RE: Indian Porn Kahani एक और घरेलू चुदाई
मम्मी की परेशानी समझ कर सौरभ बोला मम्मी मैं आपकी मदद करता हूँ और विनीता के साथ बाथरूम मे आ गया
विनीता संकोच से बोली- पर बेटा मैं तुम्हारे सामने कैसे………
सौरभ- मम्मी मुझे भी आपकी मजबूरी का पता है और फिर मुझ से क्या शरमाना वैसे भी मैं आपको ऐसी हालत मे पहले भी देख चुका हूँ तो फिर मुझसे कैसी शरम …
विनीता ने सोचा कोई पराया तो हैं नही मेरा अपना बेटा है और फिर सही हैं पहले भी तो ये मुझे नंगी देख चुका है अब कम से कब ब्रा पैंटी तो होंगे मेरे बदन पर वैसे भी प्रेम के सामने तो फटाक से नंगी हो जाती हूँ और अब अपने बेटे की मदद भी नही ले सकती क्या ये सोचकर विनीता कहती है- हाँ बेटे, तुमसे क्या शरमाना चलो तुम्ही नहला दो मुझे अब ये खुजली बर्दास्त नही होती हैं सौरभ की खुशी का ठिकाना नही रहा और वो सहारा देकर विनीता को अंदर बाथरूम मे लेके गया
और एक कुर्सी को फवारे के नीचे रख कर उसपर विनीता को बिठा दिया और उसको चला दिया पानी की बूंदे विनीता के बदन को भिगोने लगी और जल्दी ही वो कपड़ो समेत गीली हो गयी उसके बोबे गीले ब्लाउज मे बड़े ही मस्त लग रहे थे विनीता सौरभ की भूखी नज़रो को अपने बदन पर महसूस कर रही थी पर वो एक जवान होते हुए बेटे की भावनाओ को भी अच्छे समझ रही थी उसने मन ही मन सोच लिया कि जब और लोग भी उसको घूरते है तो फिर उसके बेटे का हक तो सबसे पहले है उस पर तो अगर वो मेरे बदन को निहार भी ले तो मुझे ख़ुसी होगी
विनीता ने खुद अपना ब्लाउज उतार कर साइड मे रख दिया गुलाबी ब्रा मे क़ैद बेहद ही गोरी गोरी चूचियो को देख कर सौरभ का लंड उसके पायजामे मे टॅंट हो गया विनीता ने भी उसके खड़े लंड को देख लिया था और मंद मंद मुस्कुरा पड़ी उसने कहा बेट- ज़रा साड़ी उतारने मे मेरी मदद तो करो सौरभ को यकीन ही नही हो रहा था कि आज वो इस नज़ारे का ऐसी हालत मे लुफ्त उठाएगा उसने बिना देर किए विनीता को खड़ी किया और उसकी साड़ी और पेटिकोट को उतार कर फेक दिया ब्रा और पैंटी मे विनीता अपने बेटे की बाहों मे झूल रही थी
सौरभ का एक हाथ उसकी मम्मी की पीठ पर था और दूसरा हाथ उसके नरम कुल्हो पर उसका खड़ा लंड विनीता की टाँगो के जोड़ की जगह पर चुभ रहा था सौरभ ने अपनी बाहों का दवाब मम्मी पर डाला और विनीता भी पिघलने लगी उसकी गरमा गरम साँसे सौरभ के चेहरे पर टकरा रही थी दोनो जने माँ बेटे से ज़्यादा एक औरत मर्द के रिश्ते को फील कर रहे थे पर विनीता इस तरह अपने बेटे को कोई मोका नही देना चाहती थी इसलिए उसने सोरभ को अपने से दूर करते हुए कहा बेटा अब कब तक ऐसे ही लिए खड़ी रखेगा
जल्दी से नहाने मे मेरी मदद कर हाँ माँ हकलाते हुवे सौरभ ने कहा और विनीता को सहारा देकर कुर्सी पर बिठा दिया गुलाबी ब्रा-पैंटी मे किसी प्यारी सी गुड़िया जैसे लग रही थी उसकी मम्मी पर उसके होश तो तब उड़े जब उसकी नज़र मम्मी की पैंटी पर पड़ी कितनी छोटी सी पैंटी थी बस नाम की ही कुल्हो पर से एक लाइन ही थी जो गान्ड की दरार मे घुसी हुवी थी सौरभ का खुद पर कंट्रोल करना बड़ा मुश्किल हो रहा था
