Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
01-02-2020, 12:50 PM,
#37
RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
अगले दिन सुबह जल्दी ही मनिका को ट्रैन पकड़नी थी। वो जल्दी से तैयार होकर स्टेशन के लिए रवाना हो गयी। ट्रैन में बैठकर उसने अपनी मम्मी को मैसेज कर दिया कि वो ट्रैन में सही सलामत बैठ गयी है।

उसकी मम्मी ने उसे अब तक नहीं बताया था कि उसके पापा उसे लेने नही आएंगे। मधु खुद ही उसे रिसीव करने जाने वाली थी।

इधर पूरे रस्ते मनिका अपने और जयसिंह के बीच दिल्ली में हुई घटनाओं के बारे में सोच सोच कर गरम होती रहती, "कैसे उसके पापा ने उसे पहली बार मनिका कहकर बुलाया था, कैसे वो उसे अपनी गर्लफ्रैंड की तरह ट्रीट करते थे, कैसे बहाने से उन्होंने अपना लंबा डिक उसे दिखाया था, "
मनिका के शरीर मे अकड़न सी हो जाती और वो बार बार अंगड़ाई लेती रहती।

" ये सफर भी कितना लंबा लग रहा है"मनिका मन ही मन उदास सी हो जाती।

" कब ये सफर खत्म होगा और कब मैं अपने प्यारे पापा से मिल पाऊंगी, जब वो मुझे स्टेशन पे देखेंगे तो क्या कहेंगे, कहीं वो मुझे मणि कहकर तो नही बुलाएंगे, नहीं नहीं " पल पल मनिका के चेहरे के भाव बदल रहे थे, कभी वो खुश होती तो कभी वो जयसिंह के बदलने की बात सोचकर खिन्न हो जाती।

यही सब सोचते सोचते उसका सफर लगभग खत्म होने वाला था। शाम के 4.30 हो चले थे। मनिका ने अपना सारा सामान सम्भाला।
अचानक उसको न जाने क्या सूझी की उसने बैग में से अपना मेकअप किट निकाला और उसमें से थोड़ा सा मेकअप का सामान लेकर बाथरूम में चली गयी, मनिका ऐसे सज रही थी जैसे वो घर नही अपने बॉयफ्रेंड से मिलने जा रही हो, उसने फटाफट अपना मेकअप फिनिश किया।
वो तो अब बला की खूबसूरत लग रही थी।

"पापा मुझे ऐसे देखेंगे तो उनके दिल पे तो छुरियाँ ही चल जाएगी " मनिका मन ही मन खुश होती हुई बोली।

आखिरकार लास्ट स्टेशन आ ही गया, उसका दिल अब जोर जोर से धड़कने लगा, उसने अपना बैग उठाया और ट्रैन से नीचे उतरी, उसने इधर उधर नज़र दौड़ाई , पर उसे जयसिंह नज़र नही आ रहा था, वो अपना सामान लेके मेन गेट की तरफ बढ़ने लगी, वहां पर काफी लोग अपने रिश्तेदारों को रिसीव करने आये हुए थे, मनिका उन चेहरों में अपने पापा का चेहरा तलाशने लगी, उसकी हार्टबीट बढ़ती ही जा रही थी,

"मणि, बेटा इधर देख, मैं इधर हूँ" अचानक मनिका को अपने कानों में आवाज़ सुनाई दी

उसने जब एक कोने में देखा तो वहाँ उसकी मम्मी उसकी ओर हाथ उठाकर इशारे कर रही थी, वो तुरंत अपनी मम्मी की ओर तेज़ गति से बढ़ने लगी, उसे लगा कि शायद उसे रिसीव करने उसके मम्मी पापा दोनों आये होंगे, पर अब भी उसे जयसिंह कहीं नजर नही आ रहा था, जैसे जैसे वो अपनी मम्मी के नज़दीक जा रही थी, उसका दिल बैठने लगा, जिसके लिए वो इतना सज धज कर आई वो तो उसे लेने ही नही आया, ये सोचकर ही मनिका को दुख सा होने लगा,पर उसने इसे अपनी मम्मी पर ज़ाहिर नहीं होने दिया।

"आ गई मेरी बेटी, कैसी है तू, सफर में कोई तकलीफ तो नही हुई" ये कहते हुए मधु ने उसे अपने गले लगा लिया।

"मैं बिल्कुल ठीक हूँ, और सफर भी बिल्कुल अच्छा रहा मम्मी" मनिका की आंखे अभी भी जयसिंह को ढूंढ रही थी।

