RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
थोड़ा वक्त गुजरने के बाद जयसिंह ने अब अपना हाथ भी मनिका की कमर पर रख लिया था और धीरे से अपना दूसरा हाथ नीचे से मनिका की कमर और बेड के बीच घुसाने लगे. कुछ पल की कोशिश के बाद उन्हें सफलता मिल गई, वे फिर थोड़ा रुक गए. अब उन्होंने मनिका की कमर पे रखे अपने हाथ को उसकी पीठ पर ले जा कर हौले से दबाया और उसके नीचे दबे अपने हाथ से उसकी कमर को थाम लिया. जब मनिका की तरफ से उनकी इन हरकतों की कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली तो वे खिसक कर उसके साथ चिपक गए और फिर एकदम से बेड पर पीछे हो करवट बदल कर सीधे लेट गए.
जयसिंह ने मनिका को कस कर थामे रखा था और उनके सीधे होते ही वह भी उनके साथ ही खिंच कर बेड पर उनकी साइड पर आ गई थी. मनिका के थोड़ा ऊपर होते ही उन्होंने उसके नीचे दबा अपना हाथ ऊपर ले जा कर उसकी बगल में डाल लिया था. अब मनिका आधी उनकी बगल में और आधी उनकी छाती पर लगी हुई सो रही थी. जयसिंह के इस कारनामे ने मनिका की नींद को थोड़ा कच्चा कर दिया था और वह थोड़ा हिलने-डुलने लगी. जयसिंह ने जड़वत हो आँखें मींच ली थी ताकि उसके उठ जाने की स्थिति में बचा जा सके लेकिन मनिका ने थोड़ा सा हिलने के बाद अपना सिर उनकी छाती पर एडजस्ट किया और अपनी एक टांग उठा कर उनकी जांघ पर रख कर सोने लगी. जयसिंह को अपनी जांघ की साइड पर सटी अपनी बेटी की उभरी हुई योनि का आभास मिलने लगा था और वे दहक उठे थे.
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अब जयसिंह ने अपना हाथ, जो मनिका की पीठ पर था, उसे नीचे ले जा कर उसकी टी-शर्ट का छोर पकड़ा और ऊपर उठाने लगे. क्यूंकि उनका एक हाथ आज मनिका के नीचे था, सो टी-शर्ट ऊपर करने में उन्हें ज्यादा वक्त नहीं लगा, और कुछ ही देर में वे अपनी बेटी की टी-शर्ट उसकी कमर से ऊपर कर उसकी पीठ तक उघाड़ चुके थे, पीछे से ऊपर होती टी-शर्ट आगे से भी ऊपर हो गई थी और मनिका की नाभी से भी ऊपर तक उसका बदन अब नग्न था. जब जयसिंह के हाथ पे मनिका की ऊपर हुई टी-शर्ट के नीचे उसकी ब्रा का एहसास हुआ तो वे एक पल के लिए रुक गए. उनकी धड़कनें उनका साथ छोड़ने को हो रहीं थी, उन्होंने अब मनिका की टी-शर्ट को छोड़ा और धीरे-धीरे उसकी नंगी कमर और पीठ सहलाने लगे.
मनिका के नीचे दबे होने की वजह से वे अपना सिर उठा कर उसका नंगापन तो पूरी तरह से नहीं देख सकते थे, लेकिन अब उनके हाथ ही उनकी आँखें बने हुए थे. उन्होंने अब एक कदम और आगे बढ़ते हुए, मनिका का लोअर (पजामी) भी नीचे करना शुरू कर दिया. लेकिन कुछ पल बाद उन्हें रुकना पड़ा क्यूंकि पजामी मनिका के नीचे दबी हुई थी. फिर भी उन्होंने अपनी सोती हुई बेटी की गांड का उपरी हिस्सा उसके लोअर से बाहर निकाल ही लिया था. मनिका की पैंटी का इलास्टिक और उसके नितम्बों के बीच फंसा पैंटी का डोरीनुमा पिछला भाग अब उघड़ चुके थे. जयसिंह हौले-हौले मनिका की गांड से लेकर पीठ तक हाथ चला रहे थे. मनिका के मखमली स्पर्श ने उनके लंड को तान दिया था और वह अब मनिका के जांघ के नीचे दबा हुआ कसमसा रहा था.
