RE: kamukta जंगल की देवी या खूबसूरत डकैत
चम्पा का पूरा बदन पानी से गीला था और उसने अजय के हाथो को अपने कमर पर टिका दिया अजय की दशा देखकर वो खिलखिलाई ,उसके दांतो की पंक्ति ने अजय को और भी मोहित कर दिया था ,वही अजय उसके गीले कमर को अपने जलते हुए हाथो से महसूस कर पा रहा था ,उसने एक चांदी की पतली करधन पहनी थी जो की उसके नाभि के नीचे लटक रही थी ,चम्पा को जैसे कोई फर्क ही नही पड़ रहा हो वो अजय से थोड़ा अगल हुई और अजय के ऊपर पानी फेकने लगी ,वो किसी बच्चे की तरह व्यहार कर रही थी ,उसकी मासूमियत ने अजय के दिल में प्यार का एक झोंका सा चला दिया ,जिस्म की हवस कुछ पलो के लिए ही सही लेकिन प्यार की मिठास में बदल गई थी ,अजय बड़े ही धयन से उसे देख रहा था और उसके होठो में एक मुस्कान आ गई ,वो प्यार की छोटी सी मिठास भी बड़ी ही काम की थी क्योकि उसने अजय को चम्पा के रूप को देखने का एक नया ढंग दे दिया था ,वो अब उसके चहरे की मासूमियत उसकी अल्हड़ अदाओं में खो रहा था ,चम्पा के द्वारा फेके गए पानी से वो पूरी तरह से गीला हो गया था और अब वो भी अपने शर्म को हटाकर उसके साथ खेलना चाहता था ,उसने भी पानी को चम्पा की तरफ फेकना शुरू कर दिया दोनो ही खिलखिला रहे थे और उस सन्नाटे से भरे हुए जंगल में दोनो की अठखेलियों से उठाने वाली हँसी की आवाजे गूंज रही थी …
चम्पा और अजय एक दूसरे को जायद से ज्यादा भिगाने की कोशिस कर रहे थे जबकि दोनो ही भीग चुके थे और इसी कोशिस में अजय चम्पा के पास आ चुका था और अचानक ही वो चम्पा के ऊपर गिर पड़ा ,पानी अभी उनके कमर तक ही था ,लेकिन अजय के यू गिर जाने से चम्पा उसे और खुद को सम्हालने में लग गई यही हाल अजय का भी था ,और उसने अपने हाथो से चम्पा की कमर को जोरो से जकड़ लिया दोनो ही जिस्म एक साथ एक दूसरे से लिपट कर पानी में जा गिरे और इसी दौरान चम्पा के वक्षो को ढका हुआ साड़ी का पल्लू जो की ऐसे भी बहुत छोटा ही था सरक गया और चम्पा के गुम्बदों से उन्नत और गोल लेकिन मुलायम वक्ष अजय के सीने में गड़ गए..
जैसे एक करेंट अजय के शरीर पर चल गया था ,वो ये सोचकर ही घबरा गया की एक लड़की की नंगी छतिया उसके सीने में धंसी जा रही है ,वो उन वक्षो के मुलायम अहसास को महसूस कर पा रहा था,चम्पा भी अब थोड़ी शांत हो गई शायद उसे भी ये अहसास हो गया था की आखिर उनके जिस्म अब जवान हो चुके थे और वो किसी मर्द की बांहों में इस स्तिथि में है …
लेकिन दोनो ही पानी में पड़े हुए थे और अब भी खुद को सम्हालने में लगे हुए थे ,अजय ने खुद को सम्हाल लिया और चम्पा को भी सहारा देकर खड़ा कर लिया ,अब भी दोनो के जिस्म मिले हुए ही थे लेकिन अजय को इतनी हिम्मत ना हुई की वो चम्पा के वक्षो को निहार सके ,वो उन्हें देखना चाहता था लेकिन नही देख पाया ,वो बस चम्पा के चहरे को ही देख रहा था जो की ऐसे शर्मा रही थी और उससे अलग भी नही हो पा रही थी,अजय ने भी चम्पा को पहले बार ऐसे शर्माते हुए पाया था ,वो उससे अलग होने को मचली ही थी की उसे अहसास हुआ की अजय ने उसे कसकर जकड़ लिया है ,अजय का हाथ अभी भी चम्पा के कमर पर कसे हुए था,और वो एकटक उसकी ओर देखे जा रहा था इससे चम्पा की शर्म और भी बढ़ गया थी ,अजय और चम्पा की सांसे एक दूसरे में टकरा रही थी और दोनो ही मूर्तियों की तरह वही जम चुके थे …
चम्पा का हाथ भी अभी तक अजय के गले में पड़ा हुआ था उसने अपना सर नीचे कर लिया और उसका चहरा लगभग अजय के गले से नीचे और सीने से थोड़ा उपर तक था,अजय को अपना सर हल्का सा नीचे करके उसे देखना पड़ रहा था ,अजय ने उसके बालो में ही चूम लिया ,अजय की इस हरकत से चम्पा ने सर उठाया और अजय को आश्चर्य से देखने लगी,अजय ने फिर से उसके माथे को चूम लिया ,जिससे चम्पा के होठो में एक हल्की शर्म से भरी हुई मुस्कान खिल गई ..
“क्या इरादा है बाबू जीवन भर ऐसे ही रहना है की छोड़ोगे भी”
चम्पा ने अपना हाथ उसके गले से हटाया और उसकी बात से अजय भी हड़बड़ाया और उसने तुरंत ही चम्पा के कमर को छोड़ दिया ,चम्पा ने तुरंत ही अपने साड़ी का पल्लू उठाकर अपने खुले हुए वक्षो को ढंक लिया लेकिन इस 1-2 सेकेंड में ही अजय के सामने चम्पा की जवानी का भरपूर खिला हुआ सबूत उसके गोल और बड़े वक्ष आ गए ,जो कुछ ही पलो के लिए उसके सामने रहे लेकिन अजय की नजर में ऐसे बस गए की उसके पूरे शरीर में झुनझुनी सी छूट गई …
अजय भी शर्म से भर गया और खुद ही नजर घुमा लिया और पानी से बाहर जाने लगा,उसकी इस हरकत से चम्पा के होठो में एक मुस्कान आ गई ना जाने को अजय का इस प्रकार उससे शर्माना उसे बहुत भा गया था ..
अजय ने नजर तो घुमा ली थी लेकिन उसके आंखों में अब भी चम्पा के वक्ष नाच रहे थे ,वो अपना सर झटकता लेकिन वो फिर के आ जाते ,और उसके लिंग में भी एक अजीब सी झुरझुरी का अहसास उसे हो रहा था ,वो अपने गुदाद्वार को ऊपर खिंच कर अपनी झुरझुरी पर काबू पाने की कोशिस कर रहा था जिसे उसे स्कूल में एक योग के शिक्षक ने सिखाया था जिसे मूलबन्ध कहा जाता है...लेकिन ना जाने क्यो आज अजय अपनी इस हल्की सी वासना को दूर भागना नही चाहता था जबकि वो उसके साथ हो जाना चाहता था…
वो जाकर उस चबूतरे के पास जा बैठा जिसपर पत्थर के रूप में जंगल की देवी विराजमान थी ,थोड़ी देर में चम्पा भी आ गई और चम्पा वँहा आ गई और फिर से फूल चढ़ा कर उस जगह को साफ करने लगी ………….
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