RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
इधर जयसिंह तो इतना ज्यादा उत्तेजित हो चुका था कि उसके लंड की नसें उभर चुकी थी , जिसे देखकर मनिका की बुर से कामरस की एक बूंद नीचे टपक पड़ी, मनिका ये सोचकर और भी उत्तेजित हुए जा रही थी कि जब ये उभरी हुई नसों वाला लंड ऊफ्फ्फ...... उसकी कसी हुई बुर में जाएगा तो कितना रगड़ता हुआ जाएगा, मनिका उसकी कल्पना करके ही चरम सुख का अनुभव कर रही थी,
अपने पापा का लंड हल्की सी रोशनी में देखकर अब मनिका से बर्दास्त करना लगभग नामुमकिन सा हो गया था, मनिका की हालत उस समय और भी ज्यादा खराब हो गई, जब जयसिंह ने जानबूझकर अपनी बेटी को उकसाने के लिए अपने हाथों से लंड को पकड़ कर ऊपर नीचे करते हुए हिलाना शुरू कर दिया, क्योंकि वो अच्छी तरह से जानता था कि उसकी बेटी उसके लंड को ही देख रही थी और इस हरकत को देखते ही वो एकदम से चुदवासी हो जाएगी,
और हुआ भी यही, वासना के चरम बिंदु पर पहुंच कर अब मनिका के सब्र का बांध टूट गया, उससे रहा नहीं गया और उसने अपना एक हाथ आगे बढ़ा कर सीधे अपने पापा के खड़े लंड को पकड़ कर अपनी मुट्ठी में भींच लिया, मुठ्ठी में भींचते ही लंड की गर्माहट से मनिका की आह निकल गई, जयसिंह भी अपने लंड को अपनी बेटी की हथेली में महसूस कर उत्तेजना के साथ मदहोश होने लगा, मनिका का तो गला ही सूखने लगा था ,उससे रहा नहीं जा रहा था, महीनों के बाद उसके बदन की दबी हुई प्यास बुझने के आसार नजर आ रहे थे, मनिका के लिए तो इस समय उसके पापा मीठे पानी का कुआं थे और वो खुद बरसों से प्यासीे थी, और अपनी प्यास बुझाने के लिए प्यासे को कुएं के पास जाना ही पड़ता है
जयसिंह अपने खड़े लंड को अपनी बेटी की नरम नरम गरम हथेलियों के आगोश में पाकर गनगना गया था, उसका बदन अजीब से सुख की अनुभूति करते हुए कसमसा रहा था, मनिका तो मुंह खोले आश्चर्य के साथ अपने पापा का लंड पकड़े हुए हल्की सी रोशनी में लंड के गोल सुपाड़े को ही घूरे जा रही थी, दोनों की सांसे तीव्र गति से चल रही थी, बाहर बरसात अभी भी जारी थी, बादलों की गड़गड़ाहट और बिजली की चमक रह रह कर अपने होने का अंदेशा दे रही थी, मनिका अंदर ही अंदर बरसात को धन्यवाद कर रही थी क्योंकि इस समय जो भी हो रहा था वो इस तूफानी बारिश का ही नतीजा था वरना अब तक तो ना जाने कब की अपनी बूर को हथेली से रगड़ते हुए सो गई होती,
मनिका का गला उत्तेजना के मारे इतना ज्यादा सूख चुका था कि गले से थूक निकलना भी मुश्किल हुए जा रहा था, जयसिंह उसी तरह से खड़ा था, काफी देर से दोनों के बीच कोई बातचीत नहीं हो पा रही थी ,बस दोनों कामुकता के आकर्षण में बंध कर अपना आपा खो बैठे थे
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आखिरकार मनिका ने ताबूत में आखिरी कील ठोकने का फैसला किया, मनिका को पता था कि अब उसे खुलना ही पड़ेगा , शर्म का पर्दा त्याग कर बेशर्म बनना पड़ेगा तभी वो उस परम सुख को भोग सकती है जिसकी कल्पना में वो रात दिन लगी हुई थी, आज वो बेशर्म बनकर चुदाई के सारे सुखों को भोग लेना चाहती थी , इसलिए वो अपने अब अपने पापाके लंड को मुट्ठी में भरकर धीरे धीरे मुट्ठीयाते हुए बोली
"बाप रे.......बाप रे इतना तगड़ा लंड, ये तो पहले से भी बड़ा लग रहा है पापाआआआ......"
