Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
01-02-2020, 12:45 PM,
#17
RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
जयसिंह मुस्कुराते हुए उठ खड़े हुए और जा कर मनिका के साथ बिस्तर में घुस गए. जयसिंह ने बत्ती बुझा नाईट-लैंप जला दिया. उन दोनों ने एक दूसरे की तरफ करवट ले रखी थी. मनिका की आँखें अभी खुलीं थी और उसके चेहरे पर भी मुस्कान तैर रही थी, कमरे की उस मद्धम रौशनी में वे दोनों एक-दूसरे को निहारते हुए लेटे थे. जयसिंह ने अपना हाथ थोड़ा आगे किया जिसपर मनिका ने भी अपना हाथ आगे बढ़ा उनका हाथ थाम लिया और वे हौले-हौले उसके हथेली सहलाने लगे. कुछ देर बाद दोनों की आँख लग गई, दोनों अभी भी हाथ पकड़े हुए थे.

अगली सुबह जब मनिका उठी तो सब कुछ उसे बहुत अच्छा-अच्छा लग रहा था. आँख खुलने के कुछ पल बाद पास लेटे जयसिंह को देख उसे रात की बातें याद आईं और वह अपने पापा से फिर से दोस्ती हो जाने का ख्याल करते ही ख़ुशी से चहकी,

'पापा! आप अभी तक सो रहे हो? देखो आज मैं आपसे पहले उठ गई...'

'उन्ह्ह हम्म...' उनींदे से जयसिंह ने आँखें खोलीं, दो दिन से काउच पर आराम से न सो पाने की वजह से आज उन्हें काफी गहरी नींद आई थी.

'उठो ना पापा...क्या आलस बिखरा रहे हो...' मनिका ने उन्हें हिला कर कहा.

मनिका जयसिंह को उठा कर ही मानी थी, वे दोनों बाथरूम जा कर आ चुके थे और ब्रेकफ़ास्ट ऑर्डर कर दिया था. जयसिंह एक बार फिर अखबार में स्टॉक-मार्केट की ख़बरें देख रहे थे. मनिका भी उनके पास ही बैठी रुक-रुक कर उनसे बातें करते हुए एक मैगज़ीन के पन्ने पलट रही थी जब रूम-सर्विस आ गई. मनिका ने जा कर गेट खोला,

'गुड मॉर्निंग मैम.' उसके सामने वह पहले दिन वाला ही वेटर खड़ा था.

'म...म...मॉर्निंग' मनिका उसकी कुटिल मुस्कान भूली नहीं थी.

वेटर अंदर आ गया और उनका नाश्ता टेबल पर लगाने लगा. मनिका जयसिंह के पास बैठ गई थी पर अब उसकी नज़र फर्श पर टिकी थी. वेटर ने खाना लगा दिया और एक मंद सी मुस्कुराहट लिए खड़ा रहा, जयसिंह ने उसे टिप देते हुए फारिग कर दिया. उसने अदब से झुक कर जयसिंह से कहा था,

'थैंक्यू सर.' और फिर मनिका से मुख़ातिब हो बोला 'थैंक्यू मैम...' मनिका की नज़र उससे मिली थी, वेटर के चेहरे पर फिर वही मुस्कान थी.

वेटर के चले जाने के बाद मनिका ने जयसिंह से कहा,

'आई डोंट लाइक हिम.'

'क्या? हू?' जयसिंह ने अखबार से नजर उठा कर पूछा.

'अरे यही जो अभी गया है...वो वेटर...' मनिका ने बताया.

'हैं? क्यूँ क्या बात हुई...?’जयसिंह ने अखबार साइड में रखते हुए पूछा.

'ऐसे ही बस...अजीब सा आदमी है वो...' मनिका भी उन्हें क्या बताती.

'हाहाहा...पता नहीं क्या हो जाता है तुम्हें चलते-चलते, अब बताओ मैडम को वेटर भी पसंद का चाहिए.' जयसिंह हँस कर बोले.

'क्या है पापा डोंट मेक फन ऑफ़ मी. चलो ब्रेकफास्ट करते हैं.' मनिका ने मुहँ बनाते हुए कहा था.

जब जयसिंह और मनिका ने नाश्ता कर लिया था तो मनिका ने पूछा था कि आज वे क्या करने वाले हैं? जिस पर जयसिंह ने आज-आज रूम में ही रहकर रेस्ट करने की इच्छा जताई थी. मनिका भी मान गई और बोली कि वह नहाने जा रही है. जयसिंह ने उसे मुस्कुरा कर देखा भर था, उनके मन में ख़ुशी की लहर दौड़ गई थी.

जब मनिका नहा कर वापस निकली तो जयसिंह को काउच पर सुस्ताते पाया. दरअसल वे लेट कर नाटक कर रहे थे ताकि मनिका को नहा कर निकलते हुए देख सकें. मनिका ने बाहर आते ही उनकी और देखा था और उन्हें सोता समझ अपने सूटकेस के पास जा कर कपड़े रखने लगी.

