RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
सूरज निकल आने के साथ ही जयसिंह और मनिका भी उठ गए थे. उन्होंने अपनी दिनचर्या के काम निपटाए और मनिका के कहने पर नाश्ता कमरे में ही मंगवा लिया. मनिका को भी अगले दिन का अपना इंटरव्यू नज़र आने लगा था और जयसिंह को अपनी बुद्धिमता के लाख उदाहरण देने के बावजूद अब वह भी कुछ नर्वस हो गई थी. उसने अपने पिता से कहा कि आज वह इंटरव्यू के लिए पढ़ कर थोड़ा रिवीजन करने का सोच रही थी सो अगर उन्हें भी अपने बिज़नस का कोई जरूरी काम हो तो वे बेफिक्र कर सकते हैं. जयसिंह ने मुहँ-अँधेरे आँख खुलने पर जो तरकीब सोची थी उसे इस्तेमाल करने की हिम्मत अभी तक नहीं बाँध सके थे. उस वक्त तो नींद में उन्होंने फैसला कर लिया था लेकिन सुबह मनिका के उठ जाने के बाद उनका असमंजस और व्याकुलता बढ़ गए थे. एक मौका आ कर हाथ से निकल भी चुका था. उन्होंने मनिका की बात पर सहमत होते हुए कहा कि वैसे तो आज वे फ्री थे और रूम में ही रहेंगे बट अगर कोई काम आन पड़ता है तो शायद उन्हें जाना पड़ जाए.
नाश्ता करने के बाद मनिका अपनी किताबें ले कर बैठ गई और जयसिंह कुछ देर कमरे में इधर-उधर होने के बाद उस से पूल खेलने जाने का बोल कर नीचे चले गए. कुछ घंटों बाद उन्होंने रूम में कॉल कर के मनिका को नीचे लंच के लिए बुलाया, जब वे खाना खत्म कर चुके तो जयसिंह के आग्रह के बाद भी मनिका उनके साथ पूल एरिया में न जा कर पढ़ने के लिए रूम में लौट गई थी.
जयसिंह शाम हुए रूम में लौट कर आए. वे बहुत खुश नज़र आ रहे थे, उनको इस कदर मुस्काते देख बेड पर किताब लिए बैठी मनिका ने उन्हें छेड़ते हुए पूछा,
'क्या हुआ पापा? बड़ा मुस्कुरा रहे हो आज तो...कोई गर्लफ्रेंड बना आए हो क्या?'
'हाहाहा...नहीं-नहीं कहाँ गर्लफ्रेंड...पर हाँ अपनी एक गर्लफ्रेंड की शॉपिंग का जुगाड़ कर आया हूँ...' जयसिंह ने भी हँस कर उसे आँख मार दी थी, उनका इशारा मनिका की तरफ ही था.
'हाहाहा...ये बात है? मुझे भी बताओ फिर तो...’मनिका ने किताब एक तरफ रखते हुए पूछा.
जयसिंह ने उसे बताया कि आज वे पूल में जीत कर आए हैं और जीत की राशि उनके हारे हुए अमाउंट के दोगुने से भी ज्यादा थी व उसे चेक दिखाया. मनिका भी खुश हो गई थी. मनिका ने बताया कि उसने तो बस पढाई ही करी थी दिन भर और अब उसे नींद आ रही थी. जयसिंह ने डिनर भी रूम में ही मंगवा लेने का सुझाव दिया.
खाना खा लेने के बाद मनिका नहाने चली गई और जयसिंह बेड पर बैठ सोच में डूब गए, 'क्या वे यह कर सकेंगे?' कुछ पल बैठे रहने के बाद वे उठे और जा कर सूटकेस में रखे अपने शेविंग-किट में से एक छोटी सी बोतल निकाल लाए.
उनका दिल जोरों से धड़क रहा था.
