Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
01-02-2020, 12:46 PM,
#20
RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
जब मनिका ने उनसे ऐसा कहने की वजह पूछी तो उन्होंने बताया कि जिस तरह से वे लोग शर्त का अमाउंट बढ़ाते जा रहे थे उस से उन्हें ऐसा लगा था और जब जयसिंह ने आखिरी बार पचास हजार का दाँव खेला था तो उन्होंने सिर्फ इसीलिए हाँ भरी थी के वे लोग ऑलरेडी सेवेंटी थाउजेंड जीत कर प्लस में चल रहे थे. वे लोग तो वहाँ एक कंपनी स्पॉन्सर्ड वेकेशन आउटिंग पर आए हुए थे. मनिका ने भी उन्हें बताया कि वह भी पहली बार दिल्ली आई थी और एक-दो दिन में उसका इंटरव्यू था व उसके पापा उसके साथ आए थे. इस पर दोनों ही लड़कियाँ चौंक गई थीं,

'यू मीन टू से यू आर हेयर विद योर डैड?' एक ने पूछा.

'येस...वाय?' मनिका ने उनकी उलझन देख जानना चाहा.

'ओह वेल वी थॉट दैट ही वास् योर...आई मीन हमने नहीं सोचा था कि ही इज़ योर फादर...’

'ओह...हाहाहा...सो यू पीपल थॉट ही इस माय बॉयफ्रेंड ऑर समथिंग..?' मनिका ने हँस कर पूछा था. जिस पर उन दोनों ने भी झेंप भरी स्माइल दे हाँ में सिर हिला दिया.

'इट्स ओके...आई गेट दैट अ लॉट...मेरी सब फ्रेंड्स भी ऐसा ही बोलती हैं...बिकॉज़ वी आर वैरी क्लोज़ टू ईच-अदर...’ मनिका ने उन्हें रिलैक्स होने को कहते हुए बताया था.

फिर जयसिंह और वो दोनों बन्दे वापस आ गए थे, उन लोगों ने घुलते-मिलते ड्रिंक्स ख़त्म कीं थी जिसके बाद जयसिंह और मनिका उनसे विदा हो अपने रूम में आ गए थे. आने से पहले जयसिंह ने उनसे उनका रूम नंबर ले लिया था और कमरे में पहुँचते ही रूम-सर्विस से किसी के हाथ एन्वेलोप (लिफाफा) भिजवाने को कहा. जब एक स्टाफ़ का बन्दा एन्वेलोप देने आया तो उन्होंने उसे रुकने को कहा और एन्वेलोप में एक लाख बीस हजार की राशि का चेक डाल कर उसे दिया व उन लोगों के बताए रूम नंबर पे दे आने को भेज दिया. कुछ देर बाद उनके साथ पूल खेल रहे जनों में से एक का उन्हें थैंक्यू कहने को फोन (रिसेप्शन के थ्रू कॉल कनेक्ट करा) भी आया था.

जयसिंह कमरे में आ कर बेड पर लेटे हुए थे और मनिका भी दूसरी तरफ बैठी हुई अपने फोन में कुछ कर रही थी. जयसिंह ने आँखें बंद करी ही थी कि मनिका उनसे बोली,

'पापा...जोश-जोश में वन लैख ट्वेंटी थाउजेंड उड़ा दिए हैं आज आपने...'

'हम्म कोई बात नहीं क्या हो गया तो...पैसे तो आते-जाते रहते हैं.' जयसिंह ने बेफिक्री से कहा.

'इससे अच्छा तो मैं शॉपिंग ही कर लेती...’ मनिका ने ठंडी आह भरी.

'हे भगवान्! कितनी शॉपिंग करनी है इस लड़की को?' जयसिंह ने झूठ-मूठ का अचरज दिखाया.

'आपको क्या पता पापा...शॉपिंग तो हर लड़की का सबसे बड़ा सपना होता है...' मनिका ने इठला कर कहा.

'और उस दिन जो पूरा मॉल खरीद कर लाईं थी उसका क्या?' जयसिंह ने याद दिलाया.

'हाँ तो थोड़ी सी और कर लेती...' मनिका मुस्काई.

'उस दिन जो इतनी ड्रेसेज़ लेकर आईं थी वो तो दिखाईं नहीं अभी तक तुमने..?' जयसिंह ने ताना दिया.

