Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
01-02-2020, 12:49 PM,
#34
RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
जयसिंह बाहर बैठे सोच ही रहे थे कि रेज़र्वेशन कैन्सल करवाएँ या क्या करें जब बाथरूम का दरवाज़ा खुला. उन्होंने ऊपर देखा तो पाया कि मनिका अपने हाथों से अपनी योनि छुपाए बाहर निकली थी.

‘मेरे पास मत आना!’ मनिका ने उन्हें देखते ही चेतावनी दी, और एक पल उन्हें घूरा, जब जयसिंह उसी तरह जड़वत बैठे रहे, तो वह तेज़ी से अपने सामान के पास गयी और कुछ कपड़े लेकर भाग कर वापस बाथरूम में घुस गयी. इस पूरे वाक़ये में कुछ दस से पंद्रह सेकंड ही लगे होंगे.

जब वह वापस बाहर आयी तो पाया के जयसिंह अपना सूट्केस ले कर कमरे के गेट के पास खड़े हैं, उनकी नज़र झुकी हुई थी. मनिका ने बाथरूम में घुस कर कपड़े बदल लिए थे, अब उसने भी अपने कपड़े बैग में रखे, और अपने भीगा सूट जो वह निचोड़ कर लायी थी, एक प्लास्टिक के लिफ़ाफ़े में डाल कर पैक कर लिया. उसने देखा कि जयसिंह अभी तक अपनी जगह से हिले भी नहीं थे. उसने अपना बैग और सूट्केस लिया और दरवाज़े की तरफ़ थोड़ा सा बढ़ी, जयसिंह की इतनी भी हिम्मत नहीं हो रही थी की अपनी बेटी की तरफ़ देख सकें, वे मुड़ कर दरवाज़े से बाहर निकलने को हुए.
‘अगर आपने मुझे हाथ भी लगाने की कोशिश की तो ठीक नहीं होगा!’ मनिका की तल्ख़ आवाज़ उनके कानों में पड़ी. वे बिना कुछ बोले बाहर निकल गए.

मनिका एक पल वहीं खड़ी हुयी ग़ुस्से और दर्द से काँपती रही थी.

बाहर होटेल का हेल्पर उनका सामान लेने आ गया था, जयसिंह ने उसे अंदर से सामान ले आने को कहा और नीचे चले गए. कुछ देर बाद मनिका भी रूम से बाहर आयी और नीचे होटेल की लॉबी की तरफ़ चल दी.

होटेल से वापस राजस्थान तक के सफ़र में मनिका और जयसिंह के बीच एक लफ़्ज़ की भी बातचीत नहीं. कैब से रेल्वे-स्टेशन पहुँचने और अपने ए.सी. फ़र्स्ट-क्लास के कम्पार्ट्मेंट में, वे दोनों एक दूसरे से दूरी बनाए रहे थे. आज न तो उन्हें भूख लग रही थी न ही प्यास — एक तरफ़ मनिका जयसिंह को मन ही मन कोस रही थी और दूसरी तरफ़ जयसिंह ख़ुद अपने पाप की आग में जल रहे थे.

आख़िरकार सफ़र का अंत आ गया, जब ट्रेन बाड़मेर स्टेशन में घुसने लगी, तो लोग उठ-उठ कर अपना सामान दरवाज़ों के पास जमा करने लगे. जयसिंह ने उठ कर अपना सूट्केस बर्थ के नीचे से निकाला, और फिर मनिका के सामान की तरफ़ हाथ बढ़ाया.

‘कोई ज़रूरत नहीं है एहसान करने की…’ मनिका बेरुख़ी से बोली.

वे रुक गए.

‘अभी घर जाते ही सब को बताऊँगी कि आप का असली रूप क्या है!’ मनिका ने रुआंसी हो कर कहा.

जयसिंह ने एक दफ़ा उसकी तरफ़ मिन्नत भरी नज़रों से देखा, पर उनसे कुछ कहते न बना. तभी ट्रेन एक झटके के साथ रुक गयी.