'नहा ली मनिका?' जयसिंह ने थोड़ा सा सिर उठा उसकी तरफ देखते हुए कहा.

'हाँ पापा.' मनिका पीछे मुड़ बोली. जयसिंह ने पाया कि उसकी आवाज़ में पहले जैसी चहक नहीं थी.

कुछ देर बाद मनिका आ कर काउच के पास रखी सोफेनुमा कुर्सी पर बैठ गई. जयसिंह उसके चेहरे के भाव देख समझ गए कि वह कुछ कहना चाह रही है पर चुपचाप लेटे रहे और आँखें बंद कर फिर से सोने का नाटक करने लगे.

'आप नहीं ले रहे बाथ?' मनिका ने उनसे पूछा.

'म्मम्म...अभी थोड़ी देर में जाता हूँ... आज तो रूम पर ही हैं ना हम...' जयसिंह ने झूठा आलस दिखाया.

'पापा?' मनिका अपना तकियाकलाम संबोधन इस्तेमाल कर बोली.

'हम्म्?' जयसिंह ने नाटक जारी रखते हुए थोड़ी सी आँख खोल उसे देखा.

'पापा कल रात को...रात को आप शावर से नहाए थे क्या?' मनिका ने पूछा, उसकी नज़रें जमीन पर टिकीं थी और चेहरे पर लालिमा झलक रही थी.

मनिका ख़ुशी-ख़ुशी नहाने घुसी थी पर जैसे ही उसने शावर का पर्दा हटाया था उसे वह नज़र आया जिसने पिछली रात जयसिंह को साँप सुंघा दिया था, उसकी ब्रा और पैंटी जो नल पर लटक रही थी. मनिका एक बार तो सकपका गई, 'ये यहाँ कैसे पहुँची..?’ फिर उसे याद आया कि कल रात नहाने के बाद उसने उन्हें वहीँ छोड़ दिया था. वह उन्हें उठाने को हुई थी जब उसे याद आया कि जयसिंह ने रात को आकर बाथ लिया था 'ओह शिट...’ और इसलिए उसने बाहर निकल कर जयसिंह से टोह लेते हुए पूछा था कि क्या वे शावर में गए थे.

जब मनिका ने उनसे कहा था कि वह नहाने जा रही है तो जयसिंह को शावर में पड़े उसके अंतवस्त्रो का ख्याल आ गया था और वे मन ही मन प्रसन्न हो उठे थे. रात को अचानक मनिका के माफ़ी मांग लेने से यह बात उनके दीमाग से निकल गई थी. अब उन्होंने बिना कोई भाव चेहरे पर लाए कहा,

'नहीं तो, बाथटब यूज़ किया था मैंने तो...क्यूँ क्या हुआ?'

'ओह...अच्छा. कुछ नहीं पापा ऐसे ही पूछ रही थी.' मनिका ने राहत भरी साँस खींची. 'पापा ने कुछ नहीं देखा थैंक गॉड...’ उसने मन ही मन सोचा.

'ऐसे ही?' जयसिंह ने सवाल पर थोड़ा जोर दे पूछा.

'हाँ पापा.' मनिका ने दोहराया.

'अच्छा भई मत बताओ...' जयसिंह ने खड़े होते हुए कहा और मनिका की तरफ देखा 'मैं नहा कर आता हूँ चलो...'

'ओके पापा.' मनिका ने उनकी आधी बात का ही जवाब दिया.

जयसिंह खड़े हो जिस कुर्सी पर वह बैठी थी उसके पास से गुजरते हुए रुक गए और मनिका के कँधे पर हाथ रखा,

'मनिका?'

'हम्म...हाँ पापा...?' मनिका अब पहले सी चहक कर बोली.

जयसिंह ने अपने चेहरे पर एक शरारत भरी मुस्कान लाते हुए कहा 'कपड़े ही तो हैं...हैं ना?' और आगे बढ़ नहाने चले गए.

जयसिंह नहाने घुस गए, पर वे मनिका के मन में शरमो-हया के ज्वार उठा गए थे. उन्होंने पिछली रात की उसी की कही बात को इस तरह से कह दिया था कि मनिका न चाहकर भी मुस्का उठी थी 'हाआआआ...पापा ने देख लीं मेरी अंडरवियर..! हाय राम...’मनिका ने अपना चेहरा दोनों हाथों से छुपा कर सोचा 'और तो और कैसे बन रहे थे...मैंने तो बाथटब यूज़ किया था...झूठे ना हों तो...' मनिका शरम से कुर्सी में गड़ी जा रही थी 'कल तक तो मैंने इतना बखेड़ा खड़ा किया हुआ था और अब अपनी ही बेवकूफी से बेइज्जती हो गई है...क्या सोचा होगा पापा ने भी...कि कैसी बेशरम हूँ मैं... हाय फूटी किस्मत...'

थोड़ी देर बाद जयसिंह नहा कर निकल आए. मनिका, जो कुर्सी पर ही बैठी थी, ने उठते हुए कहा,

'पापा...आई एम् सो एमबैरेस्ड...'