'अरे भई पापा दिखा दूँगी तो...अभी मुझे नींद आ रही है...' मनिका ने अंगड़ाई लेते हुए कहा और वह भी लेट गई.

जयसिंह और मनिका दो घंटे सोने के बाद उठे थे. उन्होंने इवनिंग-टी (चाय) का ऑर्डर किया था और बैठ कर टी.वी. देखने लगे. एक हिन्दी फ़िल्म चल रही थी; रेस. फ़िल्म अभी कुछ महीने पहले ही रिलीज़ हुई थी सो मनिका ने लगा ली थी.

जयसिंह के साथ इतने दिनों से रह रही मनिका उनके स्वभाव में आने वाले परिवर्तनों को भाँपने लगी थी, उसने देखा क़ि जयसिंह वैसे तो फ़िल्म में कम ही इंटरेस्ट ले रहे थे पर जब कोई हीरोइन या आईटम सॉन्ग स्क्रीन पर दिखाते थे तो उनकी नज़र जरा पैनी हो जाती थी. मनिका मन ही मन मुस्का उठी थी, 'देखो कैसे भाती हैं बिपाशा और कैटरीना इन्हें...'

कुछ देर बाद फ़िल्म खत्म हो गई, उनकी चाय और स्नैक्स भी डिलीवर हो गए थे सो वे बैठे हुए खाना-पीना कर रहे थे और टेलीविज़न से उनका ध्यान थोड़ा हट गया था. तभी टी.वी. पर 'एनैमोर', जो एक लॉनजुरे बनाने वाली कंपनी है, का एडवर्टिसमेंट (विज्ञापन) आया, अब स्क्रीन पर चल रही इमेज पर दोनों का ही ध्यान चला गया था. कुछ मॉडल्स को ब्रा-पैंटीज़ में अठखेलियाँ करते दिखाया गया था, ऐड कुछ ही सेकंड चला था पर दोनों बाप-बेटी के मनों में अलग-अलग विचार उठा गया था. एक तरफ मनिका को सुबह वाली बात याद आ गई और वह शरमा गई थी व दूसरी तरफ जयसिंह का दिल खुश हो गया था, उन्होंने हल्का सा मुस्काते हुए मनिका की ओर देखा था. मनिका थोड़ी तन के सीधी बैठी थी और अपनी नज़रें टेबल पर रखे स्नैक्स पर गड़ाए थी उसे कनखियों से जयसिंह की नज़र और शरारती मुस्कान का आभास हो गया था, एक-दो पल बाद उससे भी रुका नहीं गया और उसके चेहरे पर भी शर्मीली मुस्कान तैर गई, जयसिंह फिर भी उसे देखते रहे,

'पापा स्टॉप इट ना...?' मनिका ने उनकी तरफ बिना देखे कहा.

'अरे मैंने तो कुछ कहा ही नहीं...' जयसिंह ने मुस्काते हुए कहा.

'पापा! याद है ना मैंने कहा था आपसे कभी बात नहीं करुँगी मुझे छेड़ोगे तो...’मनिका ने उनकी तरफ एक नज़र देख अपनी धमकी दोहराई.

'अच्छा भई मैं दूसरी तरफ मुहँ करके बैठ जाता हूँ अगर तुम कहती हो तो...' जयसिंह ने मुहँ दीवार की तरफ घुमाते हुए कहा.

अब तक मनिका की शरम कुछ कम हो गई थी और उसे जयसिंह की नौटंकी पर हँसी आने लगी थी. उधर जयसिंह चुप-चाप मुहँ फेरे बैठे थे. मनिका को समझ नहीं आ रहा था कि वह अब क्या कहे?

'कपड़े ही तो हैं...' जयसिंह की आवाज़ आई.

'हाहाहाहाहाहा... हेहेहे...हीहीहीही... पापाआआ!' मनिका को उनकी बात ने गुदगुदा कर लोटपोट कर दिया था 'यू आर सो नॉटी पापा...!' वह हँसते हुए बोली थी.