मनिका नहाते वक्त अगले दिन की टेंशन में डूबी थी. उसके पापा आज पूल में जीत कर आए थे इस बात से वह खुश भी थी लेकिन इतने दिन दिल्ली की हवा लग जाने के बाद अब उसे यह डर सता रहा था कि अगर उसका सेलेक्शन नहीं हुआ तो उसे वापस बाड़मेर जाना पड़ सकता है 'अगर कल मेरा सेलेक्शन नहीं हुआ तो पापा से बोलूंगी कि यहीं किसी और कॉलेज में एडमिशन लेना है मुझे...वापस तो मैं भी नहीं जाने वाली.' उसने सोचा था और नहा कर बाथरूम से बाहर निकली. जयसिंह रोज की तरह सामने काउच पर ही बैठे थे. टी.वी चल रहा था.
मनिका को जैसे काटो तो खून नहीं, उसका दिल, दीमाग और तन तीनों चक्कर खा गए थे.
जयसिंह ने अपने किट से तेल की शीशी निकाली थी और बेड पर आ बैठे थे. फिर उन्होंने अपनी पेंट और अंडरवियर निकाल दिए व हाथों में तेल लेकर अपने काले लंड पर लगाने लगे, लंड तो पहले से ही खड़ा था, अब तेल की मालिश से चमकने लगा था. उस सुबह नहाते वक़्त जयसिंह ने अपने अंतरंग भाग पर से बाल भी साफ़ कर लिए थे, सो उनके लंड के नीचे उनके अंडकोष भी साफ नज़र आ रहे थे. कुछ देर अपने लंड को इसी तरह तेल पिलाने के बाद जयसिंह ने उठ कर अलमारी में रखे एक्स्ट्रा तौलियों में से एक निकाल कर लपेट लिया और अपनी उतारी हुई पेंट और चड्डी को सूटकेस में रख दिया. तेल की शीशी को भी यथास्थान रखने के बाद वे काउच पर जा जमे और मनिका के बाहर आने का इंतज़ार करने लगे थे.
मनिका जब नहा कर बाहर आई तो अपने पिता को काउच पर बैठ टी.वी देखते पाया. वे ऊपर तो शर्ट ही पहने हुए थे लेकिन नीचे उन्होंने एक टॉवल लपेट रखा था और पैर पर पैर रख कर बैठे थे. टॉवल बीच से ऊपर उठा हुआ था और उनकी टांगों के बीच उनका 'डिक!' नज़र आ रहा था. मनिका की आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा.
मनिका ने अपनी सहेलियों के साथ गुपचुप खिखीयाते हुए एक दो पोर्न फ़िल्में देखीं हुई थी लेकिन असली लंड से उसका सामना पहली बार हुआ था और वह भी उसके पिता का था. जयसिंह के भीषण काले लंड को देख उसका बदन शरम और घबराहट से तपने लगा था.
'बस अभी नहाता हूँ...' जयसिंह ने मनिका की तरफ एक नज़र देख कर कहा. उनका हाल भी मनिका से कोई बेहतर नहीं था, दिल की धड़कने रेलगाड़ी सी दौड़ रहीं थी. लेकिन उन्होंने अपनी पूरी इछाश्क्ति से अपने चेहरे के भाव नॉर्मल बनाए रखे थे. मनिका के चेहरे का उड़ा रंग देख उन्होंने झूठी आशंका व्यक्त की, 'क्या हुआ मनिका?'
'क...क...कुछ...कुछ नहीं...पापा...’ मनिका ने हकलाते हुए कहा और पलट कर बेड की तरफ चल दी.
जयसिंह उसे जाते हुए देखते रहे, उसकी पीठ उनकी तरफ थी और उसने अपना सूटकेस खोल रखा था, जयसिंह ने अपनी नज़रें टी.वी पर गड़ा लीं, उसी वक्त मनिका ने एक बार फिर उन्हें पलट कर देखा. जयसिंह अपनी बेटी के सामने अपने आप को यूँ एक्सपोस (दिखाना) करने के बाद थोड़े और बोल्ड हो गए थे, हालाँकि डर उन्हें भी लग रहा था कि कहीं कुछ उल्टा रिएक्शन ना हो जाए उसकी तरफ से,
'मनिका!?' उन्होंने पुकारा.