"शायद वो कार में होंगे, पार्किंग की जगह नही मिली होगी, इसलिए बाहर गाड़ी में ही हमारा इंतेज़ार कर रहे होंगे" मनिका मन ही मन खुद को दिलासा देते हुए सोचने लगी।

"अरे कहाँ खो गयी बेटा, देख 1 साल में कितनी दुबली हो गयी है, वहाँ तुझे खाना नही देते क्या वो लोग" मधु बोली

"कहाँ दुबली हो गयी हूँ मम्मी, आप तो बस ऐसे ही मेरी टांग खींचते रहते हो" मनिका थोड़े मुस्कुराते हुए बोली

"तू घर चल, इस बार 1 महीने में तुझे खिला पिला कर तन्दरुस्त न कर दिया तो बोलना" ये बोलकर मधु और मनिका दोनों हसने लगी।


अब मनिका और मधु पार्किंग की तरफ बढ़ने लगे, जब वो लोग अपनी कार के पास पहुंचे, तो अब मनिका की आखरी आस भी टूट गयी, कार में कोई नही था, उसका दिल भर आया,

" शायद पापा मुझसे नाराज़ हैं , मैंने 1 साल तक उन्हें इतना परेशान किया, इसीलिए मुझे रिसिव करने नही आये, वरना पापा ही हमेशा सबको रिसिव करने आते है, अब मैं कैसे उन्हें अपने दिल की बात बता पाऊंगी, शायद वो बिल्कुल बदल गए है, नहीं नहीं मैं अपने पापा को अपने से दूर नहीं जाने दूंगी, नहीं जाने दूंगी " मनिका अपने अन्तर्मन को समझा ही रही थी कि मधु बोली
" अरे अब यहीं खड़े रहना है या फिर घर भी चलोगी "

मनिका - हां मम्मी, चलो
मधु - तो बैठो न गाड़ी में
फिर वो दोनों कार में बैठकर घर की तरफ रवाना हो गयी।

"मम्मी, आप तो बोल रही थी कि पापा मुझे रिसिब करने आएंगे" मनिका ने ये पूछने के लिए अपनी पूरी हिम्मत लगा दी थी

"बेटा, उनकी कोई जरूरी मीटिंग थी आज, इसलिए वो नही आ पाए, रात को शायद डिनर पे आ जाएं" मधु ने बड़े ही सामान्य तरीके से जवाब दिया।

उसके बाद मनीका और मधु ऐसे ही गप्पे लड़ाते हुए घर पहुंच गई।

घर पर मनिका की छोटे भाई बहन ( कनिका और हितेश) उसका बेसब्री से इंतेज़ार कर रहे थे, 1साल बाद अपनी बड़ी बहन से मिलकर वो दोनों बहुत खुश हुए, उन्होंने आते ही मनिका को बातो में लगा लिया, वो उससे दिल्ली के बारे में पूछने लगे, मनिका भी बड़े प्यार से उनको शहर की चमक धमक के बारे में बताती,

मनिका ने फ्रेश होकर दोबारा उनसे बातें करना शुरू कर दिया, मधु डिनर की तैयारियों में लग गई थी, मनिका अपने छोटे भाई बहन के लिए कुछ गिफ्ट्स लायी थी, गिफ्ट्स पाकर वो दोनों बड़े खुश हो गए, मनिका बाहर से तो बड़ी खुश थी पर उसकी आंखे अभी भी अपने पापा को देखने के लिए तरस रही थी,
( यहां मैं आप लोगो को उनके घर की बनावट बता देता हूँ।

उनका दो मंज़िल का शानदार घर था, दोनों मंज़िल पर तीन - तीन कमरे थे, हर कमरे में अटैच लेट-बाथ था, किचन नीचे ही था, एक बड़ा सा हॉल, जो सुख सुविधाओं की सभी चीज़ों से सम्पन्न था

ग्राउंड फ्लोर पर कोने के कमरे में जयसिंह और मधु रहते थे, दूसरे कमरे में कनिका और लास्ट वाले में हितेश रहता था,

मनिका पहले कनिका के साथ ही रहा करती थी पर बाद में उसने अपना सामान ऊपर वाली मंजिल पे शिफ्ट कर लिया था, ऊपर बीच वाला कमरा स्टोर रूम और सबसे लास्ट वाला गेस्ट रूम था )

मनिका अपने अपने भाई बहन से बातें कर तो रही थी पर उसका मन तो अपने पापा को देखने मे अटका था, जब उससे रहा न गया तो उठ कर किचन में अपनी मम्मी के पास चली गई,

