Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
01-02-2020, 01:09 PM,
#51
RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
इधर जयसिंह अब अच्छी तरह से जान चुका था कि इस समय उसकी बेटी की नजर उस के नंगे लंड पर टिकी हुई है, और जिस मदहोशी और खुमारी के साथ मनिका लंड को देख रही थी ,जयसिंह को लगने लगा था कि आज बात जरूर बन जाएगी।



मनिका उत्तेजना के परम शिखर पर विराजमान हो चुकी थी, मनिका और जयसिंह दोनों छत पर भीग रहे थे, अंधेरा इस कदर छाया हुआ था कि एक दूसरे को देखना भी नामुमकिन सा लग रहा था, वो तो रह रहकर बिजली चमकती तब जाकर वो एक दूसरे को देख पाते, बारिश जोरों पर थी ,बादलों की गड़गड़ाहट बढ़ती ही जा रही थी, यह ठंडी और तूफानी बारिश दोनों के मन में उत्तेजना के एहसास को बढ़ा रहे थी, मनिका की सांसे तो चल नहीं बल्कि दौड़ रही थी, इधर जयसिंह भी बेताब था, तड़प रहा था ,उसका लंड अभी भी टावल से बाहर था, जिसे देखने के लिए मनिका की आंखें इस गाढ़ अंधेरे में भी तड़प रही थी लेकिन वो ठीक से देख नहीं पा रही थी, जयसिंह इस कदर उत्तेजित था कि उसकी लंड की नसें उभर सी गई थी, उसे ऐसा लगने लगा था कि कहीं यह नसे फट ना जाए,

"मनिका, अब तो यहां तो बहुत अंधेरा हो गया है,कुछ भी देख पाना बड़ा मुश्किल हो रहा है, अब हमें नीचे चलना चाहिए, वैसे भी कपड़े तो पूरे भीग ही चुके है" जयसिंह भारी सांसो के साथ बोला

"हां पापा, अब हमें नीचे चलना होगा" मनिका ने भी जयसिंह की हां में हाँ मिलाई

इतना कहते हुए मनिका जयसिंह की तरफ बढ़ी ही थी कि उसका पैर हल्का सा फिसला और वो जयसिंह की तरफ गिरने लगी, तभी अचानक जयसिंह ने मनिका को अपनी बाहों में थाम लिया , मनिका गिरते-गिरते बची थी , ये तो अच्छा था कि वो जयसिंह के हाथों में गिरी थी वरना उसे चोट भी लग सकती थी,


अब मनिका का अधनंगा बदन अपने पापा के बदन से बिल्कुल सट गया था, दोनों के बदन से बारिश की बूंदें नीचे टपक रही थी, हवा इतनी तेज थी कि दोनों अपने आप को ठीक से संभाल नहीं पा रहे थे, अचानक इस तरह सटने से जयसिंह का तना हुआ लंड मनिका की जांघों के बीच सीधे उसकी बुर वाली जगह पर हल्का सा दबाव देते हुए पैंटी समेत ही धंस गया ,

अपनी बुर पर अपने पापा के लंड के सुपाड़े का गरम एहसास होते ही मनिका एकदम से गरम हो कर मस्त हो गई, आज दूसरी बार एकदम ठीक जगह लंड की ठोकर लगी थी, लंड की रगड़ बुर पर महसुस होते ही मनिका इतनी ज्यादा गर्म हो गई थी कि उसके मुंह से हल्की सी सिसकारी छूट पड़ी , लेकिन शायद तेज बारिश की आवाज में वह सिसकारी दब कर रह गई,


मनिका को ये आभास बड़ा ही अच्छा लग रहा था , वो तो ऊपर वाले का शुक्र मनाने लगी कि वो फिसल कर बिल्कुल ठीक जगह पर गिरी थी,

"अच्छा हुआ पापा, आपने मुझे थाम लिया, वरना मैं तो गिर ही गई होती" मनिका ने जयसिंह की आंखों में झांककर कहा

"मेरे होते हुए तुम कैसे गिर सकती है मनिका" जयसिंह ने भी प्यार से जवाब दिया

जयसिंह अपनी बेटी को थामने से मिले इस मौके को हाथ से जाने नही देना चाहता था, इसलिए उसने मनिका को अभी तक अपनी बाहों में ही भरा हुआ था, मनिका भी शायद इसी मौके की ताक में थी, तभी तो अपने आप को अपने पापा की बाहों से अलग ही नहीं कर रही थी


और जयसिंह भी बात करने के बहाने अपनी कमर को और ज्यादा आगे की तरफ बढ़ाते हुए अपने लंड को मनिका की बुर वाली जगह पर दबा रहा था।

