Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
01-02-2020, 12:49 PM,
#32
RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
इस तरह अपनी गोद में जकड़ कर बैठे थे तो उसके मन में प्रतिरोध की जगह कुछ और ही ख्याल चल रहे थे, 'ओह्ह गॉड...पापा तो रुक ही नहीं रहे...कितने गंदे हैं पापा...मुझे जबरदस्ती पकड़ कर अपनी लैप में बिठा लिया है...अपने डिक (लंड) पर...ओह्ह, कितना बड़ा डिक है पापा का...ओह गॉड! आई कैन फील इट अंडर मीईईई...' उधर जयसिंह के उसके गाल और गर्दन पर चलते हाथ ने उसे और अधिक उत्तेजित करने का काम किया था, और आखिर में न चाहते हुए भी मनिका ने समाज के बनाए नियमों को ताक पर रख दिया था, वह अपने पिता की कामेच्छा के आगे बेबस हो कर उनसे लिपट गई थी.

अपने पिता के साथ आलिंगनब्ध मनिका गरम-गरम साँसें भर रही थी. जयसिंह अपनी छाती से लगा कर उसके वक्ष का मर्दन जारी रखे हुए थे, और उनकी जकड़ की तीव्रता के बढ़ने के साथ ही मनिका के बदन में जैसे एक तड़पा देने वाली सी चुभन उठ रही थी. उसका मुहं जयसिंह के कान के पास था,

'पापाआआआअह्हह्हह्ह...पापाआआआअम्मम्मम्मम...' वह हौले-हौले उनके कान में फुसफुसाती जा रही थी. जयसिंह ने भी अब उसकी पीठ और कमर को सहलाना शुरू कर दिया था. पर इस से पहले की दोनों बाप-बेटी अपने रिश्ते कि देहलीज़ लांघने की गलती कर पाते, उनके कमरे के दरवाज़े पर दस्तक हुई और आवाज़ आई,

'रूम सर्विस, सर.'

जयसिंह ने मनिका को एक आखिरी बार अपनी छाती से भींचा और फिर धीरे से उसे अपनी गिरफ्त से आज़ाद कर दिया. उनकी नज़र मिली और मनिका के चेहरे पर लाली फ़ैल गई. जयसिंह ने आवाज़ दी,

'येस, कम इन...'

मनिका उनकी गोद से उठने को हुई पर जयसिंह ने उसे हल्के से पकड़ कर बैठे रहने का इशारा किया. तब तक रूम सर्विस वाला वेटर अन्दर आ चुका था. जयसिंह ने अपना एक हाथ तो पहले ही मनिका की कमर में डाल रखा था, अब उन्होंने अपना दूसरा हाथ मनिका की जांघ पर रख लिया. मनिका शर्म से तार-तार हो रही थी. उसने आज जानबूझकर एक सूट पहना था, लेकिन उनके आवेश भरे आलिंगन के दौरान मनिका की कुर्ती ऊपर हो गई थी और उसकी चूड़ीदार पजामी में लिपटी मांसल टांगें नज़र आने लगी थी. जयसिंह उन्हें सहलाने लगे.

वेटर टेबल साफ़ करके जाने में काफी वक्त लगा रहा था. आखिर वह भी कितनी देर बहाना करता, उसने टेबल से नाश्ते का बचा-खुचा सामान लिया और चलता बना. जयसिंह ने उसे कहा था की वे टिप अगली बार देंगे, अभी थोड़े बिजी हैं, और मनिका को देख मुस्का दिए थे. मनिका ने उनकी छाती में मुहं छुपा लिया था, और वेटर भी एक कुटिल मुस्कान के साथ चला गया था.

गेट बंद होने के बाद जयसिंह और मनिका कुछ देर उसी तरह बैठे रहे, मनिका का दिल धौंकनी सा धड़क रहा था. उसे एहसास हुआ कि उसके पापा उसे ही निहार रहे हैं, उसने हिम्मत कर के उनकी तरफ देखा, लेकिन उनकी नज़रों के आवेग के आगे न टिक सकी और शरमाते हुए फिर से नज़र झुका ली. जयसिंह उसे ही देखते रहे.

जब काफी देर हो गई और जयसिंह ने उसपर से नज़र नहीं हटाई और न ही कुछ बोले, तो मनिका ने खिसिया कर हौले से कहा,

'पापाआआ...'

'क्या हुआ मेरी जान...' जयसिंह ने मनिका के बोलते ही अपने हाथ से उसका हाथ पकड़ लिया और उसकी अँगुलियों में अपनी अंगुलियाँ डाल सहलाने लगे.

'उन्हह...' मनिका कुछ न बोल पाने की स्थिति में थी.

'लुक एट मी डार्लिंग.' जयसिंह ने कहा.

मनिका ने किसी तरह उनसे नज़र मिलाई, पर ज्यादा देर तक उनसे नज़रें बाँध कर न रख सकी और एक बार फिर शर्म से लाल होते हुए सर झुका लिया. जयसिंह तो जैसे स्वर्ग में थे.

