Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
01-02-2020, 12:56 PM,
#44
RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
मनिका सीढ़ियों पर चलते वक्त जान बूझकर जयसिंह के बिल्कुल पास पास चल रही थी, सो अचानक बिना सोचे-समझे इस तरह करीब आ जाने पर जयसिंह कुछ पल के लिए थोडा असहज हो गया था, और उससे कुछ कहते नहीं बन रहा था. मनिका के परफ्यूम की भीनी-भीनी खुशबू ने उन्हें और अधिक परेशान कर दिया था, जल्दी ही दोनों स्टोररूम के सामने खड़े थे

स्टोररूम काफी दिनों से बंद पड़ा था,
जब जयसिंह ने स्टोर रूम खोला तो देखा की वहां पर काफी दिनों से सफाई नहीं हुई थी, बुक्स जिस जगह पडी थी वो काफी ऊपर थी , जय सिंह ने आसपास देखा तो उसे एक लकड़ी की सीढ़ी दिखाई दी, पर उस पर काफी धूल मिट्टी जमा थी।

"पापा यहां पर तो काफी गंदगी है, आपके कपड़े ना खराब हो जाए" मनिका ने कहा


"कोई बात नहीं मैं दूसरे कपड़े पहन लूंगा " जयसिंह ने बिना मनिका की तरफ देखे ही कहा और सीढी को लेकर उस जगह के पास लगाने लगा जहां बुक्स पड़ी थी

जैसे ही जयसिंह ने ऊपर चढ़ने के लिए अपना पांव आगे बढ़ाया सीढ़ी में से चरमराने की आवाज़ आयी, चूंकि सीढ़ी काफी पुरानी थी इसलिए ज्यादा वजन झेल नही सकती थी

"पापा आप मत चढ़िए, वरना सीढ़ी टूट जाएगी, आपका वजन थोड़ा ज्यादा है इस सीढ़ी के लिए" मनिका ने कहा

"पर सीढ़ी के बिना इतनी ऊपर कैसे पहुँच पाऊंगा" जयसिंह ने थोड़ा परेशान होकर कहा

"एक तरीका है" मनिका के चेहरे पर एक शातिर मुस्कुराहट आ चुकी थी

"कोनसा तरीका" जयसिंह ने बसकी तरफ देखकर पूछा

" आप एक काम कीजिये , सीधी को नीचे से पकड़ लीजिये, मैं इस पर चढ़कर बुक्स उतार लेती हूं" मनिका बोली

"चलो ठीक है, तुम चढ़ जाओ पर जरा ध्यान से" जयसिंह ने कहा

"पापा, मैं चढ़ तो जाऊंगी पर आप मुझे सम्भाल तो लोगे ना" मनिका ने बेहद ही मादक अंदाज़ में द्विअर्थी शब्दों में कहा

"तुम चिंता मत करो मणि, मैं अच्छे से पकड़ कर रखूंगा,बिल्कुल गिरने नही दूंगा" जयसिंह ने सामान्य तरीके से जवाब दिया

"ठीक है तो पापा मैं चढ़ रही हूं, आप सम्भालना" ये कहते हुए मनिका ने अपना पांव सीधी के पहले कदम पर रखा और फिर धीरे धीरे ऊपर चढ़ने लगी।

मनिका ने ये सब कुछ पहले से ही सोच रखा था इसीलिए आज उसने जानबूझकर स्कर्ट पहनी थी, मनिका धीरे धीरे ऊपर चढ़ी जा रही थी , जयसिंह ने सीढ़ी को मजबूती से पकड़ा हुआ था, मनिका को अपने इतने पास पाकर जयसिंह का ध्यान विचलित होता जा रहा था,

जैसे ही मनिका सीढ़ी पर थोड़ी ऊपर पहुंची , जयसिंह ने अपनी नज़रे उठाकर ऊपर की ओर देखा, उस पर जैसे बिजली गिर गयी हो, जयसिंह का चेहरा बिल्कुल गर्म हो गया, उसे ऐसा लग रहा था जैसे इसे बहुत तेज़ बुखार हो, उसे अपनी सांसे रुकती हुई सी महसूस होने लगी और उसका दिल जोरों से धड़कने लगा,

ट्यूबलाइट की तेज़ रौशनी में मनिका की स्कर्ट में से झलकती पूरी तरह नंगी दूध सी सफ़ेद जांघें चमक रहीं थी, उसकी स्कर्ट में से उसकी नीले कलर की छोटी सी कच्छी उसकी बड़ी सी गांड की दरारों में फंसी साफ दिखाई पड़ रही थी,उसकी भींची हुई टांगों के बीच योनि की 'V' आकृति उसे बिल्कुल साफ साफ नज़र आ रही थी.

