RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
जयसिंह और मनिका को दिल्ली आए आज बारह दिन हो चले थे और उनके साथ लाए कपड़े एक-दो बार पहन लेने और दिल्ली के प्रदूषण भरे वातावरण के कारण अब धुलाई योग्य हो गए थे. मनिका को भी अपनी कुछ पोशाकें धुलने देने का ख्याल आया था. सो उसने कुर्सी से उठ, अपने मन की उलझन को एक ओर कर, जयसिंह के कहे अनुसार लॉन्ड्री वाले को बुलाने के लिए कॉल किया.
थोड़ी देर में लॉन्ड्री से एक लड़का आया और उनके कपड़े अगली शाम तक ड्राई-क्लीन कर वापस देने का बोल ले गया. अब जयसिंह और मनिका को बाकी का दिन साथ ही बिताना था और अभी तो उनका ब्रेकफास्ट भी नहीं हुआ था. जयसिंह ने सजेस्ट किया क़ि वे नीचे रेस्टॉरेंट में जा कर नाश्ता करें और मनिका को लेकर नीचे चल दिए.
रेस्टॉरेंट में जा उन्होंने ऑर्डर किया और बैठे बतियाने लगे. जयसिंह ने मनिका को याद दिलाया क़ि उसके इंटरव्यू का दिन करीब आ चुका था और उसे थोड़ी तैयारी कर लेनी चाहिए जिस पर मनिका बुरा मानते हुए बोली थी क़ि वे उसकी इंटेलिजेंस की कोई कद्र ही नहीं करते और उसे सब आता है. दरअसल मनिका के मामा कॉलेज में प्रोफेसर थे और उन्होंने उसे बहुत अच्छे से तैयारी करवाई थी सो मनिका का ओवर-कॉन्फिडेंट होना लाजमी था.
खैर इस तरह बातें करते हुए अब उन्हें एहसास हुआ कि उनका वापस घर जाने का समय भी आने वाला था. मनिका और जयसिंह की पिछली रात ही फिर से बढ़ी आत्मीयता और सुबह कमरे में हुई बातचीत ने मनिका को इमोशनली थोड़ा सेंसिटिव कर दिया था और घर वापस जाने की बात आने पर उसने वहाँ बैठे-बैठे जयसिंह से अपने मन की कुछ बातें शेयर कर दी थी, कि कैसे उसे उनके इतने खुले विचारों पर अचरज होता है और उनका उसे एक बच्चे की तरह नहीं बल्कि एक समझदार एडल्ट की तरह ट्रीट करना कितना अच्छा लगता है. उसने उन्हें यह भी बताया कि कैसे उसने सोचा था कि काश घर वापस जाने के बाद भी उनके बीच का ये बॉन्ड न टूटे लेकिन वह ये भी समझती थी कि घर जा कर उनके बीच कुछ दूरी आ ही जाएगी क्यूँकि वहाँ का माहौल अलग था व वे अपनी-अपनी रोजमर्रा की दिनचर्या में लगें होंगे.
मन ही मन खुश होते जयसिंह ने सोचा था 'साली कुतिया इतनी भोली भी नहीं है जितना मैंने समझा था. बस इसपर यह दोस्ती का भूत इसी तरह चढ़ा रहे तो आखिरी बाजी भी जीती जा सकती है.' और फिर उसे आश्वाशन दिया था कि वे बिल्कुल नहीं बदलेंगे और उनके बीच का यह दोस्ती का रिश्ता नहीं टूटने देंगे बशर्ते कि वह भी उन पर भरोसा बनाए रखे.
इसपर मनिका ने बहुत खुश हो कर उन्हें आश्वस्त किया था कि वह भी यही चाहती थी. जयसिंह ने उसे एक और दफा अपनी मम्मी के सामने थोड़ा सोच-समझ कर रहने की हिदायत दी थी. उनका वही पुराना तर्क था कि उसकी माँ मधु सोचती है कि उन्होंने अपने लाड़-प्यार से मनिका को बिगाड़ दिया था, जिसपर मनिका ने भी उनसे हाँ में हाँ मिलाई थी. उनके यूँ बातें करते-करते उनका खाना भी आ गया था.