पर उनका ये स्वर्ग ज्यादा देर नहीं टिक सका, अबकी बार उनका फोन बज उठा था. उन्होंने देखा की माथुर का कॉल आ रहा था. बात करने पर पता चला कि उन्हें फिर एक मीटिंग में बुलाया गया है. उनके बात करने के लहजे से मनिका को भी आभास हो गया था के वे बाहर जा रहे हैं. फोन रख चुकने के बाद जयसिंह कुछ पल चुप रहे, फिर उन्होंने कहा,

'जाना पड़ेगा, कुछ जरूरी काम आ गया है.'

'जी.' मनिका ने धीरे से उठते हुए कहा, जयसिंह ने भी उसे नहीं रोका. मनिका उठ कर उनके पास ही खड़ी थी. जयसिंह भी उठने लगे, 'आह...' वे अचानक कराह उठे.

उनका लंड अपने प्रचंड रूप में खड़ा था और उसके पेंट और अंडरवियर में कैद होने की वजह से उनकी आह निकल गई थी. मनिका के चेहरे पर एक पल के लिए चिंता का भाव आया था, लेकिन जयसिंह ने अपना हाथ मनिका की नज़रों के सामने ही अपनी पेंट के अगले हिस्से पर रख कर अपने लंड को थोड़ा सीधा कर दिया था, मनिका शर्म के मारे पलट गई.

'हाहाहा...' जयसिंह ठहाका लगा कर हंस दिए.

'ठक्क', दरवाजा बंद होने की आवाज़ आई. जयसिंह तैयार होकर मीटिंग के लिए चले गए थे. जाने से पहले उन्होंने मनिका को एक बार फिर बाहों में भर लिया था और कहा था,

'आई विल ट्राई तो कम बैक एज सून एज पॉसिबल.' मनिका शरमा गई थी.

उनके जाते ही मनिका भाग कर औंधे मुहं बेड पर जा गिरी. 'ओह शिट, ओह गॉड...पापाआआअ...पापा एंड मी...हमने अभी ये सब क्या किया! पापा ने मुझे अपनी बाहों में लेकर...उह्ह ही इज़ सो स्ट्रांग...वी वर हग्गिंग (गले मिलना) लाइक लवर्स...और उस वेटर के सामने पापा मेरी थाईज़ पर हाथ फिरा रहे थे...ओह गॉड...मुझे डार्लिंग और जान कह रहे थे...हाय...' मनिका ने तकिए को बाहों में कसते हुए सोचा. 'और पापा का डिक...उनसे तो खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था...क्यूंकि...इश्श...क्यूंकि उनका डिक खड़ा था...ईहिहिही...आई कुड फील इट अंडर माय बम्स...हाय राम...पापा कितने गंदे हैं...और मैं भी...ओह गॉड, पर कितना अच्छा लग रहा था...उफ्फ्फ, ये क्या हो रहा है मेरे साथ.' मनिका उत्तेजना से कांपती हुयी बिस्तर पर पड़ी-पड़ी यही सब सोचती रही.

उधर जयसिंह का मन शांत था. जयसिंह ने अपनी हर कामयाबी को बहुत ही शांत तरीके से स्वीकार किया था और यही उनकी लम्बी सफलता का राज़ था. और अभी मनिका के साथ उन्हें सफलता पूरी तरह से मिली भी कहाँ थी. पर फिर भी आज की सुबह ने उनके चेहरे पर एक मंद मुस्कुराहट ला दी थी और वे हल्के मन से अपनी मीटिंग अटेंड करने जा रहे थे.

एक ही पल में मनिका के जीवन में आया यह सबसे बड़ा बदलाव था. मनिका ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि फ़िल्में और कहानियों में देख-देख कर जो उसने अपने होने वाले प्रियतम के सपने संजोए थे, वे इस तरह चकनाचूर हो जाएंगे. रह-रह कर उसे अपने पिता जयसिंह की गन्दी हरकतें याद आ रहीं थी, और जितना वह उनसे नफरत करने का सोचती, उतना ही अधिक उसका आकर्षण उनकी तरफ बढ़ता जा रहा था. मनिका का दिल और दीमाग दोनों ही मानो जल रहे थे, एक बार फिर उसे सुबह-सुबह हुई अपनी मानसिक जागृति का ध्यान आने लगा, कि किस तरह उसके पिता ने उसे अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों से साध लिया था.