जयसिंह भी हँसते हुए उसकी तरफ घूमे और पास सरक आए. मनिका को अभी भी हँसी छिड़ी हुई थी जब जयसिंह ने पहली बार खुद अपने हाथों से पकड़ कर उसे अपनी गोद में खींच लिया. वह हँसते-हँसते अपने आप को छुड़ाने के प्रयास कर रही थी और साथ ही बोल रही थी कि उन्होंने उसे चिढ़ाया है इसलिए वह उनके पास नहीं आएगी लेकिन असल में वहीं बैठी रही. जयसिंह ने उसे थोड़ा कसकर अपने से लगा लिया था. उधर उनके लंड ने भी उत्साह से सिर उठा रखा था.

'वैसे आप भी कम नहीं हो...पता चल गया मुझे ठीक है ना...' मनिका ने उलाहना देते हुए कहा.

'मैंने क्या किया..?' जयसिंह ने अनजान बनते हुए कहा, उन्हें लग रहा था कि वह उनकी कही बात के लिए ही कह रही है.

'जो आँखें फ़ाड़-फाड़ कर देख रहे थे ना अभी मूवी में बिपाशा-कैटरीना को और डांस करती फिरंगनों को...सब देखा मैंने...' मनिका ने उनकी गोद में बैठे-बैठे उन्हें हल्का सा धक्का दे कर कहा.

जयसिंह मनिका के इस खुलासे से सच में निरुत्तर हो गए थे. मनिका को उनके इस तरह झेंप जाने पर बहुत मजा आ रहा था, उसने खनकती हुई आवाज में आगे कहा,

'अब क्या हुआ...बोलो ना पापा? बढ़ा छेड़ रहे थे मुझे..!'

'अब मूवी भी ना देखूं क्या?' जयसिंह ने कहा था पर उनकी आवाज़ से साफ़ पता चल रहा था कि उनकी चोरी पकड़ी गई थी.

'हाहाहाहा... कैसे भोले बन रहे हो देखो तो...बता दो बता दो...नहीं कहूँगी मम्मी से आई प्रॉमिस..' पहली बार लगाम मनिका के हाथ में आई थी (मतलब उसे तो ऐसा ही लग रहा था) सो वह और जोर से हँसते हुए बोली थी.

'हाँ तो...क्या हो गया देख लिया तो...’ जयसिंह ने भी हौले से अपना जुर्म कबूल कर लिया था.

'हाहाहा...' मनिका ने अपनी बात के साबित हो जाने पर ठहाका लगाया, उसे आज कुछ ज्यादा ही हँसी आ रही थी. इसी तरह हँसी-मजाक चलता रहा और रात ढल आई. जयसिंह और मनिका डिनर करने को भी रेस्टॉरेंट में ही गए क्योंकि रूम-सर्विस के विपरीत वहाँ वेटर खाना परोसने के लिए पास में तत्पर रहता है. लेकिन जयसिंह के लंड ने उस रात उन्हें ढंग से खाना भी नहीं खाने दिया.

हुआ ये कि जब जयसिंह और मनिका नीचे रेस्टॉरेंट में जाने के लिए कमरे से निकलने लगे थे तब मनिका ने अपने सूटकेस से लिप-ग्लॉस निकाल कर अपने होंठों पर लगाया था. यह देखना था कि बस जयसिंह का तो काम तमाम हो गया था, बड़ी मुश्किल से एलीवेटर से निकल कर वे रेस्टॉरेंट में कुर्सी तक पहुँचे थे. सामने बैठी मनिका उनसे हँस-मुस्कुरा कर बातें कर रही थी और वे उसके होंठों पर लगे अपने लंड के पानी मिले लिप-ग्लॉस की चमक देख-देख प्रताड़ित हो रहे थे. उन्हें लग रहा था जैसे उनका शरीर दीमाग की बजाय लंड के कंट्रोल में आ गया था और उनके पूरे जिस्म में हवस के मरोड़े उठ रहे थे. वे थोड़ा सा ही खाना खा सके थे और पूरा समय टेबल के नीचे अपने लेफ्ट हाथ से लंड को जकड़े हुए बैठे रहे थे.

उनकी कारस्तानी से अनजान मनिका ने खाना खाने के बाद मंगवाई आइसक्रीम खा कर जब अपने होंठों पर जीभ फिराई तो जयसिंह को हार्ट-अटैक आते-आते बचा था. इस बार वे अपने चेहरे के भावों पर काबू नहीं रख सके थे और मनिका को उनकी बेचैनी का आभास हो गया था.

'क्या बात है पापा?' मनिका के चेहरे पर चिंता झलक आई 'आप ठीक तो हैं?' उसने पूछा.