जयसिंह ब्रेकफास्ट के बाद मनिका को लेकर कुछ देर हॉटेल के गार्डन में घूमने निकल गए थे. एक बार फिर मनिका अब उनकी बाहँ थामे चल रही थी. जब वे गार्डन में घूम कर वापस लौट रहे थे तो मनिका की नज़र एक तरफ लगे बोर्ड पर गई. जिसपर हॉटेल के विभिन्न हिस्सों और फैसिलिटीज़ के नाम और डायरेक्शन लिखे हुए थे. उनमें से एक नाम ने उसका ध्यान आकर्षित किया था 'ब्यूटी एंड स्पा'.
एक-दो दिन से नहाते वक़्त मनिका ने पाया था कि उसके बदन पर फिर से वैक्सिंग करने की जरुरत थी, उसके बदन पर हलके रोएँ आने लगे थे. मनिका ने जवानी की देहलीज पर कदम रखने के साथ ही अपने बदन के सौंदर्य का अच्छे से ख्याल रखना शुरू कर दिया था और इस मामले में उसने कभी भी लापरवाही नहीं बरती थी. घर पर तो उसके पास अपना वैक्सिंग किट था लेकिन यहाँ दिल्ली में अपने पिता के साथ सिर्फ दो दिन का कार्यक्रम बना कर आई होने की वजह से वो उसे लेकर नहीं आई थी. फिर जयसिंह के साथ रूम शेयर करते हुए वह वैसे भी उसका इस्तेमाल नहीं कर सकती थी. सो जब उसने वह साईन-बोर्ड देखा तो जयसिंह से बोली,
'पापा आज तो हम हॉटेल में ही हैं ना?'
'हाँ हैं तो...कहीं बाहर घूमने का मन है तुम्हारा?' जयसिंह ने पूछा.
'नहीं पापा...वो मैं इसलिए पूछ रही थी कि वहाँ पीछे -ब्यूटी एंड स्पा- का बोर्ड लगा था और मैं सोच रही थी कि हेयर-कट और फेशियल करा लूँ.' मनिका जयसिंह से वैक्सिंग का तो कैसे कहती सो उसने बाल कटवाने की बात कही थी, वैसे दोनों ही स्थितियों में कटने तो बाल ही थे.
'हाँ तो करा लो न...' जयसिंह ने कहा.
सो मनिका जयसिंह से उनका क्रेडिट-कार्ड ले उस सैलून में चल दी. जयसिंह, जो उसे गेट तक छोड़ने साथ आए थे, वहाँ से मुड़ कर अपने कमरे में चले गए और मनिका के वापस आने का इंतज़ार करने लगे. उधर मनिका ने सैलून के काउंटर पर जा वैक्सिंग, हेयर-कटिंग और ब्यूटी-फेशियल के लिए पूछा था, काउंटर मैनेज कर रही लड़की ने एक ब्यूटिशियन को बुला दिया था जो मनिका को अंदर ले गई थी.
जयसिंह कमरे में आ बेड पर लेट गए थे. मनिका ने उनसे कहा था कि उसे आने में थोड़ा वक़्त लग जाएगा सो उन्होंने सोचा कि वे थोड़ी देर सुस्ता लेंगे. वैसे भी टी.वी. देखने का उनका मन नहीं था और अब तो बस उनको मनिका को लेकर ख्याली पुलाव पकाने में ही मजा आता था. सो वे बिस्तर पर लेट मनिका की कही बातों और अपने आगे के क़दमों के बारे में सोच रहे थे. यह सब सोचते-सोचते वे उत्तेजित होने लगे और उनका लंड खड़ा हो गया. उन्होंने उसे हौले से दबा कर करवट बदली, सामने बेड के पास नीचे मनिका का सूटकेस पड़ा था. जयसिंह बेड से उठ खड़े हुए.
वे उठ कर मनिका के सूटकेस के पास पहुँचे और उसे उठा कर बेड पर रख खोल लिया. सूटकेस में नंबर-लॉक सिस्टम था और मनिका ने उसे लॉक नहीं कर रखा था. जयसिंह के दिल की धड़कने बढ़ गईं थी. सूटकेस खोलते ही उन्हें मनिका के कपड़ों में से उसके परफ्यूम और तन से आने वाली भीनी खुशबू का एहसास हुआ था. वे सूटकेस में उसके कपड़े टटोलने लगे, लेकिन जो वे ढूँढ़ रहे थे वो उन्हें नहीं मिला.