जयसिंह का लंड खड़ा होकर अब उसे तकलीफ देने लगा था, उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि अगर उसने जल्दी से अपने लंड को आज़ाद नही किया तो कहीं उसकी नसे ना फट जाए, इस नज़ारे को देखकर उसके बदन में हज़ारों ज्वालामुखी फूटने लगे,
जयसिंह ने अब तक जो प्रतिज्ञा की थी कि वो अपनी बेटी से दूर रहेंगे वो सब उसे एक पल में ही मिट्टी में मिलती हुई नजर आने लगी, उसका दिमाग उसे नज़रे नीचे करने को कह रहा था पर उसका दिल इस नज़ारे को अपनी आंखों में कैद करने की बात कह रहा था,

" मनिका...मेरी बेटी है...हाय्य अब भी कितनी छोटी-छोटी कच्छियाँ पहनती है...उफ़ पर वो मेरी बेटी...साली का जिस्म ओह्ह..दिल्ली जाकर मस्त हो गयी है बिल्कुल आहहहहहह, नहीं नहीं वो मेरी बेटी है" जयसिंह का दिमाग अब अब बुरी तरह फंस चुका था,

इधर मनीज भी जानबूझकर ज्यादा टाइम लगा रही थी, बीच बीच मे वो अपनी सुंदर गांड को मटका देती जिससे जयसिंह के दिल पर हज़ारों वर हो जाते,

"पापाआआआ.... आपने ठीक से तो पकड़ा है ना, अगर आपने गिरा दिया तो मैं दोबारा कभी नहिं चढूंगी" मनिका ने चेहरे पर कुटिल मुस्कान लाते हुए कहा


"तुम चिंता मत करो मणि, मैं बहुत अच्छे से पकडटा हूँ, जिसे चढ़ाता हूँ उसे कभी नही छोड़ता" जयसिंह भी अब धीरे धीरे इस खेल में बढ़ रहा था हालांकि उसके दिल मे अभी भी काफी डर था पर फिलहाल तो मनिका की कच्छी ने उसके दिमाग का फ्यूज़ उड़ा रखा था,

" ह्म्म्म , मुझे बुक मिल गयी है पापा, अब मैं नीचे उतर रही हूं" मनिका ने कनखियों से जयसिंह की ओर देखा तो वो अभी भी अपनी नज़रे उसकी स्कर्ट के अंदर गड़ाए था

"अरे इतनी जल्दी मिल गयी, अगर कोई और बुक हो तो वो भी निकल लो वरना बार बार चढ़ना पड़ेगा" जयसिंह की आंखों में वासना के दौरे तैरने लगे, और उसका लंड तो बस उसकी पैंट को फाड़कर बाहर आने को तैयार था

"नहीं पापा अभी मुझे यही बुक चाहिए, अगर जरूरत पड़ेगी तो दोबारा चढ़ जाऊंगी, वैसे भी आप काफी अच्छे से चढ़ाते है" मनिका ने अपने चेहरे पर शरारती मुस्कान लाते हुए कहा

"ठीक है जैसी तुम्हारी मर्ज़ी" जयसिंह बड़े बेमन से बोला,

धीरे धीरे मनिका अपनी गांड को मटकती हुई नीचे उतरने लगी, जैसे ही वो लास्ट कदम उतरने वाली थी उसने जानबूझकर गिरने का बहाना बनाया और गिरते हुए जयसिंह की बाहों में समा गई