'ह्म्म्म...कुछ नहीं बस थोड़ा सिर में दर्द है. ‘जयसिंह को समझ नहीं आया कि क्या कहें सो उनके जो मुहँ में आया वही बोल गए थे 'साली क्या बताऊँ तू जो मेरे लंड का रस चाट रही है जीभ फिरा-फिरा कर और पूछ रही है क्या हुआ...उससे सिर में नहीं लंड में दर्द है...' जयसिंह ने आँखें मींचते हुए सोचा था.

डिनर के बाद जब वे अपने कमरे में आए तो मनिका ने जयसिंह को जल्दी सो जाने को कहा और उनका सिर दबाने को भी पूछा था. लेकिन इतने दिन की उत्तेजना ने आज भयंकर रूप धारण कर लिया था और जयसिंह को डर था कि मनिका का स्पर्श कहीं उन्हें अपना आपा खोने पर मजबूर न कर दे, सो उन्होंने उसे मना कर दिया था. वे कंबल ओढ़ लेट गए थे ताकि अंदर अपने उफनते लंड को पकड़ कर काबू में रख सकें, उनके रोम-रोम में मनिका ने आग लगा दी थी और उन्होंने सुलगते हुए सोचा था 'इस हरामजादी मनिका को तो तरसा-तरसा कर इससे भीख मंगवाऊंगा मेरे लंड की एक दिन मनिका ने देखा कि जयसिंह कपड़े बदले बिना ही सो गए थे. मनिका के पास भी करने को कोई काम न था सो वह भी नहाकर आई और सोने की तैयारी करने लगी. उसके बिस्तर में घुसने से पहले ही रूम का डोर क्नॉक हुआ, लॉन्ड्री वाला उनके कपड़े ले कर आया था. मनिका ने कपड़े रखवा कर उसे कुछ टिप (जयसिंह के पर्स से निकाल) दी थी और वह चला गया. मनिका भी जयसिंह के बगल में लेट गई और सोने की कोशिश करने लगी लेकिन वह दिन में भी एक बार नींद ले चुकी थी इसलिए उसे अभी इतनी जल्दी नींद नहीं आ रही थी पर उसने जयसिंह का ख्याल करके उन्हें कह दिया था कि उसे भी रेस्ट करना था.

वह लेटी-लेटी उस दिन की घटनाओं के बारे में सोचने लगी, कि कैसे दिन की शुरुआत में उसे उसके अंडर-गारमेंट्स शावर में पड़े मिले थे और जयसिंह ने उसका कितना मजाक बनाया था उस बात पर और फिर जब वह सैलून से वापस आई थी तब भी उसके पापा ने कितना स्वीटली रियेक्ट किया था, उसे एहसास हुआ था कि जयसिंह भले ही मजाक कर रहे थे पर उसमें उनकी तारीफ भी छुपी हुई थी और इसीलिए मनिका को लाज आने लगी थी और वह मेकअप उतार आई थी और आज एक बार फिर से लोगों ने उसे जयसिंह की गर्लफ्रेंड समझ लिया था. 'कितना सरप्राइजड थीं वे लड़कियाँ जब मैंने कहा कि वे मेरे पापा हैं...लोग भी न पता नहीं क्या-क्या सोचते रहते हैं.' मनिका ने थोड़ा तुनक कर सोचा था पर फिर उसका ध्यान जयसिंह की फीसिकेलिटी (शारीरिक बनावट) पर चला गया था. वह सोचने लगी कि ४७ साल की उम्र में भी जयसिंह उसके चाचा और ताऊजी की तरह मोटे व बेडौल नहीं थे और उन्होंने अपनी बॉडी को फिट रखा हुआ था 'मे-बी इसी वजह से उन लोगों ने पापा और मुझे कपल इमेजिन कर लिया था...पापा हैस मेंटेंड हिज़ बॉडी सो वैल के कोई सोचता ही नहीं कि वो मेरे पापा हैं.'

मनिका ने जयसिंह की तरफ देखा, कुछ ही पल पहले वे हिले थे और करवट बदल उसकी तरफ मुहँ किया था, उन्हें सोता पा मनिका धीरे से उठ कर अधलेटी हुई व अपने हाथ पीछे से टी-शर्ट में डाल अपनी ब्रा का हुक खोला और वापिस लेट गई.
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