Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
01-02-2020, 12:40 PM,
#10
RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
मनिका ने उठ कर दरवाज़ा खोला, सामने रूम-सर्विस वाला वेटर एक फ़ूड-ट्राली लिए खड़ा था,

'योर ऑर्डर मैम.' उसने अदब से मुस्कुरा कर कहा.

मनिका एक तरफ हट गई और वह ट्राली को धकेलता हुआ अन्दर आ गया. मनिका ने उसके पीछे से आते हुए कहा,

'लीव इट हेयर ओनली, वी विल मैनेज.'

'येस मैम.' लड़के ने इधर-उधर नज़र घुमा कर कहा. वह मनिका को देख मुस्कुरा रहा था, मनिका ने भी उसे एक हल्की सी स्माइल दे दी. लेकिन वह फिर भी वहीँ खड़ा रहा.

मनिका को समझ आ गया कि वो टिप लेने के लिए खड़ा है. उसे बेड-साइड पर रखा जयसिंह का पर्स नज़र आया, वो गई और पर्स से पाँच सौ रूपए निकाल कर वेटर की तरफ बढ़ा दिए. लेकिन वेटर ने नोट न लेते हुए कहा,

'ओह नो मैम थैंक-यू वैरी मच. आई ऑलरेडी एंजोएड माय टिप दिस मॉर्निंग, इट वास् अ प्लेज़र.' और एक कुटिल मुस्कान बिखेर दी.

मनिका उसका आशय समझते ही शर्म से लाल हो गई, ये वही वेटर था जो सुबह जयसिंह को चाय देने आया था जब वह उनकी बगल में अधनंगी पड़ी हुई थी. वेटर के जाने की आहट होने के कुछ देर बाद तक भी मनिका की नज़र उठाने की हिम्मत नहीं हुई थी. कुछ पल बाद वह जा कर बेड पर बैठ गई. 'कैसा कमीना था वो वेटर...हाय, साला कैसी गन्दी हँसी हँस रहा था, कुत्ता.' मनिका ने उस वेटर की हरकत पर गुस्सा करते हुए सोचा 'ओह गॉड कितना एम्बैरेसिंग है ये...ये आदमी सब गन्दी सोच के ही होते हैं...नहीं-नहीं पर मेरे पापा वैसे नहीं है. कितने कूल हैं वो...उन्होंने एक बार भी नज़र उठा कर नहीं देखा मेरी तरफ और एक ये वेटर था जो...थैंक गॉड मुझे इतने अच्छे पापा मिले हैं.' उसका यह सोचना हुआ कि जयसिंह भी नहा कर निकल आए.

'हेय पापा!' मनिका उन्हें देख प्यार से बोली, वह उन्हीं के बारे में सोच रही थी इसिलिए उन्हें देख उसके मुहँ से उसके मन की बात निकल आई थी.

'हैल्लो मनिका.' जयसिंह ने भी उसी अंदाज़ में कहा 'आ गया खाना?' उनकी नज़र फ़ूड-ट्राली पर पड़ी.

'हाँ पापा.' मनिका उस वेटर की याद को मन से झटककर बोली.

'तुमने कर लिया ब्रेकफास्ट?' उन्होंने पूछा.

'नो पापा आपके बिना कैसे कर सकती हूँ.' मनिका ने मुहँ बनाते हुए कहा.

'जैसे हर काम तुम मेरे साथ ही करती हो...' जयसिंह के मुहँ से अचानक फूट निकला था, अपने बोलने के साथ ही उन्हें अपनी गलती का एहसास हो गया था और वे रुक गए.

'पापा! ऐसे क्यों बोल रहे हो आप?' मनिका ने हैरत से पूछा. जयसिंह अब तक संभल चुके थे और उन्होंने माफ़ी मांगने में ही अपनी भलाई समझी.

'ओह मनिका सॉरी...मेरा मतलब तुम्हें हर्ट करने का नहीं था. मजाक कर रहा था भई.'

'क्या पापा आप भी हर वक़्त मेरी लेग-पुल करते रहते हो.' मनिका ने मुहँ बनाया 'एंड डोंट से सॉरी ओके.' उसने अब मुस्का कर कहा. जयसिंह की किस्मत ने फिर उन्हें एक मुश्किल घड़ी से बचा लिया था.

जयसिंह और मनिका ने साथ में नाश्ता किया और फिर नीचे हॉटेल की लॉबी में आ गए. जयसिंह ने रिसेप्शन पर जा कर अपनी बुक की हुई कैब मंगवाई और फिर मनिका को साथ लेकर हॉटेल की ड्राइव-वे में जा पहुँचे. उनके पहुँचने के साथ ही उनकी कैब भी आ गई, ड्राईवर ने उतर कर उनके लिए पीछे का दरवाज़ा खोला और झुक कर उन्हें सलाम किया. जयसिंह ने मनिका की तरफ मुस्कुरा कर देखा और उसे कार में बैठने का इशारा किया. मनिका की आँखों में ख़ुशी और उत्साह चमक रहा था.

