RE: Bhabhi ki Chudai लाड़ला देवर पार्ट -2
ये तो तय था कि अब कुच्छ समय तक संजू की आत्मा हमारे साथ रहने वाली नही थी, उसके बिना हम एकदम दिशाहीन थे, घर लौटने का
मतलब था संजू की आत्मा को एक तरह से ठेस पहुँचाना…!
वो पहले ही बोल चुका था कि जबतक अपनी प्रिया को उन बदमाशों के चंगुल से निकाल नही लेता तबतक उसे चैन नही मिलेगा…!
संजू के पार्थिव शरीर का दाह संस्कार करने के बाद मे ललित को लेकर कस्बे में लौट आया.., अब जब यहीं रुकना है तो रात गुजारने के लिए हमें किसी अच्छी सी जगह की तलाश करनी थी..,
लेकिन ये कस्बा ज्यदा डेवेलप्ड नही था इससे एक बड़ा गाओं ही कह सकते थे, जाहिर है यहाँ किसी होटेल या फिर किसी अच्छे से लॉज की संभावना कम ही नज़र आ रही थी…!
हम दोनो एक चाइ वाले की तपरी पर बैठकर चाइ पी रहे थे, समय लगभग 7:30 या 8 का ही था.., चाइ पीते पीते हमने उस चाइ वाले से आज रात ठहरने की कोई उचित व्यवस्था मिल सके इस विषय पर चर्चा की…!
उसने हमें भिंड की तरफ जाने वाले हाइवे पर यहाँ से कोई 15किमी आगे एक होटेल बताया जिसमें अच्छे खाने पीने की व्यवस्था के साथ साथ
रहने का भी अच्छा इंतेजाम मिल सकता है…!
चाइ पीकर हम उसी हाइवे पर आगे बढ़ गये और कोई आधे घंटा के बाद हम उस होटेल के रिसेप्षन पर थे…!
होटेल ज़्यादा अच्छा तो नही था लेकिन रात गुजारने लायक यहाँ सारी व्यवस्था मौजूद थी…!
ठहरने की व्यवस्था मेन रेस्टोरेंट से हटकर सेपरेट्ली साइड में थी.., हमने रूम बुक करके गाड़ी की डिकी से अपना बॅग लिया जिसमें दो-चार रोज लायक कपड़े और भी ज़रूरत की चीज़ें थी जिन्हें मे टूरिंग के समय साथ रखता ही हूँ…!
खाना हमने रूम में ही मंगवा लिया.., कोई 9-9:30 तक खाना ख़तम करके मे बाहर सामने बने छोटे से लॉन में टहलने चला गया..,
करीब आधे घंटे बाद जब में रूम में वापस पहुँचा तब तक ललित गहरी नींद में सो चुका था.., बेचारे के शरीर को ना जाने कोन्से वक़्त संजू की आत्मा भी आकर स्तेमाल कर लेती थी…!
जिन्हें ये सब झेलने का एक्सपीरियेन्स है वो ये समझ सकते हैं कि जब कोई प्रेत-आत्मा किसी के शरीर पर कब्जा कर लेती है.., उसके बाद जब वो अपनी सामान्य स्थिति में वापस आता है, तब उसके मन-मस्तिस्क को कितनी थकावट होती है ये तो वो ही महसूस कर सकता है जिसने झेला हो…!
एसी रूम में वो बिना कंबल ओढ़े ही सो गया था.., लेकिन ठंड महसूस करते ही उसके घुटने पेट की तरफ मूड गये.., मेने कंबल लेकर उसे
गले तक ऊढा दिया…!
ये लॉज ज़्यादा बड़ा नही था.., बस तीन मंज़िल तक रूम थे, हमारा रूम सबसे उपर था.., मेने रूम में आने के बाद से पहली बार पीछे की
साइड की विंडो का करटन खिसका कर होटेल के रूम के पीछे के हिस्से पर नज़र डाली…!
रोड से देखने पर होटेल के पीछे बस घने और उँचे पेड़ों के अलावा और कुच्छ नही दिखता था, ऐसा लगता था जैसे यहाँ मात्र एक बगीचा जैसा ही होना चाहिए…!
लेकिन जब मेने परदा खिसका कर पीछे के पोर्षन को देखा…, साला ये तो कोयले की खदान में हीरे मिलने जैसा था.., क्या शानदार लॉन
जिसके चारों तरफ एक 10-12 फीट हाइट की बाउंड्री के अंदर बड़े बड़े घने उँचे पेड़…!
लॉन में जगह जगह तरह तरह के फूलों की क्यारियाँ.., मयूर पंखी की कटिंग करके बनाई गयी तरह तरह की आकृतियाँ.., एक छोटा लेकिन सॉफ नीले पानी से भरा स्विम्मिंग पूल भी…!
पूल की सीढ़ियों के बाद से संगेमरमर का फर्श जो कि लास्ट में बनी एक छोटी लेकिन बहुत ही शानदार कॉटेज तक चला गया था…!
मे कौतूहल बस इसे देखते हुए मन ही मन विचार करने लगा.., साला ये इतनी अच्छी जगह जिसे एक तरह से आम लोगों की नज़रों से छिपाने की कोशिश की गयी है.., आख़िर है किसकी और किस पर्पस से रखी गयी है…?
अभी मे अपने अंदर से इस सवाल के जबाब को खोजने की कोशिश कर ही रहा था कि कॉटेज की गेलरी से आती हुई दो मानव आकृतियाँ वहाँ की लो लाइट में लॉन की तरफ आती दिखाई दी…!
वहाँ इतनी तेज लाइट नही थी.., इसलिए वो कॉन और कैसे लोग हैं ये नही देख पा रहा था.., हां उनमें से एक औरत थी तो दूसरा आदमी..,
दोनो ने आगे सिंगल डोरी से बाँधने वाले घुटनों तक के गाउन पहन रखे थे.., दोनो के एक-एक हाथ में ग्लास लगा हुया था.., जिनमें मेह्न्गि शराब के अलावा और कुच्छ तो होने की संभावना ही नही थी…!
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