स्टेशन पर मनिका का पूरा परिवार उन्हें रिसीव करने आया हुआ था. मनिका पहले बाहर निकली थी, और अपने छोटे भाई-बहन को देख उसके चेहरे पर भी एक मुस्कान आ गयी थी. फिर वह थोड़ा सकुचा कर अपनी माँ की तरफ़ बढ़ी,

‘आ गये वापस आख़िर तुम दोनों…’ मनिका की माँ ने मुस्कुरा कर कहा, लेकिन उनकी आवाज़ में हल्का सा व्यंग्य भी था, ज़ाहिर था कि वे मनिका का व्यवहार भूली नहीं थी.

मनिका का दिल भर आया, उसने अपनी माँ को कितना ग़लत समझा था. वह आगे बढ़ी और मधु के गले लग गयी,

‘ओह, मम्मा…’ उसने अपने माँ को बाँहों में भरते हुए कहा, ‘आइ एम सो सॉरी…’

‘अरे…’ मनिका की माँ उसके बदले स्वरूप से अचंभे में थी, फिर संभल कर मुस्कुराई और उसे फिर से गले लगाते हुए बोली, ‘कोई बात नहीं…कोई बात नहीं, चलो भी अब, घर नहीं चलना?’

जयसिंह का यह डर के मनिका घर पहुँच कर उनकी सारी पोल खोल देगी, ग़लत साबित हुआ. हालाँकि शुरू के चार-पाँच दिन तो वे धड़कते दिल से रोज़ घर से अपने ऑफ़िस जाया करते थे, लेकिन फिर धीरे-धीरे वे थोड़ा आश्वस्त हो चले कि अगर मनिका से आगे छेड़-छाड़ न की तो शायद वह किसी से कुछ ना बोले. उधर मनिका ने भी अपना इरादा बदल लिया था, उसने सोचा तो था कि वह अपनी माँ से सब सच-सच बोल देगी, लेकिन जब उसने घर पर इतनी ख़ुशी का माहौल देखा तो उस से कुछ कहते न बना. और बात टलते-टलते टल गयी. जयसिंह का अंदाज़ा सही था, मनिका ने सोच लिया था कि अगर जयसिंह आगे कोई भी गंदी हरकत करेंगे तो वह सबकुछ उगलने में एक पल की भी देरी नहीं करेगी. मनिका को एक और बात भी खल रही थी, उसका अड्मिशन तो दिल्ली में हो गया था लेकिन अब वह जयसिंह के पैसों से वहाँ पढ़ना नहीं चाहती थी. परंतु इस बात पर काफ़ी गहरायी से सोचने के बाद उसने दिल्ली ही जाने का फ़ैसला कर लिया - उसका तर्क था कि वहाँ जा कर एक तो वह हर वक़्त जयसिंह का सामना करने से बच सकेगी - उसे अब वे फूटी आँख नहीं सुहाते थे - और दूसरा, ग़लती जयसिंह की थी और अगर उनका पैसा ख़र्च होता भी है तो अब उसे फ़र्क़ नहीं पड़ना चाहिए, यह उसका हक़ था कि जयसिंह से दूर रहे, भले ही इसके लिए उनका ख़र्चा हो रहा हो.

दो एक हफ़्ते बाद, मनिका के फिर से दिल्ली जाने का समय आ गया. इस बार जयसिंह ने अपनेआप ही उसके साथ जाना यह कह कर टाल दिया के ऑफ़िस में पहले ही काफ़ी काम बाक़ी पड़ा है, सो वे नहीं जा सकेंगे. उधर मनिका ने भी अपनी माँ को इस बात की फ़िक्र में देख उन्हें आश्वासन दिया कि अब उसे दिल्ली में कोई परेशानी नहीं होगी, उसने सभी ज़रूरत की जगहें देख लीं है और वह आराम से आने-जाने में समर्थ है. घर में इस बात को लेकर काफ़ी दिन डिस्कशन चला परंतु अंत में यही तय हुआ कि मनिका अकेले ही दिल्ली जाएगी. वापस आने के बाद से ही मनिका और उसकी माँ में घनिष्टता बढ़ गयी थी, और उसकी माँ ने कई बार उसके समझदार हो जाने कि दाद दी थी. इसी तरह, कुछ अपनों का प्यार और कुछ अपने कल के बुरे अनुभवों से बाहर निकलने के सपने लिए मनिका दिल्ली के लिए रवाना हो गयी.