जयसिंह ने अपना हाथ मनिका की अपने ऊपर रखी जांघ के नीचे डाला और अपने लंड को सीधा कर थोड़ा आज़ाद किया. वे अपना हाथ वापस ऊपर निकालने लगे पर उनकी उत्तेजना चरम पर थी, और उन्होंने अपना हाथ बाहर न खींच कर, मनिका की टांगों के बीच दे दिया और उसकी जवान योनि पर रख लिया. उनके बदन में गर्माहट का एक सैलाब सा उठने लगा था. मनिका की योनि उनके हाथ में किसी तपते अंगारे सी महसूस हो रही थी, कुछ ही पल में आनन्द से वे निढाल हो गए, और बरबस ही अपनी बेटी की कसी हुई चूत को दबाने लगे.
मनिका को उनकी हरकतों का आभास होने लगा था, परन्तु वह जागी नहीं थी, यह ठीक वैसा ही था जैसा हमें कभी-कभी सपने में अपने आस-पास की चीज़ों का आभास होने लगता है और जग जाने पर हम उन्हें वास्तविक पाते हैं.
"मनिका एक अँधेरे कमरे में थी, और उसके मन में एक अजीब से भय और उत्तेजना का मिलाजुला रूप उठ रहा था, वह अंधेरे में इधर-उधर टटोलते हुए आगे बढ़ रही थी कि उसका पैर किसी सख्त चीज़ से टकराया, मनिका ने हाथ बढ़ा कर देखा तो पाया कि वह एक पलंग था, कमरे में जैसे हल्की सी रौशनी हो गई थी, उसे पलंग का एक हिस्सा नज़र आने लगा था. तभी जैसे आवाज़ आई, 'मनिका, आओ बिस्तर में आ जाओ.' मनिका ने गौर से देखा तो पाया के उसके पापा बेड की दूसरी ओर लेटे हुए थे. वह मुस्कुरा कर बेड पर चढ़ गई, लेकिन उसका दिल जैसे जोरों से धड़कने लगा था. उसके पापा ने एक कम्बल ओढ़ रखा था, 'पापा.' मनिका ने कहा, 'हाँ डार्लिंग?' उसके पापा मुस्कुरा कर बोले, मनिका से उसके पापा ने हमेशा प्यार से बात की थी, उनका ख्याल आते ही उसके मन में उनका वह प्यार भरी मुस्कान वाला चेहरा आ जाता था. लेकिन अब जो मुस्कान उसके पिता ने उसे दी थी उसमें कुछ अलग था, एक ऐसा भाव जिसने उसके मन में स्नेह की जगह एक अजीब सी सनसनी पैदा कर दी थी. जयसिंह ने अब हाथ बढ़ा कर उसका हाथ पकड़ लिया था, उनकी पकड़ में भी एक मजबूती थी, एक ऐसी पकड़ जिसमें आक्रमकता थी, एक किस्म की जबरदस्ती. वे अभी भी मुस्कुरा रहे थे, मनिका भी मुस्का कर उन्हें देख रही थी, फिर उन्होंने मनिका को अपनी ओर खींचा. मनिका अपने डर और आशंकाओं के बावजूद उनका प्रतिरोध नहीं कर सकी और उनके करीब हो गई. आचानक से उसे आभास हुआ के उसके पापा ने ऊपर कुछ भी नहीं पहन रखा था. मनिका का मन और अशांत हो उठा, उधर जयसिंह अभी भी वही अजीब सी मुस्कान लिए थे, मनिका ने अपना हाथ पीछे खींचना चाहा लेकिन उसके पापा ने उसे कसकर थाम रखा था. उनकी आँखों में एक चमक थी, जिसमें प्यार नहीं, एक भूख झलक रही थी. 'पापा, छोड़ो ना मुझे...' मनिका ने मिन्नत की. 'क्यूँ?' जयसिंह ने पूछा, मनिका के पास कोई जवाब न था. 'रात हो गई है, सोना नहीं है?' उसके पापा ने आगे कहा. 'हाँ पापा, मैं सोने जा रही हूँ अपने रूम में.' मनिका ने फिर से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की. 