'पापा...ईईई...' मनिका जयसिंह के साथ पीछे की सीट पर बैठी थी, वह उनके पास खिसकते हुए फुसफुसाई 'बी.एम.डब्ल्यू!' जयसिंह ने कैब के लिए बी.एम.डब्ल्यू बुक कराइ थी.

वैसे तो जयसिंह के पास भी बाड़मेर में स्कोडा थी लेकिन मनिका के उत्साह का कोई ठिकाना नहीं था.
'हाहाहा...' जयसिंह हलके से हँस दिए.

'पापा मेरी फ्रेंड्स तो जल-भुन मरेंगी जब मैं उन्हें इस ट्रिप के बारे में बताउंगी.' मनिका खुश होते हुए बोली.
'अभी तो बहुत कुछ बाकी है मनिका...' जयसिंह ने रहस्यमई अंदाज़ में कहा, इस बार वे आश्वस्त थे की मनिका को उनकी बात नहीं खटकेगी.

'हीहीही...’ मनिका उनके कंधे पर सिर रख खिलखिलाई.

जयसिंह ने कैब के ड्राईवर से उन्हें साईट-सीइंग के लिए लेकर चलने को कहा था. ड्राईवर ने उस दिन उन्हें दिल्ली की कुछ मशहूर इमारतों की सैर कराई, बीच में वे लोग लंच के लिए एक पॉश-रेस्टोरेंट में भी गए. मनिका ने अपने मोबाइल से ढेर सारी फोटो क्लिक करीं थीं;जिनमे वह और जयसिंह अलग-अलग जगहों पर पोज़ कर रहे थे. वे लोग रात ढलते-ढलते वापिस मेरियट पहुँचे, जयसिंह ऊपर रूम में जाने से पहले रिसेप्शन पर अगले दो हफ्ते के लिए अपने लिए कैब की बुकिंग करने को बोलकर गए थे.

जब मनिका और जयसिंह पूरे दिन के सैर-सपाटे के बाद थके-हारे अपने रूम में पहुँचे तो उन्होंने रूम में ही डिनर ऑर्डर किया और एक-एक कर नहाने घुस गए. जब जयसिंह नहाने घुसे हुए थे तभी एक बार फिर से रूम-सर्विस आ गई थी, मनिका ने धड़कते दिल से दरवाज़ा खोला था लेकिन इस बार सुबह वाला वेटर ऑर्डर लेकर नहीं आया था. मनिका ने एक राहत की साँस ली थी और उसे टिप देकर चलता कर दिया था.

उस रात जब मनिका नहा कर निकली तो जयसिंह को कुछ भी देखने को नहीं मिला, आज उसने पायजामा-टी-शर्ट पहन रखे थे जिनसे उसका बदन अच्छे से ढंका हुआ था. डिनर कर वे दोनों बिस्तर में घुस गए और कुछ देर दिल्ली में साथ बिताए अपने पहले दिन की बातें करते हुए सो गए.

जयसिंह और मनिका के अगले तीन दिन इसी तरह घूमने-फिरने में निकल गए. इस दौरान जयसिंह ने पूरे धैर्य के साथ मनिका के मन में सेंध लगाना जारी रखा, वे उसे अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों से बहलाते-हँसाते रहते थे और उसकी तारीफ करने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे. एक-दो बार उन्होंने उसे अपनी माँ से उनके इस घूमने-फिरने का जिक्र न करने को भी कह दिया था जिस पर मनिका ने हर बार उन्हें यही कहा था कि क्या उन्हें उस पर भरोसा नहीं है. दूसरा दिन ख़त्म होते-होते जयसिंह को अपनी मेहनत का पहला फल भी मिल गया; जब वे शाम को क्नॉट-प्लेस में घूम रहे थे तो उन्होंने वहाँ आए लड़के-लड़कियों के जोड़ों को एक दूसरे की बाहँ में बाहँ डाल घूमते देखा था; उस रात वे हॉटेल पहुँचे तो लॉबी में थोड़ी भीड़ थी, कोई बिज़नस-डेलीगेशन आया हुआ था, सो मनिका जयसिंह के थोड़ा करीब होकर चल रही थी. जब वे एलीवेटर के पास पहुँचे तो वहाँ पहले से ही कुछ लोग खड़े थे, जयसिंह और मनिका खड़े हो कर अपनी बारी का वेट करने लगे, तभी जयसिंह को अपनी बाहँ पर किसी के हाथ का एहसास हुआ, उन्होंने अपना सिर घुमा कर देखा तो पाया कि मनिका ने अपनी बाहँ उनकी बाहँ में डाल उनका सहारा ले रखा था (जयसिंह ने सहानुभूति दिखाते हुए उस से पूछा था कि क्या वह बहुत ज्यादा थक गई है तो मनिका ने धीरे से न में सिर हिलाया था). अगले दिन जब वे घूमने निकले तो मनिका ने कैब से उतरते ही उनकी बाहँ थाम ली थी. उसके इस छोटे से जेस्चर से जयसिंह के मन में लडडू फूट पड़े थे.