उस दिन भी, जयसिंह काम का बहाना ले कर, उसे रेल्वे-स्टेशन छोड़ने नहीं आए थे.

एक साल बीत चुका था. मनिका को दिल्ली रास आ गयी थी, उसके बहुत से नए दोस्त बन गए थे और पढ़ाई में तो वह अव्वल रहती ही थी. कॉलेज शुरू होने के बाद से वह वापस बाड़मेर नहीं गयी थी. घर से फ़ोन आता था तो वह कोई न कोई बहाना कर के टाल जाती, बीच में एक दफ़ा मनिका की माँ और उसके भाई-बहन उसके मामा के साथ दिल्ली आ कर उस से मिल कर गए थे. परंतु न तो जयसिंह उनके साथ आए न ही उनसे उसकी कोई बात हुयी. अगर उसकी माँ कभी फ़ोन पर उस से पूछ भी लेती कि ‘पापा से बात हुई?’ तो वह झूठ बोल देती कि हाँ हुई थी. उधर जयसिंह भी इसी झूठ को अपनी बीवी के सामने दोहरा देते थे कि मनिका से बात होती रहती है. मनिका के बिना कहे ही उसके अकाउंट में हर महीने पैसे भी वे जमा करवा देते थे और अगर मनिका को किसी और ख़र्चे के लिए पैसे चाहिए होते थे तो वह अपनी माँ से ही कहती थी.

कॉलेज का पहला साल ख़त्म हो चुका था, लेकिन मनिका एक्स्ट्रा-क्लास का बहाना कर दिल्ली में ही रुकी हुयी थी. उसके कॉलेज के हॉस्टल में कुछ विदेशी स्टूडेंट्स भी रहती थी, सो हॉस्टल पूरे साल खुला रहता था.

आज मनिका का जन्मदिन था.

मनिका ने अपनी माँ से कुछ दिन पहले ही कुछ पैसे भिजवाने को कहा था, लेकिन वे भूल गयी थी. मनिका ने अपनी कुछ लोकल फ़्रेंड्ज़ को पार्टी के लिए बुलाया था. पर जब उसने अपने अकाउंट में बैलेन्स चेक किया तो पाया कि पैसे अभी तक नहीं आए थे. हालाँकि उसके पास पैसे पड़े थे लेकिन वे उसके महीने के नॉर्मल ख़र्चे वाले पैसे थे. ‘शायद मम्मा भूल गयी, चलो कोई बात नहीं, उनसे बाद में डिपॉज़िट कराने को कह दूँगी.’ मनिका ने सोचा और पार्टी करने फ़्रेंड्ज़ के साथ साकेत मॉल चल दी.

उन्होंने उस दिन काफ़ी मज़ा-मस्ती की. मनिका की सहेलियाँ उसके लिए एक केक लेकर आयीं थी —अपना फ़ेवरेट चोक्लेट केक देख वह बहुत ख़ुश हुई. पूरा दिन इसी तरह हँसते-खेलते और शॉपिंग करते बीत गया, कब शाम हो गयी उन्हें पता भी न चला. वे सब अब अपने-अपने घर के लिए निकलने लगीं. आख़िर में मनिका और उसकी फ़्रेंड रश्मि ही रह गए.

‘आर यू नॉट लीविंग?’ मनिका ने रश्मि को जाने का नाम न लेते देख पूछा. वह आज की पार्टी की होस्ट थी सो उसने सोचा था सब के चले जाने के बाद हॉस्टल के लिए निकलेगी.

‘या या…यू गो मणि, आइ विल गो बाय मायसेल्फ़.’ रश्मि बोली.

‘अरे, हाउ केन आइ गो लीविंग यू हियर?’ मनिका बोली, ‘तुम सब सेफ़्ली घर चले जाओ उसके बाद ही मैं जाऊँगी…’

‘हाहाहा…आइ एम नॉट गोइंग होम सिली (बेवक़ूफ़).’ रश्मि ने खिखियाकर कहा.

‘वट डू यू मीन?’ मनिका ने आश्चर्य से पूछा.