'लेकिन जानेमन, यह तुम्हारा ही तो रूम है.' जयसिंह बोले. मनिका ठिठक गई, क्या पापा ने उसे अभी 'जानेमन' कहा था, उसने गौर से आस-पास देखा तो पाया कि जयसिंह सही कह रहे थे, कमरे में जैसे और रौशनी हो गई थी, यह तो उसी का कमरा था. 'पर पापा आप यहाँ क्यूँ सो रहे हो?' मनिका ने उपाह्पोह भरी आवाज़ में पूछा. 'मैं तो यहीं सोता हूँ रोज़, तुम्हारे साथ.' जयसिंह मुस्का के बोले. 'पर मम्मी..?' मनिका ने अचम्भे से कहा. 'वह अपने कमरे में है. बहुत बातें हो गईं चलो अब आ भी जाओ...' कह उसके पापा ने कम्बल एक तरफ कर दिया. 'पापाआआअह्हह्हह...आप...!' मनिका की कंपकंपी छूट गई, उसके पापा कम्बल के अन्दर पूरे नंगे थे. उनका काला लंड खड़ा हो कर मचल रहा था. उसने एक झटके से जयसिंह से हाथ छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन जयसिंह ने मनिका को दोगुनी ताकत से अपने साथ कम्बल में खींच लिया. मनिका सिहर उठी, उसने अपने आप को छुड़ाने की कोशिश में कहा 'पापा, ये गलत है, आप ये क्या कर रहे हो? मैं आपकी बेटी हूँ, आपने कुछ नहीं पहना हुआ! आप...आप...नंगे हो.' जयसिंह ने मनिका को अपनी गिरफ्त से थोड़ा आज़ाद किया, पर वे अब भी उसे कस कर अपने बदन से लगाए हुए थे और मनिका उनके बलिष्ठ शरीर की ताकत के आगे बेबस थी. 'पर तुम भी तो नंगी हो मेरी जान...' जयसिंह ने उसी कुटिल मुस्कान के साथ कहा. 'ह्म्म्प...मैं...मैं भी!' मनिका को यकायक एहसास हुआ कि उसके पिता सही कह रहे थे, वह भी पूरी तरह से नंगी थी, अगले ही पल उसका कलेजा मुहं में आने को हो गया, उसने पाया कि उसने अपने हाथ से अपने पापा का लंड कस कर पकड़ रखा था."
'आह्ह्ह्हह्ह...नाआआअ...' मनिका की आँखें एक झटके से खुल गईं, उसके माथे पर पसीने की बूँदें छलक आईं थी. एक पल के लिए उसे समझ नहीं आया कि वह कहाँ है. कुछ पल बाद उसे याद आया कि वे लोग डेल्ही में थे और एहसास हुआ कि वह एक डरावना सपना देख रही थी, और फिर अगले ही पल उस पर एक और गाज गिरी. वह अपने पिता से लिपट कर सो रही थी.
मनिका ने जयसिंह से अलग होने के लिए पीछे हटने की कोशिश की, लेकिन पाया कि उनका एक हाथ उसकी कमर में था, और इस से भी ज्यादा भयावह यह था कि उसकी टी-शर्ट ऊपर हो रखी थी. इस से वह उबर पाती उस से पहले ही उसे अपने लोअर की स्थिति का भी एह्सास हो गया, मनिका का बदन अब सचमुच कांपने लगा था, उसने फिर से हिलने की कोशिश की और इस बार तो जैसे उसका खून ही सूख गया, उसके हिलने पर उसे आभास हुआ की उसके पापा का हाथ उसकी योनि पर स्पर्श कर रहा था.
अब निढाल होने की बारी मनिका की थी, हर एक पल के साथ उसे अपने पिता के स्पर्श का एक और पहलू नज़र आ रहा था, अब उसे अपनी जांघ के नीचे दबे जयसिंह के लंड का भी आभास हो गया था, 'पपाज़ डिक!! इट इज़ अंडर माय थाईज़!' यह सोचते ही मनिका ने अपना पैर पीछे हटाया, पर उसके पैर पीछे करते ही जयसिंह का हाथ जो उसकी योनि पर रखा था, पूरी तरह से उसकी टांगों के दबाव में आ कर भिंच गया. मनिका की आँखों के आगे अँधेरा छा गया था, उसके पापा का हाथ अब उसकी योनि पर कसा हुआ था. 'पापाज हैंड इज़ ऑन माय पुसी (योनि)!!!'
