऑर्डर कर दो.' 'जी पापा.' मनिका ख़ुशी-ख़ुशी बोली.
मनिका ने फ़ोन के पास रखा मेन्यु उठाया और ब्रेकफास्ट के लिए लिखे आइटम्स देखने लगी. कुछ देर देखने के बाद उसने अपने लिए एक चोको-चिप्स शेक और जयसिंह से पूछ कर उनके लिए फिर से चाय व साथ में ग्रिल्ड-सैंडविच का ऑर्डर किया, जयसिंह तब तक नहाने चले गए थे. मनिका टी.वी ऑन कर बैठ गई और रूम-सर्विस के आने का इंतज़ार करने लगी.
मनिका ने टी.वी चला तो लिया था लेकिन उसका ध्यान उसमें नहीं था और वह बस बैठी हुई चैनल बदल रही थी, 'ओह कितना एक्साइटिंग है ये सब, हम यहाँ फिफ्टीन डेज और रुकने वाले हैं, फिफ्टीन डेज! और पापा ने घर पर क्या बहाना बनाया था...कि मेरा इंटरव्यू थ्री राउंड्स में होगा सो उसमें टाइम लग जाएगा...कैसे झूठे हैं ना पापा भी...और मम्मी बेफकूफ मान भी गई, हाहाहा...लेकिन बेचारे पापा भी क्या करें मम्मी की बड़-बड़ से बचने के लिए झूठ बोल देते हैं बस. उन्होंने कहा कि वे मुझे यहाँ घुमाने के लिए रुक रहें है...ओह पापा...’सोचते-सोचते मनिका के चेहरे पर मुस्कान तैर गई. तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई, उनका ब्रेकफास्ट आ गया था.
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