खुद को भीगने से बचाने के लिए उसने फव्वारा बंद किया और फिर बाल्टी से ठंडा पानी अपनी मम्मी के उपर डाला वैसे तो विनीता गीली ही थी पर जैसे ही पानी उसकी त्वचा से छुआ उसकी सिसकी निकल गयी विनीता बोली ला साबुन दे उपर मैं खुद लगा लूँगी तू फिर पाँवो पर लगा देना दरअसल विनीता सौरभ को उसकी चूचियों को छूने का मोका नही देना चाहती थी , तो उसने अपने हाथो पर साबुन लगाई और फिर अपने गोरे पेट पर अब बारी आई बोबो की
वो ब्रा के उपर से ही साबुन लगाने लगी पर वो अपना हाथ पीठ पर ले गयी पर उधर साबुन तभी लगता जब वो ब्रा उतार देती अब विनीता फँसी कशमकश मे उतारे या ना उतारे, उसकी उलझन देख कर सौरभ बोला मम्मी मैं आपकी हालत समझ रहा हूँ आप ब्रा उतार दो बेशक मैं बड़ा हो गया हूँ पर बचपन मे इन चूचिओ का दूध पीकर ही बड़ा हुआ हूँ तो एक बार फिर से अगर मैं देख लूँगा तो कोई आफ़त थोड़ी ना आने वाली है
बेशक ये बात उसने अपनी मम्मी को सहज करने के लिए कही थी पर इधर उसके पयज़ामे मे झूलते लंड को देख कर विनीता की चूत मे जहाँ कुछ कुछ हो रहा था उसके मन मे भावनाओ का एक तूफान चल रहा था पर हाई रे ये जालिम मजबूरी अब करे भी तो क्या करे एक स्टॅंड लेते हुए सौरभ पीछे की ओर आया और ब्रा के हुको को खोल कर उसको उतार दिया उसने विनीता के हाथों से साबुन लिया और उसकी चिकनी पीठ पर लगाने लगा
विनीता के मन को मिले जुले भाव ने घेरा हुआ था आख़िर वो भी एक औरत थी और वो भी बहुत ही कामुक मिज़ाज की औरत ना जाने कितने लोग रात को उसका ही ख़याल करके अपने लंड को हिलाया करते थे साबुन लगाते लगाते सौरभ का हाथ उसके बोबो से भी टच होने लगा था तो विनीता के बदन मे चिंगारिया भरने लगी थी हर पल उसकी आँखे जैसे किसी नशे मे डूबती जा रही थी सौरभ अब बिना किसी संकोच के अपने दोनो हाथो को आगे लाया और उसके बोबो पर साबुन लगाने लगा
36 इंच की मस्त गोलाइयाँ उसके अपने बेटे के हाथ मे थी विनीता ये सोचकर पता नही क्यो रोमांचित होने लगी थी साबुन के झाग से उसकी चूचियाँ बड़ी चिकनी हो रही थी और उसका अपना बेटा हौले हौले उन्हे दबा रहा था विनीता अपना होश खोने लगी थी अपनी आँखे बंद किए अपने दाँतों से होटो को काट ते हुए वो अपने बॉब्बे दबवा रही थी
सौरभ की उंगलिया उसके निप्पल्स को रगड़ रही थी आनंद मे विनीता की आँखे डूबी जा रही थी पर उसे अपनी भावनाओ पर कंट्रोल करना था और साथ ही बेटे को भी बहकने से रोकना था तो उसने कहा- बस कर बेटा कितनी साबुन लगाएगा यहाँ पर अब ज़रा पैरो पर भी लगा दे ये सुनकर सौरभ जैसे नींद से जागा और उसने अपनी मम्मी के बोबो को हसरत भरी निगाओ से देखा और ठंडी सांस लेकर पाँवो की तरफ आ गया
धीरे धीरे मम्मी की पिंडलियो पर साबुन लगा ने लगा विनीता के बदन को उसके पति ने भी खूब रगड़ा था और प्रेम ने भी अपनी बाहों मे मसला था पर उसको अपने बदन पर बेटे के हाथो का स्पर्श बहुत ही अच्छा लग रहा था मस्ती धीरे धीरे उसके उपर छा रही थी पर एक माँ होने की शरम उसके बहकते कदमो को रोक रही थी सौरभ के हाथ उसकी जाँघो पर आ चुके थे विनीता की टाँगे थर थराने लगी पल पल सौरभ के हाथ उपर और उपर आते जा रहे थे आख़िर अब बेटे के हाथ माँ की पैंटी पर आ गये दोनो की आँखे मिली
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