जयसिंह का सुपाड़ा मनिका की चुत के ऊपरी सतह पर ही था, लेकिन मनिका के लिए तो इतना भी बहुत था , आज महीनों के बाद आखिर उसके पापा का लंड उसकी बुर के मुहाने तक पहुंच ही गया था, इसलिए तो मनिका एकदम से मदहोश हो गई ,उसके पूरे बदन में एक नशा सा छाने लगा और वो खुद ही अपने पापा को अपनी बाहों में भींचते हुए अपनी बुर के दबाव को जयसिंह के लंड पर बढ़ाने लगी, दोनों परम उत्तेजित हो चुके थे, मनिका की कसी हुई चुत और जयसिंह के खड़े लंड के बीच सिर्फ एक पतली सी महीन पैंटी की ही दीवार थी, वैसे ये दीवार पैंटी की नहीं बल्कि शर्म की थी, क्योंकि उसकी बेटी की जगह अगर कोई और होती तो इस दीवार को जयसिंह अब तक खुद अपने हाथों से ढहा चुका होता और मनिका भी खुद ही इस दीवार को ऊपर उठा कर लंड को अपनी गरम चुत में ले चुकी होती



पर सब्र का बांध तो टूट चुका था, लेकिन शर्म का बांध टूटना बाकी था, बाप बेटी दोनों चुदवासे हो चुके थे,एक चोदने के लिए तड़प रहा था तो एक चुदवाने के लिए तड़प रही थी, दोनों की जरूरते एक थी, मंजिले एक थी और तो और रास्ता भी एक ही था, बस उस रास्ते के बीच में शर्म मर्यादा और संस्कार के रोड़े पड़े हुए थे।


बाप बेटी दोनो एक दूसरे में समा जाना चाहते थे, दोनों एक दूसरे की बाहों में कसते चले जा रहे थे , बारिश अपनी ही धुन में नाच रही थी , मनिका की बड़ी बड़ी चूचियां उसके पापा के सीने पर कत्थक कर रहीे थी, जयसिंह का सीना भी अपनी बेटी की इन चुचियों को खुद में समा लेना चाहता था, तेज बारिश और हवा के तेज झोंकों में जयसिंह की टॉवल उसके बदन से कब गिर गया उसे पता ही नहीं चला ,अब जयसिंह एकदम नंगा अपनी बेटी को अपनी बाहों में लिए खड़ा था, उसका तना हुआ लंड उसकी बेटी की बुर में पैंटी सहित धंसा हुआ था,


मनिका की हथेलियां अपने पापा की नंगी पीठ पर फिर रहीे थी, उसे तो यह भी नहीं पता था कि जयसिंह अब पूरी तरह से नंगा होकर उससे लिपटा पड़ा है, मनिका की बुर एकदम गर्म रोटी की तरह फूल चुकी थी, बुर से मदन रस रिस रहा था जो कि बारिश के पानी के साथ नीचे बहता चला जा रहा था, तभी आसमान में इतनी तेज बादल की गर्जना हुई कि दोनोे को होश आ गया , दोनों एक दूसरे की आंखों में देखे जा रहे थे लेकिन अंधेरा इतना था कि कुछ साफ साफ दिखाई नहीं दे रहा था, वो तो बीच बीच मे बिजली के चमकने हल्का-हल्का दोनों एक दूसरे के चेहरे को देख पा रहे थे,

मनिका अब मस्त हो चुकी थी, चुत में लंड लेने की आकांक्षा बढ़ती ही जा रही थी, वो जानती थी कि अगर जयसिंह की जगह अगर कोई और लड़का होता तो इस मौके का भरपूर फायदा उठाते हुए कब का उसकी प्यासी चुत को अपने लंड से भर चुका होता


पर मनिका इस मौके को हाथ से जाने नहीं देना चाहती थी ,इधर बारिश रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी ,बारिश पल-पल तेज होती जा रही थी, छोटी-छोटी बुंदे अब बड़ी होने लगी थी, जो बदन पर पड़ते ही एक चोट की तरह लग रही थी, मनिका कोई उपाय सोच रही थी क्योंकि उससे अब रहा नहीं जा रहा था ,बारिश के ठंडे पानी ने उसकी चुत की गर्मी को बढ़ा दिया था,

मनिका अपने पापा की नंगी पीठ पर हाथ फिराते हुए बोली "अच्छा हुआ पापा कि आप छत पर आ गए, वरना मुझे गिरते हुए कौन संभालता"



इतना कहते हुए वो एक हाथ से अपनी पैंटी की डोरी को खोलने लगी,उसने आज स्लीव्स वाली पैंटी पहनी थी जिसके दोनों ओर डोरिया होती है, वो जानती थी की डोरी खुलते ही उसे पैंटी उतारने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी क्योंकि बारिश इतनी तेज गिर रही थी कि बारिश की बोछार से खुद ही उसकी पैंटी नीचे सरक जाएगी, और यही सोचते सोचते अगले ही पल उसने पैंटी की डोरी को खोल दिया,