" आज खाने में क्या बना रही हो ममा" मनिका बात शुरू करते हुए बोली

" बेटा, आज मैं तेरी मनपसन्द चीज़े बना रही हूं, मटर पनीर की सब्जी, राजमा ,पूड़ी और मीठे में खीर भी बना रही हूं" मधु ने जवाब देते हुए कहा

" वाव मम्मी, मुझे तो अरसा हो गया है अच्छा खाना खाएं, आज तो मैं जी भर के खाऊँगी" मनिका चहकते हुए बोली

" तू चिंता मत कर, तू जितने दिन यहां है मैं तुझे रोज़ अच्छी अच्छी चीज खाने को दूंगी, देखना एक महीने में तुझे बिल्कुल तन्दरूस्त न कर दिया तो बोलना" ये बोलकर दोनों हसने लगी।

"अच्छा मम्मी, पापा कब तक आएंगे" आखिर कार मनिका ने अपने दिल की बात पूछ ही ली

"शायद डिनर के टाइम तक आ जाएंगे, चल अब तू बाहर जा, मुझे बहुत से कम बाकी है" ये बोलते हुए मधु वापस खाना बनाने में बिजी हो गई।

मनिका सीधा अपने रूम में गई, उसने सोचा कि पापा के आने से पहले नहाकर रेडी हो जाती हूँ, मनिका ने अपना टॉवल लिया, और अलमारी में से अपनी ब्रा पैंटी ढूंढने लगी।

तभी उसके दिमाग मे एक आईडिया आया, उसने तुरंत अपने बैग में खोजना शुरू किया और थोड़ी ही देर में उसके हाथों में वो ब्रा पैंटी थी जो उसके पापा ने उसे दिलाई थी। वो तुरन्त उनको लेकर अपने बाथरूम में घुस गई।

उसने पलक झपकते ही अपनी टीशर्ट और नाइटी उतार दी, ब्रा पैंटी में समाए अपने गोरे बदन को देखकर वो शर्मा ही गई, धीरे धीरे उसका शरीर गरम होने लगा, अब उसने हल्के से अपनी काली ब्रा के हुक खोलना शुरू कर दिया, ब्रा की कैद से आज़ाद होते ही उसके छोटे छोटे दोनों उरोज स्पंज की भांति उछलकर बाहर आ गये, वो अपने हाथों से उनको पकडर सहलाने लगी, बीच बीच में वो अपने नाखूनों से अपने ब्राउन कलर के निप्पलों को कुरेद देती,

"ओह्हहहहहह पापाअअअअअ, मसलो इन्हें,,,, " मनिका मन ही मन कल्पना करने लगी कि उसके पापा ही उसके उरोज़ो को हाथों में लेकर मसल रहे हैं,

धीरे धीरे मनिका की उत्तेजना चरम पर पहुंचती जा रही थी, उसने अपनी पैंटी के इलास्टिक को पकड़ा और एक झटके में पैंटी को अपने पैरों के चंगुल से मुक्त कर दिया, अब उसका एक हाथ उसके उरोजों को मसल रहा था तो दूजा हाथ उसकी पुसी की क्लीट को,

"ओह यस्सससस, ओह्हहहहहह पापा
उन्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह… एक ज़ोरदार सिसकी के साथ मनिका जोर जोर से अपनी उंगलिया चलाने लगी

"उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़… ओहहहहहह यस ओहहहहहहह यस"
मनिका के शरीर ने एक जोर की अँगड़ाई ली, उसके बदन में एक आनन्द की एक लहर दौड़ गई और थोड़ी ही देर में उसकी टांगो के बीच एक सैलाब सा आ गया, उसके पैरों की हिम्मत जवाब दे गई और वो वही बाथरूम में ज़मीन पर बैठ गई,
थोड़ी देर बाद उसने अपनी बिखरी हुई सांसो को समेटा और अपने बाथ टब में जाके लेट गई, उसका चेहरे पर अब सन्तुष्टि के भाव झलक रहे थे

उसने जल्दी से बाथ लिया और फिर एक वही ब्रा पैंटी पहनी,उसने एक बहुत ही महीन सिल्की टीशर्ट पहनी ओर उसके नीचे एक कैपरी डाल ली, ध्यान से धन पर उसकी ब्रा की स्ट्रिप्स को उसकी टीशर्ट में से महसूस किया जा सकता था, उसने फिर हल्का सा मेकअप किया और फिर नीचे हॉल में आकर कनिका और हितेश से बाते करने में मशगूल हो गई।
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