जयसिंह ने आज साल भर बाद मनिका के कोमल शरीर को छुआ था,वो तो उसकी मादक गन्ध से मदहोश ही हो गया था ,उसे ये एहसास बहुत अच्छा लग रहा था, इधर मनिका को भी जयसिंह की बाहों में उतेजना सी महसूस हो रही था, जिसकी गवाही उसकी चुत से निकली पानी की कुछ बूंदे थी जो उसकी पैंटी से होते हुए जांघो से स्पर्श करके उसे ठंडक का एहसास करवा रही थी,

पर जयसिंह के मन मे ये डर भी था कि अगर मनिका को ये आभास हो गया कि उसकी वजह से मैं उत्तेजित हो रहा हूँ तो इस बार तो वो मुझे मार ही डालेगी, इसलिए जयसिंह तुरंत होश में आया और बोला
"अरे आराम से मणि, अभी गिर जाती तो"


मनिका भी अब थोड़ी सम्भली और जयसिंह की बाहों की कैद से खुद को न चाहते हुए भी आज़ाद किया,

"चलो मणि, अब नीचे चलते है, मुझे ऑफिस भी जाना है" जयसिंह ने अपनी बिखरी सांसे समेटते हुए कहा

"ठीक है पापा" कहते हुए मनिका अपने पापा के साथ नीचे आ गयी, जयसिंह ने मनिका से नज़र बचाकर अपने लन्ड को पैंट में एडजस्ट किया

जयसिंह अब आफिस जाने के लिए दरवाज़े की ओर जाने लगा कि मनिका ने पीछे से उससे कहा - " पापा जल्दी घर आना , मैं आपका वेट करूंगी"

"यस ऑफकोर्स मैं कोशिश करूंगा जल्दी आने की" जयसिंह ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया
ये बोलकर जयसिंह ऑफिस के लिए अपनी कार में रवाना हो गया, उसे इस बात की बहुत खुशी हो रही थी कि उसकी अपनी बेटी से दोबारा दोस्ती हो गई थी और इधर मनिका को अपनी पहली चाल कामयाब होने पर खुशी थी,

जयसिंह तो सीधा आफिस के लिए निकल गया पर आज के इस घटनाक्रम ने मनिका और जयसिंह दोनों के दिलों में आग सी लगा दी थी

अपने पापा के जाने के बाद मनिका दौड़कर अपने रूम में आ गई, उसकी सांसे तेज़ तेज़ चल रही थी, उत्तेजना चरम पर थी, उसका मन खुशियों के सागर में हिलोरे मार रहा था, उसने दरवाज़े की कुंडी बन्द की और भागकर अपने पलँग पर पेट के बल आ गिरी,

मनिका ने अभी की घटना को याद करके एक बहुत ही मदहोश सी अंगड़ाई ली , मनिका की इस अंगड़ाई से उसकी छोटी सी कसी हुई ब्रा में क़ैद खरबूजे जैसे मम्मे बाहर की तरफ छलक पड़े और उसके निप्पल बिस्तर से रगड़ खाकर कड़क हो गए थे, उसकी पतली स्कर्ट उस की मोटी गुदाज गान्ड पर इस तरह कसी हुई थी कि उसमेें से मनिका की भारी गान्ड की पहाड़ियाँ साफ तौर पर नज़र आ रही थी, पेट के बल इस तरह लेटने की वजह से मनिका के चूतड़ो का उभार बहुत ही जान लेवा हो चला था,