इधर जयसिंह मनिका को जवाब देते हुए बोला " मैं इसलिए तो यहां आया था बेटी कि मुसीबत में मैं काम आ सकुं, और तुम्हें गिरते हुए बचा कर मुझे अच्छा लग रहा है"
अपनी पापा की बात सुनकर मनिका खुश हो गई और लंड की रगड़ से एकदम रोमांचित हो गई, और रोमांचित होते हुए अपने पापा के गाल को चुमने के लिए अपने होठ आगे बढ़ा दिए, पर अंधेरा इतना गाढ़ा था कि एक दूसरे का चेहरा भी उन्हें नहीं दिखाई दे रहा था इसलिए मनिका के होठ जयसिंह के गाल पर ना जाकर सीधे उसके होंठों से टकरा गए,

होठ से होठ का स्पर्श होते ही जयसिंह के साथ साथ खुद मनिका भी काम विह्ववल हो गई, जयसिंह तो लगे हाथ गंगा में डुबकी लगाने की सोच ही रहा था इसलिए तुरंत अपनी बेटी के होठों को चूसने लगा, बारिश का पानी चेहरे से होते हुए उनके मुंह में जाने लगा, दोनों मस्त होते जा रहे थे, जयसिंह तो पागलों की तरह अपनी बेटी के गुलाबी होंठों को चुसे जा रहा था, और मनिका भी अब सारी लाज शरम छोड़ कर अपने पापा का साथ देते हुए उनके होठों को चूस रही थी,

यहां चुंबन दुलार वाला चुंबन नहीं था बल्कि वासना में लिप्त चुंबन था, दोनों चुंबन में मस्त थे और धीरे-धीरे पानी के बहाव के साथ साथ मनिका की पैंटी भी उसकी कमर से नीचे सरकी जा रही थी, या यूँ कहे कि बारिश का पानी धीरे-धीरे मनिका को नंगी कर रहा था,

दोनों की सांसे तेज चल रही थी जयसिंह अपनी कमर का दबाव आगे की तरफ अपनी बेटी पर बढ़ाए ही जा रहा था और उसका तगड़ा लंड बुर की चिकनाहट की वजह से खिसकती हुई पैंटी सहित हल्के हल्के अंदर की तरफ सरक रहा था, दोनों का चुदासपन बढ़ता जा रहा था कि तभी दोबारा जोर से बादल गरजा और उन दोनों की तंद्रा भंग हो गई,

मनिका की सांसे तीव्र गति से चल रही थी, वो लगभग हांफ सी रही थी, पर इस बार वो खुद को जयसिंह की बाहों से थोड़ा अलग करते हुए बोली-
"पापा शायद यह बारिश रुकने वाली नहीं है , अब हमें नीचे चलना चाहिए"

वैसे तो जयसिंह का नीचे जाने का मन बिल्कुल भी नहीं था, उसे छत पर ही मजा आ रहा था, उसने एक कोशिश करते हुए कहा " हां बेटी, लेकिन कैसे जाएंगे , यहां इतना अंधेरा है कि हम दोनो एक दूसरे को भी नहीं देख पा रहे हैं, हम दोनों का बदन भी पानी से पूरी तरह से भीग चुका है, ऐसे में सीढ़ियां चढ़कर नीचे उतर कर जाना खतरनाक हो सकता है, हम लोग फिसल भी सकते हैं और वैसे भी सीढ़ी भी दिखाई नहीं दे रही है"

मन तो मनिका का भी नहीं कर रहा था नीचे जाने का, लेकिन वह जानती थी कि अगर सारी रात भी छत पर रुके रहे तो भी बस बाहों में भरने के सिवा आगे बढ़ा नही जा सकता, और वैसे भी उसने आगे का प्लान सोच रखा था ,इसलिए नीचे जाना भी बहुत जरूरी था

"पर नीचे तो चलना ही पड़ेगा ना पापा, वरना हमे सर्दी लग जायेगी, नीचे चलकर आप भी गरम पानी से नहा लीजिये फिर मैं भी नहा लूंगी" मनिका इतना कह ही रही थी कि उसकी पैंटी अब सरक कर घुटनों से नीचे जा रही थी , वो मन ही मन बहुत खुश हो रही थी, क्योंकि नीचे से वह पूरी तरह से नंगी होती जा रही थी, माना कि उसके पापा उसे नंगी होते हुए देख नहीं पा रहे थे, लेकिन फिर भी अंधेरे मे ही सही अपने पापा के सामने नंगी होने में उसे एक अजीब सी खुशि महसूस हो रही थी
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