मनिका ने सिहरते हुए हिम्मत की और अपने हाथ से जयसिंह के हाथ को अपनी नंगी कमर से निकाला, और तेज़ी से उनसे अलग हो कर बिस्तर की दूसरी ओर पहुँची. उसके कांपते हाथ बड़ी ही तीव्रता से अपने कपड़ों को सही कर रहे थे पर उसकी नज़र सोते हुए जयसिंह पर ही गड़ी थी. जयसिंह उसके अलग होने पर थोड़ा हिले-डुले थे, पर फिर शांत हो गए थे. 'क्या पापा उठ गए? और मैं उनकी तरफ कैसे पहुँच गई?' सोच-सोच कर मनिका का दिल दहल रहा था. अब उसे वह सपना भी याद आने लगा था जिसकी वजह से उसकी आँख खुल गई थी. 'तो क्या मैं उस ड्रीम की वजह से पापा के पास पहुँच गई थी? ओह गॉड...पापा वाज़ नेकेड (नंगे थे)...एंड मी टू (और मैं भी)...एंड वी वर स्लीपिंग टोगेदर (हम साथ में सो रहे थे)...और हम सच में भी साथ ही सो रहे थे! पापा का हाथ...हाय...' मनिका की नज़र अब जयसिंह के लंड पर चली गई, उनका बरमुडा अभी भी तम्बू बना हुआ था. 'इतना बड़ा डिक है पापा का...और मैंने उसे पकड़ रखा था...नहीं-नहीं इट वाज़ अ ड्रीम (वो एक सपना था)...' मनिका ने अपने आप को भींचते हुए सोचा. 'पर उस दिन तो मैंने पापा का डिक सच में देखा था, इट इज़ सो बिग! (वह कितना बड़ा है!)' मनिका ने बरबस ही आँखें मींच ली थी.
अब उसे वह सपना रह-रह कर याद आ रहा था, 'पापा मुझे कैसे देख रहे थे, जैसे मैं उनकी बेटी नहीं बल्कि...जैसे ही वांटेड मी टू बी हिज़ गर्लफ्रेंड (कि वे मुझे अपने गर्लफ्रेंड बनाना चाहते हों)...नहीं, उनकी आँखों में वैसा प्यार भी नहीं था, इट वाज़ लस्ट...ओह गॉड (उनकी नज़रों में हवस थी)...' मनिका अपने विचारों को रोकने में असमर्थ थी, उसने एक बार फिर आँखें खोल अपने पिता की तरफ देखा, जयसिंह की साइड का नाईट-लैंप जल रहा था इसलिए वह उन्हें साफ़ देख पा रही थी. उनके चेहरे को देखते ही मनिका की जैसे आँखें खुल गईं, 'ओह गॉड, पापा...जब से हम यहाँ आए हैं, पापा सिर्फ मुझे उसी नज़र से तो देखते हैं...' मनिका का गला भर आया था. फिर उसे सपने में उनका जबरदस्ती उसका हाथ पकड़ना भी याद आ गया, 'और अब भी तो पापा मुझे अपनी गोद में इशारा कर के बैठने को कहते हैं...यहाँ आने के बाद से मैं हमेशा उनके लैप में ही बैठती हूँ...ओह शिट...ही इज़ ऑलवेज टचिंग मी (वे हमेशा मुझे छूते भी रहते हैं)...और वो मेरे बम्स (नितम्बों) पर स्लैप (चपत) लगाना...! आई ऍम ग्रोन अप नाउ (मैं बड़ी हो गई हूँ)...और पापा मुझे इस तरह हाथ लगाते रहते हैं...मैं ये सब पहले क्यूँ नहीं देख पाई!?'
मनिका की अंतरात्मा जैसे एक पल में ही जाग उठी थी, उसे जयसिंह की हर वो हरकत याद आने लगी थी जिसके बहाने से उन्होंन उस के साथ अमर्यादित व्यवहार किया था और उसने उनकी नादानी समझ कर अनदेखा कर दिया था. और फिर तो उन्होंने उसे मर्द-औरत के रिश्तों और ऐसी ही बातों में लगा कर किस तरह यह एहसास भी नहीं होने दिया था कि उनके मन में क्या है.
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