'ज...जी पापा?' मनिका ने थोड़ा सा मुहँ पीछे कर के पूछा. उसकी आवाज़ भर्रा रही थी.
'ये मेरा फ़ोन चार्ज में लगा दो जरा...' जयसिंह ने अपना फ़ोन हाथ में ले उसकी तरफ बढ़ाया.
'जी...हाँ अभी...अभी लगाती हूँ...पापा...’ मनिका ने उनकी तरफ देखा और एक बार फिर से सिहर उठी.
थोड़ी हिम्मत कर मनिका पलटी और बिना जयसिंह की टांगों के बीच नज़र ले जाए उनके पास आने लगी, जयसिंह को हाथ में फ़ोन उठाए कुछ पल बीत चुके थे, जैसे ही उन्हें मनिका पास आती दिखी उन्होंने फ़ोन अपने आगे रखे एक छोटे टेबल पर रख दिया था. मनिका की नज़र भी उनके नीचे जाते हाथ के साथ नीची हो गईं, वह जयसिंह से चार फुट की दूरी पर खड़ी थी और उसने झुक कर फ़ोन उठाया, ना चाहते हुए भी उसकी नज़र एक बार फिर से जयसिंह के चमकते लंड और आंडों पर जा टिकी. जयसिंह भी उत्तेजित तो थे ही, मनिका की नज़र कहाँ है इसका आभास उन्हें कनखियों से हो गया था. उन्होंने अपने उत्तेजित हुए लंड की माश्पेशियाँ कसते हुए उसे एक हुलारा दिला दिया, मनिका झट से उछल कर सीधी हुई और लघभग भागती हुई बेड के पास जा कर उनका फ़ोन चार्जर में लगाने की कोशिश करने लगी, उसके हाथ कांप रहे थे.
जयसिंह के बाथरूम में जाने की आहट होते ही मनिका औंधे मुहँ बिस्तर पर जा गिरी. उसे बुखार सा हो आया था, 'ओह शिट ओह शिट ओह शिट!' मनिका ने अपने दोनों हाथों से मुहँ ढंकते हुए सोचा, 'आइ सॉ पापाज़...ओह गॉड!' अपने पिता के लंड की कल्पना करते ही मनिका का बदन कांप उठा था. 'पापा को रियलाईज़ भी नहीं हो रहा था कि...टॉवल ऊपर हो गया है...और उनका...हाय...ओह गॉड...हाओ कैन दिस हैपन?' मनिका के दीमाग में भूचाल उठ रहा था. वह सरक कर बिस्तर में अपनी साइड पर हुई और बेड के सिरहाने लगे स्विच से कमरे की लाइट बुझा दी व अपने पैर सिकोड़ कर कम्बल ओढ़ लेट गई. बार-बार उसके सामने जयसिंह के लंड और आंड आ-जा रहे थे और उसका जिस्म शरम और ग्लानी (हालाँकि उसकी कोई गलती नहीं थी) की आग में तप रहा था.
मनिका एक और खौफ यह भी सता रहा था कि वह अब जयसिंह से नज़र कैसे मिला पाएगी? इसी डर से उसने कमरे की लाइट बुझा दी थी और नाईट-लैंप भी नहीं जलाया था और जब एक बार फिर से बाथरूम के दरवाज़े के खुलने की आहट हुई थी तो उसका बेचैन दिल धौंकनी सा धड़कने लगा था.
जयसिंह बाहर निकले तो कमरे में घुप्प अँधेरा पा कर अचकचा गए.