आज साल भर बाद अपने पापा के जिस्म को छूने की वजह से उसका रोम रोम रोमांचित हो उठा था, उसके सारे शरीर मे मीठी मीठी टीस सी उठ रही थी,अब उससे और बर्दास्त करना बहुत मुश्किल हो गया था, उसने तुरंत अपनी टीशर्ट और स्कर्ट को अपने हाथों से पकड़ा और पल भर में उतार कर फेंक दिया, अब उसने होले होले अपनी ब्रा के हुक खोलने शुरू कर दिए, थोड़ी ही देर बाद उसके बदन पर कपड़े के नाम पर सिर्फ नीले रंग की एक छोटी सी कच्छी थी जो उसके बड़ी सी गांड की दरारों में ओझल सी हो गयी थी, अब वो धीरे से पलटी और पीठ के बल लेट गयी, उसने अपनी अंगुलियो को अपनी पैंटी से छुआ तो उसके गीलेपन के अहसास ने उसे शरम और वासना की अनुभूति से भर दिया, उसने अपनी अंगुलियो को अपनी पैंटी के इलास्टिक में फंसाया, और अपने शरीर को ढके उस आखिरी कपड़े को भी अपने जिस्म से आज़ाद कर दिया,अब वो अपने बिस्तर पर पूरी तरह नंगी होकर आहें भर रही थी,
खिड़की से आती सूरज की हल्की हल्की रोशनी में उसकी खूबसूरत चिकनी चूत सोने की तरह चमक रही थी, और उसमें से आती खुसबू कमरे में धीरे धीरे फैलकर उसकी मादकता को और भी ज्यादा जानलेवा बना रही थी,

मनिका ने अपने एक हाथ को अपनी टांगो के बीच रखा और दूसरे हाथ से अपने कसे हुए मम्मों को मसलना शुरू कर दिया, उसकी चुत गर्म आग की भट्टी की तरह सुलग रही थी,

"उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़… ओहहहहहह यस ओहहहहहहह यस
ओह्हहहहहह पापाआआआ.... चोद दो मुझे.....बुझा दो इस चुत की प्यास......ओहहहहहह यस ओहहहहहहह यस उम्ह्ह्ह्ह्ह पापाऽऽऽऽऽऽऽ…..पापाऽऽऽऽऽऽऽ…योर डिक पापा…स्स्स्स्स्स्साऽऽऽऽ सो बिग…". कहते हुए मनिका ने अपनी चूत के दाने को मसलते हुए अपने हाथ की एक उंगली को चूत में घुपप्प्प से घुसा दिया ,
“हाआआआआअ” अपनी चूत में उंगली को जाता हुआ महसूस कर के मनिका के मुँह से सिसकारी निकली,उसकी गरम आहें अब लगातार बढ़ती ही जा रही थी, लगातार अंदर बाहर होती उसकी उंगली उसकी चुत की आग को ओर भड़का रही थी, उसका बदन सर्दी के मौसम में भी पसीने से तर बतर होने लगा, उसके गरम जिस्म से निकली आग किसी को भी झुलसाने के लिए काफी थी, अपने दूसरे हाथ से वो वो बीच बीच मे अपने निप्पल को कुरेद देती जिसकी वजह से उसके निपल बड़ी शान से खड़े होकर तन गए थे, आहिस्ता आहिस्ता उसकी उत्तेजना चरम पर पहुंचती जा रही रही थी, उसकी उंगलियों की रफ्तार तेज़ी से बढ़ती जा रही थी, अचानक मनिका के मुँह से एक सिसकारी उभरी और उस की फूली हुई गुलाबी फांकों वाली चूत से रस की एक बूँद टपक कर बिस्तर की चादर को गिला कर गयी, उसके मस्त बदन में हज़ारों चींटियाँ एक साथ रेंगने लगी,फिर एक दम से मनिका का शरीर अकड गया और झटके मारने गया, उसकी चुत से पानी एक फव्वारे की शकल में निकल कर बहने लगा, उसका इतना पानी आज तक नहीं निकला था, उसके शरीर मे मजे की लहर दौड़ गयी
"ऊऊऊऊ….आआआआहह….उूुऊउगगगगगघह!!!!!" की आवाज़ें अब भी उसके मुंह से निकल रही थी ,

थोड़ी देर बाद उसने अपनी बिखरी हुई सांसो को समेटा और नहाने के लिए बाथरूम में घुस गई,

इधर जयसिंह का भी कमोबेश यही हाल था, रह रहकर उसकी आँखों के सामने मनिका की उभरी हुई गांड का मंजर आ जाता, वो बार बार कोशिश करता कि उसके दिमाग से ये ख्याल निकल जाए पर जितनी वो आग बुझाने की कोशिश करता उतनी ही उसकी आग और भड़क जाती, बड़ी मुश्किल से कार चलाते हुए वो अपने आफिस के केबिन में पहुंचा, उसने अपना ध्यान आफिस के कामो में लगाने की कोशिश की पर उसकी हर कोशिश बेकार साबित हो रही थी, वो जब जब अपनी पलकें झपकाता, उस की जवान बेटी के खूबसूरत जिस्म का ख्याल उस की आँखों के सामने आ कर उसके होश उड़ा देता,