मनिका और जयसिंह अपने दिल्ली भ्रमण के पाँचवें दिन की शाम अपने हॉटेल लौटे थे. आज वे दिल्ली का पुराना किला देख कर आए थे. पिछले दो दिनों से हॉटेल की लॉबी से होकर उनके रूम तक जाते हुए भी मनिका उनके बाजू में उनकी बाहँ थामे चलती थी. पर आज जयसिंह कुछ ज्यादा ही उत्साहित थे. हुआ यूँ था कि, रोज़ जब वे घूमने निकलते थे तो आस-पास आए दूसरे पर्यटकों या लोगों को अपना मोबाइल दे कर एक-दूसरे के साथ अपना फोटो खिंचवा लेते थे, आज पुराने किले के सुनसान गलियारों में उन्हें ज्यादा लोग नहीं मिले थे और एक जगह जब मनिका ने फोटो लेने के लिए मोबाइल निकाला तो उनके आस-पास कोई भी न था. जयसिंह ने उसका फोटो क्लिक कर दिया था और फिर उसने उनसे भी पोज़ करने को कह उनकी फोटो ले ली थी.

'क्या पापा...यहाँ तो कोई है ही नहीं जो अपना साथ में फोटो ले दे. कितनी ब्यूटीफुल जगह है ये...और डरावनी भी.' मनिका ने जयसिंह के पास बैठते हुए कहा था. जयसिंह एक पुराने खंडहर की दीवार पर बैठे थे.

'अरे तो तुम फ्रंट-कैमरा ऑन कर लो न.' जयसिंह ने सुझाया था.

'हाँ पर पापा उसकी फोटो इतनी साफ़ नहीं आती.' मनिका ने खेद जताया.

'देखो फोटो न होने से तो फोटो होनी बेहतर ही होगी चाहे साफ हो या नहीं. अब यहाँ तो दूर-दूर तक कोई नज़र भी नहीं आ रहा.' जयसिंह मुस्कुरा कर बोले थे, मनिका ने उनके पास बैठ उनकी बाहँ जो थाम ली थी.

'हाँ पापा...आप भी कभी-कभी फुल-ऑन ज्ञानी बाबा बन जाते हो बाय-गॉड.' मनिका ने हँस कर कहा था और अपने मोबाइल का फ्रंट-कैमरा ऑन कर जयसिंह के साथ फोटो लेने लगी.

जब कुछ देर वह कशमकश में लगी रही तो जयसिंह ने मनिका से पूछा था कि अब वह क्या करने की कोशिश कर रही है? तो उसने बताया कि कैमरे के फ्रेम में वे दोनों अच्छे से नहीं आ रहे थे. जयसिंह और मनिका कुछ देर तक अपनी पोजीशन अडजस्ट कर फोटो लेने का प्रयास करते रहे,, पर जब बात नहीं बनी थी तो जयसिंह ने थोड़ी सतर्कता से मनिका को सुझाव दिया,

'ऐसे तो खिंच गई हम से तुम्हारी फोटो...व्हाए डोंट यू कम एंड सिट इन माय लैप.' उनके दिल की धड़कन मनिका की प्रतिक्रिया के बारे में सोच बढ़ गई थी 'इस तरह कैमरा में हम दोनों फिट हो जाएंगे.' मनिका के हाथों-हाथ जवाब नहीं देने पर उन्होंने आगे कहा था.

'ओह ओके पापा.' मनिका ने एक पल रुक कर कहा था. मनिका जयसिंह के साथ से वैसे तो बहुत खुश थी लेकिन दिल्ली आने से पहले कभी उसने उनके साथ इतनी आत्मीयता भरा वक्त नहीं बिताया था सो वह बस एक छोटे से पल के लिए ठिठक गई थी.

जयसिंह मनिका के जवान बदन को अपनी गोद में पा कर उत्तेजना और उत्साह से भर उठे थे, उन्होंने एक हाथ अपनी जांघ पर बैठी मनिका के कंधे पर रख रखा था, उसके कसे हुए बदन को अपने इतने करीब पा उनके लंड ने भी सिर उठाना शुरू कर दिया था. उधर मनिका को उनके कपट का अंदाजा तक नहीं था.