नहाते हुए उनका भी मन अपने किए इस दुस्साहसी कृत्य से विचलित रहा था 'पता नहीं क्या सोच रही होगी...लंड ने तो खून जमा दिया उसका, कैसे उठ कर भागी थी साली...कहीं मैंने ज्यादा बड़ा कदम तो नहीं उठा लिया? अब तो पीछे हटने का भी कोई रास्ता नहीं है...कहीं उसे शक हो गया होगा तो..? की यह मैंने जान-बूझकर किया था...मारे जाएँगे फिर तो...’अब जयसिंह भी अपने दुस्साहस को लेकर असमंजस में फंसते जा रहे थे. लेकिन आखिर में उन्होंने सोचा कि 'अब जब ओखली में सिर दे ही दिया है तो मूसलों का क्या डर...देखा जाएगा जो होगा, जो योजना बनाई थी उसे तो अब पूरा अंजाम देना ही है...’और नहा कर बाहर निकले थे.
'मनिका?' जयसिंह ने कमरे के अँधेरे में आवाज़ दी. बाथरूम की लाइट जल रही थी और अब उनकी आँखें भी अँधेरे के अनुरूप ढलने लगी थी. 'सो गई?'
'ज...जी पापा.' बिस्तर में से दबी सी आवाज़ आई.
'नाईट-लैंप तो ऑन कर देती...कुछ दिखाई ही नहीं पड़ रहा.' जयसिंह ने कहा.
'ओह सॉरी पापा...’ मनिका ने माफ़ी मांगी और हाथ बढ़ा कर नाईट-लैंप का स्विच ऑन कर दिया.
कुछ ही देर में जयसिंह भी बिस्तर में आ पहुँचे, मनिका की करवट उनसे दूसरी तरफ थी. जयसिंह ने कुछ पल रुक कर सोचा और फिर अपने प्लान के मुताबिक ही चलने का फैसला करते हुए मनिका के कंधे पर हाथ रख उसे हौले से खींचा, मनिका ने उनके इस इशारे पर करवट बदल ली और उनकी तरफ मुहँ कर लिया, उसने एक पल के लिए उनसे नज़र मिलाई थी और फिर आँखें मींच लीं थी.
'क्या हुआ मनिका? आज इतना जल्दी सो गई?' जयसिंह ने छेड़ की.
'म्मम्म...वो पापा...आज पढ़ते-पढ़ते थक गई...और सुबह इंटरव्यू के लिए भी जाना है सो...' मनिका पहले से ही जानती थी कि उसके पापा यह सवाल पूछ सकते हैं और इसलिए उसने जवाब सोच कर रखा हुआ था. उसने एक पल जयसिंह की तरफ आँख खोल कर देखा था और उसकी आँखों में अचरज का भाव आ गया था.
'ह्म्म्म...चलो फिर सो जाओ.' जयसिंह ने हौले से उसका गाल थपथपा कर कहा.
'पापा? आपने बरमूडा-शॉर्ट्स कब ली?' मनिका ने पूछा. दरअसल जयसिंह आज पायजामा-कुरता नहीं बल्कि बरमूडा-शॉर्ट्स और टी-शर्ट पहन कर आए थे.
'अरे पहले से ही हैं मेरे पास यह तो...' जयसिंह ने बिल्कुल नॉर्मल एक्ट करते हुए कहा.
'पर पहले तो आपने नहीं पहना...' मनिका ने कहा था पर बात पूरी नहीं की थी.
'हाँ...वो बाथरूम के फर्श पर पानी होता है न तो पायजामा पहनते वक्त नीचे लग कर गीला हो जाता है रोज-रोज सो आज यह पहन लिया. वैसे भी पायजामा-कुरता लॉन्ड्री से धुल कर आया हुआ था तो सीधा सूटकेस में ही रख दिया, आज और कल की ही तो बात है अब...’ जयसिंह ने तर्क देते हुए सफाई पेश की थी. लेकिन उनके मन में तो लडडू फूट रहे थे.
आज मनिका की बेड-साइड वाला नाईट-लैंप जल रहा था सो रौशनी के दायरे में जयसिंह थे. बरमूडा-शॉर्ट्स का कपड़ा ज्यादा मोटा नहीं हुआ करता है और वे अंदर कुछ नहीं पहन कर आए थे सो उनके लंड का उठाव नज़र आ रहा था. उन्होंने देखा कि उनके बोलते-बोलते ही मनिका की नज़र दो-तीन बार उनकी टांगों के बीच चली गईं थी और हर नज़र के साथ वह सहम कर आँख बंद कर लेती थी.