उस ने अपने दिल और दिमाग़ को समझाने की लाख कोशिश की कि इस तरह मनिका के बारे में सोचना गलत है क्योंकि वो पहले भी इस गलती की सजा भुगत चुका है,मगर वो कहते हैं ना कि लंड है कि मानता ही नहीं, इसीलिए उस का लंड भी आज उसके काबू में नही रहा था.

सुबह के घटनाक्रम के बाद जयसिंह के लंड में ऐसा जोश आ गया था जो कम होने का नाम ही नही ले रहा था ,खास तौर पर मनिका की उभरी हुई मांसल गांड के बारे में सोचकर को तो उसका लंड बुरी तरह फनफना उठा था.

जयसिंह अपनी कुर्सी पर बैठ बैचैन होने लगा था, उसने एक बार खुद से वादा किया था कि वो जब तक मनिका को भोग नही लेता मुठ नही मारेगा, पर परिस्थितियां काफी बदल चुकी थी, और अब उसे ये यकीन था कि उसका वो सपना कभी पूरा नही होने वाला, इसलिए उसने अपनी इस प्रतिज्ञा को भूल जाना ही ठीक समझा, उसने सोचा कि शायद मुठ मारने के बाद उसके दिल से मनिका का ख्याल निकल जाए

और यही सोचकर वो अपनी सीट से उठा और सीधा अपने केबिन में बने बाथरूम में घुस गया, उसकी वासना उसके काबू से बाहर होने लगी थी इसलिए हारकर उसने अपने लंड को पैंट की जिप से बाहर निकाल लिया,
जयसिंह का लंड लोहे की रोड की तरह सख़्त हो गया था, उसकी आँखे बंद थीं और उस की आँखों के सामने मनिका का सुडौल मांसल बदन घूमने लगा और वो मनिका के मोटे मोटे मम्मे और उभरी हुई गान्ड को याद कर के अपने हाथ तेज़ी से लंड पर चलाने लगा

"उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़… ओहहहहहह यस ओहहहहहहह यस"
ओह्हहहहहह उम्ह्ह्ह्ह्ह मनिकाऽऽऽऽऽऽऽ…आहऽऽऽऽऽऽऽ…कितनी खूबसूरत हो गई है हाय्य…स्स्स्स्स्स्साऽऽऽऽ सो क्या सूंदर चौड़ी गांड हो गयी है उसकी…...ह्म्म्म"
जयसिंह के हाथ पिस्टन की तरह अपने लन्ड के ऊपर खचाखच चले जा रहे थे, थोड़ी देर बाद ही मूठ मारते मारते अचानक जयसिंह के लंड ने एक जोरदार झटका लिया और फिर दूसरे ही लम्हे वो “मनिकाअअअअअस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सस्स” कहते हुए बुरी तरह झड़ने लगा, जयसिंह के लंड ने इतना पानी छोड़ा कि वो खुद हैरान हो गया, आज से पहले जयसिंह कभी इतनी जल्दी ना तो झड़ा था और ना ही उस के लंड से इतना ज़्यादा वीर्य निकला था, आज पहली बार जयसिंह ने अपना वादा तोड़कर मनिका के बारे में सोचते हुए मूठ लगाई थी, मूठ मारने के बाद धीरे धीरे जयसिंह की चेतना वापस लौटने लगी, उसे वापस अहसास होने लगा था कि उसकी कल्पना सिर्फ कल्पना तक ही सीमित रहे तो अच्छा है वरना इसका बुरा अंजाम भुगतना पड़ सकता है, कई महीनों के बाद उसकी अपनी बेटी से दोबारा बातचीत शुरू हुई है, इसे वो अपनी बेवकूफी से गंवाना नही चाहता था, इसलिए उसने फटाफट अपनी सफाई की और वापस आकर काम मे ध्यान लगाने लगा,
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