लेकिन उसे हैरानी इस बात पर हो रही थी कि अब जब वह सब कुछ जान चुकी थी फिर भी उसका पापा के सामने कोई बस नहीं चल रहा था. उसने बेड पर पड़े-पड़े भी दो-तीन बार सोचा था कि वह अपने आप को जयसिंह से दूर रखेगी, लेकिन मानो कुछ ही पलों में वह अपने प्रण को भूल कर फिर से अपने पिता के सम्मोहन ने फंस जाती थी. जहाँ जयसिंह ने मनिका को 'जान' और 'डार्लिंग' जैसे संबोधनों से पुकारना शुरू कर दिया था, वहीँ मनिका के लिए उसके ख्यालों में भी उनका एक ही नाम था, 'पापा'. न जाने क्यूँ उन्हें 'पापा' कहना उसके पूरे बदन को गुदगुदा देता था. शायद यह शब्द उसे उन दोनों के बीच के पावन रिश्ते की याद दिलाता था, और समाज से छुप कर यूँ अपने पिता के साथ बन रहे इस नापाक सम्बन्ध के बारे में सोचने पर वह उत्तेजित हो उठती थी. इसीलिए जब जयसिंह ने उसे अपनी बाहों में भींच रखा था तब भी वह मदहोश सी होकर सिर्फ 'पापाआआ-पापा' कह कर ही पुकारती रही थी. इसी तरह मदहोश पड़ी मनिका को वक्त बीतने का एहसास ही नहीं हुआ था, अपने फ़ोन की रिंगटोन सुन आखिर उसकी तन्द्रा टूटी.

'पापा' का ही फोन था. मनिका की तो जैसे साँस गले में ही अटक गई थी.

'हेल्लो.' उसने फोन उठा हौले से कहा.

'क्या कर रही हो जानेमन?' उसके पिता ने चहक कर पूछा.

'कुछ नहीं पापा...उह्ह.' मनिका के चेहरे पर उनको पापा कहते ही लालिमा छा गई थी और उसकी आह निकल गई. 'देखो तो मुए, कैसे मुझे जानेमन बुला रहे हैं...' उसने मन ही मन सोचा.

'हम्म...मुझे मिस (याद) नहीं कर रही?' जयसिंह ने नाटकीय अंदाज़ में पूछा.

'इह...' मनिका के मुहं से इतना ही निकल सका था.

'बोलो न डार्लिंग, मुझे मिस कर रही हो या मैं चला जाऊं...' जयसिंह तो किसी मनचले लड़के की तरह रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे.

'मत जाओ...' मनिका ने धीमे से कहा.

'हाहाहा...मतलब मिस तो कर रही है मुझे मेरी मनिका...' जयसिंह खिलखिलाकर बोले.

'हूँ...' मनिका ने धीमे से कहा.

'चलो फिर रेडी हो कर नीचे आ जाओ लंच करने. मैं भी १० मिनट में पहुँच रहा हूँ.' जयसिंह ने बताया.

फोन रखने से पहले जयसिंह ने एक बार फिर उस से पूछा था कि क्या वह आ रही है, और मनिका ने हौले से कहा था, 'हाँ पापा...' और सिहर गई थी. अब वह उठी, घड़ी में देखा तो शाम के पांच बजने को थे, 'हे भगवान, टाइम का पता ही नहीं चला...' उसने अपने कपड़े जरा ठीक किए, और फिर हल्का सा मेकअप कर, नीचे होटल के रेस्टोरेंट में पहुँची. जयसिंह अभी आए नहीं थे, धड़कते दिल से मनिका ने एक कार्नर सीट पर बैठ अपने पिता के आने का इंतज़ार शुरू किया.

'पापा ऐसे मत देखो ना.' मनिका ने मन ही मन कहा. उसके पिता जयसिंह आ चुके थे और वे आमने-सामने बैठ कर लंच कर रहे थे. मीटिंग में बिजी होने के कारण जयसिंह ने भी खाना नहीं खाया था. जयसिंह और मनिका की नज़र बार-बार मिल रही थी और, जहाँ जयसिंह के चेहरे पर एक उन्माद भरी कुटिल मुस्कान तैर रही थी वहीँ उनकी बेटी मनिका ह्या से बोझिल उनकी मुस्कान का जवाब दे रही थी.

जब शर्म की मारी मनिका ने कुछ देर उनकी तरफ नहीं देखा था तो जयसिंह ने टेबल के नीचे उसकी टांग पर अपने पैर से हल्का सा छुआ था. मनिका ने घबरा कर अपनी बड़ी-बड़ी आँखें उनसे मिलाई और एक बार फिर शर्म से लाल होते हुए मुस्का दी.

जब वे खाना खा चुके तो जयसिंह ने सुझाया कि कुछ देर होटल में ही बने पार्क में घूमा जाए, और फिर मनिका का हाथ अपने हाथ में ले उसके साथ बाहर चल दिए. मनिका को उनके स्पर्श से ही जैसे करंट लग रहा था, और वह यंत्रवत उनके साथ चल दी थी. कुछ देर पार्क में टहलते रहने के बाद जयसिंह और मनिका अपने रूम में आ गए थे, उन दोनों के बीच कोई बात भी नहीं हुयी थी, वे बस मंद-मंद मुस्काते घूमते रहे थे. उस वक्त शाम के करीब सात ही बजे थे.

कमरे में आने के बाद मनिका थोड़ी असहज हो गई थी, और जयसिंह आगे क्या करने वाले हैं यह सोच-सोच कर उसका दिल जोरों से धड़क रहा था.
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