जयसिंह अब सोने का नाटक करने लगे, उन दोनों की करवटें एक-दूसरे की ओर ही थी. मनिका को नींद नहीं आ रही थी व वह थोड़ी-थोड़ी देर में आँखें खोल जयसिंह को देख रही थी. जयसिंह भी आँखें मूंदे पड़े थे, वे भी कुछ-कुछ देर बाद हल्की सी आँख खोल अपनी पलकों के बीच से मनिका की बेचैनी देख कर मन ही मन मस्त हो रहे थे. उधर मनिका चाहकर भी अपना ध्यान अपने पिता के लंड पर से नहीं हटा पा रही थी, ऊपर से उनके पहने बरमूडा-शॉर्ट्स ने उसकी मुसीबत और ज्यादा बढ़ा दी थी.
'शिट पापा को कैसे एक्सपोस होता देख लिया मैंने...अगर उन्हें पता चल जाता तो...? गॉड इट्स सो एम्बैरेसिंग...और ये शॉर्ट्स जो पापा आज पहन आएं हैं..! इज़ दैट हिज़..? हाय ये मैं क्या सोच रही हूँ...' जयसिंह की शॉर्ट्स में बने उठाव को देख कर मनिका के मन में विचार उठने लगा था जब उसने झटपट अपनी सोच पर लगाम कसी और पलट कर करवट बदल ली, लेकिन बैरी मन था के थामे नहीं थम रहा था 'कितना बड़ा था...है...ओह नो नो नो ऐसा मत सोचो...एंड काला...शिट...पर वो ऐसे चमक क्यूँ रहा...इश्श...' मनिका ने शरम से अपने हाथों से अपने-आप को बाँहों में कसते हुए ऐसे विचारों को दूर झटकने की कोशिश की 'ब्लू फिल्म्स में जैसा दिखाते हैं...वैसा...नो...और पापा की बॉल्स (आंड)...गॉड नो...स्टॉप इट डैम इट...' मनिका ने अपने मन की निर्लज्जता पर गुस्सा होते हुए अपने आप को धिक्कारा.
मनिका की नींद उस रात बार-बार टूटती रही, जयसिंह के नंगेपन का ख्याल रह-रह कर उसके मन में कौंध जाता था और अब उसकी अपने इंटरव्यू को लेकर टेंशन भी बढ़ गई थी. उसे ऐसा लग रहा था कि वह सब पढ़ी हुई बातें भूल चुकी है. 'ओह गॉड अब क्या होगा...जब से पापा का...देखा है...गॉड...क्या प्रिपरेशन की थी सब भूल रही हूँ...शिट अब क्या करूँगी मैं कल..?' किसी तरह सुबह होते-होते मनिका की आँख लगी थी जबकि जयसिंह मनिका के उहापोह को ताड़ते हुए कब के मीठी नींद सो चुके थे.
अगली सुबह जब मनिका सो कर उठी तो उसका मन अजीब सा हो रखा था, उसे ऐसा लग रहा था मानो वह कोई बहुत बड़ी दुर्घटना घटने के बाद की पहली सुबह हो. फिर जैसे-जैसे उसकी नींद उड़ने लगी उसे पिछली रात देखा नज़ारा याद आने लगा. रात को तो अचानक इस तरह अपने पिता के गुप्तांग देख लेने ने से वह सन्न रह गई थी और उस वाकये के भुलाने की कोशिश करते-करते सो गई थी लेकिन अब सुबह को उसे वही बात हज़ार गुना ज्यादा झटके के साथ याद आ रही थी. जब तक वे दोनों उठ कर नहा-धो तैयार हुए और कैब बुक कराने के बाद नीचे रेस्टोरेंट में नाश्ते के लिए पहुँचे थे, मनिका अनगिनत बार हँसते-मुस्कुराते अपने पिता की तरफ देख कर शरम और अपराधबोध से भर चुकी थी.
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