वे थोड़े असमंजस में पड़ गए, आखिर उन्हें होना तो यहीं चाहिए था. अब उन्होंने जरा ध्यान से सूटकेस में रखी चीज़ें चेक करना शुरू की, उसमें मनिका के कुछ कपड़े थे जो उन्होंने उसे अभी तक पहने नहीं देखा था, बाकी तो आज उसने उनके साथ ही लॉन्ड्री में दिए ही थे. एक दो डिब्बों में झुमके-रिबन-बालों की क्लिप-बैंड इत्यादि सामान था. एक छोटा मेकअप किट भी उनके हाथ लगा. फिर उन्होंने सूटकेस के ऊपर वाले पार्टीशन में देखना शुरू किया. वहाँ भी मनिका के कुछ कपड़े और एक कपड़े व नायलॉन से बना किट रखा था. जयसिंह ने पाया कि उसने पहली रात जो शॉर्ट्स और गन्जी पहनी थी वे वहाँ रखे हुए थे. पहली रात के मनिका के हुस्न के दीदार की याद आते ही उनका कुछ शांत होता लंड फिर से उछल पड़ा था. अब उन्होंने वह किट बाहर निकाला, उसके साइड में ज़िप लगी हुई थी और वह एक बक्से की तरह खुलता था. जयसिंह ने उसे खोला और उन्हें अपने मन की मुराद मिल गई, उसमें मनिका के अंतवस्त्र थे. उस किट के अंदर लगे एक लेबल से जयसिंह को पता चला कि वह एक लॉनजुरे कैरिंग-केस था. जिसमे ब्रा रखने के लिए अलग से स्तननुमा जगह बनी हुई थी ताकि उनके कप मुड़े ना, और साइड में छोटी-छोटी पॉकेट्स थीं जिनमें मनिका ने बड़े करीने से अपनी पैंटीज़ समेट कर डाल रखीं थी.
'कैसी-कैसी चीज़ें है इस रंडी के पास देखो जरा...ब्रा और कच्छियों के लिए भी अलग से केस...वाह'.
अपनी जवान बेटी के अंतवस्त्र हाथ में लेने का मौक़ा जयसिंह एक बार गँवा चुके थे लेकिन इस बार उन्होंने एक पल भी सोचे बिना मनिका की ब्रा-पैंटीयों को निकाल-निकाल कर देखना शुरू किया. कुल मिलाकर उसमे तीन जोड़ी रंग-बिरंगी ब्रा-पैंटीयाँ थीं (ब्रा: पर्पल, गुलाबी और सफ़ेद, पैंटी: पर्पल, हरी और स्काई-ब्लू). मनिका के ये सभी अंतवस्त्र बेहद छोटे-छोटे थे. जयसिंह मनिका की छोटी सी और कोमल पर्पल पैंटी को अपने हाथ में लेकर देख रहे थे. उसकी तीनों ही पैंटी थोंग स्टाइल की थीं 'और एक गुलाबी वाली जो चिनाल ने पहन रखी होगी' उन्होंने सोचा था. जयसिंह की पैंट में अब तक उनका लंड उनके अंडरवियर में छेद करने पर उतारू हो चुका था. जयसिंह रह नहीं सके और मनिका की पैंटी अपने नाक के पास ले जा कर उसकी गंध ली थी. पैंटी धुली हुई थी लेकिन फिर भी उसमें से एक हल्की मादा गंध आ रही थी 'आह्ह्ह...’ एक जोरदार आह भर जयसिंह ने अपनी पैंट की ज़िप खोल अंडरवियर के अँधेरे से अपने लंड को आज़ाद किया. लंड उछल कर बाहर आ उनके हाथ से टकराया था और 'थप्प..’की आवाज़ आई थी. जयसिंह ने नीचे देखा और अपने काले घनघोर लंड पर अपनी बेटी की छोटी सी पैंटी लपेट बेड पर पीछे की ओर गिर पड़े.
जयसिंह बेसुध से हो गए थे. पैंटी का कोमल कपड़ा उनके खड़े लंड को गुदगुदा कर और उत्तेजित कर रहा था और उनका लंड फ़ुफ़कारें मार-मार हिल रहा था, उनके दोनों अंड-कोषों ने भी अपने अंदर भरी आग को बाहर निकालने की कोशिशें तेज़ कर दीं थी और दर्द से बिलबिला रहे थे. लेकिन आनंद की चरम् सीमा पर पहुँचने से पहले ही जयसिंह को अपनी भीष्म-प्रतिज्ञा याद आ गई थी, कि वे मुठ नहीं मारेंगे, और उन्होंने किसी तरह अपने आप को संभाल लंड पर से हाथ हटा लिया.