फोटो बुरी नहीं आई थी, आउटडोर एनवायरमेंट होने की वजह से फ्रंट-कैमरे से भी फोटो साफ़ खिंच गई थी. उसके बाद तो जैसे जयसिंह की लॉटरी निकल गई, उन्होंने वहाँ काफी सारी सेल्फी-पिक्स खींची. बाद में जब वे एक थीम-रेस्टोरेंट में लंच करने गए थे तो वहाँ आस-आस लोगों के होने के बावजूद मनिका ने अपने-आप उठकर उनकी गोद में बैठ एक फोटो खींची थी.

सो उस दिन शाम को जयसिंह बहुत अच्छे मूड में हॉटेल लौटे थे, पिछले पाँच दिनों में वे मनिका का काफी भरोसा और आत्मीयता प्राप्त करने में कामयाब रहे थे. ऊपर से उनके द्वारा खुले हाथ किए जा रहे खर्च ने भी मनिका की उनकी कही अटपटी बातों, जो वह शायद अपने अंतर्मन में कहीं महसूस करती थी, को नज़रंदाज़ कर देने की प्रवृति को बढ़ावा दिया था.

उस पहली रात के बाद जयसिंह ने रात में सोती हुई मनिका को छूने की कोशिश अभी तक दोबारा नहीं करी थी. अब पूरे-पूरे कपड़े पहनने के बाद मनिका भी कम्बल लेकर नहीं सोती थी. पर उस रात जब वे सोने गए तो पूरे दिन की उत्तेजना से भरे जयसिंह अपने आप को रोक न सके. जब उन्हें लगा कि मनिका सो चुकी है तो उन्होंने धीरे से करवट ले अपना चेहरा उसकी तरफ किया, मनिका की करवट भी उनकी ओर थी. सोती हुई मनिका को निहारते हुए जयसिंह के लौड़े में तनाव बढ़ना शुरू हो गया था. मनिका का खूबसूरत चेहरा उनकी बेचैनी बढ़ाने लगा, धीमी रौशनी में मनिका के दमकते गोरे-चिट्टे चेहरे पर उसके मोटे-मोटे गुलाबी होंठ रस से भरे प्रतीत हो रहे थे, 'मनिका?', जयसिंह ने धीरे से कहा पर मनिका गहरी नींद में थी. उन्होंने हौले से अपना हाथ ले जा कर उन दोनों के बीच रखे उसके हाथ पर रखा, कुछ पल जब फिर भी मनिका ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो जयसिंह ने उसके हाथ को हल्का-हल्का सहलाना शुरू कर उसकी निंद्रा की गहराई का अंदाज़ा लेने की कोशिश की, मनिका सोती रही.

अब जयसिंह थोड़े आश्वस्त हो गए थे, वे सरक कर मनिका के थोड़ा करीब आ गए और अपना हाथ अपनी सोती हुई बेटी की पतली कमर पर रख लिया. वे अपने हर एक्शन के बाद दो-चार पल रुक जाते थे ताकि मनिका के उठ जाने की स्थिति में जल्दी से पीछे हट सकें. उन्होंने धीरे-धीरे उसकी टी-शर्ट का कपड़ा ऊपर करना शुरू कर दिया. मनिका की यह वाली टी-शर्ट पूरी लम्बाई की थी सो जयसिंह को उसे ऊपर कर उसकी गोरी कमर को उघाड़ने में कुछ मिनट लग गए थे पर अब मनिका की गोरी कमर और पेट एक तरफ से नज़र आने लगे थे, दूसरी तरफ से टी-शर्ट अभी भी मनिका के नीचे दबी हुई थी. लेकिन जयसिंह को उनकी सौगात मिल चुकी थी, 'साली की हर चीज़ क़यामत है.' मनिका ने लो-वेस्ट पायजामा पहना हुआ था. जयसिंह ने देखा कि मनिका ने पायजामा काफी नीचे बाँध रखा था, ठीक टांगों और कमर के जॉइंट पर सो उसके पायजामे का एलास्टिक उसके जॉइंट की बोन पर था. उसके करवट लिए होने से जॉइंट-बोन पर स्ट्रेच हुए एलास्टिक व उसके पेट के निचले हिस्से के बीच कुछ जगह बनी हुई थी और मनिका की टी-शर्ट आगे से हट जाने से उन्हें उसकी भींची हुई टांगों के बीच योनि की 'V' आकृति एक बार फिर नज़र आ रही थी. जयसिंह का बदन गरम होने लगा. कुछ देर रुके रहने के बाद उन्होंने हिम्मत की और गर्दन उठा कर अपना चेहरा मनिका के पेट के पास ले गए. मनिका के जिस्म से भीनी-भीनी गंध आ रही थी. लघभग मदहोश सी हालत में उन्होंने अपनी दो अंगुलियाँ मनिका के पायजामे के एलास्टिक और उसके जिस्म बीच के गैप में डाली और आगे की तरफ खींचा.
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