‘अरे यार, राजेश आ रहा है मुझे लेने, मैंने घर पर तेरे बर्थ्डे का बहाना किया है और बोला है कि आज तेरे पास रुकूँगी…’ रश्मि ने मनिका को आँख मारते हुए कहा. राजेश उसका बॉयफ़्रेंड था.

‘हैं…’ मनिका ने बड़ी-बड़ी आँखें कर के पूछा, ‘तुम उसके साथ रहोगी रात भर?’

‘हाहाहा…हाँ भयी हमारी बाड़मेर की सावित्री…वी विल हैव सम फ़न टुनाइट…’ रश्मि ने उसे फिर आँख मारी. सब जानते थे कि मनिका का कोई बॉयफ़्रेंड नहीं था.

‘हे भगवान…’ मनिका से और कुछ कहते न बना.

तभी रश्मि का फ़ोन बज उठा, राजेश बाहर आ गया था. रश्मि मुस्कुराते हुए उठ खड़ी हुयी,

‘ओके मणि, थैंक्स फ़ोर द ओसम ट्रीट. अब तुम जा सकती हो…बहुत मज़ा आया आज…काफ़ी पैसे भेजे लगते हैं तुम्हारे पापा ने उड़ाने के लिए इस बार.’

‘हुह…’ अपने पिता का ज़िक्र सुन मनिका ने मुँह बनाया, फिर मुस्का कर बोली, ‘थैंक्स फ़ोर कमिंग रशु.’

रश्मि के जाने के बाद मनिका ने अपने गिफ़्ट्स समेटे और एक कैब लेकर अपने हॉस्टल आ गयी. रास्ते में वह यही सोच रही थी कि रश्मि कितनी चालू निकली, अपने बॉयफ़्रेंड के साथ ‘फ़न’ करेगी मेरा बहाना लेकर. ‘चलो जो भी करे मुझे क्या करना है.’ तब तक उसका हॉस्टल आ गया था.

मनिका ने अपने रूम में पहुँच कर कपड़े बदले और हाथ-मुँह धो कर बेड पर जा बैठी व एक-एक कर अपने गिफ़्ट देखने लगी. सब लड़कियों को अमूमन मिलने वाली ही चीज़ें थी — दो स्कर्ट्स थे, जो अदिति लायी थी, एक मेक-अप किट था, रवीना की तरफ़ से, और एक क्रॉप-टॉप था, रश्मि की तरफ़ से. ‘अपने जैसा ही गिफ़्ट लाई है मुयी.’ मनिका ने क्रॉप-टॉप देख कर सोचा.

तभी उसका फ़ोन बज उठा. देखा तो उसकी माँ का फ़ोन था.

‘हाय मम्मा..’ मनिका ने उत्साह से फ़ोन उठाते हुए कहा.

‘कैसा रहा बर्थ्डे?’ उसकी माँ ने पूछा.

‘बहुत अच्छा मम्मा…’ मनिका उन्हें दिन भर की बातें बताने लगी.

कुछ देर माँ-बेटी की बातें चलती रहीं. तभी मनिका को याद आया,

‘माँ, आपको पैसे ट्रान्स्फ़र के लिए बोला था ना बर्थ्डे के लिए? आपने भेजे ही नहीं…सारी पार्टी अपने नॉर्मल वाले बैलेन्स से करी है आज मैंने…’

‘अरे, तेरे पापा को बोला था, कुछ याद नहीं रहता इन्हें भी, ले तू ही बोल दे…’ उसकी माँ ने कहा.

मनिका कुछ बोल पाती उस से पहले ही दूसरी तरफ़ से फ़ोन किसी और के पकड़ने की आवाज़ आयी. मनिका की धड़कनें बढ़ गयी थी.

‘हेल्लो?’ उसके पिता की आवाज़ आइ.

मनिका कुछ नहीं बोली.

‘अच्छा हाँ, हैपी बर्थ्डे वन्स अगैन मणि…हाँ हाँ सॉरी, वो पैसे मैं सुबह ही भेज देता हूँ.’ जयसिंह मधु के सामने झूठ-मूठ ही बातें कर रहे थे. ‘लो हाँ भयी, मम्मी से बात कर लो.’

उसके पिता ने बड़ी ही चतुरायी से फ़ोन वापस उसकी माँ को दे दिया था.