अपनी बेटी के मुख से लंड शब्द सुनकर जयसिंह का दिमाग भन्ना गया,
जयसिंह के मुंह से शब्द ही नही निकल पा रहे थे ,वो बस जड़वत खड़ा था और उसकी बेटी उसके लंड को अपनी मुट्ठी में कैद किये ऊपर नीचे कर रही थी,
"सच पापा, आपका ये हथियार तो बहुत ज्यादा मोटा, लंबा और तगड़ा है, अब तो ये पहले से भी ज्यादा बड़ा लग रहा है" इतना कहते हुए मनिका धीरे-धीरे अपने पापा के लंड को हिला रही थी ,जिससे जयसिंह को परम आनंद की अनुभूति हो रही थी,
लंड को हिलाते हुए मनिका फिर बोली
" पापाआआआ...... अब मुझे समझ आया कि सीढ़ियों में मुझे क्या चुभ रहा था, आपका ये मोटा लंड सच मे कितना बड़ा है पापाआआआ.....तभी तो मुझे ये इतना ज्यादा चुभ रहा था, आपको पता तो होगा ना कि कहां चुभ रहा था"
जयसिंह तो अपनी बेटी का ये रूप देख कर और उसके मुंह से इतनी गंदी गंदी बातें सुनकर आवाक सा रह गया था, आश्चर्य से अपना मुंह खोले वो अपनी बेटी की इन हरकतों को देख भी रहा था और उसका आनंद भी उठा रहा था,
पर वो अपनी बेटी के चुभने वाले सवाल का जवाब दे भी तो क्या, इतना तो वो अच्छी तरह जानता था कि उसका लंड उसकी बेटी के किस अंग पर चुभ रहा था, लेकिन ये बात अपने मुंह से कैसे कहें, इसलिए उसने ना में सिर हिला दिया
अपने पापा का ना में सिर हिलता हुआ देखकर वो मुस्कुराते हुए बोली
" आप बड़े भोले है पापाआआआ..... आप इतना भी नहीं जानते कि आपका ये हथियार मेरे किस अंग पर चुभ रहा था..... रुको मैं आपको खुद ही दिखाती हूं "
अपनी बेटी के मुंह से उसकी चुत दिखाने वाली बात सुनते ही उत्तेजना के मारे जयसिंह का लंड ठुमकी मारने लगा, जिसका एहसास मनिका को साफ तौर पर अपनी हथेली में हो रहा था, मनिका ठुमकी लेते हुए लंड के कारण उत्तेजित हो रही थी
अचानक मनिका ने जयसिंह के लंड को छोड़ दिया और दूसरी तरफ रखी टेबल की तरफ जाने लगी, जयसिंह समझ नही पाया कि अचानक क्या हो गया पर उसकी उलझन जल्द ही खत्म हो गयी, कमरे में हल्की दूधिया रोशनी फैल चुकी थी, मनिका ने मेज पर रखी एमरजेंसी लाइट जला दी थी, अब दोनों बाप बेटी कमरे में हुई हल्की दूधिया रोशनी में एक दूसरे के नंगे बदन को ताड रहे थे, उनकी उत्तेजना पल पल बढ़ती जा रही थी
अब मनिका धीरे से बोली
"रुकिये पापा, मैं आपको अच्छी तरह से दिखाती हूं कि आपका ये हथियार कहाँ चुभ रहा था"
इतना कहते हुए अपने बेड पर आकर बैठ गई ,जयसिंह आंख फाड़े अपनी बेटी के नंगे बदन को ऊपर से नीचे तक देख रहा था, मनिका ने जयसिंह के लंड को दोबारा अपने हाथों में पकड़ा और खींचकर बेड के पास ले आयी,
मनिका अपने पापा को तड़पाते हुए एक बार दोबारा उनसे बोली
"क्या आप सच मे देखना चाहतें हैं कि कहां चुभ रहा था आपका ये हथियार"
अपनी बेटी की गंदी बातें सुनकर जयसिंह का मन मस्तिष्क मस्ती से हिलोरे मार रहा था, अपनी बेटी की बातों को सुनकर उसको मजा आने लगा था, उसने भी हामी भरते हुए सिर हिला दिया,
मनिका तो तड़प रही थी अपने पापा को अपना वो बेशक़ीमती अंग दिखाने के लिए, जिसकी तपन में तपकर वो बदहवास हो चुकी थी,
मनिका ने जयसिंह के लंड को अपने हाथों की पकड़ से आज़ाद किया और अब वो धीरे धीरे अपने पैरों को चौड़ा करने लगी