कुछ देर हाँफते हुए पड़े रहने के बाद जयसिंह ने मनिका की पैंटी अपने लंड से उतारी और उसके सभी अंतवस्त्रों के साथ वापस पहले जैसे ही जँचा कर रख दीं. अब उनकी नज़र किट में ही रखे एक काले लिफाफे पर गईं. कौतुहलवश उन्होने उसे भी खोला, उसमें लड़कियोँ द्वारा पीरियड्स में लगाए जानेवाले पैड्स थे और दो कॉटन की नॉर्मल अंडरवियर भी रखी थी जिनका इस्तेमाल भी वे समझ गए 'साली की उन छोटी-छोटी पैंटीज़ में तो पैड टिकते नहीं होंगे...हम्म तो पीरियड्स का सामान अभी तक पैक पड़ा है...पर आज बारह दिन हमें यहाँ आए हो चुके हैं मतलब वक्त करीब है.' जयसिंह जानते थे कि पीरियड्स के वक्त लड़कियों के मन की स्थिति थोड़ी बदल जाती हैं और वे इमोशनल जल्दी हों जाने की प्रवृति में आ जातीं है. जयसिंह के खड़े लंड के मुहाने पर गीलापन आने लगा था.
मनिका के पास कमरे में घुसने के लिए दूसरा की-कार्ड था और उन्हें आए हुए थोड़ी देर हो चुकी थी. उसके लौट कर आने का अंदेशा होने पर उन्होंने धीरे-धीरे सारा सामान वापिस रखना शुरू किया. सामान रख जब वे सूटकेस बंद करने लगे थे तो उनकी नज़र एक बार फिर मनिका के मेकअप किट पर पड़ी. किट तो बंद था परन्तु उसके पास ही मनिका का लिप-ग्लॉस, जो वह रोज लगाया करती थी, बाहर ही रखा था. जयसिंह ने उसे उठाया और ढक्कन खोल उसकी खुशबू ले कर देखा, बिल्कुल वही खुशबू थी जो उन्होंने मनिका के होंठों से आते हुए महसूस की थी. जयसिंह ने अपने लंड के मुहाने पर आए पानी को अपने हाथ के अंगूठे पर लगाया और मनिका के लिप-ग्लॉस के ऊपर-ऊपर फैला कर ढक्कन लगा दिया. लिप-ग्लॉस और प्री-क्म दोनों में ही चिकनापन होने की वजह से किसी को भी देखने पर कोई अंतर पता नहीं लग सकता था. उन्होंने जल्दी से सूटकेस बन्द कर जस का तस रखा और फिर से बेड पर पीठ के बल गिर पड़े, अपनी उस हरकत ने उन्हें उत्तेजना से निढ़ाल कर दिया था.
कुछ पल बाद उनका अपने-आप पर कुछ काबू हुआ और उन्होंने उठ कर बाथरूम में जा अपने हाथ धोए, उनका लंड अभी भी बाहर लटक रहा था, जयसिंह ने पंजो के बल खड़े हो अपना लंड आगे कर वॉशबेसिन के नल के नीचे किया और उसे भी ठंडे पानी की धार से शांत करने लग गए. तभी कमरे का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ हुई. जयसिंह हड़बड़ा गए, बाथरूम का दरवाज़ा खुला ही था, और जल्दी से अपना लंड अंदर ठूँस ज़िप बंद कर के हाथ धोए.
'पापा? क्या कर रहे हो? ‘मनिका की आवाज़ आई.
'कुछ नहीं बस थोड़ा आलस आ रहा था तो हाथ-मुहँ धो रहा था. आ गईं तुम?' जयसिंह ने कहा.
'हाँ पापा...आ गई हूँ तभी तो आवाज़ आ रही है मेरी...' मनिका ने उनकी खिल्ली उड़ाने के अंदाज़ में कहा.
'हाहाहा... हाँ भई मान लिया...' जयसिंह बाथरूम से बाहर आते हुए बोले थे. मनिका बेड के पास अपना मोबाइल चार्ज लगा रही थी, उनकी आहट सुन वह पलटी और एक बार फिर जयसिंह के होश फाख्ता हो गए.
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