मनिका की माँ ने कुछ देर और बातें करने के बाद फ़ोन रख दिया था. मनिका अपना सामान एक ओर रख बेड पर लेटी हुयी थी, उसके मन में एक उथल-पुथल मची हुयी थी. आज एक अरसे बाद जयसिंह की आवाज़ सुनी थी, उन्होंने उसे ‘मणि’ कह कर पुकारा था. मनिका ने उस भयानक रात के बाद काफ़ी वक़्त यह सोचते हुए बिताया था, कि आख़िर क्यूँ, कब और कैसे उसके पिता ने उसे बुरी नज़र से देखना शुरू किया था. उसे एहसास हुआ कि जब से जयसिंह ने उसे मनिका कह कर बुलाना शुरू किया था, तभी से उनके आचरण में बदलाव आ गया था. और आज उनका उसे उसके घर के नाम से बुलाना उसे थोड़ा विचलित कर गया था — ‘क्या पापा अपने किए पर शर्मिंदा हैं?’ उसने मन ही मन सोचा. धीरे-धीरे उसे पुरानी बातें याद आने लगीं, जिनके बारे में सोचना वह छोड़ चुकी थी — कि कैसे जयसिंह उस रात के बाद उस से दूर रहने लगे थे और उस से आँखें तक नहीं मिलते थे. लेकिन उनसे सामना हुए एक साल बीत चुका था — ‘तो क्या पापा सच में बदल गए हैं?’ मनिका ने ख़ुद से एक और सवाल किया. सोचते-सोचते उसने करवट बदली और उसकी नज़र सामने कुर्सी पर रखे उस क्रॉप-टॉप पर गयी जो आज उसे गिफ़्ट में मिला था.

‘रश्मि भी ना ज़्यादा मॉडर्न बनती है…क्या कह रही थी आज, बाड़मेर की सावित्री…एक बॉयफ़्रेंड क्या बना लिया. सब मुझे इसी तरह चिढ़ाते हैं…उन्हें क्या पता मेरे साथ क्या हो चुका है, मेरे अपने पापा ने मुझे…हाय…कितनी बेवक़ूफ़ थी मैं, सब जान कर भी अनजान बनी रही…और पापा ने कितना फ़ायदा उठाया मेरा. स्कूल की सब फ़्रेंड्ज़ तो पापा को मेरा बॉयफ़्रेंड तक कहती थीं…और यहाँ सब सोचतीं है कि मुझे कुछ पता नहीं लड़कों के बारे में…उन्हें क्या पता है..? उनके ऐसे गंदे पापा जो नहीं है…जो उन्हें अपने साथ रूम में सुला कर गंदी हरकतें करते हों और अपना…डिक…दिखाते हों…हाय राम, कितना बड़ा और काला डिक था पापा का…और वे मुझे दिखा दिए…ज़रा भी शर्म नहीं आइ. कैसे चमक रहा था उनके पैरों के बीच, और पापा के बॉल्ज़ (टट्टे) भी कितने बड़े-बड़े थे…’ मनिका को एहसास भी नहीं हुआ था कि कब यह सब सोचते-सोचते उसने अपनेआप को अपनी बाँहों में कस लिया था और अपनी टाँगें भींच ली थी. अचानक उसकी तन्द्रा टूटी, उसके पूरे बदन में एक अजीब सी लहर उठ रही थी. कुछ पल तक उसने हिलने-डुलने की कोशिश की, लेकिन उसपर एक मदहोशी सी छाने लगी थी और थोड़ी ही देर में वह गहरी नींद के आग़ोश में समा गयी.

उधर जयसिंह ने आज अपनी बीवी के अचानक से उन्हें फ़ोन पकड़ा देने पर बड़ी ही होशियारी से स्थिति को संभाल लिया था. वे यही सोचते-सोचते सो गए थे कि कहीं मनिका बुरा न मान गयी हो और यह न सोच ले कि उन्होंने जान-बूझकर फ़ोन लिया था.

