RE: Bhabhi ki Chudai लाड़ला देवर पार्ट -2
संजू की निशानदेही पर उसी खंडहर नुमा मकान के एक कोने में पड़े कचरे के ढेर से हमने उसकी डेड बॉडी को हासिल कर लिया…!
घटना को कई दिन हो चुके थे.., उसकी बॉडी से बदबू उठने लगी थी.., गंदगी के ढेर में लाश दबी रहने के कारण उसमें कीड़े पड़ना भी शुरू हो गये थे…!
मेने और ललित ने बदबू से बचने के लिए अपने अपने मूह पर कपड़ा भी बाँध लिए था.., लेकिन फिर भी काफ़ी देर तक उसमें से निकलने
वाली बदबू हमें परेशान करती रही…!
लेकिन जल्दी ही हम उसके आदि हो गये.., इस दौरान ललित के चेहरे पर रह रह कर अलग अलग तरह के भाव आते रहे…, कभी वो संजू
वाली अवस्था में आकर अपने शरीर की इस तरह की दुर्गति देखकर दुखी होने लगता…!
तो दूसरे पल सामान्य स्थिति में आकर काम में मेरी मदद करने लगता…!
ये अच्छा था कि इस रास्ते का वो लोग कभी कभार ही स्तेमाल करते थे इसलिए कोई अन्य बाधा हमारे काम में रुकावट पैदा नही कर पाई…!
जैसे तैसे संजू की डेड बॉडी को नदी के किनारे तक पहुचाया.., चंबल के स्वच्छ पानी से उसे स्नान कराया.., फिर वाकायदा एक अर्थी बनाकर
उसका विधि विधान से चिता सजाकर हमने संजू की मृत देह को आग के हवाले कर दिया…!
आग जलती देख उधर को कोई आ ना धमके उसके लिए हमने छिपने के लिए दर्रों की शरण ले ली…!
हम वहाँ तब तक छिपे बैठे संजू की चीता को देखते रहे जबतक उसकी चीता पूरी तरह शांत होकर ठंडी ना पड़ गयी…!
इस काम को अंजाम देते देते अंधेरा घिरने लगा था.., इस बीच संजू का हमारे बीच होने को कोई आभास भी नही हुआ.., ललित एक दम
सामान्य ही रहा..!
ज़्यादा अंधेरा घिरने से पहले ही हम उसकी चिता के करीब गये.., राख अभी भी गरम ही थी..,
लकड़ियों की मदद से उसकी चिता की राख को कुरेद कुरेद कर हमने यथा संभव उसकी सारी अस्थियों को चुनकर एक कलश में एकत्रित कर लिया…!
एक लाल कपड़े से अच्छी तरह उसका मूह बाँध कर हम चुके ही थे कि तभी नदी के स्वच्छ नीले पानी की सतह पर एक फॅक्क्क सफेद धुएँ की चादर जैसी फैल गयी..,
हमारे देखते देखते वो धुएँ की सफेद चादर चादर हवा में तैरती हुई एक अजीबो ग़रीब आकृति का रूप लेते हुए हमारी तरफ आने लगी…!
ललित अभी बच्चा ही था.., वो उसे देखकर डर के मारे काँपने लगा, और उसने मेरी कौली भर ली..!
भय युक्त उत्तेजना का मिला जुला आभास मुझे भी अपने अंदर हो रहा था.., लेकिन फिर भी बड़े होने के नाते मेने ललित को अपने से सटाते
हुए उसे हौसला बनाए रखने की गरज से कहा…!
हमें डरने की ज़रूरत नही है ललित.., ये अपना संजू ही है.., हौसला रख इससे हमें कोई हानि नही होगी…!
अबतक वो विचित्र आकृति जो लग तो किसी मानवकृति की तरह ही थी.., लेकिन उसका पूरे बदन का हर हिस्सा हवा में इधर से उधर लहरा रहा था…, वो अब हमारे करीब नदी के किनारे तक आ चुकी थी…!
अचानक उस आकृति के मूह से एक विचित्र तरह की आवाज़ निकली….,
धन्यवाद वकील भैया.., आपने मेरे शरीर को विधि पूर्वक चिता के हवाले करके मेरे उपर बहुत बड़ा उपकार किया है.., अब में अपनी प्रेतलोक
की दुनिया में जा रहा हूँ…!
वहाँ जाकर उनकी धर्म संसद में अपनी बात रखूँगा.., अगर मेरी बात जायज़ हुई तो मुझे प्रेत यौनी की सारी शक्तियाँ प्राप्त हो जायेंगी जिनका
मे जैसे चाहूं स्तेमाल कर पाउन्गा…!
अतः अब कुच्छ समय के लिए मे आप लोगों से विदा ले रहा हूँ.., हो सका तो जल्दी ही आपके पास लौटूँगा…, इतना कहकर क्षणभर में ही वो आकृति वातावरण में विलीन हो गयी…!
संजू के वहाँ से विलीन होते ही हम दोनो भी उसके अस्थि कलश को लेकर अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ गये…!
|