RE: Bhabhi ki Chudai लाड़ला देवर पार्ट -2
मेने अपना एक हाथ नीचे लेजा कर बुआ की माल पुआ जैसी चूत को मुट्ठी में भरके मसल दिया…
बुआ की चूत रस छोड़ने लगी, उसने भी अपना हाथ मेरे हाथ के ऊपर रख कर और दबा दिया, और सिसकते हुए बोली –
सस्सिईईई….हाईए रे…ये क्या कर दिया तूने… मेरी चूत में आग लगा दी…अब और देर मत कर…
मेने अपनी दो उंगलियाँ बुआ की चूत में डाल दी… और अंदर बाहर करने लगा…चूत हद से ज़्यादा गीली हो गयी…
फिर मेने बुआ की मेक्सी को उसके सर के ऊपर से निकाल कर उसे पूरी तरह नंगा कर दिया…
अपने लॉड को थूक लगा कर गीला किया, और बुआ की गीली चूत में पेल दिया…
सरसराता हुआ मेरा साढ़े आठ इंच लंबा और सख़्त रोड जैसा लंड जैसे ही जड़ तक बुआ की चूत में गया,
थप्पाक से मेरी जांघें उसके भारी चुतड़ों पर पड़ी, और इसी के साथ ही बुआ के मुँह से एक लंबी कराह निकल गयी….
हआइईईई रीईए…. बेरहम… नाश्पीटे … मार्डलाअ.. रीई, तोड़ा आराम से डालता…फाड़ दी मेरी चूत मुए….. ने…
लेकिन मेने अनसुना करते हुए, अपने धक्के शुरू कर दिए, और बुआ की वो चुदाई की, कि वो चकर्घिन्नि बन गयी…
एक बार खड़े-खड़े चोदने के बाद, जब वो झड गयी, तो फिर हम तखत पर आ गये…
बुआ को घोड़ी बना कर पहले कुछ देर उसकी चूत मारी, उसके बाद मेने अपना लंड उसकी गद्देदार गान्ड में पेल दिया…
उलट पलट कर मेने बुआ को अच्छे से रगड़-रगड़ कर दो बार चोदा…
बुआ की सारी खुजली मिट गयी… तो मेने कहा – बुआ देखलो मेने आपका चॅलेंज पूरा कर दिया… फिर मत कहना…
वो – हां रे छोटू.. तू सच में मर्द हो गया है, मेरे जैसी दो बच्चों की औरत को झंड कर दिया…
उसके बाद उन्होने मेरे लिए चाय बनाई, और अपना काम ख़तम कर के नहाने चली गयी…
इतने में फूफा भी आगये, और उसके कुछ देर बाद उनकी छोटी बेटी भी स्कूल से आ गयी…
सबने मिलकर खाना खाया, उसके बाद मे विजेता को लेने उसके स्कूल चला गया…
विजेता ने घर आकर बताया कि कल से उसकी रक्षाबन्धन की छुट्टियाँ शुरू हो गयी हैं जो जन्माष्टमी तक चलेगी..…
तो मेने कहा, बुआ ये वैसे भी भैया की शादी में नही जा पाई थी, क्यों ना इसे मे अपने साथ ले जाउ.. रामा दीदी के साथ इसका मन भी लगा रहेगा…
मेरी बात सुन कर विजेता भी कहने लगी… हां मम्मी मे भैया के साथ जाउन्गी… मेने मामा, मामियों को कब से नही देखा…
फूफा जी ने भी हां करदी तो फिर बुआ ने उसे पर्मिशन दे ही दी, और उसी शाम मे विजेता को लेकर अपने घर वापस लौट लिया…
रास्ते में बहुत ज़्यादा कुछ नही हुआ, मे बस थोड़ा बहुत उसकी पढ़ाई लिखाई के बारे में ही पूछा…
लेकिन स्कूल जाते-आते वक़्त की हल्की सी मस्ती याद आते ही, विजेता ने थोड़ी बहुत हरकतें ऐसी की जो हम दोनो के शरीर में मस्ती भरने के लिए काफ़ी थी…
विजेता को मेरे साथ देख कर भाभी ने पूछा – अरे देवर जी ये कौन है..? एक को लेकर गये थे, और दूसरी के साथ लौटे हो…ये क्या चक्कर है भाई..!
मेने हँसते हुए कहा – कोई चक्कर नही है भाभी ! ये शांति बुआ की बेटी विजेता है.. आप नही जानती इसको.. मेरे बताते ही रामा दीदी ने उसे पहचान लिया.. और वो उसके गले लग गयी…
फिर कुछ देर इधर-उधर की बातें की और अपने घर गाँव के हाल चाल पुछे…
कॉलेज में मेरी एक अलग ही इमेज थी, एक ज़िम्मेदार स्टूडेंट की, … जो कॉलेज की व्यवस्थाओं में भी सहभागिता रखता था…. टीचर्स और प्रिन्सिपल तक मेरी बात का सम्मान करते थे..
हालाँकि हमारे कॉलेज में लड़कियाँ भी थी, और ऐसा भी नही था… कि मे कोई ब्रह्मचारी था… आप सभी जान ही चुके हैं…. लेकिन…
लेकिन अपने कॉलेज में मेने अपनी एक साफ-सुथरी इमेज कायम कर रखी थी… लड़कियों से कोसों दूर रहना मेने अपना नियम सा बना लिया था…
ठाकुर सूर्य प्रताप सिंग…. जिनकी इस कस्बे में बहुत लंबी चौड़ी ज़मीन जयदाद थी… एक तरह से कस्बे के ज़मींदार थे…प्रशासनिक कार्यों में भी इनकी अच्छी ख़ासी पैठ थी…
कॉलेज को मान्यता दिलवाने में भी इनका बहुत बड़ा योगदान रहा, …
कस्बे के सभी बड़े छोटे व्यापारी, किसान सब इनका बड़ा आदर करते थे… या कह सकते हैं इनके एहसानो तले दबे रहते थे…डरते थे इनसे…
ठाकुर साब की बेटी रागिनी भी इसी कॉलेज में थी, उसके सब्जेक्ट अलग थे… आर्ट्स के और मे साइन्स सेक्षन में था…
रागिनी का एक बड़ा भाई भी था, भानु प्रताप सिंग… जो अपने पिता की दबन्गयि में चार चाँद लगाने में एहम भूमिका निभाता था…
कॉलेज की ज़्यादातर लड़कियाँ रागिनी की चापलूसी करती रहती या यूँ कहो… कि उसके पैसों से मौज करती, और उसकी हां में हां मिलाती रहती थी…
मे आज अपना लास्ट पीरियड अटेंड कर के थोड़ा लाइब्ररी चला गया एक दो बुक लेनी थी..
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