अगली सुबह जब मनिका उठी, तो कुछ पल के लिए वह समझ नहीं पाई कि वह इतनी विचलित क्यूँ है. पर फिर उसे पिछली रात की बातें याद आने लगी, उसने कल एक साल में पहली बार अपने गंदे बाप की आवाज़ सुनी थी. और यही सोचते-सोचते उसकी आँख लग गयी थी, वह अब उठने को हुई, लेकिन कॉलेज की तो छुट्टियाँ चल रहीं थी, आलस के मारे उसने फिर आँखे मींच ली और सुस्ताने लगी. धीरे-धीरे उसके अवचेतन मन में फिर से वही बातें आने लगीं — ‘सब को लगता है, बॉयफ़्रेंड ही सबकुछ होते हैं…क्या तो बॉयफ़्रेंड है रश्मि का, राजेश, न कुछ काम करता है न कुछ और…बस बाइक लेकर आवारगर्दी करता है पूरे दिन…उस पर इतना इतराती और है, और मुझे ताने मारती है…सब पता है मुझे इन मर्दों का, पापा ने भी तो यही कह कर फँसाया था…कि वो मेरे बॉयफ़्रेंड हैं, क्यूँकि मैंने उनको बता दिया कि मेरी बेवक़ूफ़ फ़्रेंड्ज़ उनके लिए ऐसा बोलती हैं…तो क्या तभी से वे मुझे गंदी नज़र से देखने लगे होंगे? हो सकता है…पर वे तो कहते थे कि बॉयफ़्रेंड्ज़ और मर्दों में डिफ़्रेन्स होता है…मे बी…मर्द काम करते हैं, सकक्सेस्फुल होते हैं, बॉयफ़्रेंड्ज़ की तरह आवारा नहीं होते…जैसे राजेश है…कितना इम्प्रेस हो गये थे वे लोग पापा से जिनके साथ हमने पूल खेला था…और रश्मि अवेंयी इतना इतराती है राजेश पर…क्या बोल रि थी कल, वी विल हेव सम फ़न?…उस लंगूर का क्या तो फ़न करेगी…उसका तो किसी मर्द जितना बड़ा भी नहीं होगा…पापा के डिक जैसा…ओह गॉड…कैसे हिलाया था पापा ने उसे…मुझे तो लगा था कि उछल कर मुझे टच करने वाला है…इतना लम्बा…’ मनिका बिस्तर में पड़ी-पड़ी कसमसा उठी थी और उलटी हो कर लेट गयी, पर उसके अंतर्मन की बातें फिर भी चलती रहीं, ‘आइ ईवेन ड्रीम्ड अबाउट ईट…कैसे पापा मेरे रूम में बेड पर आ गये थे…और मुझे बोले कि मैं तो नंगी हूँ…और पापा भी नंगे थे…मुझे कैसे अपनी बाँहों में दबा-दबा कर…ओह्ह्ह्ह…एंड आइ वास होल्डिंग हिज़ डिक…हाथ में पूरा ही नहीं आ रहा था…कैसे दबा रही थी मैं उसको…पापा का बड़ा सा डिक…कैसा गंदा बोल रहे थे फिर…जवान हो गयी हो…एंड मेरे बूब्स को घूर रहे थे, एंड हिज़ हैंड वास ऑन माई नेकेड थाइज़. बोले ब्रा और पैंटी उतार दो…बरमूडा शॉर्ट्स में से ही उनका डिक मुझे टच कर रहा था…’

‘उन्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह…’ एक ज़ोरदार सिसकी के साथ मनिका ने अपना अधोभाग ऊपर उठाया था, ‘उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़…’ एक दो बार और उसका शरीर थरथर्राया और फिर वह शांत हो गयी, उसकी गाँड अभी भी ऊँची उठी हुयी थी.

जब थोड़ी देर बाद मनिका होश में आयी तो उसके होश फ़ाख्ता हो गए, ‘ओह गॉड, ये अभी मैंने क्या किया…?’ वह थोड़ा सा हिली तो उसे अपने पैरों के बीच कुछ गीलापन महसूस हुआ. ‘ओफ़्फ़्फ…डिड आइ जस्ट केम?’ (क्या मैं अभी-अभी झड़ गयी हूँ?)

मनिका जल्दी से उठने को हुई लेकिन उसके बदन में जैसे बुखार आ गया था. वह निढ़ाल हो कर फिर से बिस्तर पर गिर पड़ी.
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