जब उसकी नजर उसकी बेटी की बुर पर पड़ी तो उसकी तो जैसे सांस ही अटक गई, मनिका की बुर एकदम चिकनी थी, बस हल्के हल्के रोए ही नजर आ रहे थे ऐसा लग रहा था कि तीन चार दिन पहले ही क्रीम लगाकर साफ की गई है, जयसिंह तो देखता ही रह गया,उसकी सालों की तड़प पूरी जो हो रही थी,उत्तेजना के मारे मनिका की चुत रोटी की तरह फूल गई थी, जयसिंह भारी सांसो के साथ अपनी बेटी की फुली हुई बुर को देख रहा था, उसकी बेटी भी बड़े अरमानों से अपने पापा को अपनी चुत के दर्शन करा रही थी, अब मनिका जयसिंह को और ज्यादा उकसाते हुए अपनी हथेली को धीरे से अपनी बुर पर रखकर हल्के से मसलने लगी,
अपनी बेटी की ये हरकत को देखकर जयसिंह अत्यधिक उत्तेजना महसूस करने लगा और उत्तेजनावश उसका हाथ अपने आप उस के तने हुए लंड पर आ गया और उसने अपने लंड को मुट्ठी में भींच लिया, जयसिंह की हालत को देख कर मनिका समझ गई थी की जयसिंह एकदम से चुदवासा हो चुका है , मनिका ने सोचा कि अब लोहा पूरी तरह से गर्म हो चुका है, और अब चोट मारने का बिल्कुल सही टाइम आ गया है,
इसलिए वो जयसिंह को और गर्म करने के लिए बोली,
" देखलो पापा ,ठीक से देख लो, ये ही वो जगह है जिस पर आपका ये हथियार ( लंड की तरफ इशारा करते हुए ) चुभ रहा था , मुझे बड़ी परेशानी हो रही थी, वैसे आप चाहो तो इसे छू कर भी देख सकते हो, अभी भी बिल्कुल गरम है"
अपनी बेटी की बात सुन कर जयसिंह हक्का-बक्का रह गया, उसकी बेटी उसे अपनी चुत छूने के लिए उकसा रही थी, जबकि जयसिंह तो खुद ही उसकी चुत छुने के लिए तड़प रहा था, अपनी बेटी के इस आमंत्रण से वो पूरी तरह से गनगना गया था, वो अच्छी तरह से जान चुका था कि वासना की आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई है,
जयसिंह ने अपनी बेटी की चुत को स्पर्श करने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया लेकिन उत्तेजना की मारे उसका हाथ कांप रहा था, ये देखकर मनिका मुस्कुराने लगी, और अब उसने अपने पापा का डर दूर करने के लिए खुद ही जयसिंह का हाथ पकड लिया और उनकी हथेली को अपनी गरम चुत के सुलगते होठों पर लगा दिया
अपनी बेटी की बुर पर हथेली रखते ही जयसिंह के मुंह से आह निकल गई,उन्हें ऐसा लग रहा था कि उन्होंने किसी गरम तवे पर अपना हाथ रख दिया हो , उन्होंने धीरे से मनिका की चुत को मसल दिया
जब उत्तेजना के कारण जयसिंह ने अपनी बेटी की बुर को अपनी हथेली में दबोचा तो मनिका की सिसकारी फुट पड़ी,
"स्स्स्स्स्हहहहहहह.......आहहहहहहहहहह.....पापाआआआ"
अब जयसिंह अपनी बेटी की चुत को अपनी हथेली में दबोचे हुए उसके बिल्कुल करीब आ गया, दोनों उत्तेजना में सरोबोर हो चुके थे, जयसिंह अपनी हथेली से अपनी बेटी की चुत को धीरे-धीरे रगड़ने लगा, मनिका के चेहरे का रंग सुर्ख लाल होता जा रहा था ,जयसिंह अपनी बेटी के बिल्कुल करीब पहुंच चुका था और जैसे ही जयसिंह के होठ मनिका के होंठों के बिल्कुल करीब पहुंचे ,जयसिंह से रहा नहीं गया, वो अपनी बेटी के गुलाबी होंठों को चूसने का लालच दबा नहीं पाया और तुरन्त अपने होंठों को अपनी बेटी के होठों से सटा दिया
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