जयसिंह ने उसकी तरफ झूठे असमंजस से देखा. इस पर मनिका ने आगे सफाई पेश की,

'मैं भूल गई थी...कल जल्दी में...' मनिका अटकते हुए इतना ही कह पाई.

अब जयसिंह ने सीरियस सा अंदाज इख़्तियार कर लिया और उसके पास आ गए 'मनिका तुम इतना क्या सोचने लगी? कल रात तो बड़ा बड़प्पन दिखा रहीं थी; कि कपड़े ही तो हैं, अब ये अचानक क्या हुआ?'

मनिका से कुछ पल कुछ कहते ना बना पर जयसिंह के उसे ताकते रहने पर उसने धीरे से कहा, 'हाँ आई क्नॉ पापा...पर शरम तो आती ही है ना...आपने भी क्या सोचा होगा...कि कैसी बेशरम हूँ मैं...'

'ओह गॉड मनिका ये तुम क्या बोले जा रही हो..? मैं ऐसा क्यूँ सोचूँगा भला?' जयसिंह अब अचरज जता रहे थे 'कल जब तुमने मुझे अपना सॉरी बोलने का रीज़न दिया था तब तक मैं अपने आप को ही गलत मान रहा था...पर जब तुमने कहा कि अंडरवियर भी कपड़े ही तो होते हैं तो मुझे भी तुम्हारी बात की सच्चाई का इल्म हुआ, एवरीवन हैस अंडरवियर इसमें क्या एमबैरेसमेंट?...लेकिन अब तुम खुद ही अपनी बात काट रही हो...इस मतलब से तो फिर मैं ही गलत था...’जयसिंह ने मनिका को भावनाओं और तर्क के जाल में फंसाते हुए आगे कहा था.

'नो पापा ऐसा नहीं है...आप सही कह रहे हो बट आप भी समझो ना...अपने पापा से शरम नहीं आएगी क्या? इसीलिए इट्स सो एमबैरेसिंग फॉर मी...’मनिका ने सकुचाते हुए दलील दी.

'ओके मनिका...आई मीन मणि...इट्स ओके...' जयसिंह ने अपना ब्रह्मास्त्र चलाया.

मनिका की आनाकानी पर ब्रेक लग गया था 'पापा ऐसे तो मत कहो...'

'तो कैसे कहूँ?' जयसिंह ने जरा रूखी आवाज़ में कहा.

'प्लीज मेरी बात समझो ना...प्लीज?' मनिका ने मिन्नत की.

जयसिंह समझ गए थे कि अब उनका सामना अपने प्लान के सबसे आखिरी और जटिल हिस्से से हो रहा था. मनिका भले ही उनके साथ कितनी भी फ्रैंक हो चुकी थी पर अभी भी उसके मन में सामाज के नियम-कायदों का एहसास मजबूत था और अगर उन्होंने जबरदस्ती उसे बदलने की कोशिश की तो उनको कुएँ के पास आकर भी प्यासा लौटना पड़ सकता है. सो उन्होंने अभी के लिए पीछे हटना ही उचित समझा,

'ओके मनिका आई अंडरस्टैंड...पर जो हो गया सो हो गया. मैंने उस बात को बिल्कुल माइंड नहीं किया और बस इतना चाहता हूँ कि तुम भी उस पर इतनी फ़िक्र ना करो...कैन यू डू थैट?'

'ओके पापा...' मनिका ने हौले से कहा.

'देन गिव मी अ स्माइल...ऐसे उदासी नहीं चलेगी...' जयसिंह ने मुस्काते हुए उसे उकसाया.

'हेहे...पापा. मैं कहाँ उदास हूँ...’कह मनिका हँस दी.

'गुड़ गर्ल.' जयसिंह ने उसे स्माइल देते देख कहा था और फिर अपने सूटकेस की तरफ चले गए थे.

'हाय...पापा तो लिटरली कुछ ज्यादा ही फ्रैंक हैं...इतना तो मैंने भी नहीं सोचा था. मैंने तो उन्हें मनाने के लिए कहा था बट उन्होंने तो मेरी बात का कुछ और ही मतलब निकाल लिया...अफ्टेरॉल वो हैं तो मेरे पापा ही, उन्हें नहीं तो मुझे तो लाज आएगी ही...बट पापा तो इतना कूल एक्ट कर रहें हैं और मजाक में ले रहे हैं...और यहाँ मैं शरम से मरी जा रही हूँ...क्यूँकि बात सिर्फ अंडरवियर की नहीं है, आई वियर थोंगस् (छोटी और सेक्सी पैंटी)...इसलिए और ज्यादा एमबैरेस हो रही हूँ...’जयसिंह को स्माइल दे कर भी मनिका अपनी दुविधा में फंसी बैठी थी.

'मनिका जरा रूम-सर्विस पर कॉल करके लॉन्ड्री वाले को बुलाना. मेरे सारे कपड़े धोने वाले हो रहे हैं.' जयसिंह की आवाज़ सुन मनिका का ध्यान टूटा.
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